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गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का वोट प्रतिशत कम करने में एकता की कमी और बिखराव रहा कारण

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का वोट प्रतिशत कम करने में एकता की कमी और बिखराव रहा कारण 

राजनैतिक विश्लेषण 

सिवनी। गोंडवाना समय। 

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने वर्ष 2003 में कम साधन-संसाधन में और कार्यकर्ताओं के बलबूते 3 विधायक अमरवाड़ा, घंसौर, परसवाड़ा से बनाया था लेकिन उसके बाद होने वाले चुनाव में एक भी विधायक नहीं बना पाई और गोंगपा को मिलने वाला वोट भी कम होता गया है मध्य प्रदेश में जो वोट वर्ष 2003 में पूरे प्रदेश में मिला था वह नीचे की ओर खिसकते खिसकते कम हो गया है। इसके पीछे क्या कारण है या मुख्य वजह क्या रही, कौन सी कमी रह गई इस पर मंथन-चिंतन यदि किया जाये तो एकता की कमी और बिखराव स्वार्थ की भावना बलवती होती गई और त्याग, तपस्या, बलिदान है गोंडवाना की पहचान के नारे को धता बता दिया गया । इसके साथ ही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को कमजोर करने के लिये आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वाले अन्य प्रदेशों के दलों को मध्य प्रदेश में मेहमान बनाकर निमंत्रण देकर उनकी जमीन को मजबूत करने का काम भी कहीं न कहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के जिम्मेदारों ने ही किया था नहीं शिबू सोरेने की पार्टी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को मध्य प्रदेश में कौन पहचानता था वहीं स्व पी ए संगमा की पार्टी नेशनल पीपूल्स पार्टी को कौन पहचानता था लेकिन इन्हें हाथ पकड़ पकड़ कर मध्य प्रदेश की धरती में लाया गया और उनके कार्यक्रमों को आयोजन करवाकर उन्हें मध्य प्रदेश में अपनी अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिये उकसाया गया इसका प्रतिफल क्या हुआ विधानसभा चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का साथ न देकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के खिलाफ में ही चुनावी मैदान में उतरकर और उम्मीदवार वे बने जो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लिये काम करते थे या ऐसे सामाजिक संगठन जो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को कमजोर करने के लिये भाजपा कांगे्रस का सहारा लेकर पहले भी काम कर रहे थे आज भी कर रहे है उनके द्वारा उम्मीदवार खड़ा करके गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का ही वोट काटने का काम किया गया परिणाम यह हुआ कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पक्ष में मदतान प्रतिशत कम होता चला गया । 


गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में बिखराव, फूट, दो नहीं कई हुये थे फाड़ 

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में वर्ष 2003 के बाद जैसे ही 3 विधायक बने उसके बाद चाहे राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव की बात हो या राज्यसभा सदस्य के चुनाव हो पार्टी विहप के खिलाफ जाकर या निर्णय नहीं होने के कारण संभवतय: अलग अलग ही वोटिंग की गई कुल मिलाकर कहा जाये कि एकमतेन निर्णय नहीं हो पाने के कारण मात्र तीन विधायक ही अलग अलग बंट गये थे इसके बाद धीरे धीरे गोंगपा में वैचारिक मतभेद इस कदर बढ़ता गया कि वर्ष 2008 में मुक्ति सेना का गठन हो गया जो गोंगपा के लिये संगठन के रूप में काम किया करती थी वह राजनैतिक दल के रूप में पजीकृत होकर मध्य प्रदेश में यात्रा निकालकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को कमजोर करने के लिये निकल पड़ी और गांव-गांव, शहर-शहर कहें या अमरकंटक जैसे स्थल में आजू-बाजू मंच लगने लगे जहां से एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के अलावा और कोई सुनाई नहीं देता था यहां तक अपने ही सगे सगा समाज के युवा व बुजुर्ग तक एक दूसरे को निबटाने में कोई संकोच नहीं कर रहे थे । गोंडवाना गणतंत्र पार्टी या गोंडवाना मुक्ति सेना दो अलग अलग होकर राजनैतिक गतिविधियों को संचालित कर रहे थे वर्ष 2008 में अलग अलग चुनाव भी लड़ा और हश्र यह हुआ कि दोनो हार गये मतदान का प्रतिशत दोनो में विभाजित होकर कम हो गया अर्थात मध्य प्रदेश की धरती में मजबूत होने के बाद राजनैतिक दुर्बलता परिणाम के रूप में सामने आई । इतना सब होने के बाद भी वैचारिक मतभेदों में कहीं कोई कमी नहीं होने का नाम नहीं ले रही थी सबका अपना स्वार्थ सर चढ़ कर बोल रहा था एक दूसरे को गलत सही बताने के चक्कर में राजनैतिक परिदृश्य से मानो गायब की स्थिति में चले जा रहे थे क्योंकि कोई भी सदन की कुर्सी में नहीं पहुंच पाया और समाज के साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ मध्य प्रदेश की विधानसभा में कोई आवाज नहीं उठाने वाला विधायक नहीं बन पाया है इसके पीछे सिर्फ एकमात्र कारण यही रहा है कि एकता की कमी रही, बिखराव फूट ने राजपाठ छीन लिया । इसके बाद यदि हम वर्ष 2013 के चुनाव की करें तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से अलग होकर बनी मुक्ति सेना तो शांत हो गई लेकिन अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी का जन्म हो गया और फिर चुनावी मैदान में वर्ष 2013 में दो फाड़ के में चुनावी मैदान में गोंडवाना आंदोलन नजर आने लगा । मतदान का प्रतिशत दो भागों में बंट गया जो चुनाव आसानी से जीत सकते थे उनमें से कुछ सीटों में बहुत अंतर से हार गये अर्थात यह कहा जा सकता है कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की हार का प्रमुख कारण यही है कि वैचारिक मतभेद के चलते विभाजन व बिखराव की भावना बलवती होती रही है परिणाम गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कहे या गोंडवाना मुक्ति सेना हो, अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी हो मतदान का प्रतिशत कम होता गया ।

