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संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करें भारत सरकार, राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर शासकीय रूप में देश भर में मनाया जाये विश्व आदिवासी दिवस

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करें भारत सरकार, राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर शासकीय रूप में देश भर में मनाया जाये विश्व आदिवासी दिवस 

सिवनी जिला मुख्यालय में राष्ट्रपति, राज्यपाल के नाम सौंपा ज्ञापन 

सिवनी। गोंडवाना समय। 
समस्त आदिवासी समाजिक संगठनों की ओर से सामुहिक रूप से विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर 9 अगस्त 2019 को सिवनी जिला मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में महामहिम राष्ट्रपति, महामहिम राज्यपाल के नाम कलेक्टर सिवनी को ज्ञापन सौंपा गया। जिसमें प्रथम बिंदु पर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अति महत्वपूर्ण  वैश्विक संगठन के द्वारा लिये गये प्रस्ताव 09 अगस्त को प्रति वर्ष विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाना तय किया गया है। उस प्रस्ताव पर भारत सरकार द्वारा आज तक हस्ताक्षर नही किये गए है। भारत सरकार तत्काल हस्ताक्षर करना सुनिश्चित कर 09 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में निश्चित कर प्रतिवर्ष 09 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाये एवं 09 अगस्त को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा भी करवाया जाये।

आदिवासियों को वन अधिकार पत्र अविलंब प्रदान किया जाये-

इसके साथ ही ज्ञापन में आगे वनाधिकार मान्यता को लेकर हुये निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुये, इस मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में होने वाली सुनवाई में सभी राज्य व भारत सरकार की ओर से आदिवासियो की वास्तविक स्थिति को रखते हुये उक्त प्रकरण में जिन आदिवासियों के दावे निरस्त किये गए है, उनके दावा का पुन: परीक्षण करवाया जाये तथा जमीन के वास्तविक कब्जाधारियों को अविलंब अधिकार पत्र दिया जाए। इसके साथ ही इन विभागों के कर्मचारी-अधिकारियों को उक्त कानून के संबंध में प्रशिक्षित भी किया जाये। इसके साथ ही वन अधिनियम 1927 में प्रस्तावित संशोधन जिसमें वन विभाग को अधिकार दिया जा रहा हे जो कि आदिवासियों के हितों के विरूद्ध है उसे अविलंब वापस लिया जाए।

संविधान में अनुसूचित जनजाति शब्द को विलोपित कर आदिवासी लिखा जाये-

ज्ञापन में आगे भारत के संविधान में जहॉ-जहॉ पर अनुसूचित जनजाति शब्द का का इस्तेमाल हुआ है वहॉ-वहॉ पर आदिवासी शब्द का प्रयोग करने हेतु संविधान में संशोधन किया जाये ताकि किसी अन्य जाितयों  को आदिवासी जाति में शामिल नहीं किया जा सके क्योंकि आदिवासी जन्म से होता है बनाया नहीं जाता।

पांचवी व छठी अनुसूचि व पेशा कानून पर अमल किया जाये-

इसके साथ ही ज्ञापन में संविधान में उल्लेखित पॉचवी व छठी अनुसूची का अनुसूचित 5 वी अनुसूची का अनुसूचित 6 वी अनुसूची का अनुसूचित क्षेत्र में पूर्ण रूप से अमल हो । इसके साथ ही 24 दिसम्बर 1996 को पारित पी पेसा कानून-1996 के तहत अधिकार प्रदाय किये जायें। इसके साथ ही संविधान की 5 वी अनुसूची की धारा-3 के तहत इस संबंध में अनिवार्य रूप से प्रतिवर्ष  प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाय। ट्रायबल सब प्लान के तहत आवंटित सम्पूर्ण बजट का व्यय उसी सत्र में हो तथा बजट को अन्य किसी मद में व्यय न किया जाये।

