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हमको बहुत भारी पड़ा है, यूं शहरी हो जाना, डूंडासिवनी को फिर बनाओ ग्राम पंचायत

हमको बहुत भारी पड़ा है, यूं शहरी हो जाना, डूंडासिवनी को फिर बनाओ ग्राम पंचायत 

डूण्डासिवनी कबीरवार्ड के निवासियों को नगर पालिका दे रही 20 वर्षों से दर्द तकलीफ

अतैव गांधी जी स्वराज के स्वप्न को सार्थक करने का समय फिर आ गया है

हम आपको बता दे कि मैं भी चौकीदार हूं को लेकर व्यापक मुहिम भाजपा द्वारा चलाई गई थी। उस मुहिम में सिवनी के समाजिक सरोकार से जुड़े हुये एवं भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य पीयूष दुबे भी शामिल थे। वहीं अपने निवास क्षेत्र से डूण्डासिवनी-कबीरवार्ड के निवासियों की ज्वलंत समस्याओं और बीते 20 
वर्षों से ग्राम पंचायत का शहर से जुड़ने के बाद वार्ड के निवासियों को दैनिक दिनचर्या की आवश्यकताओं को लेकर आवाज उठाया गया है। जो जनता के हित में अपनी ही पार्टी के नगर पालिका अध्यक्ष होने के बाद भी जनसमस्या को लेकर कबीरवार्ड की वास्तविकता को बिंदुबार रखा है। उनका यह कार्य मैं भी चौकीदार हूं दिखाने के लिये भर नहीं वरन उनकी कार्यशैली पर सौ प्रतिशत सटीक बैठ रहा है। 

सिवनी। गोंडवाना समय। 
पिछले दिनों जिला प्रशासन ने कबीर वार्ड क्रमांक 6 को दो हिस्सों में बांट कर ठीक वैसी ही खानापूर्ति कर दिया है। जो  20 वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रशासन ने किया था। बीते 20 वर्षों में डूंडा सिवनी के नाम एक भी ऐसी उपलब्धि नहीं रही जो इसे शहर की श्रेणी में रखा जा सके। पंचायती राज व्यवस्था के तहत आने वाली राशि यदि आज तक डूंडा सिवनी ग्राम पंचायत के रूप में मिलती रहती तो आज तक एक भी गलियां कच्ची, नाली विहीन व नल विहीन न होती, फिर चाहे भवन निर्माण क्यों न हो, या डायवर्सन इतनी तकलीफ किसी नागरिक को नहीं उठानी पड़ती। 

ग्रामीण से शहरी कहलाने की भावनाओं को 20 सालों से कुचला गया 

इसके साथ ही चौगुना किया गया जमीन टेक्स से भी ग्राम पंचायत के रहने से बचा जा सकता था। डूंडासिवनी को जब नगर पालिका में सम्मिलित किया जा रहा था तब विकास की एक उम्मीद लोगो के मन में थी एक भावना थी। ग्रामीण से शहरी कहलाने की लेकिन इन बीस सालों में न सिर्फ उस भावना को नगर पालिका द्वारा कुचला गया बल्कि सारी संभावनाओं को निस्तनाबूत किया गया। तत्कालीन बसाहट के आधार ग्राम पंचायत के समय बनी बस्तियों को अवैध कालोनी का नाम देकर आवश्यक व अनिवार्य सड़क नाली और नल से वंचित रखा जा रहा है, नल-जल योजना तो दूर की बात भगवान को नहलाने के लिए नलों में ताजा पानी नहीं है। नल यहाँ के हर घर में एक दिन के अंतराल में आता है। इस आधार पर क्या जिस दिन नल न आये उस दिन व्यक्ति दैनिक दिनचर्या बिना पानी के गुजारे। 

बस उनका किराया हर साल 25 % बढ़ता जा रहा है

अंदरूनी नाले-नालियां इन 20 वर्षों में आज तक एक दिन भी कभी साफ नहीं हुये। डूंडासिवनी की 70 % आबादी इन तथाकथित अवैध कालोनियों का दंश झेल रही है। जबकि इन कालोनियों में जिन मकानों का निर्माण हो रहा है वह नगर पालिका के फुल प्रूफ परमिशन के तहत हो रहा है। नगर पालिका की जो दुकाने है वो इतनी जीर्ण 
शीर्ण हो चुकी है कि उनकी सुध लेने वाला कोई नही है। बस उनका किराया हर साल 25 % बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही न तो ढंग का यात्री प्रतिक्षालय है न कोई पार्क है और न ही प्रसाधन की कोई सुविधा है। 

