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ऐसे ही नहीं मिल गया रर्वि आर्मों को 2020 नोबल नागरिक का सम्मान

ऐसे ही नहीं मिल गया रर्वि आर्मों को 2020 नोबल नागरिक का सम्मान 

भीड़ तो बस अपने में मसगुल है, आओ एक दूसरे की जरूरत बने और सेवा करें 

खुशियां खुद हमारे पास होंगी बस किसी के खुशी का कारण बने रहें 

जगह जगह सेल्फी लेने के लिये मची होढ़ और मोबाईल में घुसी जिंदगिया के साथ फुर्सत से मोबाईल में लीन रहने वाले मानवीय युग में आज की आधुनिकता भरी दुनिया और दौड़ती भागती जिंदगी में मानवीयता ढूढ़ना बहुत मुश्किल है लेकिन असंभव भी नहीं है। भले ही मानवीयता की मिशाल कायम करने वाले मानव की संख्या कम हो पर वे हजारों लाखों पर भारी है। जहां एक और अनेकों मानव है जो सरकारी नौकरी, निजी संस्थानों में नौकरी कर सेवा करने के बदले में आर्थिक धन अर्जित भी कर रहे और खर्च भी दिल से कर रहे है। इतना ही अनेकों व्यपारी-उद्योगपति, पूंजपति भी है जो करोड़ो-अरबो-खरबों में खेल खा रहे है लेकिन मानव सेवा के लिये कितना आर्थिक रूप से खर्च कर रहे है और कितना शारीरिक रूप से सेवा कर रहे है इसमें जमीन और आसमान के बीच का अंतर है कहा जाये तो गलत नहीं होगा। मानवीयता की कमी के चलते ही असमानता की खाई गहरी होती जा रही है लेकिन इसके बाद भी असमानता की इस खाई को पाटने में कम लोग भले ही लगे हो उनका मानवीयता का पाठ मौजूदा समय व भविष्य में महत्वपूर्ण स्थान बनायेगा। 

विशेष संपादकीय 
संपादक विवेक डेहरिया 
यदि किसी हॉटल या रेस्टारेंट में कुछ नाश्ता या भोजन करते समय यदि कोई निर्धन या असहाय करीब में ही दिखाई दे तो उन्हें भी भोजन या नाश्ता कराये बिना मुंह में निवाला ही नहीं जाता है ऐसे लोग आज की इस दुनिया में बिरले ही कहें या कम ही मिलते है और उन्हीं कम लोंगों में पिता जी के द्वारा दिये सेवा के संस्कारवान नाम दूर नहीं है मतलब जहां न पहुंचे कवि वहां पहुंचे रवि नाम के सामाजिक सरोकार में सक्रियता के साथ सदैव आगे रहने वाले रवि आर्मो भी है।
यदि हम रवि आर्मो जी की फैशबुक आईडी को सर्च करें तो आपको दिखाई देगा कि वे कैसे नंगे पैर चलने वाले बच्चे हो या सयाने उन्हें कैसे चरण श्रंगार अपने हाथों से कराते है और अब तो रवि आर्मों जी को भी याद नहीं होगा कि उन्होंने कितने जोड़ी चप्पले पहना चुके होंगे।

यदि आपको हमारी बातों पर विश्वास न हो तो आप फैशबुक पर जाये और रवि आर्मों अंग्रेजी में सर्च करें तो आपको दिखाई देगा कि कैसे एक दूसरे की जरूरत बनते हुये दिखाई देते है रवि आर्मों और सामाजिक कार्यकर्ता बनकर जरूरतमंद लोगों के लिए काम करते है।

पिता व परिवार से जो सीखा उसे वापस देने की करते है कोशिश 

समाजिक सरोकार से सरजमी से जुड़े रहकर कार्य करने वाले रवि आर्मों को युवा पुरस्कार भारत 2018, शंघाई पुरस्कार 2016, सर्वश्रेष्ठ स्वयंसेवक 2016 सहित अनेक सम्मान से नवाजे जा चुके है।
हम आपको बता दे कि रवि आर्मो गांव में प्राथमिक शिक्षा पूरा करने के बाद उन्होंने जिला मंडला, जबलपुर, फूलबाणी, दमोह के जवाहर नवोदय विद्यालयों में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और अंग्रेजी में स्नातक की उपाधि प्राप्त किया।
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के बाद उन्हें जवाहर नवोदय विद्यालय दक्षिण सिक्किम, सिक्किम में शिक्षक के रूप में चुना गया।
एक बहुत ही सरल परिवार के रूप में उनके पिता ने अध्ययन और दूसरों के लिए अपनी मांगों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। रवि आर्मों जी को अपने पिता से सबक मिला जिसने अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए कड़ी मेहनत की थी, इसलिए वह अपने पिता और परिवार से जो कुछ भी सीखा है, उसे वापस देने की कोशिश करते है।

