शहडोल लोकसभा में गोंगपा को मिले 66,176 मत
कांग्रेस 58000 से हार गई थी लोकसभाा चुनाव
विवेक डेहरिया संपादक
शहडोल। गोंडवाना समय।
मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीतकर भाजपा का पंद्रह साल की सत्ता का उखाड़ फैंकने में सफलता पा लिया है और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनाकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को बनाया है । कमलनाथ ने भी मुख्यमंत्री बनते ही किसानों का कर्जा माफ करने के साथ ही कन्यादान योजना, आशा कार्यकर्ताओं, गौशाला बनाये जाने, फूड पार्क बनाने, पुलिस विभाग में अवकाश दिये जाने के साथ साथ प्रशासनिक शिकंजा कसते हुये प्रशासनिक सर्जरी भी शुरू कर दिया है वहीं आगामी दिनों में मंत्रीमण्डल के गठन को लेकर भी तैयारी शुरू कर दिया है । कमलनाथ कांग्रेस को मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की भांति आने वाले लोकसभा चुनाव मजबूत बनाने के लिये महत्वपूर्ण रणनीति संगठन के साथ मिलकर बनाने में जुट गये है हालांकि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा इसको लेकर भी खींचतान शुरू हो गई है । आगामी चार महिनों के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहूल गांधी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही उनके मन में यह उम्मीद जाग चुकी है कि लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश से कांग्रेस अच्छा परिणाम लायेगी इसी आधार पर मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ की ताजपोशी भी करवाया गया है । यदि हम शहडोल लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों के वर्ष 2018 के आये परिणामों पर नजर डाले तो कांग्रेस के लिये गोंडवाना गणतंत्र पार्टी चुनौती बन सकती है और भाजपा के सहायक सिद्ध हो सकती है । शहडोल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत मध्यप्रदेश के शहडोल संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र आते है । जिसमें चार जिले शामिल है शहडोल, कटनी, उमरिया और अनूपपुर में शामिल हैं। संसदीय क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में जयसिंहनगर, जैतपुर, कोतमा, अनूपपुर, पुष्पराजगढ़, बाँधवगढ़, मानपुर, तथा बड़वारा शामिल है।
वर्ष 2014 में भाजपा के दलपत परस्ते जीते
यदि हम वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो वहां पर शहडोल संसदीय क्षेत्र से भाजपा के दलपत सिंह परस्ते इंडियन नेशनल कांग्रेस के निकटतम प्रतिद्वंदी से 2 लाख 41 हजार 301 मत से विजयी हुए थे लेकिन उनके निधन से यह स्थान रिक्त घोषित हो गया था। इस निर्वाचन में जयसिंह नगर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा 30 हजार 196, जैतपुर से भाजपा 25 हजार 669, कोतमा से भाजपा 23 हजार 436, अनूपपुर से भाजपा 26 हजार 704, पुष्पराजगढ़ से कांग्रेस 8,189, बांधवगढ़ से भाजपा 47 हजार 967, मानपुर से भाजपा 48 हजार 016 तथा बड़वारा से भाजपा 47 हजार 165 वोट लेकर आगे रही थी। इस प्रकार 8 में से 7 स्थान पर भाजपा अधिक मत प्राप्त कर आगे रही थी।
उपचुनाव में हिमाद्री को हराकर जीते ज्ञान सिंह
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बीजेपी सांसद दलपत सिंह परस्ते के निधन के बाद शहडोल लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के ही ज्ञान सिंह ने जोरदार जीत दर्ज की। इस सीट पर 17 वीं बार हुए चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था। नोटबंदी के फैसले के बाद माना जा रहा था कि बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है लेकिन यहां कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी। मध्य प्रदेश के शहडोल लोकसभा सीट पर उपचुनाव में भाजपा के ज्ञानसिंह 58 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए हैं । उनका मुकाबला कांग्रेस की हिमाद्री सिंह से था । शहडोल लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को जीत की उम्मीद थी लेकिन शिवराज कैबिनेट में मंत्री और दो बार सांसद रह चुके ज्ञानसिंह मतदाताओं का दिल जीतने में कामयाब रहें । ज्ञानसिंह पहले उमरिया जिले की बांधवगढ सीट से भाजपा विधायक थे और वे कुल छह बार विधायक चुने जा चुके हैं । साथ ही वे 1996 में 11 वीं और 1998 में 12 वीं लोकसभा के शहडोल संसदीय सीट से भी चुनाव जीत चुके हैं । वहीं, हिमाद्री सिंह के पिता दलवीर सिंह पूर्व पीएम राजीव गांधी की सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर थे वहीं मां राजेश नंदनी सिंह भी शहडोल से एमपी रह चुकी हैं जिस वजह से उन्हें गांधी परिवार के भी नजदीक माना जाता है लेकिन उन्हें इसका लोकसभा उपचुनाव में फायदा नहीं मिला । गौरतलब है कि 1 जून को सांसद दलपत सिंह परस्ते का ब्रेन हेमरेज के कारण निधन हो जाने के बाद से शहडोल सीट खाली हो गई थी ।
क्र. विधानसभा क्षेत्र गोंगपा को मिले मत
1.
जयसिंह नगर
8069
2.
जैतपुर
11498
3.
कोतमा
5766
4.
अनुपपुर
1721
5.
पुष्पराजगढ़र्
19579
6.
बांधवगढ़
9854
7.
मानपुर
5291
8.
बड़वारा
4938
.................................
