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भूख लगना प्रकृति है, छीनकर खाना विकृति है और बांटकर खाना संस्कृति है

भूख लगना प्रकृति है, छीनकर खाना विकृति है और बांटकर खाना संस्कृति है

इस विपत्ति में कोई भूखा मिल जाये तो बांटकर खाना ही हमारी संस्कृति है

मुश्किल दौर में देशज समुदाय की प्राचीन व्यवस्था वस्तु विनिमय भी जीवित हो चुका है

दौर-ए-मुश्किल मे सब एक दूसरे का सहारा जरूर बनें, ताकि भारत पीछे न रह जाये

देशवासियों के साथ साथ अर्थव्यवस्था को भी बचाना जरूरी है


नोवल कोरोना वर्तमान परिदृश्य एवं चुनौतियां



आलेख- सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम-जंगलीखेड़ा,
तहसील बैहर,
जिला बालाघाट म प्र

      नोवल कोरोना की बढ़ती घटनाओ का वर्णन और उससे होने वाले मानवीय जान-माल की नुकसान की खबरो से पूरा रेडियो, टीवी और अखबार भरा होता है, ये खबरें हमारे मन मस्तिष्क को झकझोर देती है। नोवल कोरोना वास्तव मे एक ऐसी आपदा है, जो हमे और राष्ट्र की विकास को सौ साल पीछे धकेल सकता है।
        यह भी प्रासंगिक है कि उम्र के पड़ाव मे कुछ पल ऐसे हमे याद हैं, जब प्लेग, चेचक, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, डेंगु, इबोला, आदि महामारियों ने मानवीय चेतनाओ को ललकारा व अनियंत्रित होकर पूरे दुनिया मे हड़कंप मचा दिया था ।

 मूलत: कोशिकाओं (सैल्स) पर हमला करता है

        कोरोना इस दुनिया के लिए नया नही है लेकिन इसकी भयावहता से मनुष्य परिचित नहीं था। कोरोना एक खास तरह का वायरस होता है, इसके सतह पर छोटे-छोटे कांटे पाये जाते हैं, यह मूलत: कोशिकाओं (सैल्स) पर हमला करता है। इस महामारी से पूर्व केवल छ: तरीके के ही कोरोना वायरस की जानकारी थी।
       कोविड-19, सातवां कोरोना वायरस है जिसकी पहचान हुई है। कोविड- 19 से पूरी ताकत से लड़ना है, विशेषज्ञो ने कोविड-19, को 1918 के स्पेनिश फ्लू से भी खतरनाक माना है, जिसमे करोड़ो लोग काल के गाल मे समा गये थे ।

तो क्या हमें विभिन्न क्षेत्रो में विकास कार्य रोक देना चाहिये ?

             आज मानव विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के साथ इस तरह खिलवाड़ कर चुका है, इसलिये प्रकृति भी अपनी सीमायें लांघती है। इंसान को अब प्रकृति का कहर समझ नहींं आ रहा है कि क्या करें ? क्या न करें ?,  स्वाभाविक है कि प्रकृति की यह मार हमे सहना ही पड़ेगा, तो क्या हमें विभिन्न क्षेत्रो में विकास कार्य रोक देना चाहिये ?  नही, परंतु ये विकास कार्य भी हमे उन नियमो व कानूनो के तहत करें, और उपयोग करें, जितना आवश्यक हो, जो इनके दुष्प्रभाव को कम करने मे सहायक हो ।

विश्व के बहुतायत राष्ट्र इस कोरोना महामारी से है ग्रसित 

          नोवल कोरोना की समस्या सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी का रूप धारण कर लिया है। आज हर जाति, धर्म, नस्ल, व समुदाय का व्यक्ति इस घोर संकट में अपने-अपने अराध्य से प्रार्थना कर रहा है। विश्व के बहुतायत राष्ट्र इस कोरोना महामारी से ग्रसित हैं परंतु यह देखने मे आया है कि जिन देशो मे कोरोना वायरस के नियंत्रण के तमाम उपायो को त्वरित लागू किया गया है। वहां प्रभाव स्थिर व नियंत्रण की स्थिति मे होने की संभावना व्यक्त कर सकते हैं।
           चीन का वुहान शहर आज नियंत्रण की स्थिति मे आ चुकी है, जहां से कोरोना वायरस की उत्पत्ति मानी जाती है । संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, और ब्रिटेन स्वयं कोरोना के चपेट मे हैं । अमेरिका इटली स्पेन की स्थिति चीन से भी भयावह हो चुकी है ।
         कोरोना महामारी से पूरे विश्व के मानव समुदाय के साथ-साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विश्व की अर्थ व्यवस्था की कमर टूट चुकी है। जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है ।

