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हमारे देश ने सती प्रथा जैसी कुप्रथा तक को समाप्त कर दिया तो बंधुआ मजदूरी को क्यों नहीं ?

हमारे देश ने सती प्रथा जैसी कुप्रथा तक को समाप्त कर दिया तो बंधुआ मजदूरी को क्यों नहीं ?

धूत क्रीड़ा, यानि जुए में पत्नी को हार जाने या बंधुआ रखे जाने जैसी घटनाओं को, किसी भी सभ्य समाज में कभी भी ठीक नहीं कहा जा सकता 

नई दिल्ली। गोंडवाना समय। 
राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा 08 नवम्‍बर, 2019 को आयोजित नेशनल सेमिनार आॅन एलिमिनेशन आॅफ बांडेड लेबर में श्रम एवं रोजगार राज्‍यमंत्री श्री संतोष गंगवार ने बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन के महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा के अवसर पर कहा कि जहां तक बंधुआ मजदूरी के कानूनी पहलुओं का प्रश्न है तो मेरा ऐसा मानना है कि हमारे बीच में प्रख्यात व विद्वान न्यायविद यहां मौजूद हैं और इस विषय पर उनसे बेहतर कानूनी जानकारी और कोई साझा कर ही नहीं सकता है।

किसी को बंधुआ रखना, केवल गुलामी का ही एक प्रकार है

व्यवहारिक भाषा में समझा जाये, तो गुलामी और स्वतंत्रता जैसे दो साधारण शब्दों के बीच के अंतर से हमें यह समझ में आता है कि गुलामी मानव जीवन के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप रही है । किसी को बंधुआ रखना, केवल गुलामी का ही एक प्रकार है। चल और अचल संपति यानि  movable & immovable Property को बंधक रखकर, उसके बदले में जरुरत के अनुसार कर्जा लेने की बात तो, फिर भी कुछ प्रसांगिक लगती है। किन्तु इतिहास के झरोखे में देखा जाय तो धूत क्रीड़ा, यानि जुए में पत्नी को हार जाने या बंधुआ रखे जाने जैसी घटनाओं को, किसी भी सभ्य समाज में कभी भी ठीक नहीं कहा जा सकता। यदि किसी भी कुप्रथा को समाप्त करना हो तो सबसे पहले हमें यह सत्य स्वीकार करना होता है कि हां ऐसी कुप्रथा विद्यमान है।

बंधुआ मजदूरी की कुप्रथा को भी जड़ से किया जा सकता है समाप्त 

हमारे देश ने सती प्रथा जैसी कुप्रथा तक को समाप्त कर दिया तो बंधुआ मजदूरी को क्यों नहीं ? हमारा ऐसा मानना है कि सरकार द्वारा कठोर कानूनों के माध्यम से, जागरुक जनता के सहयोग से, तथा सशक्त न्याय व्यवस्था, तीनों के मजबूत गठजोड़ से व सकारात्मक सोच के साथ, बंधुआ मजदूरी की कुप्रथा को भी जड़ से समाप्त किया जा सकता है। वास्तव में बंधुआ मजदूरी उपनिवेशवादी सोच की अनेकों प्रणालियों में से, सबसे क्रूर यानि गुलाम अत्याचार प्रणाली के रुप में, विश्व के अनेक देशों में विद्यमान रही है। हमारा ऐसा मानना है कि बंधुआ मजदूरी वास्तव में एक प्रकार से मजबूर श्रम का एक ऐसा विशिष्ट रुप है, जिसमें किसी भी व्यक्ति को मजबूरीवश लिये गये कर्ज व ब्याज के भुगतान करने के बदले में, श्रम बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्रवासी मजदूरी के परिपेक्ष्य में कई क्षेत्रों जैसे खनन व ईंट भट्टा उद्योग इत्यादि में भी बंधुआ मजदूरी प्रथा का प्रचलन देखा गया है। हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा एक बंधुआ मजदूर महिला के शोषण को अपनी कविता वह तोड़ती पत्थर के माध्यम से भावनात्मक रुप में बखान किया है।

अब पूरा 100% खर्च केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा वहन 

हालांकि 1976 के Bonded Labour System Abolition Act  के तहत भारत में बंधुआ मजदूरी को खत्म कर दिया गया है, फिर भी कहीं-कहीं पर ऐसे विषय सरकार की जानकारी में आते हैं। इसके लिए सरकार एक Centrally Sponsored Scheme चला रही थी, जिसके अंतर्गत छुड़ाये गये प्रत्येक बंधुआ मजदूर के पुनर्वास के लिए 20 हजार रुपये दिये जाते थे व 50% खर्च केन्द्र सरकार द्वारा व 50% खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता था। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने 2016 में इसे और बेहतर बनाया है। अब पूरा 100% खर्च केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए पुरुष वयस्क के मामलों में एक लाख रुपये। Special    Category के लाभार्थी, जैसे-अनाथ, भीख मांगने वालों के मामले में 2 लाख रुपये तथा Transgender,, विशेष परिस्थितयों में मुक्त कराये गयी महिलाओं, बच्चों जो वेश्यालयों, Placement Agency इत्यादि जगहों से मुक्त कराये गये हैं उनके मामलों में 3 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की जाती है।