कुल मत 66,716
1952 से शहडोल लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास पर एक नजर
सोशलिस्ट विचारधारा को कांग्रेस ने दी थी टक्कर राजनीतिक समीकरणों और आंकड़ों पर गौर करें तो 1952 से लेकर 2016 तक शहडोल में सीधी टक्कर ही देखने को मिली है। हर बार बीजेपी और कांग्रेस में जोरदार मुकाबला हुआ। शुरूआती समय में यहां सोशलिस्ट विचारधारा का राज था। 1962 तक यहां सोशलिस्ट विचारधारा की पकड़ मजबूत रही और सात में से पांच विधानसभा सीटें सोशलिस्ट के खाते में रहीं। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे यहां कांग्रेस ने खुद को मजबूत किया, जिसे कुछ समय बाद जनता पार्टी और जनता दल ने टक्कर देनी शुरू की। बीजेपी को भारी पड़ा था ये फैसला 1996 में बीजेपी ने कांग्रेस के अभेद किले में फतह की। इसके पहले बीजेपी यहां सिर्फ मुकाबला करती रही लेकिन जीत का स्वाद नहीं चख पाई थी। बीजेपी ने 2009 के आम चुनावों में अपना उम्मीदवार बदल दिया और इसका फायदा कांग्रेस को मिला। यहां कांग्रेस की राजेश नंदिनी सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार को हरा दिया और एक बार फिर सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई। यहां कद्दावर नेताओं को भी मिली हार इस लोकसभा सीट में हमेशा से किसी न किसी पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली लेकिन 1971 का चुनाव लोगों के जेहन में अब भी है। तब रीवा महराजा का समर्थन पाए निर्दलीय उम्मीदवार धनशाह प्रधान ने चुनाव में मैदान मार लिया। राजनीतिक दलों के लिए यह बड़ा झटका था। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के बाद भी यहां के वोटर नेताओं को सबक सिखाने में पीछे नहीं रहे। दिवंगत सांसद दलवीर सिंह और अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेताओं को भी यहां हार का स्वाद चखना पड़ा। केंद्रीय राज्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे दलवीर सिंह को इस सीट ने राजनीति के हासिए पर पहुंचा दिया तो अजीत जोगी को आखिरकार छत्तीसगढ़ का रुख करना पड़ा। हर चुनाव में किसी एक की लहर शहडोल लोकसभा सीट में दिखाई देती है अब तक हुए आम चुनावों पर गौर करें तो 1977 से लेकर 2004 तक लोकसभा आम चुनाव और उपचुनाव में हर बार किसी खास लहर का प्रभाव दिखा। हालांकि यहां मतदाताओं के रुझान में कुछ बदलाव भी देखने को मिले। 1984 में बीजेपी को यहां महज 16.92 फीसदी वोट मिले थे। धीरे-धीरे यहां बीजेपी का ग्राफ बढ़ा और 1996 के लोकसभा चुनाव में 33.92 फीसदी वोट पाकर बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली। 1998 में भी बीजेपी के वोट प्रतिशत में 10 फीसदी का इजाफा हुआ। लेकिन 2004 के चुनावों में बीजेपी को यहां 30 फीसदी का नुकसान देखने को मिला। अगर कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के जन्म लेते ही 1991 में कांग्रेस को जनाधार यहां से खिसकता चला गया और कांग्रेस को 47.68 फीसदी वोट मिले थे जिसमें धीरे-धीरे और कमी आने लगी और वर्ष 1998 में यह आंकड़ा 37.9 फीसदी तक पहुंच गया। हालांकि 1999 में कांग्रेस ने उछाल मारी और 41.57 फीसदी वोट हासिल किए लेकिन मतदाताओं के बीच पैठ बनाने में नाकाम रही। 2004 के चुनावों में कांग्रेस के वोटों में 6 फीसदी की कमी आई और 35.47 फीसदी तक ही पहुंच पाई। हालांकि 2009 के चुनावों में कांग्रेस को एक बार फिर बढ़त मिली और आंकड़ा 41.86 फीसदी पहुंच गया। लेकिन इस चुनाव में 39.73 फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में फिर वापसी की और 55 फीसदी वोटों के साथ सीट पर कब्जा किया। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट घटकर 30 फीसदी हो गया।
राहूल ने किया हिमाद्री का चयन
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हम आपको यहां यह बता दे कि राहूल गांधी ने युवा चेहरों को तव्वजों दिये जाने को लेकर शहडोल उपचुनाव में हिमाद्री को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया था । इसके साथ ही यदि हम करें हिमाद्री सिंह की काबिलियत की तो वह उपचुनाव के समय वे 28 साल की थी और हिमाद्री ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उनके पिता दलवीर सिंह फॉर्मर पीएम राजीव गांधी की सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर भी रहे है और उनकी मां राजेश नंदनी सिंह भी शहडोल से एमपी रह चुकी हैं। वे मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रेसिडेंट अरुण यादव से साथ कई बार पार्टी के प्रोग्राम्स में नजर आ चुकी हैं उनके परिवार की शहडोल के आदिवासी एरिया में अच्छी खासी पकड़ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हिमाद्री को कुछ दिन पहले कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने 10 जनपथ बुलाया था। सोनिया और उनके बीच शहडोल लोकसभा उपचुनाव को लेकर काफी लंबी बातचीत हुई थी। इस मीटिंग में ही यह तय हो गया था कि वे ही शहडोल से लोकसभा का उपचुनाव लड़ेंगी, राहुल गांधी ने किया सिलेक्शन दरअसल राहुल ज्यादा से ज्यादा युवाओं को राजनीति में आगे लाना चाहते हैं, जिसके चलते उन्होंने हिमाद्री का सिलेक्शन किया। पार्टी का मानना है कि वे युवा आदिवासी चेहरे के तौर पर चुनाव जिताने वाली उम्मीदवार साबित हो सकती है। उनके नाम पर प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं ने अपनी सहमति पहले ही दे दी थी।