गोंडवाना के नाम से बने कई संगठन

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को राजनैतिक रूप से कमजोर करने के लिये गोंडवाना कांग्रेस, राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी सहित अनके ऐसे नाम से राजनैतिक संगठनों का गठन हुआ इसके साथ ही अनेक समाजिक संगठनों ने भी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को कमजोर करने के लिये समाजिक संगठन के रूप में तो काम किया लेकिन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को राजनैतिक रूप से सहयोग करने में अपने हाथ हमेशा पीछे खीचते रहे या कोई भी सहयोग नहीं किया वरन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के नेताओं पर आरोप मंचों से जरूर लगाते रहे है लेकिन खुद का चेहरा इन संगठनों ने छिपाये रखा कि वे कहां से और किस के इशारे पर संचालित हो रहे है आज भी यही स्थिति है अधिकांश सामाजिक संगठन जो दूसरे राजनैतिक दलों का साथ देने को तैयार है परंतु गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में कमी बताने का ही काम रहे है । यदि हम वर्ष 2008 और वर्ष 2013 की बात करें तो अमरवाड़ा विधानसभा में ही गोंगपा, भागोपा के अलावा भी अन्य राजनैतिक व सामाजिक संगठनों ने चुनाव लड़ा था ओर जीतने वाले मनमोहन शाह बटटी चुनाव हार गये थे । लखनादौन में तो वर्ष 2008 में यह स्थिति थी कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी व मुक्ति सेना के अलावा अन्य पदाधिकारी गोंगपा से ही टूटकर चुनावी मैदान में खड़े थे उनका यदि वोट मिलाया जाता तो लगभग 60000 हजार वोट से अधिक होता लेकिन चुनावी समर में कूदने और आपसी फूट के चलते भाजपा कांग्रेस के गढ़ को तोड़ने मे कामयाब हो गई और भाजपा चुनाव जीतकर आ गई है । कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में यदि बिखराव न हो तो मध्य प्रदेश के कई विधानसभा में विधायक चुनकर आ सकते थे परंतु एकता नहीं होने के कारण असफलता ही हाथ लग रह है।

अब तो सब एक है यही एकता गोेंगपा का बढ़ा सकता है वोट का प्रतिशत

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नैनपुर में एक हुई गोंगपा धीरे धीरे एक होती गई उसके बाद जब हर्रई में हुये राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की राजनैतिक एकता की नई शुरूआत हुई और सभी मिलकर एक सुर में गोंगपा की राजनैतिक ताकत को मध्य प्रदेश में बढ़ाने के लिये एकता का संकल्प लिया अखिल भारतीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को अलग थलग रखकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मजबूत करने के लिये सभी मिलजुलकर काम कर रहे है । सबसे विशेष बात यह है कि वर्ष 2018 के चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को सुझाव व संभालने के लिये सामाजिक संगठनों के मुख्य पदाधिकारियों के द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाया जा रहा है सभी संगठन के पदाधिकारी एकता के साथ चल रहे है वैचारिक मतभेद भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा है ा। मध्य प्रदेश में गोंगपा इस बार इंदौर, धार,झाबुआ वाले क्षेत्र में अपने उम्मीदवार उतार रही है जिससे कहा जा सकता है कि गोंगपा वोट प्रतिशत इस बढ़ सकता है । इस आधार पर माना जा रहा है कि इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में गोंगपा के पक्ष अच्छे परिणाम के साथ साथ वोट प्रतिशत बढ़ने की संभावना नजर आ रही है हालांकि यह तो परिणाम ही बतायेगा कि एकता के साथ चुनावी मैदान में उतरने का कितना फायदा हुआ । मध्य प्रदेश में गोंगपा इस बार इंदौर, धार,झाबुआ वाले क्षेत्र में अपने उम्मीदवार उतार रही है जिससे कहा जा सकता है कि गोंगपा वोट प्रतिशत इस बढ़ सकता है ।

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