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किसान को दरवाजे पर कब मिलेगी अनाज की कीमत

किसान को दरवाजे पर कब मिलेगी अनाज की कीमत

सभी उत्पादक निर्मित वस्तुओं की करता है तय कीमत 

किसानों की मेहनत की कीमत तय करती है सरकार क्यों ?

कड़वी कलम
विवेक डेहरिया 
संपादक गोंडवाना समय
सोने की चिड़िया कहलाने वाला व कृषि प्रधान देश जहां मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरा मोती जैसे गीत गाये जाते है, वहां पर किसान की जितनी मेहतन अनाज का उत्पादन करने में लगती है उससे कहीं ज्यादा मेहतन तो उसे अनाज को बेचने के लिये मशक्कत करना पड़ता है।
        खेतों में अनाज की बोवाई, कटाई, गहानी के बाद सुरक्षा करने के बाद फिर कई कई दिनों तक मंडियों में अनाज की सुरक्षा करने की हकीकत समय समय पर मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आ ही जाता है। आखिर क्या कारण रहा कि आजादी के बाद से अभी तक कोई भी सरकार कृषि प्रधान देश में किसानों को उनकी मेहनत से उत्पादित अनाज की कीमत दरवाजे पर ही क्यों नहीं दिलवा पाई है ? 

प्रधानमंत्री जी ने क्या कहा था ?

हम आपको बता दे कि लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 12 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों को यह भी सुझाव दिया कि मंडियों में भीड़ को रोकने के लिए कृषि उपज के प्रत्यक्ष विपणन को 
प्रोत्साहित किया जा सकता है।
      जिसके लिए मॉडल एपीएमसी कानूनों में तेजी से संशोधन किए जाने चाहिए। इस तरह के कदमों से किसानों को अपने दरवाजे पर ही अपनी उपज बेचने में मदद मिलेगी। यदि हम मध्य प्रदेश की ही बात करें तो सरकार किसानों को दरवाजे पर तो नहीं लेकिन मंडियों के बाहर बेचने का अधिकार किसानों को जरूर दे पाई है। 

किसानों को अनाज की कीमत तय करने का भी नहीं मिला अधिकार 

आजादी के बाद से देश की सत्ता व्यवस्था चलाने वालों में अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवि, किसान नेता भी शामिल रहे है लेकिन उसके बाद भी ऐसी कौन सी वजह रही कि किसानों को उनकी मेहनत की कीमत उनके दरवाजें पर कोई भी नहीं दे पाया। अब हम बात करें अनाज की कीमत तय करने की तो इस देश में सुई, बिस्किट सहित समस्त वस्तुओं का निर्माण करने वाला निर्माणकर्ताओं को कीमत तय करने का अधिकार दिया गया है।
          किसान जो कड़कड़ाती बिजली गिरते बरसते पानी, कंपा देने वाली ठण्ड, चिलचिलाती धूप में खेतों में धरती माई की धरा में मौजूद मिट्टी में मेहनत कर अनाज का उत्पादन का करता है। आजादी के बाद कोई भी सरकार किसान को उसकी कीमत तय करने का अधिकार आज नहीं दे पाये आखिर क्यों ?
           हां सरकार समर्थन मूल्य जरूर किसानों के लिये तय करती आई है परंतु हम देखते है कि जब वहीं अनाज व्यापारी के पास जाता है तो वह उसकी कीमत निर्धारित जरूर करता है। 

प्रत्येक ग्राम पंचायत में हो गोदाम और खरीदी केंद्र

सरकार आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस स्थिति में नहीं है कि किसानों को वह उसकी मेहनत की कीमत उसके दरवाजे पर दे सके। सरकार चाहे तो किसानों को गांव पर ही ये या ग्राम पंचायत स्तर पर ये सुविधा जरूर उपलब्ध करवा सकती है।
          यदि प्रत्येक ग्राम पंचायतों में औसतन उत्पादन के मुताबिक गोदामों का निर्माणों करवाया जाकर, ग्राम पंचायत स्तर पर ही खरीदी केंद्र बनाये तो किसान को गांव या गांव के करीब ही अनाज बेचने के लिये जाना पड़ेगा। इसके साथ ही खरीदी केंद्रों में अनाज की सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं होने के कारण, बेसमय होने वाली बरसात के कारण प्रति वर्ष कितना अनाज सड़ जाता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है यह भी दिखाई पड़ता है।
       
किसानों को कम से कम अनाज ऊगाने के लिये मेहनत करने के बाद बेचने के लिये मंडियों में तो मशक्कत नहीं करना पड़ेगा। इसके साथ ही कम कीमत पर अनाज देने के लिये मजबूर किसान हॉट-बाजार, व बिचौलियों के आर्थिक शोषण से मुक्त हो सकेंगे।

कुछ तो सुविधायें मुहैया करा रही सरकार 

हालांकि सरकार ने फिर भी किसानों को अनाज को बेचने में सुविधायें प्रदान करने का प्रयास किया है। उसके तहत पंजीयन कराने, एसएमएस से खरीदी केंद्रों में पहुंचने की तारिख आदि की जानकारी व समर्थन मूल्य की कीमत खाते में पहुंचाने जैसी सुविधायें उपलब्ध कराने का प्रयास किया है।
           वर्तमान दौर में तो सरकार और क्रियान्वयन कर्णधारों की भूमिका बहुत ही गंभीर व महत्वपूर्ण होगी। किसान किसी भी कारण से भीड़ न लगाये और तय समय तारीख पर ही अपना अनाज विक्रय करने के लिये आये। 

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