मूल और स्थानीय हुये एकसाथ, बागी और दागी है चाल चलने को तैयार
नाराजगी दूर करने व्यस्त हुये भाजपा, कांग्रेस, गोंगपा के नेता
सिवनी। गोंडवाना समय।
राजनीति मेें नेता, बागी-दागी इनका चोली दामन का साथ रहता है और यदि चुनाव हो तो उसमें अपना सगा भी दुश्मन बन जाता है और दुश्मन के साथ मिलकर अपनो को ही निपटाने में कोई कसर नहीं किया जाता हौ । राजनीति स्वार्थ, पद,प्रतिष्ठा के लिये अपनो के सीने पर चलकर भी कुर्सी पाने का अवसर मिले तो अधिकांशतय: देखने में यह आता है कि कोई संकोच नहीं किया जाता है। अब नामांकन का समय समाप्त हो गया है तो राजनैतिक दलों में नाराज होकर बगावत कर नामांकन फार्म भरने वालों को समझाने और मनाने का दौर शुरू हो चुका है और इसकी प्रमुख जिम्मेदारी राजनैतिक दलों के प्रमुख पदाधिकारियों कंधों पर है वे हर हाल में अपनी अपनी पार्टी के ऐसे प्रत्याशियों को नामांकन फार्म को वापस लेने के लिये मना रहे है जिन्होंने अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ में बगावत कर चुनावी मैदान में नामांकन फार्म भर दिया है । इसके साथ ही कुछ ऐसे भी प्रत्याशी है जिनके खड़े होने से राजनीतिक दलों के अधिकृत उम्मीदवारों को नुकसान हो सकता है उन्हें भी नामांकन फार्म वापस लेने के लिये राजनैतिक दलों के नेता प्रयास कर रहे है । सिवनी जिले में चारों विधानसभा में भाजपाा, कांग्रेस और गोंगपा का वर्चस्व रहता है इसलिये चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होने के संभावना रहती है । इसलिये ये तीनों में दलों में जो भी नाराज या बगावत कर चुनाव मैदान में खड़ा होता है उसका नामांकन फार्म वापस लेने के लिये समझाने मनाने का काम इन राजनैतिक दलों के द्वारा किया जाता है ।
भाजपा में डेमेज कंट्रोल होने से एक साथ
भाजपा में मूल और स्थानीय का मुद्दा गांव-गांव, शहर-शहर और भोपाल दिल्ली तक गूंजा लेकिन भाजपा ने जैसे अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया तो जो भी मूल और स्थानीय का मुद्दा के लिये चिल्ला चोट कर रहे है वे सभी भाजपा के डेमेज कंट्रोल के आगे चुपचाप हो गये है और भाजपा में यही विशेषता है कि संगठन के निर्णय से हटकर किसी की नहीं सुनी जाती है और जो विरोध करता है उसे सीधे बाहर का रास्ता दिखाया जाता है । इसके साथ डैमेज कंट्रोल के लिये भाजपा के नेताओं के विशेष टीम होती है जो संगठन या चुनाव में आने वाली हर समस्याओं का समाधान ढूढ लेते है और सिवनी व केवलारी विधानसभा में वहीं हुआ जो खुलकर विरोध कर रहे थे वे सब अब अधिकृत उम्मीदवार के साथ मिलकर भाजपा के लिये काम तो करते हुये दिखाई दे रहे है लेकिन यदि हम बरघाट विधानसभा की बात करें तो वहां पर अंतिम दिन कमल मर्सकोले की टिकिट काटकर नरेश बरकड़े को देने से संगठन के अधिकांश पदाधिकारियों के कमल मर्सकोले के साथ होने से भाजपा को मनाने में काफी मशक्क्त करना पड़ सकता है वहीं लखनादौन विधानसभा में भी शशि ठाकुर के समर्थकों और अन्य दावेदारों को भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार के पक्ष में काम करने के लिये मनाना भाजपा के लिये लिये कम समय में दिक्कम खड़ी कर सकता है । कांग्रेस में सिवनी, लखनादौन बरघाट में करना होगा मशक्कत कांग्रेस