कोरोना वायरस पर नियंत्रण हेतु सरकार द्वारा पृथक्क से बजट घोषित किया गया

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक बड़ा बजट प्रतिवर्ष निर्धारित किया जाता है। वही मात्र कोरोना वायरस पर नियंत्रण हेतु सरकार द्वारा पृथक्क से बजट घोषित किया गया है। कोरोना महामारी प्रथम एवं द्वितीय चरण को पार करते हुए तृतीय चरण में प्रवेश कर सकती है, जिस प्रकार से मध्यप्रदेश, दिल्ली, केरल, कर्नाटक व महाराष्ट्र की स्थिति है।
           तृतीय चरण मे प्रवेश के लिये स्वयं मनुष्य उत्तरदायी है क्योंकि एहतियात नहीं बरते गये। अब यह सामूहिक स्तर पर फैलना शुरू हो गया है जिससे उसका मूल स्रोत पता करना मुश्किल है। लाखो पुलिस कर्मी, स्वास्थ्य कर्मी, सफाई कर्मी, स्थानीय प्रशासन व स्वयं सेवी संगठन के सदस्य देश व देश की जनता के लिये त्याग कर रहे हैं, वे घर इसलिये नही जाते हैं कि उनका परिवार सुरक्षित रहे, स्थिति तृतीय चरण कम्युनिटी ट्रांसमिशन तक न पहुंच सके।
          सरकार द्वारा लॉकडाउन के पश्चात भी बड़े पैमाने पर मानवीय गतिविधयां आज भी निरंतर बनी हुई है । पुलिस शक्ति के बावजूद जनता का सचेत न होना अपने स्वास्थ्य के साथ जानबूझकर खिलवाड़ किया जाना है ।ताजा आंकड़ो के अनुसार 20 मई 2020 तक विश्व मे इस वायरस से संक्रमितों की संख्या लगभग 48 लाख को पार कर गई है और हजारों अपनी जिंदगी गवां चुके है वहीं जबकि 18 लाख 58 हजार से ज्यादा लोगों ने कोरोना को मात भी दी है। जो विश्व की भयावह तस्वीर गढ़ रही है ।

तो सही समय मे सावधानी बरतने हेतु कड़ा निर्णय लिया है

             विश्व के अन्य राष्ट्रो की तुलना में भारत कम नुकसान झेला है, सहमात के कतिपय उठापठक घटनाओं को यदि अलग कर दें तो सही समय मे सावधानी बरतने हेतु कड़ा निर्णय लिया है। त्वरित रूप से कुछ राज्यो मे रासुका जैसे कानून, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, की धारायें व कुछ राज्यों के जिलो मे दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा-144  लगायी जाकर स्थिति से नियंत्रण पाने की कोशिश जारी है, राज्यो व जिलो की सीमाओ पर पूरी तरह आवाजाही बंद कर दी गयी है।
              कोरोना वायरस त्रासदी पर चिंतन करने से स्पष्ट होता है कि इसके संक्रमण का कोई एक विशेष कारण नही है। कोरोना वायरस को संक्रमण के लिये उत्प्रेरक का कार्य मानवीय अव्यवस्थित पर्यावरण, आवश्यक शासन निर्देश व सोशल डिस्टेंश का पालन न करना भी है।
                उपर्युक्त तथ्य एवं जानकारी से स्पष्ट है कि कोरोना वायरस एक प्राकृतिक आपदा का स्वरूप है। फिर भी इस संभावना से इंकार नही किया जा सकता है कि विकसित राष्ट्रो का विश्व में शक्तिशाली बनने की प्रबल चेष्ठा ने मानव जीवन को दावं मे लगा दिया। 

नाजुक समय में जनता व जनप्रतिनिधियों को अफवाह फैलाने वाली बातो पर रोक लगानी है

                कोरोना वायरस का संक्रमण जिस तीव्र गति से फैल रहा है, विशेषज्ञो की माने तो इस सामुदायिक संक्रमण के रोकथाम के लिये देश में अब प्रतिदिन महत्वपूर्ण प्रयास किया जा रहा हैं। सामान्यत: सर्वमान्य उपाय यह है कि त्वरित रूप से अधिक से अधिक टेस्ट करवाने की व्यवस्था करानी होगी, जिससे अधिक से अधिक प्रभावितो की पहचान एवं बचाव का अवसर मिल सकेगा।
            आंकड़ो के आधार पर एहतियात, इलाज व टीके विकसित करना आज की सख्त आवश्यकता है। इस नाजुक समय में जनता व जनप्रतिनिधियों को अफवाह फैलाने वाली बातो पर रोक लगानी है। इस आम जनता के बीच दहशत का माहौल न बन जाये । खबरो के अनुसार अमरीकी विशेषज्ञो ने यह भी दावा कर चुके है कि सही दिशा मे आगे बढ़ते रहे तो महत्वपूर्ण वेक्सीन या टीके न्यूनतम अठारह महिने मे तैयार सकते हैं।