बैकलॉग के रिक्त पदों को तत्काल भरा जाये एवं शिक्षा का स्तर सुधार जावे-

म.प्र. शासन के विभिन्न विभागों में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति वर्ग बैकलॉग के 1,08,000 रिक्त पदों पर भर्ती की कार्यवाही हेतु शीघ्र ही विज्ञप्ति जारी करने की कार्यवाही शीघ्र की जावे। सरकार की गलत नीतियों एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण के चलते शिक्षा के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। इसे संज्ञान में लेते हुये तुरंत सुधार की आवश्यकता है जैसे कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत शासकीय विद्यालयों में कक्षा 01 से 08 तक के विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से कक्षोन्नत करने का प्रावधान किया गया है, उसे निरस्त कर सभी कक्षाओं के लिये मूलल्याकंन पद्धति लागू की जाए। प्राथमिक शिक्षा संबंधित क्षेत्र के लोगों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाये एवं शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में आदिवासियों का इतिहास, संस्कृति, कला, संगीत, ज्ञान व महापुरूषों/स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनियों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जावें।

समय पर मिले छात्रवृत्ति एवं छात्रावासों में बढ़ाई जाये सीट-

आदिवासी वि़द्यार्थियों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति/शिष्यवृत्ति तथा आवासगृह भत्ता को मंहगाई के अनुपात में बढ़ाया जावे एवं उसका भुगतान प्रतिमाह नियमित रूप ये किया जायें। आदिवासी छात्र-छात्राओं को मिलने वाली छात्रवृत्ति/आवासगृह भत्ता का विभागीय विभागीय पोर्टल सदैव चालू रहे ताकि समाज के विद्यार्थी समय पर आवेदन कर सके एवं उनको समय पर लाभ मिल सके। पोस्टमैट्रिक छात्रावासों में सिर्फ महाविद्यालयीन छात्र-छात्राओं को ही प्राथमिकता के आधार पर प्रवेश दिया जाय एवं सीटों में  वृद्धि की जाये। महाविद्यालयों में सभी संकायो की सीटों में भी आवश्यकता अनुसार वृद्धि की जाए, ताकि छात्र उच्च शिक्षा लेने से वंचित न रह जायें। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा प्रदेश में संचालित समस्त छात्रावासों/कन्या परिसरों/एकलव्य आश्रमों में अधीक्षको, वार्डन, की नियुक्ति अनिवार्य रूप से आदिवासी समाज के कर्मचारियों में से ही किये जाने का नियम पूर्व से शासन द्वारा बनाया गया है जिसका कड़ाई से नियमानुसार पालन कराया जावे ।

आय के बंधन को किया जाये विलोपित-

व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के तकनीकी महाविद्यालयों में शासन द्वारा छात्रवृत्ति प्रदाय की जाती है, जिसमें आय का बंधन है उसे विलोपित किया जाये। इसके साथ-साथ जनजातीय कार्य विभाग द्वारा जुलाई 2018 से
कक्षा 6 वी एवं 9 वी में प्रवेश देने वाले छात्रावासों को शासन द्वारा बंद कर दिया गया है। जिसे अबिलंव चालू किया जावे। स्ववित्त पाठ्यक्रमों में लगने वाले शुल्क में अत्यधिक वृद्धि की गई है, इसे कम किया जाये एवं इसे विद्यार्थियों से वसुला न जाकर आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा समय पर जमा करवाया जायें।

प्रवेश परीक्षा का माध्यम द्विभाषा हिन्दी/अंग्रेजी में होना चाहिये-

उच्च तकनीकि व पेशावर शिक्षा हेतु ली जाने वाली प्रवेश परीक्षा का माध्यम द्विभाषा हिन्दी/अंग्रेजी में होना चाहिये । इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षको के रिक्त पदों की पूर्ति शीघ्र की जावे। इसके साथ ही खण्डवा, रतलाम में संचालित मेडिकल कॉलेज का नामकरण आदिवासी क्रांतिकारियों के नाम जैसे कि जैसे टंट्या भील, भीमा नायक, बिरसा मुंडा के नाम से किया जावे।

