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ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण पर सरकार को नोटिस

ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण पर सरकार को नोटिस

ईडब्ल्यूएस आरक्षण में ओबीसी, एससी-एसटी को नहीं किया जा सकता पृथक 

प्रदेश में ईडब्ल्यूएस की जनसंख्या सिर्फ 8 प्रतिशत 

जबलपुर। गोंडवाना समय। 
आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को शिक्षा तथा नौकरी में दस प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के मामले को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया।  इसके साथ ही युगलपीठ ने मामले में केन्द्र तथा राज्य सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए। इस मामले की अगली सुनवाई 13 मार्च को निर्धारित की है।     

संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 का स्पष्ट उल्लंघन 

अभिषेक कुमार पटेल, आरजी सिंह, देवेंद्र सिंह, गुरुचरण कुशवाहा, मनीष कुमार पटेल की ओर से याचिका दायर कर कहा गया कि राज्य सरकार ने 2 जुलाई 2019 को अधिसूचना जारी कर ईडब्ल्यूएस को दस फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया। ईडब्ल्यूएस आरक्षण में एससी-एसटी एवं ओबीसी को शामिल नहीं किया गया है। प्रदेश में ईडब्ल्यूएस की जनसंख्या महज 8 फीसदी है। इसके बावजूद इस वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देना, संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 का स्पष्ट उल्लंघन है। 

समस्त शासकीय विभागों से मंगाया जाये डेटा 

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह ने तर्क दिया कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण में ओबीसी, एससी-एसटी को पृथक नहीं किया जा सकता। उन्होंने आग्रह किया कि देश एवं प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोगों एवं समस्त शासकीय विभागों से डेटा मँगाए जाएँ। ओबीसी को राज्य एवं केंद्र की समस्त सेवाओं में संख्यानुपात में नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों में प्रतिनिधित्व दिया जाए। हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियों में संख्या अनुपात में एससी-एसटी एवं ओबीसी को प्रतिनिधित्व दिया जाए। नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों की चयन समितियों में ओबीसी, एससी-एसटी के सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। यदि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा संवैधानिक है तो ईडब्ल्यूएस आरक्षण को निरस्त किया जाए। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका में बनाए गए अनावेदकों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह ने तर्क दिया कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण में ओबीसी, एससी-एसटी को पृथक नहीं किया जा सकता।  उन्होंने आग्रह किया कि देश एवं प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोगों एवं समस्त शासकीय विभागों से डेटा मँगाए जाएँ। 

जजों की नियुक्तियों में प्रतिनिधित्व दिया जाए

ओबीसी को राज्य एवं केंद्र की समस्त सेवाओं में संख्यानुपात में नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों में प्रतिनिधित्व दिया जाए।  हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियों में संख्या अनुपात में एससी-एसटी एवं ओबीसी को प्रतिनिधित्व दिया जाए। नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों की चयन  समितियों में ओबीसी, एससी-एसटी के सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। यदि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा संवैधानिक है तो ईडब्ल्यूएस आरक्षण को निरस्त किया जाए। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका में बनाए गए अनावेदकों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

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