सड़के कीचड़ बन जाती है और आदमी मेंढक

कचरा गाड़ी का भी रोज का ठिकाना नही है। हर मोहल्ले की सड़कों में, खाली पड़े प्लाटों में निस्तार का गंदा पानी है। नल हर घर तक नही पहुंच पाने के कारण हर घर कुआं है जो वास्तव में निस्तारित पानी का टैंक बन गया है उसी पानी को बिना रिफाइन किये हर व्यक्ति पीने को मजबूर है। एक बार बरसात होने पर सड़के कीचड़ बन जाती है और आदमी मेंढक। टाउन कंट्री प्लानिंग मजाक बनी हुई है, सड़क किनारे तो नालियां बनी है लेकिन उन तक जुड़ने के लिए छोटी नालियां नहीं है। 

पानी की टंकी ऐसी बनी कि आज तक पानी नहीं भरा 

वहीं डूण्डासिवनी क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही हुई और रोजगार कर रहे लोगों को हटाया गया है लेकिन अभी तक उन बेरोजगारों के रोजगार के स्थाई स्थानों की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसा नही है कि कुछ भी नही हुआ कुछ हुआ है। वो भी बड़ा अजीब सा जैसे एक पानी की टंकी बनी है, जिसमें आज तक पानी नहीं भरा जा सका तो वहीं एक सार्वजनिक शौचालय बना लेकिन उस तक कोई जा न सका है।

नालियां, स्ट्रीट लाईट, हैण्डपंप कोई काम के नहीं 

मेन रोड के किनारे कुछ नालियां तो बनी लेकिन उनसे छोटी नालियां जुड़ न सकी, स्ट्रीट लाइट लगी, पर वो कभी जल नहीं पाए, हेण्डपम्प तो खुदे पर उनके दर्शन नही हो पाए। अतैव गांधी जी स्वराज के स्वप्न को सार्थक करने का समय फिर आ गया है। स्थानीय स्वशासन का विकेंद्रीकरण इसका सबसे सार्थक उपाय सिद्ध होगा। डूंडा सिवनी स्वयं एक ग्राम पंचायत बने। इसके पंच, सरपंच तय करे कि क्या हो और क्या नहीं, इससे बेहतर कुछ नही होगा। 

नगर पालिका के चक्करों से मिलेगा छुटकारा 

भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व समाजिक सरोकार से सदैव जुड़े रहने वाले पीयूष दुबे का कहना है कि वर्तमान जनसंख्या के आधार पर डूंडासिवनी का वार्षिक बजट एक करोड़ के लगभग तो होगा, राजस्व प्राप्ति और अन्य मदो से यह राशि डेढ़ करोड़ तक पहुचेगी। जन्म-मृत्यु, विवाह, संबल, मजदूर कार्ड 
के लिए चक्कर तो नही लगाने पड़ेंगे। गरीब असहाय बेरोजगारो को कमसे कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी तो मनरेगा से मिलेगी। वैसे तो हर गली में नगरपालिका के कर्मचारियों को रोज आना चाहिए लेकिन मैं सिर्फ साल में 1 कर्मचारी को 1 बार देखता हूँ वो भी वही टेक्स लेने वाला, हो सकता है कभी होली, दिवाली आना भूल जाये लेकिन वो टेक्स लेना नहीं भूलते है। ग्राम पंचायत कर देने हर घर मे विकास होगा और सबसे बड़ी बात नगर पालिका के चक्करों से छुटकारा मिलेगा। 

वे अपने गांवों के नगर पालिका में संविलियन का विरोध करें

समाजिक सरोकार से जुड़े पीयूष दुबे ने सभी ग्रामीणों को सलाह दिया है कि जो शहरी क्षेत्र के आसपास के है। वे अपने गांवों के नगर पालिका में संविलियन का विरोध करें और यदि नहीं कर पा रहे थे कम से कम अपनी बस्तियों को वैध अवैध के चक्करों से निपटा लें, हमको बहुत भारी पड़ा है, यूं शहरी हो जाना।

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