प्राध्यापकों के आदेश जारी करें व अतिथि विद्ववानों को न किया जाये नियमित-

मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग से चयनित सहायक प्राध्यापकों के आदेश अतिशीघ्र जारी किए जावे। इसके साथ ही अतिथि विद्वानों को सहायक प्राध्यापक के पद पर नियमित नहीं किया जाए क्योंकि अतिथि विद्वानों की नियुक्ति करते समय किसी भी प्रकार की परीक्षा नहीं ली गई राजनीतिक राजनीतिक हस्तक्षेप एवं भ्रष्टाचार के आधार पर बिना आरक्षण एवं रोस्टर नियमों पालन किये की गई। जबकि सहायक प्राध्यापक का पद राजपत्रित श्रेणी होकर इसकी भर्ती म.प्र. लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के माध्यम से की जातीा है। यदि शासन द्वारा अतिथि विद्वानों को नियमित किया जाता है तो अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों पर विपरित प्रभाव पड़ेगा। अत: मध्य प्रदेश शासन द्वारा अतिथि विद्ववानों को नियमित करने का निर्णय कदापि ना लिया जाए अन्यथा म.प्र. शासन क े विरूद्ध चरणबद्ध आंदोलन किया जायेगा।

भू-राजस्व संहिता में हुये संशोधन को पूर्ववत रखा जाये

आदिवासी समाज के विकास एवं सुरक्षा हेतु म.प्र. राजस्व विभाग, एम.पी.एल.आर.सी. 1959 म.प्र. भू-राजस्व संहिता में 27 जुलाई 2018 में किये गये संशोधन को तत्काल विलोपित/समाप्त कर पूर्ववत रखा जावे।

उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले के मृतक व घायल परिवार को 1 करोड़ दिये जाने की मांग 

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के घोरावल कोतवाली थाना क्षेत्र में ग्राम पंचायत मूर्तियां के ग्राम उम्भा में बुधवार, दिनांक 17 जुलाई, 2019 को सुबह लगभग 11:00 बजे जमीन के विवाद को लेकर स्थानीय दबंगो द्वारा 32 ट्रेक्टर ट्राली में सवार होकर आदिवासियों के ऊपर सीधे हमला बोला तथा फायरिंग में 10 आदिवासियों की मौत हो  गई है और कई लोग घायल हो गए। उम्भा गांव के आदिवासी समाज के वास्तविक कब्जाधारियों को दबंगों द्वारा षडयंत्रपूर्वक झूठे मुकदमें लगाकर परेशान किया जा रहा है उन पर झूठे मुकदमों को तुरंत वापस लिया जाए। उक्त प्रकरण में दोषियों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 क े प्रावधानों के तहत सख्त कार्यवाही की जाए। उक्त भूमि विवाद में हुई फायरिंग में मृतक एवं घायलों के परिवार को 1-1 करोड़ रूपये का मुआवजा दिया जाये। जमीन के  कब्जाधारी आदिवासियों को उनकी जमीन और मालिकाना हक दिलाया जाए। मृतकों के परिवार के प्रत्येक सदस्य को शासकीय सेवा में लिया जाए। प्रभावित इलाके में  पुलिस बल लगाया जाए ताकि ग्रामवासी सुरक्षित महसूस कर सकें एवं भविष्य में इस प्रकार के कृत्य पर रोक लगाई जा सकें।

किसानों को उनकी उपज का मिले उचित मूल्य

इसके साथ ही भारत देश कृषि प्रधान राष्ट होने के बावजुद भी यहांँ पर किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। जिसके चलते किसानों द्वारा गरीबी व कर्ज बोझ की वजह से लगातार आत्महत्या की जा रही है। इसलिए सरकार कुंभकरणी नींद से जागे एवं किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिले, इस हेतु फसलों का समर्थन मूल्य तय करते समय उसमें लगने वाले समस्त परिवार के मानवश्रम के दाम, पशुश्रम के दाम, लगने वाली पूंजी व खेती भाड़ा जोड़ने के पश्चात उसमें मुनाफा जोड़कर तय किया जाये। कृषि उपज से बनने वाले उत्पादो की कीमत भी कम की जाये और किसानों को दलालों, मुनाफाखोरो एवं सुदखोरों के चुंगल से बचाया जाये। इसके साथ ही किसानों को लगातार 24 घण्टे नि:शुल्क बिजली प्रदाय की जाए। किसानों को कृषि हेतु लगने वाले आवश्यक संसाधनों पर सरकार द्वारा अनुदान प्रदान भी किया जाय। खेतीहर मजदुरों को स्वालम्बी बनाने हेतु उन्हें अनिवार्य रूप से न्यूनतम 5 एकड़ जमीन उपलब्ध करवायी जाये एवं कृषि व वनोपज पर आधारित लघु व कुटीर उद्योग स्थापित करने में सरकार द्वारा अनुदान प्रदान किया जाये। जिससे कि विशेषकर आदिवासियों को पलायन व भूखमरी की समस्या से बचाया जा सके।