जिससे बाजार उद्योगो की रफ्तार बनी रहे

             देश के साथ साथ निश्चित ही आज हमारे पीढ़ी के सामने सबसे कठिन चुनौतियां हैं। देश आज संक्रमण काल की स्थिति से गुजर रहा है। पहली चुनौती तो कोरोना वायरस से देश को सुरक्षित रखना व नियंत्रण के तमाम उपायों की व्यवस्था करना, जिससे जनजीवन अस्त व्यस्त न हो क्योंकि देश की पूर्ण जनसंख्या की पूर्ण जिम्मेदारी शासन प्रशासन ने लिया है।
             यह भी कम चुनौतियों से भरा काम नहीं है क्योकि सभी जनसामान्य की मूलभूत आवश्यकताओ की पूर्ति प्रत्येक स्तर, प्रत्येक क्षेत्र व प्रत्येक व्यक्ति तक प्रतिदिन करना है। देशवासियों के साथ साथ अर्थव्यवस्था को भी बचाना जरूरी है । वे तमाम प्रयास किये जाने चाहिये। जिससे बाजार उद्योगो की रफ्तार बनी रहे ।

मंदी की मार देश को झेलनी पड़ेगी वहीं बेरोजगारी बढ़ने का संकट गहरा गया है

          आज लाकडाउन के चलते देश के सभी कारोबार तक ठप हैं उद्योगो पर ताला लगे हैं। मंदी की मार देश को झेलनी पड़ेगी वहीं बेरोजगारी बढ़ने का संकट गहरा गया है। चुनौतियां अनेक तरह से देश के सामने है, सरकार और देश को कोरोना वायरस के साथ उन गंभीर चुनौतियों से भी जूझना पड़ेगा।
         बहुत से ज्वलंत सवाल देश के सामने उठ रहा है कि यह लाकडाउन यदि बढ़ता है तो देश की अर्थव्यवस्था व कारोबार कितना समय मे अपने आपको रिकवर कर सकता है। बेरोजगारी का प्रतिशत सीधे सीधे कई गुना बढ़ जायेगा। उद्योगो मेंं काम करने वाले लाखों मजदूरो के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगेगा। 

खाद्यान आपूर्ति करना सबसे बड़ी चुनौती होगी

           
          ऐसे रोजगार खोने वाले युवाओ की संख्या लाखों के साथ करोड़ो भी हो सकती है। इस लाकडाउन के दौरान एक विद्वान द्वारा कही गयी पंक्ति याद आती है, भूख लगना प्रकृति है, छीनकर खाना विकृति है और बांटकर खाना संस्कृति है।
           अपना निवाला भले मत दीजिये परंतु इस विपत्ति मे कोई भूखा मिल जाये तो बांटकर खाना ही हमारी संस्कृति है। 
संपूर्ण जनसंख्या के लिये खाद्यान आपूर्ति करना सबसे बड़ी चुनौती होगी, वो भी ऐसे स्थिति मे जब किसानो के सभी फसल भारी बारिश व ओले के भेंट चढ़ चुके हों। युवाओ को रोजगार एक चुनौति होगी जब बड़ी-बड़ी कंपनियां गिरते अर्थव्यवस्था के कारण उनको सेवा से पृथक कर दी जावेगी।

तभी राष्ट्र का विकास संभव होगा

              आज इस मुश्किल दौर में देशज समुदाय की प्राचीन व्यवस्था वस्तु विनिमय भी जीवित हो चुका है। देशज समुदाय के सदस्य अनाज वगैरह का आपस मे व्यवहार व विनिमय कर प्रथा को जीवंत कर दिया है। इसलिये ऐसे दौर-ए-मुश्किल मे सब एक दूसरे का सहारा जरूर बनें, ताकि भारत पीछे न रह जाये। जाति, वर्ग, धर्म, भाषा, नस्ल संप्रदाय, उंच नीच की मानसिकता त्यागकर सबके साथ में रहना जरूरी है तभी  इस महामारी को हंसते-हंसते झेल सकेंगे। हमारी संस्कृति मजबूत होगी, देशज ज्ञानतंत्र प्रकृति की ओर लेकर जायेगी। हम में से कुछ युवा शक्ति जिनके पास सोचने समझने की क्षमता, प्रकृति की समझ, उद्देश्य की ताकत, मजबूत मस्तिष्क, पारदर्शी भावनायें व धैर्य होगी, उन्हे आगे नेतृत्व करना ही होगा, तभी राष्ट्र का विकास संभव होगा ।
आलेख- सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम-जंगलीखेड़ा,
तहसील बैहर,
 जिला बालाघाट म प्र

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