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260 वर्षाे से क्यों हो रहा जनजातियों का आंदोलन असफल

विशेष संपादकीय -संपादक विवेक डेहरिया 

260 वर्षाे से क्यों हो रहा जनजातियों का आंदोलन असफल

इतिहास इस बात का गवाह है कि गोंडवाना भूभाग में निवासरत जनजातियों का आंदोलन चाहे वह क्रांतिसूर्य महामानव बिरसा मुण्डा के समय का आंदोलन, हूल जौहार की बात हो चाहे बीर योद्धा महाराजा शंकरशाह व कुंवर रघुनाथ जी के समय का ही आंदोलन रहा हो चाहे वर्तमान समय में हो रहे नेताओं के नेतृत्व में होने वाले आंदोलन को नाम तो बहुत मिला और मिलता है परंतु सफलता पूर्णतय: क्या नाममात्र की भी नहीं मिल पाती है तो कहा जाये तो गलत नहीं होगा । जनजातियों का आंदोलन तो पहले भी बहुत होते रहे है अपने अपने हक अधिकार को लेकर परंतु यदि हम बीते 260 वर्ष पहले की बात करें तब से जनजातियों को आंदोलन तीव्र गति से प्रारंभ होता है तब से लेकर उस आंदोलन में जितनी संख्या में आदिवासी का जनसैलाब या सगा समुदाय की जनसंख्या आंदोलन में दिखाई देती है उसे देखकर लगता है कि अब जनजाति सफल हो जायेंगे और उनको संवैधानिक हक अधिकार जो वास्तविकता में उन्हें मिलना चाहिये वह मिल ही जायेंगे लेकिन जिस उद्देश्य या लक्ष्य को लेकर वह आंदोलन कर रहे है उस मंजिल व मकसद पूरा होते होते ही रह जाता है और कुछ जगह पर तो जनजातियों का आंदोलन प्रारंभ होने के कुछ ही समय बाद बिना कोई सफलता के समाप्त हो जाता है और कुछ आंदोलन अधूरे ही रह जाते है । यदि हम जनजातियों के आंदोलन के समय इतिहास के पन्नों में जाये या उस दौरान के जानबकार बुजुर्गों की बातों पर विश्वास करे तो आंदोलन की मौजूदा परिस्थिति का ऐतिहासिक प्रमाणिक जानकारी का एवं वर्तमान के हो रहे आंदोलन के हालातों को देखा जाये तो आंदोलन में साधन, संपन्न, संसाधान, नीति-नियम, अनुशासन, आंदोलन चलाने के लिये प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की कमी, प्रमुख नेतृत्व पर विश्वास की सबसे कमी होती है और हर कोई प्रमुख नेतृत्व कर्ता बन जाना चाहता है । इसके साथ ही जनजातियों के आंदोलन में शामिल हुये कुछ दलालों, स्वार्थी रूपी नेताओं के द्वारा केवल अपने ही स्वार्थों के लिये जुड़े स्वार्थीतत्व, धनलाभ के लिये जनजातियों के आंदोलन में घुसपैठ करके अपना स्वार्थ सिद्धा करने में पीछे नहीं हटते है दिखावा पूरा करते है कि हम ही जनजातियों के सबसे बड़े हितेषी है लेकिन अंदर जितनी मक्कारी और बेईमानी भरी रहती है उसे वह केवल अपने साथ के उन लोगों के साथ आदान-प्रदान करते है जो जनजाति के आंदोलन को जमीन में दफन करने के लिये गिरोह बनाकर काम करते है यहां तक की पूरे आंदोलन को ही बेचने के लिये तैयार हो जाते है अर्थात बाजार में बोली न लगाकर चुपचाप आंदोलन को बेच देते है यह सब खेल इतना गोपनीयता के साथ खेला जाता है कि आंदोलनकारियों को भी समझ में नहीं आता है कि आखिर कौन आंदोलन को हराने के लिये काम कर रहा है क्योंकि मंच और माईक में इनके बोल बचन सुनकर जनजाति समुदाय को विश्वास भी नहीं होता है ऐसे लोगों की पहचान को जानबूझकर छिपाने का प्रयास पूरा गिरोह करता है ।

