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शिक्षा एवं स्वरोजगार से ही समाज का विकास संभव-डॉ. राजा धुर्वे

शिक्षा एवं स्वरोजगार से ही समाज का विकास संभव-डॉ. राजा धुर्वे                                      एमसीआई टीम ने विश्व आदिवासी दिवस पर समाज उत्थान के लिए दिया मार्गदर्शन       

बैतुल। गोंडवाना समय। 
एमसीआई टीम बैतुल के द्वारा लगातार शिक्षा एवं स्वरोजगार के क्षेत्र में युवाओं को सफल भविष्य निर्माण के लिए लगातार मार्गदर्शन दिया जा रहा है। इसी क्रम को जारी रखते हुए बैतुल जिले में आयोजित 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर जिले के चिचोली तहसील, शाहपुर तहसील एवं पाढर में समस्त सगाजनों को शिक्षा के लिए मार्गदर्शन देते हुए मेडिटेक कैरियर इंस्टीट्यूट बैतुल के डायरेक्टर डॉ. राजा धुर्वे (एमबीबीएस) ने कहा कि किसी भी समाज का विकास केवल शिक्षा से हो सकता है। इसके साथ ही स्वरोजगार के क्षेत्र को भी विकसित करना पड़ेगा ताकि हमारी आर्थिक स्थिति को भी सुधारा जा सके। शिक्षा मनुष्य के अंदर अच्छे विचारों को भरती है और अंदर में प्रविष्ठ बुरे विचारों को निकाल बाहर करती है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। यह मनुष्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का कार्य करती है। इससे मनुष्य के अंदर मनुष्यता आती है।

शिक्षा का मूल अर्थ यही है कि वह व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन करे

इसके माध्यम से मानव समुदाय में अच्छे संस्कार डालने में पर्याप्त मदद मिलती है। शिक्षा मनुष्य को पशु से ऊपर उठाने वाली प्रक्रिया है, पशु अज्ञानी होता है उसे सही या गलत का बहुत कम ज्ञान होता है, अशिक्षित मनुष्य भी पशुतुल्य होता है, वह सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं होता है लेकिन जब वह शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसकी ज्ञानचक्षु खुल जाते है। तब वह प्रत्येक कार्य सोच-समझकर करता है। उसके अंदर जितने प्रकार की उलझनें होती हैं, उन्हें वह दूर कर पाने में सक्षम होता है। शिक्षा का मूल अर्थ यही है कि वह व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन करे। जिस शिक्षा से व्यक्ति का सही मार्गदर्शन नहीं होता, वह शिक्षा नहीं बल्कि अशिक्षा है, शिक्षा व्यक्ति को ज्ञानवान बनाती है। विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर सांसारिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त होता है।

शिक्षा वास्तविक अर्थों में मनुष्य को जीवन जीना सिखाती है

इस ज्ञान से उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। वह ज्ञान-विज्ञान के उन क्षेत्रों में महारत हासिल करता है जो उसके भावी जीवन को सुख शांति और धन-संपत्ति से भर देता है। वह मानव समाज के लिए ऐसे-ऐसे कार्य करने में सक्षम होता है जिससे मानवता समुन्नत होती है। शिक्षा मनुष्य को दुगुर्णों की पहचान में मदद करती है ताकि वह इनसे सदा ही दूरी बनाए रख सके। शिक्षा वास्तविक अर्थों में मनुष्य को जीवन जीना सिखाती है। जब से मानव सभ्यता का सूर्य उदय हुआ है तभी से भारत अपनी शिक्षा तथा दर्शन के लिए प्रसिद्ध रहा है। यह सब भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों का ही चमत्कार है कि भारतीय संस्कृति ने संसार का सदैव पथ-प्रदर्शन किया और आज भी जीवित है।

भारत में प्रत्येक युग की शिक्षा के उद्देश्य अलग-अलग रहें हैं

वर्तमान युग में भी महान दार्शनिक एवं शिक्षा शास्त्री इसी बात का प्रयास कर रहे हैं कि शिक्षा भारत में प्रत्येक युग की शिक्षा के उद्देश्य अलग-अलग रहें हैं। इसलिए वर्तमान भारत जैसे जनतंत्रीय देश के लिए उचित उद्देश्यों के निर्माण के सम्बन्ध में प्रकाश डालने से पूर्व हमें अतीत की ओर जाना होगा। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य का जन्म शिक्षा के व्यैक्तिक उद्देश्य की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। इस उद्देश्य के समर्थक व्यक्ति की अपेक्षा समाज को ऊँचा मानते हैं। उनका अटल विश्वास है कि व्यक्ति स्वाभाव से सामाजिक प्राणी है। यदि उसे समाज से प्रथक कर दिया जाये। उसका जीवन रहना कठिन हो जायेगा। प्रत्येक बालक समाज में ही जन्म लेता है तथा समाज में ही उसका पालन-पोषण होता है। समाज में ही रहते हुए वह बोलना-चलना, पढ़ना-लिखना तथा दूसरे व्यक्तियों से व्यवहार करना सीखता है। समाज में ही रहते हुए उसकी विभिन्न आवश्यकतायें पूरी होती हैं तथा विभिन्न विचारों के आदान-प्रदान द्वारा उसके व्यक्तित्व का विकास होता है।

अपने सम्पूर्ण विकास के लिए वह समाज का ऋणी है

समाज की उन्नति से वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति करता है तथा समाज की हानि से उसे भी क्षति पहुँचती है। इस प्रकार अपने सम्पूर्ण विकास के लिए वह समाज का ऋणी है। इस ऋण को चुकाना उसका कर्त्तव्य है। शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है। शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके। शिक्षा में उन बातों का भी समावेश होना चाहिए जिससे मनुष्य का आत्मिक विकास हो सके।

वर्तमान शिक्षा के बोझ तले मनुष्य की आत्मा खोती चली जा रही है

वर्तमान समय की शिक्षा व्यक्ति को धन लोलुप बना रही है। व्यक्ति आत्म-केंद्रित होकर रह गया है, वह बेईमानी, भ्रष्टाचार और दिखावे को प्रश्रय देने लगा है। वर्तमान शिक्षा के बोझ तले मनुष्य की आत्मा खोती चली जा रही है। शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए इसे और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है। शिक्षा को जन-जन तक फैलाने के लिए तीव्र प्रयासों की आवश्यकता है। इक्कीसवीं सदी में भारत का हर नागरिक शिक्षित हो, इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाने होंगे, सर्वशिक्षा को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। अंत में उन्होंने सभी जिलेवासियों को विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग करने हेतु सभी का आभार व्यक्त करते हुये उन्हें शुभकामनायें बधाई भी प्रेषित किया। 

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