8 विषयों पर पीएचडी करने वाली पहली आदिवासी महिला डॉ जयमति कश्यप
गोंडी भाषा-बोली पर लिख रही व्याकरण
वर्ष 1974 में दन्तेवाड़ा के पास कारली नामक गाँव में जन्मी डॉ. जयवंती कश्यप के पिता का नाम चाम सिंह कश्यप और माता का नाम रुको कश्यप था और उनका पैतृक निवास नारायणपुर जिले का नेलवाड़ है। मूलत: गोंड (मुरिया) जनजाति से आने वाली डॉ. कश्यप की यह लगन औरों के लिये भी निश्चित ही अनुकरणीय है। सम्पूर्ण बस्तर अंचल को उन पर गर्व है। पहली आदिवासी महिला जयमति, जिन्होंने 8 विषयों पर पीएचडी कर बस्तर को गौरवान्वित किया है। गोंडी भाषा-बोली पर व्याकरण भी लिख रही हैं वहीं सैकड़ों महिलाओं को मानव तस्करी के दलदल से बाहर निकाला है।
बस्तर। गोंडवाना समय।
बस्तर के धुर नक्सल प्रभावी दंतेवाड़ा जिले के वनग्राम कारली निवासी पहली आदिवासी महिला है डॉ. जयमति कश्यप, जिन्होंने 8 विषयों पर डाक्टरेट की उपाधि हासिल कर बस्तर का मान बढ़ाया है। वे बस्तर की लोक भाषा एवं बोली गोंंडी पर व्याकरण भी लिख रही हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी जयमति के अपने जीवन में सैकड़ों महिलाओं को मानव तस्करी के घिनौने दलदल से बाहर निकाला है। वे आदिवासी महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए विगत कई सालों से प्राणप्रण से जुटी हुयी हैं। बस्तर में जहां नक्सलवाद रूपी दैत्य अपने खूनी पंजे पसारकर, यहां के बुनियादी विकास में रोड़ा बना हुआ है, वहां जयमति कश्यप जैसी संघर्षशील, जुझारू महिला अंधेरे में प्रकाश की किरण बिखेर कर महिलाओं को निरंतर जागृत कर रही हैं, जयमति बस्तर में महिला सशक्तीकरण की मिसाल हैं।
यदि व्यक्ति लगन एवं निष्ठा से परिश्रम करे तो जीवन में कभी असफल नहीं होगा
जयमति कश्यप के सिर से बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया था। बाल्यकाल में उन्होंने गाय चराते हुए गांव के बच्चों को ड्रेस में स्कूल में पढ़ते देखा, तो उनके मन में भी शिक्षा ग्रहण करने की ललक जागृत हुयी कि काश मैं भी शिक्षा ग्रहण कर पाती और उन्होंने दृढ़ निश्चय से अपने सपने को साकार कर लिया। पहले पहल गुमरगुंडा आश्रम में बाद में कल्याण आश्रम में रहकर प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण किया, उन्होंने अपनी काबिलियत और साहस के बल पर न केवल स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त किया बल्कि इतिहास, हिंदी, राजनीति, समाज शास्त्र, ग्रामीण जनजीवन, भूगोल एवं लोक प्रशासन जैसे 08 विषयों पर पीएचडी कर एक सर्वोच्च मुकाम हासिल कर लिया है। वर्तमान में कोंडागांव जिले में महिला बाल विकास सुपरवाईजर के पद सेवारत डॉ जयमति कश्यप का मानना है कि यदि व्यक्ति लगन एवं निष्ठा से परिश्रम करे तो जीवन में कभी असफल नहीं होगा।
बोली-भाषा गोंडी के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए सतत कर रही कार्य
जयमति कश्यप मानती हैं कि अब तो मैंने किताबों को ही अपना जीवन साथी बना लिया है और अपनी विलुप्त हो रही बोली-भाषा गोंडी के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए सतत् कार्य कर रही हूं। जब तक सांस है तब तक आदिवासी समाज की सभ्यता व संस्कृति को बचाने का पुरजोर प्रयास करती रहूंगी। उन्होंने कहा कि बस्तर के आदिवासी समाज की व्यवस्थाएं परगनाओं पर संचालित होती है। इसीलिए मैंने बस्तर के परगनाओं पर गहन शोध किया है, जिसमें आदिवासी समाज की जीवन शैली के अतिरिक्त लोकनृत्यों एवं लोक गीतों की विस्तृत मीमांसा है। उन्होंने बताया कि मुझे कई दफा नक्सलियों ने बुलाया और नक्सलवाद अपनाने का दबाव डाला किंतु मैंने उनके आदेश को ठुकरा दिया। उनका मानना है कि बस्तर में अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए नक्सलियों ने आदिवासी जनजीवन में अनावश्यक दखलंदाजी, विन्घ बाधाएं डालकर उनके समग्र विकास और कल्याण की राह में रोड़ा खड़ा कर दिया है।
मणिकर्णिका सम्मान से हो चुकी है सम्मानित
कोंडागाँव जिला में महिला-बाल विकास पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत डॉ. जयमती कश्यप को उनके द्वारा किये गये शोध के लिये पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा आयोजित दीक्षान्त समारोह में भी पीएच-डी की उपाधि से अलंकृत किया गया था। उनके शोध का विषय था बस्तर के परगनाओं की सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक व्यवस्था का एक ऐतिहासिक अध्ययन। इसी तरह उन्हें रायपुर की ही दो संस्थाओं रोटरी क्लब आॅफ रायपुर ग्रेटर और क्रिएटिव आईज प्रमोशन्स द्वारा 2019 के मणिकर्णिका सम्मान से भी विभूषित किया गया था। इससे पूर्व उन्हें किशोरी-बालिका सम्मान से महिला-बाल विकास विभाग, कोंडागाँव द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
कई मंचों पर बस्तर का नाम करती आ रही है रोशन
डॉ. जयमती कश्यप ने जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (मध्यप्रदेश), इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (नयी दिल्ली) सहित विभिन्न महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं तथा संगोष्ठियों में भाग ले चुकी हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने देश की शीर्षस्थ साहित्यिक संस्था साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित जीवन्त संगोष्ठी (लाईव टेलीकास्ट सेमिनार) में भी शिरकत किया था, जिसमें देश के सुप्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भाग लिया था। इस तरह वे सभी मंचों पर बस्तर का नाम रोशन करती आ रही हैं।
गोंडी में लिखी उनकी पुस्तिका नना मुया का प्रकाशन भी हो चुका है
डॉ. जयमती कश्यप के बारे में न केवल चौंकाने वाला अपितु रेखांकित किये जाने लायक तथ्य यह है कि उन्होंने पाठशाला का मुँह तक नहीं देखा किन्तु विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए और स्वाध्याय से पहले ही वे 6 विषयों (इतिहास, राजनीति विज्ञान, हिन्दी साहित्य, भूगोल, ग्रामीण विकास, समाज शास्त्र) में एम. ए. कर और वे सातवें विषय (प्राचीन इतिहास) पर एम. ए. पर भी सफल हो चुकी है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है गोंडी में लिखी उनकी पुस्तिका नना मुया का प्रकाशन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नयी दिल्ली से हो चुका है और यह पुस्तिका जिले की सभी प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिये शासकीय तौर पर प्रदाय की गयी है। इसी तरह यह भी उल्लेखनीय है कि वे अपने शासकीय दायित्वों का पूरी तरह लगन, परिश्रम और निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए भी इन सभी गतिविधियों में सम्मिलित होती रही हैं, जिसके लिये विभाग द्वारा भी उनकी प्रशंसा की जाती है।