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हमारे आदिवासी भाई-बहन पेड़-पौधों और फूलों की पूजा देवी-देवताओं की तरह करते हैं-प्रधानमंत्री


हमारे आदिवासी भाई-बहन पेड़-पौधों और फूलों की पूजा देवी-देवताओं की तरह करते हैं-प्रधानमंत्री 

आदिवासी समुदाय बहुत शांतिपूर्ण और आपस में मेलजोल के साथ रहने में विश्वास रखता है,

सबसे पहले स्वतंत्र सेनानियों में आदिवासी समुदाय के लोग ही थे

आज हमारे पास जो जंगलों की सम्पदा बची है, इसके लिए हमारा देश आदिवासियों का ऋणी है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 28 अक्टूबर को 49 वीं बार मन रेडियो कार्यक्रम मन की बात के जरिए देशवासियों को संबोधित किया। पीएम मोदी ने इस संबोधन में विशेष रूप से देश के जनजाति समुदाय के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ किये गये आंदोलन से लेकर प्रकृति को बचाने के लिये उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर अपना संदेश दिया । 


नई दिल्ली । गोंडवाना समय। मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, इस बार जब मैं मन की बात को लेकर आप लोगों के सुझाव देख रहा था तो मुझे पुडुचेरी से श्री मनीष महापात्र की एक बहुत ही रोचक टिप्पणी देखने को मिली। उन्होंने ट८ॅङ्म५पर लिखा है-कृपया आप मन की बात में इस बारें में बात कीजिये कि कैसे भारत की जनजातियाँ उनके रीति-रिवाज और परंपराएँ प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं ह्ण।र४२३ं्रल्लुं’ी ीि५ी’ङ्मस्रेील्ल३ के लिए कैसे उनके ३१ं्िर३्रङ्मल्ल२को हमें अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है,उनसे कुछ सीखने की जरुरत है। मनीष जी- इस विषय को मन की बात के श्रोताओं के बीच रखने के लिए मैं आपकी सराहना करता हूँ। यह एक ऐसा विषय है जो हमें अपने गौरवपूर्ण अतीत और संस्कृति की ओर देखने के लिए प्रेरित करता है। आज सारा विश्व विशेष रूप से पश्चिम के देश पर्यावरण संरक्षण की चर्चा कर रहे हैंऔर संतुलित जीवनशैली ुं’ंल्लूी ’्राी के लिए नए रास्ते ढूंढ रहे हैं। वैसे आज हमारा भारतवर्ष भी इस समस्या से अछूता नहीं है, लेकिन इसके हल के लिए हमें बस अपने भीतर झाँकना है, अपने समृद्ध इतिहास, परंपराओं को देखना है और खासकर अपने जनजातीय समुदायों की जीवनशैली को समझना है। प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर के रहना हमारे आदिवासी समुदायों की संस्कृति में शामिल रहा है। हमारे आदिवासी भाई-बहन पेड़-पौधों और फूलों की पूजा देवी-देवताओं की तरह करते हैं। मध्य भारत की भील जनजाति में विशेषकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लोग पीपल और अर्जुन जैसे पेड़ों की श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। राजस्थान जैसी मरुभूमि में बिश्नोई समाज ने पर्यावरण संरक्षण का रास्ता हमें दिखाया है। खासतौर से वृक्षों के संरक्षण के संदर्भ में उन्हें अपने जीवन का त्याग करना मंजूर है लेकिन एक भी पेड़ का नुकसान पहुँचे ये उन्हें स्वीकार नहीं है। अरुणाचल के मिशमी,बाघों के साथ खुद का रिश्ता होने का दावा करते हैं। उन्हें वो अपना भाई-बहन तक मानते हैं। नागालैंड में भी बाघों को वनों के रक्षक के रूप में देखा जाता है। महाराष्ट्र के वार्ली समुदाय के लोग बाघ को अतिथि मानते हैं उनके लिए बाघों की मौजूदगी समृद्धि लाने वाली होती है। मध्य भारत के कोल समुदाय के बीच एक मान्यता है कि उनका खुद का भाग्य बाघों से जुड़ा है, अगर बाघों को निवाला नहीं मिला तो गाँव वालों को भी भूखा रहना पड़ेगा - ऐसी उनकी श्रद्धा है। मध्य भारत की गोंड जनजाति ु१ीी्िरल्लॅ २ीं२ङ्मल्ल में केथन नदी के कुछ हिस्सों में मछली पकड़ना बंद कर देते हैं। इन क्षेत्रों को वो मछलियों का आश्रय स्थान मानते हैं इसी प्रथा के चलते उन्हें स्वस्थ और भरपूर मात्रा में मछलियाँ मिलती हैं। आदिवासी समुदाय अपने घरों को ल्लं३४१ं’ ें३ी१्रं’ से बनाते हैं ये मजबूत होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं। दक्षिण भारत के नीलगिरी पठार के एकांत क्षेत्रों में एक छोटा घुमन्तु समुदाय तोड़ा, पारंपरिक तौर पर उनकी बस्तियाँ स्थानीय स्थर पर उपलब्ध चीजों से ही बनी होती हैं। मेरे प्यारे भाइयो-बहनो ये सच है कि आदिवासी समुदाय बहुत शांतिपूर्ण और आपस में मेलजोल के साथ रहने में विश्वास रखता है, पर जब कोई उनके प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान कर रहा हो तो वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने से डरते भी नहीं हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे सबसे पहले स्वतंत्र सेनानियों में आदिवासी समुदाय के लोग ही थे। भगवान बिरसा मुंडा को कौन भूल सकता है जिन्होंने अपनी वन्य भूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया। मैंने जो भी बातें कहीं हैं उनकी सूची काफी लम्बी है आदिवासी समुदाय के ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो हमें सिखाते हैं कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर कैसे रहा जाता है और आज हमारे पास जो जंगलों की सम्पदा बची है, इसके लिए देश हमारे आदिवासियों का ऋणी है। आइये ! हम उनके प्रति आदर भाव व्यक्त करें।

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