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आदिवासी समाज की भाषाओं और बोलियों को संरक्षित किये जाने की जरूरत-सुश्री अनुसुइया उइके

आदिवासी समाज की भाषाओं और बोलियों को संरक्षित किये जाने की जरूरत-सुश्री अनुसुइया उइके

इंटरनेशनल डे आॅफ द वर्ल्ड इंडिजनस पीपुल्स रजत जयंती समारोह संपन्न

रायपुर/नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उईके नई दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल डे आॅफ द वर्ल्ड इंडिजिनस पीपुल्स की रजत जयंती समारोह में शामिल हुई । जहां उन्होंने आदिवासी समाज के भाषाएं-
बोलियां पिछले कई वर्षों में कई कारणों से विलुप्त हो गई और कुछ इसकी कगार में है। इनके लुप्त होने से समाज की अमूल्य ज्ञान, परम्पराएं, संस्कृति भी समाप्त हो जाती है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि ऐसी
बोलियों-भाषाओं को संरक्षित करें,  यह बात छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने नई दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल डे आॅफ द वर्ल्ड इंडिजनस पीपुल्स (विश्व आदिवासी दिवस) की रजत जयंती
समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से कही। उन्होंने आदिवासी समाज की कुछ बोलियों और भाषाओं के संरक्षण पर जोर दिया।

राज्यपाल की जिम्मेदारी पूरे जनजातिय समाज का सम्मान

राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके ने कहा कि राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मुझे छत्तीसगढ़ के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी है, वह मेरा ही नहीं पूरे जनजातीय समाज का सम्मान है,
इनके लिए मैं उन्हें पूरे समाज की तरफ से धन्यवाद देती हूं। राज्यपाल ने कहा कि भाषा सभ्यता और संस्कृति की पोषक होती है। भाषा उस समाज की सभ्यता और संस्कृति का परिचय देती है। इस समय पूरे विश्व में लोक भाषा और लोक बोलियों पर संकट गहराया है। यह स्थिति हमारे देश की जनजातियों की बोलियों और भाषाओं में इसका प्रभाव अधिक है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की मौत सिर्फ एक भाषा की ही मृत्यु नहीं होती, बल्कि उसके साथ की ही उस भाषा का ज्ञान-भंडार, इतिहास, संस्कृति समाप्त हो जाती है। खासतौर पर आदिवासी समाज में अनेक संस्कृति और परम्पराओं के साथ जड़ी-बूटियों की और उनके औषधीय उपयोग की जानकारी होती है। भाषा के विलुप्त होने से यह भी गुम हो जाती है। हर भाषा में पर्यावरण से जुड़ा एक ज्ञान जुड़ा होता है। जब एक भाषा चली जाती है तो उसे बोलने वाले पूरे समूह का ज्ञान लुप्त हो जाता है।

 बच्चे की प्राथमिक शिक्षा का माध्यम उसकी मातृभाषा हो

राज्यपाल सुश्री अनुसुुइया उईके ने कहा कि मेरा यह मानना है कि कोई भी व्यक्ति अपने भावनाओं को जितने सही तरीके से अपनी मातृभाषा में व्यक्त कर सकता है, उतने अच्छे ढंग से अन्य भाषाओं में व्यक्त नहीं कर सकता। उन्होंने अपनी बोली भाषा से अपने संतानों को अवगत कराने का और परिवार में उनका उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह भी प्रयास करना चाहिए कि बच्चे की प्राथमिक शिक्षा का माध्यम उसकी मातृभाषा हो। आदिवासियों की भाषाओं-बोलियों सहित अन्य विलुप्त होती भाषाओं को बचाने का यह उपयुक्त माध्यम है।

प्रकाशित स्मारिका किया विमोचन 

इस कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली में इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट एवं इंडिया इंडिजनस पीपुल्स सहित अन्य संस्थाओं द्वारा किया गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में इंटरनेशनल डे आॅफ द वर्ल्ड इंडिजनस पीपुल्स (विश्व आदिवासी दिवस) का थीम इंडिजनस लैंग्वेजेस अर्थात आदिवासियों की भाषाएं-बोली निर्धारित किया गया है। कार्यक्रम में राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके ने रजत जयंती के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका विमोचन किया। इस अवसर पर पूर्व विधायक श्री हीरा सिंह मरकाम, देश के विभिन्न भागों से आए विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधि और समाज के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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