नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं
नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को दिए अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में इस बात का जिक्र किया कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के लिए कोटा और आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है। माननीय शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को कोटा प्रदान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और राज्यों को सार्वजनिक सेवा में कुछ समुदायों के प्रतिनिधित्व में असंतुलन दिखाए बिना ऐसे प्रावधान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है
उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता (सिविल) पदों पर पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के सदस्यों के लिए आरक्षण पर अपील पर दिए गए एक फैसले में अदालत ने कहा कि कोई मौलिक अधिकार नहीं है, जो इस तरह के दावों के लिए अनुमति देता है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने बीते 7 फरवरी को सुनाए अपने फैसले में कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है, ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है, जो किसी व्यक्ति को पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने के लिए विरासत में मिला हो।
संविधान पीठ ने कहा था कि 'क्रीमी लेयर' को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता
अदालत द्वारा राज्य सरकारों को आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा 2012 में दिए गए एक फैसले को पलट दिया है, जिसमें राज्य को निर्दिष्ट समुदायों को कोटा प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। उस समय वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, कॉलिन गोंसाल्वेस और दुष्यंत दवे ने तर्क दिया था कि राज्य में संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-ए) के तहत एससी/एसटी की मदद करने का कर्तव्य था। बीते शुक्रवार को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जब ये लेख आरक्षण देने की शक्ति देते हैं, तो उन्होंने ऐसा केवल राज्य की राय में राज्य की सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करने पर किया। अदालत ने कहा कि यह तय है कि राज्य को सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति के लिए आरक्षण देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। इसी तरह, राज्य पदोन्नति के मामलों में एससी/एसटी के लिए आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। हम आपको बता दे कि साल 2018 में पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने कहा था कि 'क्रीमी लेयर' को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता है। पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने 7 न्यायाधीशों वाली पीठ से इसकी समीक्षा करने का अनुरोध किया था।
No comments:
Post a Comment