पदोन्नति में आरक्षण, शासकीय क्रय में लाभ, रोस्टर नियम का हो पालन

शासन द्वारा क्रय की जाने वाली सामग्री में से 30 प्रतिशत साामग्री अनुसूचित जनजाति वर्ग के उद्यमियों तथा व्यवसाईयों द्वारा संचालित प्रतिष्ठानों से क्रय किये जाने का प्रावधान भंडार क्रय नियमों में किया जावे।
पदोन्नति में आरक्षण नियम-2002 को मूलस्वरूप में यथा शीघ्र लागू कराने हेतु कैबिनेट में प्रस्ताव यथा शीघ्र पारित किया जाए। रोस्टर नियम-2002 का शत-प्रतिशत पालन कराया जाए। रोस्टर नियम का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों के विरूद्ध दण्ड का प्रावधान नहीं होने से आरक्षण नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लघंन हो रहा है । आरक्षण नियमों का उल्लघंन करने पर दण्ड का प्रावधान किया जावे। पदोन्नति में आरक्षण नहीं  मिलने के कारण आदिवासी समाज में असंतोष की भावना उत्पन्न हो रही है । इसके साथ ही प्रदेश की संवैधानिक संस्थाऐं जैसे-मानव अधिकार आयोग, राज्य सूचना आयोग, लोक सेवा आयोग, राज्य उपभोक्ता फोरम, राज्य निर्वाचन आयोग, अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग आदि में लोकतंत्र की भावना को ध्यान में रखते हुये, अनुसूचित जाति/जनजाति का प्रतिनिधित्व अनिवार्य रूप किया जावे।

जनसंख्या के अनुपात में मिले आरक्षण तो आदिवासी अधिकारी कर्मचारी से न किया जाये भेदभाव

प्रशासन में आदिवासियों का उचित प्रतिनिधत्व रहे, इस हेतु सरकारी भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में पदों की संख्या आरक्षित रहे। सेवा में आने के बाद आदिवासी समाज के कर्मचारी/अधिकारियों के प्रति भेदभाव न किया जाये। प्राय: यह देखने में आ रहा है कि आदिवासी कर्मचारी/अधिकारियों के स्थानान्तरण जानबुझकर लम्बी दूरी व दुर्गम क्षेत्र में किया जाता है एवं उनके खिलाफ चल रही विभागीय जॉच को समय पर पूरी न की जाकर जानबूझकर लंबित रखा जाता है और कठोरतम शास्ति आरोपित की जाती है। उन्हें झूठे आरोेप लगाकर फंसाया जाता है तथा वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा गोपनीय चरित्रावली में प्रतिकुल टीप अंकित की जाती है। सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र अनुसार आदिवासी कर्मचारी/अधिकारियों को प्रथम बार गलती करने पर चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए, इसके बावजूद भी प्रथम बार में ही शास्ति आरोपित कर दी जाती है। इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि माननीय न्यायालय में चालान पेश होने के पहले ही आदिवासी कर्मचारी/अधिकारियों को निलंबित कर दिया जाता है जो कि नियम विरूद्व है।  इस प्रकार के भेदभावपूर्ण रवैये पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जायें।

