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लक्ष्य के प्रति प्रेम और लगाव का होना अत्यंत आवश्यक है

लक्ष्य के प्रति प्रेम और लगाव का होना अत्यंत आवश्यक है

मनुष्य जितना सोचता है उतने सारे लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है किंतु चुनौती लेने से बचता है

हर चढ़ाव के बाद उतार और सुकून जरूर आता है

जितना तुम चलना चाहते हो, तुम उससे कहीं अधिक चल सकते हो, तुम्हारा चलना और रुकना दोनों ही तुम्हारी मेहनत की कहानी कहने के लिए पर्याप्त है। किसी भी लक्ष्य को पाना और बनाना दोनों में बहुत अंतर है। लक्ष्य तो हर कोई बनाता है किंतु उन लक्ष्यों का भेदन बहुत कम लोग कर पाते हैं। हर मनुष्य के लक्ष्य का भेदन ही 
उसकी सफलता की कहानी को बयान करता है। जीवन में किसी भी लक्ष्य का निर्धारण करने से पहले चार महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. लगाव (Attachment) यदि आपका लगाव उस लक्ष्य की ओर नहीं, जिसे आपने अधूरे मन से  निर्णय लिया है तो आप कभी भी उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते। लक्ष्य के प्रति प्रेम और लगाव का होना अत्यंत आवश्यक है।
2 ठहराव (Stay) सफलता की सीढ़ी को आप जानना चाहते हैं, तो ठहराव आपकी मेहनत लगन और उस कार्य को करने के प्रति आपका लगाव कितना है, आप कितना उस कार्य के प्रति उत्तरदायित्वों में बंधकर रह सकतें है, यह ठहराव ही निर्धारित करता है।
3 चढ़ाव (Rise)  हम यदि निरंतर कठिन प्रयास करते हैं, उन प्रयासों का सही से पालन करते हैं तो हमें अपने जीवन में यह अनुभव होगा कितने उतार-चढ़ाव से गुजर कर हम उस कठिन डगर पर जाते हैं] जिस मार्ग का निर्माण हमने किया है। हम बिना उतार के चढ़ाव पार नहीं कर सकते, देखने का नजरिया है किसे क्या दिखता है। अक्सर लोग लक्ष्य के चढ़ाव से घबरा जाते हैं तथा वह यह भूल जाते हैं हर चढ़ाव के बाद उतार और सुकून जरूर आता है।
4 पड़ाव (Stay) लक्ष्य को पाकर फिर लक्ष्य बदलो, नए लक्ष्यों का निर्धारण कर, नए-नए लक्ष्यों की रूपरेखा में लगे रहो, हर छोटी रूपरेखा भी, एक लक्ष्य की नींव को मजबूत करती है। अपने कदमों को कभी एहसास ना होने दें, आपका अगला कदम कब और कहां रुकेगा, कदमों को आदत है चलने की, किंतु आपका दिमाग उन कदमों 
को, कहां, कैसे और क्यों ले जाना चाहता है, यह आप निर्धारित करते हैं जितना तुम चलना चाहते हो, तुम उससे कहीं अधिक चल सकते हो, तुम्हारा चलना और रुकना दोनों ही तुम्हारी मेहनत की कहानी कहने के लिए पर्याप्त है।

दिमाग और कदमों के बीच हमेशा दूरियां बनाकर रखना चाहिए

आपका दिमाग उन कदमों को, कहां, कैसे, और क्यों ले जाना चाहता है, यह आप निर्धारित करते हैं। अत: आपके निर्धारण से ही आपके कदम चलने से रुकते हैं और चलते हैं। इस प्रकार आप अपने मस्तिष्क से मार्गों को स्वयं खोजते हैं, पाते हैं, नए मार्ग हेतु और रास्ते बनाते हैं।
             कदमों को कभी यह ना बताएं की तुम थक चुके हैं। दिमाग और कदमों के बीच हमेशा दूरियां बनाकर रखना चाहिए यदि आपके कदमों ने दोस्ती दिमाग से कर ली तो निश्चित ही उस वक्त आपकी हार हो जाएगी, क्योंकि दोनों का काम ही है चलना, दिमाग का काम है बिना थके बिना रुके 24 घंटे चलते रहना किंतु कदमों का काम है, कब चलना, कैसे चलना, क्यों चलना, इसका संचालन दिमाग करता है और जब दिमाग ही कदमों से दोस्ती कर लेगा दोनों ही विश्राम की अवस्था में आ जाएंगे।