स्वाभिमान भी क्या चीज है जनाब कि मर जाऊंगा पर झुकूंगा नही

एक स्थान पर जब एक उम्रदराज व्यक्ति को देखा कि उन्होंने सड़क के किनारे ही जमा पानी से अपना सिर धोया, अपने कुछ बर्तन धुले और फिर अपना सामान एकत्र कर जाने लगे तो यह नजारा जब रवि आर्मो जी से अपने मित्र शुभम के साथ देखा तो उन्होंने यह विचार प्रकट किये कि स्वाभिमान भी क्या चीज है जनाब कि मर जाऊंगा पर झुकूंगा नहीं लेकिन रवि आर्मो जी की सामाजिक सेवा उन्हें रोक नहीं पा रही थी और उन्होंने अपने मित्र शुभम के साथ मिलकर बुजुर्ग व्यक्ति को नाश्ता की व्यवस्था करके दिया और तब तक रुके रहे जब तक कि उन्होंने बिस्कुट व समोसे नहीं ले लिए।

दादा ने कहा बेटा तुम लोग भी खाओ यही शब्द ने सुकून दे दिया

जब एक बार मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की गलियों में रवि आर्मो जी अपने दोस्तो के साथ यूं अपने मिशन के लिए निकल रहे थे कि अचानक एक बुजुर्ग दादा उन्हें बेहोशी की हालत में रोड के किनारे पड़े हुए दिखाई दिये। चूंकि रवि आर्मो अपने दोस्तों के साथ थे और उकने अंदर का सेवा करने का भाव यकायक जाग उठा और फौरन वे बुजुर्ग दादा से रूबरू होने पहुंच गये। जब बुजुर्ग दादा ने पानी मांगा जो पानी पिलाया और मजबूरन उन्हें केक खिलाकर ही संतुष्ट होना पड़ा तब बुजुर्ग दादा ने कहा कि बेटा तुम लोगा भी खाओ तो यही शब्द ने सुकुन दे दिया। इसके बाद जब बुजुर्ग दादा उनकी दास्तान सुनाया तो और उनकी जुबानी सुनाई गई बातें को सुनकर रवि आर्मो को बहुत दुख हुआ तब उन्होंने कहा कि सब कुछ होकर भी यूं पराया सा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। 

और बेटी ने कहा हैप्पी दीवाली अंकल 

ऐसा ही वाक्या जिसमें रवि अर्मो अपने बेटी के साथ जब दीपावली के दिन रास्ते से गुजरते समय जब अचानक उनकी बेटी की नजर एक रिक्सा चालक भैया पर पड़ी तो बेटी ने कहा कि पापा देखो न वो अंकल के पैर में बहुत घाव है और वो रिक्सा चला रहे हैं तो उनकी बेटी और रवि आर्मो रूककर रिक्शा चालक भैया के पास गए और बेटी ने कहा हैप्पी दीवाली अंकल वो भी बोले तुम्हे भी बेटी, इसके बाद उसी बीच बेटी ने रवि आर्मो यानि पापा से जिद किया कि पापा चलो कुछ देते हैं अंकल को जबकि स्वयं रवि आर्मो भी वही सोच कर आगे बढ़ रहे थे कि पास में बैठे फल विक्रेता से दर्जन भर केले लेकर बेटी ने दीवाली की खुशी रूप में उन्हें दिए। केले देते समय जो खुशी रवि आर्मो जी की बेटी के चेहरे पर दिखाई दे रही थी उससे वे आनंदित हो गये और उन्होंने यह कहते दुआ दिया कि मेरी बेटी ऐसे ही पल के साथ गुजरे अपनी सामर्थ्य के अनुसार जहां जैसी संभावना हो मदद जरूर करें।
विशेष संपादकीय 
संपादक विवेक डेहरिया

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