नेतृत्व पर विश्वास की कमी और स्व्यं नेतृत्व बनने की होढ़ भी कारण

जबकि यह शाश्वत सत्य है और यथार्थता के साथ वास्तविकता है कि जनजाति समुदाय सीधा-सादा, भोला-भाला, सच्चा ईमानदार होता है परंतु कुछ स्वार्थीतत्व रूपी नेता या कार्यकर्ताओं का प्रवेश इनकी विश्वनीयता, ईमानदारीा, भोलाभालापनाा, सीधा सादापन पर अंगूली उठाने को मजबूर कर देता है और आंदोलन पर आदिवासी जनता का विश्वास धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है । ऐतिहासिक प्रमाणिक जानकारी के अनुसार सभी जानते है कि महामानव बिरसा मुण्डा के आंदोलन की असफलता और मौत के पीछे किसी और का नहीं वरन अपने ही के स्वार्थ के कारण हुआ था नहीं कम उम्र में जो आंदोलन बिरसा मुण्डा ने खड़ा किया था उसे देखकर दुश्मनों के रौंगटे तो खड़े ही हो जाते थे परंतु अंग्रेजी हुकुमत भी घबराहट में आ गये थे और अंग्रेज यह मानने लगे थे कि हम जनजातिय वर्ग पर राज काज नहीं कर पायेंगे इन्हें गुलाम बनाना आसान नहीं है लेकिन स्वार्थ के चलते पता बताने वालों के कारण बिरसा मुण्डा का आंदोलन को कमजोर करने के लिये बिरसा मुण्डा को पकड़वा दिया गया अर्थात जनजातियों के आंदोलन के जो हुआ, होता आया वह आज भी निरंतर चल रहा है । जनजाति वर्ग के पास सबसे ज्यादा खनिज संपदा, सबसे ज्यादा जमीन, जल, जंगल होने और राजपाठ का इतिहास जिनके शासनकाल में सोने के सिक्के चलते थे वे आज किस स्थिति में है इसके पीछे क्या कारण है । जनजाति वर्ग का चल रहा आंदोलन में आर्थिक कमजोरी होती है साधन, संसाधन की कमी होती है इसके साथ ही आंदोलन का जो नेतृत्व कर्ता होता है उसे अधिक समय तक नेतृत्व नहीं माना जाता है अधिकांश कार्यकर्ता ही नेतृत्व पर अंगूली उठाकर अपने को ही नेतृत्वकर्ता बनने की होढ़ करने लगते है ओर इसके लिये नेतृत्व पर आरोप-प्रत्यारोप, अनावश्यक कमी निकालना, दुष्प्रचार करना, अफवाह फैलाना, सवाल-जवाब करना तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर अपने ही नेतृत्वकर्ता को बदनाम करने का काम जोरशोर से किया जाता है । विरोधी ताकतों से जो जनजाति वर्ग का आंदोलन सफल नहीं होने देना चाहते है उनसे रूपया, धन, दौलत, शौहरत समेटकर या सिर्फ अपना व अपने ही गिरोह के कुछ स्वार्थियों के लिये समेटकर इंतजाम करके पूरी मेहनत और ताकत आंदोलन में फूट डालकरा, आंदोलन को दो टुकड़ों में बांटकर कार्यकर्ताओं को आपस में बांटने का काम करता है जो कार्यकर्ता एक ही आंदोलन में साथ साथ मिलजुलकर काम करते थे उन्हें नेतृत्वकर्ता की बुराई बताकर अलग अलग कर दिया जाता है ओर बांट दिया जाता है । जनजाति के आंदोलन को असफल बनाने के लिये विरोधियों के टुुकड़ों में पलकर कार्यकर्ताओं के बीच में जहरीली दुश्मनी का बीज ऐसा बोने का काम करते है कि बात भी करते है तो जहर ही कार्यकर्ता एक दूसरे के प्रति उगलने लगते है । नेतृत्वकर्ता के प्रति झूठ का ऐसा पुलिंदा तैयार करवाकर दुश्मनों के साथ हाथ मिलाकर प्रमुख नेतृत्वकर्ता को एवं आंदोलन को समाप्त करने का षडयंत्र चतुराई के साथ किया जाता है । जनजाति के आंदोलन को समाप्त करने के लिये जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया जाता है उससे ऐसा आंदोलन में शामिल कार्यकर्ता एवं आंदोलन को सुनने व समझने वाला जनजाति समुदाय के सदस्य भी सही मानने लगते है और धीरे धीरे आंदोलन से अपना विश्वास समाप्त कर आंदोलन में शामिल होना बंद कर देते है या कम कर देते है ।

