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तहसीलदार के डिजीटल सिग्नेचर कर फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने वाले पर क्यों नहीं हो रही कार्यवाही

तहसीलदार के डिजीटल सिग्नेचर कर फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने वाले पर क्यों नहीं हो रही कार्यवाही 

क्षेत्रिय जनप्रतिनिधि कर रहे आरोपी को बचाने के लिये भरसक प्रयास

संवाददाता दीपक कुड़ोपा 
घंसौर- गोंडवाना समय।
जिले के जनजाति बहुल सदूर अंचल घंसौर में हुए फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने के मामले में अब तक कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं हुई हे। वहीं फर्जी तरीके से प्रमाण पत्र देने वाले आरोपी की काफी समय बीते जाने के बाद भी कानूनी कार्यवाही नहीं होना प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगा रही है जो कि विभाग के प्रति मंशा को स्पष्ट करता है । हम आपको बता दें कि पिछले दिनों भारतीय स्टेट बैंक घंसौर के ऊपर वाले माले में घंसौर के तहसीलदार के डिजिटल सिग्नेचर चोरी कर अनाप शनाप रुपये लेकर फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने का मामला सामने आया था । प्राप्त जानकारी के अनुसार लोक सेवा केंद्र घंसौर के एक कर्मचारी द्वारा तहसीलदार घंसौर को शिकायत की गई थी कि उनके डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग करते हुए कम्प्यूटर सेंटर संचालक दीपेश नेमा फर्जी प्रमाण पत्र जारी कर रहा है । वहीं इस पूरे मामले की खबर जब अनुविभागीय अधिकारी घंसौर रजनी वर्मा को दी गई तो उन्होंने तुरंत दलबल के साथ छापेमार कार्यवाही किया, जहाँ पर तहसीलदार घंसौर के डिजिटल सिग्नेचर साथ आरोपी दीपेश नेमा को धर दबोचा। जिसके बाद उसके कम्प्यूटर सेंटर को सील करते हुए कम्प्यूटर प्रिंटर सहित सभी चीजें जप्त कर ली गईं तथा आरोपी के विरुद्ध नोटिस जारी करने की बात भी तहसीलदार अमृतलाल धुर्वे ने भी मीडिया से बात करते हुए कही है। अब सवाल यह उठता है कि आरोपी को इसके इशारे पर जबरन बचने का समय दिया जा रहा है जबकी यह जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिये कि भारतीय स्टेट बैंक व उक्त कम्प्यूटर सेंटर किस राजनैतिक व्यक्ति के भवन में संचालित है व समय मिलने पर वह अपने राजनैतिक संबंधो से किस प्रकार जांच प्रभावित कर सकते हैं । यह जानते हुए भी आरोपी को रंगे हाथों पकड़ने के बाद भी पूरी तरह से खुले छोड़ना अधिकारियों की कार्यप्रणाली के प्रति मंसा को स्पष्ट करता है ।

क्यों नहीं हो रही आरोपी की गिरफ्तारी ?

वहीं घंसोर नगर में आरोपी दीपेश नेमा को दी जा रही रियायत को लेकर तरह तरह की अपवाहे देखने मिल रही है। जनचचार्ओं के इस दौर में दीपेश नेमा की गिरफ्तारी को लेकर लोगों कहना है कि कम्प्यूटर सेंटर पर की गई कार्यवाही महज दिखावा है । वहीं लोग इन सब के पीछे पूर्व विधायक प्रतिनिधि अखिलेश जैन बंटी की मामले में संलिप्तता मान रहे हैं । जबकी हमारे सूत्र बताते हैं कि गुरुवार के दिन हुई छापेमार कार्यवाही के बाद कम्प्यूटर सेंटर संचालक दीपेश नेमा द्वारा अपने राजनैतिक संरक्षणकतार्ओं के साथ देखा गया। सूत्रों की माने तो लखनादौन विधायक विधायक योगेंद्र सिंह बाबा द्वारा भी आरोपी को बचाने के लिए अधिकारियों पर दवाब बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके पीछे किसान कांग्रेस के नेता विनोद नेमा की भूमिकाओं को भी लोग संदेह के घेरे से देख रहे हैं। वहीं शनिवार की सुबह जब उक्त कम्प्यूटर सेंटर के ताले खुले दिखाई दिये तो मामले में समझौते की गुंजाइश और भी बढ़ने की संभावना बढ़ रही है। जबकी अधिकारियों द्वारा मामलें में की जा रही लेट लतीफी कई सवालों को जन्म देती है। जबकी इससे पहले भी कई मामलों में आरोपी दीपेश नेमा का नाम आता रहा है। जानकार सूत्र बताते हैं कि दीपेश नेमा भारतीय स्टेट बैंक के आसपास कई क्योस्क संचालित करते हैं । जबकी कियोस्क में लेनदेन में हो रही गड़बड़ी व फर्जी आधार केंद्रों के संचालन के मामले दीपेश नेमा की कई बार शिकायत हो चुकी है । वहीं इस पूरे मामले में जब दीपेश को रंगे हाथों पकड़ा गया तब भी आरोपी को सिर्फ नोटिस देकर कार्यवाही से किनारा करना कहीं न कहीं कई सवालों को जन्म देता है ।

बिना कार्यवाही क्यों खोल दिया गया कम्प्यूटर सेंटर के ताले

घंसौर मुख्यालय में फर्जी प्रमाण पत्र मामले में जब भारतीय स्टेट बैंक के ऊपर कप्यूटर सेंटर वाली जगह का दौरा किया, तो वहां नजारा देखकर भौचक रह गए कि जिस जगह को गुरुवार के दिन सील कर दी गई थी । आज उस जगह के ताले खुले मिले । एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के डिजिटल सिग्नेचर चोरी करके फर्जी प्रमाण पत्र जारी करना कहीं न कहीं विभागीय संलिप्तता को जन्म देता है। ऐसे में अधिकारियों द्वारा आरोपी पर की जा रही रहमत कई सवालों को जन्म देता है

इन धाराओं पर हो सकता है मामला दर्ज

फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर और तहसीलदार का डिजीटल सिग्नेचर का उपयोग करने के मामले में आरोपी कम्प्यूटर सेंटर संचालक दीपेश नेमा पर जल्द ही एफ आई आर होने की उम्मीद जताई जा रही है। वहीं कानून के जानकारों की माने तो उक्त मामले में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया जा सकता है। जिनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468, 471, 409, 420  की धाराएं शामिल ये वहीं ये सभी धाराएं समझौता करने योग्य नहीं हैं तथा अधिकतर धाराओं में 10 वर्ष की सजा व अर्थदण्ड का प्रावधान है। अब देखना यह होगा कि घंसौर के राजस्व अमले जिस प्रकार छापामार कार्यवाही में रुचि दिखाई उसी प्रकार बिना किसी राजनीतिक संबंधो की आड़ लिए अधिकारियों को आरोपी पर एफ आई आर दर्ज करवाते हैं या नहीं ।

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