में अधिकृत उम्मीदवार घोषित होने के बाद से ही सिवनी विधानसभा में विरोध स्वर फूटे थे परंतु समय रहते कंट्रोल तो कर लिया गया है पर अंदरूनी तौर पर विरोध को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है । बरघाट में भी कांगे्रेस टिकिट की चाह रखने वालों और समाजिक आधार पर विरोध करने वालों का गुट भारी पड़ सकता है लेकिन राहूल गांधी के 16 नवंबर का कार्यक्रम बरघाट में तय होने से इस बार विरोधियों का कंट्रोल होने की संभावना तो हे पर बागियों और दागियों का कुछ भरोसा भी नहीं है । लखनादौन में तो योगेन्द्र बाबा को विरोध गुटबाजी को लेकर शुमार है ही जिन्हें टिकिट नहीं मिल पाई है वह किसी न किसी तरह चुनाव में समीकरण बिगाडृने का प्रयास कर सकते है ।
गोंगपा ने बागी कम पर दागियों पर रहेगी नजर
गणतंत्र पार्टी भी चारों विधानसभा में अपना प्रभाव रखती है और लखनादौन में केवल एक ही फार्म पार्टी के पदाधिकारी द्वारा निर्दलीय के रूप में भरा गया है इसके बाद भी जिन दावेदारों को प्रत्याशी नहीं बनाया गया है पार्टी के लिये कितनी वफादारी से अधिकृत उम्मीदवार के पक्ष में काम करते है या नहीं यह तो आने वाले दिनों स्पष्ट हो जायेगा इसके साथ ही कौन बागी और दागी की भूमिका निभायेगा यह भी समझ आ जायेगा । अब केवलारी विधानसभा में तो वर्तमान में यह स्थिति है कि दो बी फार्म जारी करने के पार्टी में आपसी विवाद बढ़ा हुआ है हालांकि राष्ट्रीय दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने राजेन्द्र राय को पहले बी फार्म दिया था लेकिन आपसी विवाद के चलते संगठन के वरिष्ठ नेताओं के द्वारा गोंगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से संपर्क कर प्रीतम उईके के नाम पर बी फार्म एवं अधिकृत करने हेतु पत्र लेकर आने से विवाद फिलहाल बढ़ा हुआ है जो कि चुनाव चिह्न आबंटन के बाद ही या आज जांच के उपरांत विवाद के शांत होने की संभावना है वहीं केवलारी विधानसभा में बागियों की कम दागियों की भूमिका अधिक होने की संभावना रहती है क्योंकि यहां पर भाजपा कांग्रेस मेें टसल का चुनाव होता है और यह गोंगपा में सेंध लगाने का प्रयास करते है अब इसमें ये कितने सफल या असफल होते है ये तो सेंध लगाने वाले और दागियों से अच्छा कोई नहीं जानता है और बी फार्म का विवाद और बागियों व दागियों की भूमिका चुनाव परिणाम में कितना असर डालेगी यह भी सामने आ ही जायेगा । इसी तरह
सिवनी की बात करे तो यहां पर
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने
अधिकृत उम्मीदवार गया प्रसाद कुमरे को बनाया है लेकिन यहां पर भी यदि सूत्रों की माने तो जिम्मेदार जवाबदार पदाधिकारियों ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के साथ न जाकर निर्दलीय, भाजपा-कांग्रेस को अंदूरूनी कहो या खुलकर समर्थन करने की शिकायते मिल रही है अब इस स्थिति में यदि सिवनी विधानसभा में आदिवासी समाज के 50000 हजार से अधिक वोटों की संख्या होने के बाद ओर गोंगपा से आदिवासी ही अधिकृत उम्मीदवार होने के बाद भी चुनाव परिणाम में कितने वोट मिल पाते है यह बागियों से ज्यादा दागियों पर निर्भर रहेगा जो शपथ संकल्प तो लेते है पर तोड़ते क्यों है इसका कारण उन्हीं से अच्छा कोई नहीं जानता है ।