कार्यकर्ताओं को ही बना देते है आपस में दुश्मन 

गोंडवाना भू भाग में चलने वाला प्रत्येक जनजाति वर्ग का आंदोलन जो कि जनजाति वर्ग के हित हक अधिकारों के लिये चलाया जाता है उक्त आंदोलन मेें जिस नेतृत्वकर्ता की बदौलत शिखर तक पहुंचता है उसे वह नेतृत्वकर्ता स्वीकार करने में हिचकिचता है या असफल नेतृत्वता की अफवाह फैलाकर बदनाम करने का षडयंत्र करता है । स्वार्थ के चलते स्वयं नेतृत्वकर्ता बनने के चक्कर में आंदोलन को दो टुकड़ों में बांट देता है विभाजन कर देता है और कार्यकर्र्ताओं को एक दूसरे का आपस में दुश्मन बना देता है इसके लिये विरोधी ताकतों या दुश्मनों का सहारा लिया जाता है जिससे दुश्मन का काम बैठे बैठे हो जाता है । जनजातियों के आंदोलन को असफलता मिलने के बीच सबसे बड़ी कमी एकता की है जो ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाती है इतिहास के बात न करके यदि हम वर्तमान की बात करें तो अब जनजाति वर्ग के अनेक संगठनों के द्वारा अनेकों आंदोलन चलाये जा रहे है जिनका लक्ष्य एक ही है कि जनजाति वर्ग को उनके हक, अधिकार दिलाना है इस तरह का कार्यक्रम चलाने का काम अधिकांश शिक्षित वर्गों के द्वारा किया जाता है जो उच्च शिक्षा प्राप्त होते है । जबकि अशिक्षित जनजाति वर्ग तो हमेशा आंदोलन में ईमानदारी के साथ अपनी भूमिका निभाता है लेकिन उन्हें अलग-अलग चलने का दिमाग और उपयोग शिक्षित वर्गों के संगठन के मुखियाओं व कर्ता धर्ताओं के द्वारा किया जाता है । जनजाति के आंदोलनों को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाता है जिससे जनजाति का आंदोलन असफलता की ओर पहुचंने लगते है । जनजाति वर्ग में अलग अलग जातियों का जहर बोकर ऐसी जहरीली खेती तैयार की जाती है कि विशाल जनसमुदाय की जनसंख्या वाला जनसमुदाय आपस में बंटकर, विभाजित हो जाता है जो विशाल जनसंख्या का कम कर देता है । जनजाति के आंदोलन को सफलता के पायदान तक पहुंचाने के लिये एकता, संगठन, विश्वास, आपसी सांजस्य की अत्यंत आवश्यकता है साथ में त्याग, तपस्या और बलिदान की क्षमता होना चाहिये इसके साथ ही स्वार्थ व मोह को त्यागना जरूरी है तभी जनजातियों का आदंोलन सफल हो सकता है ।

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