आदिवासी महिलाओं की आड़ में गैर आदिवासियों को न मिले लाभ

गैर आदिवासी व्यक्तियों द्वारा आदिवासी महिलाओं को बहला फुसलाकर षडयंत्र एवं स्वार्थ पूर्वक विवाह रचाया जाता है एवं उस महिला को आदिवासी होने के नाते मिलने वाले आर्थिक एवं राजनीतिक लाभों का फायदा उठाया जाता है। आदिवासी महिला द्वारा गैर आदिवासी व्यक्ति से विवाह करने पर उस महिला को आदिवासी होने के नाते मिलने समस्त प्रकार के लाभों से वंचित कर दिया जाये। ऐसा कानून तुरंत  बनाया जाकर अमल में लावे। अनुसूचित क्षेत्र में शराब की सरकारी दुकाने ना खोली जाए एवं जहॉ पर सरकारी ठेका दिया गया है उसे तुरंत रद्द किया जाए।

छानबीन समिति जिला स्तर पर बने 

मध्य प्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा फर्जी जाति प्रमाण-पत्र की छान-बीन समिति के लिये गये निर्णय अनुसार प्रत्येक जिला मुख्यालय पर होना चाहिए जो कि नहीं है। प्रत्येक जिला मुख्यालय पर फर्जी-जाति प्रमाण-पत्र छान-बिन समिति प्रस्थापित की जाकर प्रत्येक शासकीय सेवक के दस्तावेजों की छान-बीन कर दोषी पाये जाने पर संबंधित शासकीय सेवक को तत्काल सेवा से पृथक कर उसके खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही की जाये तथा जिला स्तरीय छानबीन समिति एवं उच्च स्तरीय छानबीन समिति में प्रस्तुतकर्ता अधिकारी के खिलाफ भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम 1989 के तहत कार्यवाही की जाये। मध्य प्रदेश शासन के विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ जनजाति कल्याण विभाग/मंत्रालय भोपाल द्वारा जारी आदेश के अनुसार घुमक्कड़ एवं अर्द्धघुमक्कड़ जनजाति की सूची के क्रमांक 30 जिस पर धनगर उल्लेखित है में उपजाति के रूप में गडरिया, कुरमार, हटकर, हाटकर, गाडरी, घारिया, गोसी, ग्वाला, गडरिया, गारी, गायरी, गडरिया, पाल बघेले, को भी शामिल किया गया है। जिसे अनुसूचित जनजाति की उपजाति की सूची से तत्काल विलोपित किया जावे।

विस्थापित आदिवासियों को मिले जाति प्रमाण 

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों धार, झाबुआ, खरगोन, बड़वानी, बुराहनपुर एवं अलीराजपुर इत्यादि जिलों से किन्ही कारणों से विस्थापित होकर ग्वालियर संभाग के अन्तर्गत आने वाले श्योपुर जिले की
विभिन्न तहसीलों में बस गये है, जिन्हें वहां के जिला प्रशाासन द्वारा अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण आज दिनांक तक जारी पत्र नहीं किये जा रहे है । जिसके कारण शासन द्वारा आदिवासी समाज के विकास एवं कल्याण हेतु संचालित विभिन्न या ेजनाआ ें का लाभ उनको नहीं मिल पा रहा है। अत: श्योपुर जिले के साथ-साथ अन्य जिलों में विस्थापित होकर बसे आदिवासी समाज को अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी किये जाने हेतु जिला प्रशासन को उक्त आशय का निर्देश जारी किया जाये।

मुख्यमंत्री के समक्ष आदिवासी का पक्ष रखने समन्वयक अधिकारी की हो नियुक्ति 

इसके साथ ही मुख्यमंत्री के समक्ष आदिवासियों की समस्याओं को रखने एवं उसके समाधान हेतु समन्वयक अधिकारी की नियुक्त की जाये। अत: महामहिम से अनुरोध है कि उपरोक्त बिन्दुओं पर गहनता से विचार कर सरकार को त्वरित कार्यवाही करवा कर आदिवासी समाज पर सदियों से हो रहे अन्याय-अत्याचार से छुटकारा दिलाकर ऐतिहासिक न्याय प्रदान करवाये । 

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