अब और मामले खुलकर रिपोर्ट हो रहे हैं

इन सभी  मामले में 20 हजार रुपये की राशि तो जिला स्तर पर ही तत्काल सहायता के रुप में दी जाती है। मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं कि बंधुआ मजदूरी समाप्त करने की दिशा में सरकार द्वारा बनाई गई संशोधित Scheme बंधुआ मजदूरों की पुनर्वास संबंधी केन्द्रीय योजना-2016 के बाद, अब और मामले खुलकर रिपोर्ट हो रहे हैं। मेरे संज्ञान में आया है कि इन मामलों की रिपोर्टिंग व्यवस्था सुदृढ़ होने से इनकी संख्या में भी वृद्धि हुई थी। 2016 में लगभग 2600 मामले प्रकाश में आये  थे और 2017-18 में वह बढ़कर  6,413 मामले हुए व 2018-19 में लगभग 2500 मामले हमारे संज्ञान में आये हैं। इस योजना में बंधुआ मजदूरों के सर्वेक्षण करवाने के लिए हर राज्य को, 2 लाख से बढ़ाकर अब 4.50 लाख रुपये प्रति District दिये जाते हैं। Evaluation Studies के लिए 1 लाख रुपये प्रति ऊ्र२३१्रू३ तथा जागरुकता अभियान के लिए भी प्रत्येक राज्य को 10 लाख रुपये प्रतिवर्ष दिया जाता है।

यहां तक कि कुछ मामलों में तो उनकी बहू-बेटियों का शोषण तक किया जाता है-

जहां तक पुनर्वास किये गये व्यक्तियों की  Skilling का प्रश्न है, इसका भी हम लोगों ने ध्यान रखा है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत राज्यों को इन लोगों को वांछित र‘्र’’ प्रदान करने के लिये
आवश्यक निर्देश दिये गये हैं। Pilot Project के लिए बिहार के 5 जिले इस काम के लिए चिन्हित भी किये गये जिनके परिणाम ठीक आ रहे हैं। हमें एक बार सामूहिक रुप से चर्चा करनी होगी कि कैसे मात्र कुछ समर्थ और पैसे वाले लोग, कुछ निर्धन-लाचार परिवारों की आवश्यकता और मजबूरी का फायदा उठाने के लिए, उन्हें उच्च ब्याज दरों पर कुछ रुपये कर्ज के रुप में दे देते हैं और ब्याज के रुप में उनसे घरेलू या अन्य प्रकार के काम भी लेने लगते हैं। उच्च दरों के इस ब्याज को निपटाने का प्रयास करने में, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, बच्चों का बचपन, युवक-युवतियों का यौवन, बुजुर्गों का बुढ़ापा अर्थात परिवारों का पूरा का पूरा जीवन ही जाया हो जाया करता है। यहां तक कि कुछ मामलों में तो उनकी बहू-बेटियों का शोषण तक किया जाता है।

बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लिए जन-आंदोलन चलाने की दिशा में सोच रहा है

विभिन्न जन-आंदोलनों / अभियानों के माध्यम से, जब कभी भी किसी कुप्रथा को समाप्त करने का बीड़ा उठाने के लिए लोग आगे आये हैं, तो सरकारों को उनके साथ चलना ही पड़ता है। इसी सोच के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हमारा मंत्रालय बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लिए जन-आंदोलन चलाने की दिशा में सोच रहा है। राज्य सरकार के अधिकारी, सतर्कता समितियों आदि को कानूनी प्रावधानों व केन्द्रीय योजनाओं की निगरानी करने और योजना की प्रगति के मूल्यांकन के प्रति और अधिक संवेदनशील बनाने के दृष्टि से मजूदर संघों, राज्य सरकारों व राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के माध्यम से भी, इस विषय पर कार्यशालायें आयोजित किये जाने से बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन हेतु जन-जागरुकता को निश्चित रुप से एक सकारात्मक दिशा प्रदान होगी । लेकिन जन-भागीदारी के माध्यम से ही ज्यादा से ज्यादा जागरुकता फैला कर इस सामाजिक कुरीति को समाप्त करने में हम और जल्दी सफल हो पायेंगे।

प्रख्यात कवि दुष्यंत की पंक्तियों से अपनी वाणी को दिया विराम 

श्रम एवं रोजगार राज्‍यमंत्री श्री संतोष गंगवार ने अपने वक्तव्य को प्रख्यात कवि दुष्यंत की पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम दिया । हो गयी है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए, सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं, हमारी कोशिश है, यह सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही, कहीं भी हो आग, लेकिन आग जलनी चाहिए, या कौन कहता है, आसमा में सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारो।

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