अपने पर रोज परिवर्तन लाएं

खुद अपनी परेशानियां निर्मित करते हैं, यह बात जिस दिन भी हमें समझ में आ गई, हमें कभी परेशानी नहीं होगी, अपनी परेशानियां की वजह हम खुद होते हैं। अपनी परेशानियों की वजह दूसरों को मानने से आपकी परेशानियां कभी कम नहीं हो सकती, अपनी परेशानियों को कम करने के लिए हमें खुद ही सबसे बेहतर बनने के लिए,  खुद से, खुद हालातों से, परेशानियों से, जज्बात से लड़ना पड़ेगा, यह सबसे खराब हालात होंगे, यह स्थिति जीवन को सरल और शांत बनाएगी बनाएगी। किसी भी कार्य को करने के लिए दिल और दिमाग का एक साथ होना आवश्यक है। मन को स्थिर कर यदि आप उस कार्य को करने में लग जाते हैं तो आने वाला कल हमेशा आपके हाथ में होता है।

आज हम जानेगे अल्बर्ट आइंस्टीन को कैसे पूरी दुनियां को अपने कठिन परिश्रम से बदल दिया

अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म जर्मनी में यहूदी परिवार में हुआ कोई यह सोच भी नहीं सकता था, जो बच्चा बचपन में ठीक से बोल भी नहीं पता, वह विश्व का इतना बड़ा वैज्ञानिक बनेगा तथा विश्व को भौतिक शास्त्र के क्षेत्र में इतना अधिक विस्तार देगा उस समय यह कल्पना बहुत मुश्किल थी।

आइंस्टाइन ने क्या कहा सिर्फ एक शब्द लगन 


अल्बर्ट आइंस्टीन बचपन में पढ़ने में भी अच्छे नहीं थे, अपने पूरे जीवन काल में आइंस्टीन ने सैकड़ों किताबें और लेख प्रकाशित किए, उन्होंने 300 से अधिक वैज्ञानिक और 150 गैर वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित किए अल्बर्ट आइंस्टीन बहुत ही साधारण सरल स्वभाव के थे। वह अपनी गलती को स्वीकार करना भली-भांति जानते थे।
        एक बार एक युवा उनके पास आया और कहने लगा सर आज सारी दुनिया में आपका नाम है, लोग आपकी तारीफ करते नहीं थकते प्लीज मुझे बताइए कि महान बनने का मूल मंत्र क्या है, जानते हैं आइंस्टाइन ने क्या कहा सिर्फ एक शब्द लगन। 

याद रखने से क्या फयदा जो पास रखी किताब में मिल जाता है

वे टेलीफोन का नंबर भूल जाते थे यहां तक कि उन्हें खुद का नंबर भी याद नहीं रहता था एक बार उनके सहकर्मी ने उनका टेलीफोन नंबर मांगा आइंस्टाइन पास रखी डायरेक्टरी में अपना नंबर ढूंढने लगे सहकर्मी हैरान होकर बोला आपको खुद का टेलीफोन नंबर याद नहीं है किसी चीज को याद रखने से क्या फयदा जो पास रखी किताब में मिल जाता है।

लेकिन बिना टिकट के मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं कहाँ जा रहा हूं

          एक बार आइंस्टीन प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से कहीं जाने के लिए ट्रेन से सफर कर रहे थे। ट्रेन कंडक्टर सभी पैसेंजर्स की टिकट को चेकिंग करते हुए आइंस्टाइन के पास आया और उनसे टिकट दिखाने को कहा। आइंस्टाइन टिकट अपनी जेब में ढूंढने लगे और जेब में टिकट ना मिलने पर उन्होंने अपने सूटकेस को चेक किया जब सूटकेस में भी टिकट नहीं मिला तो वह अपनी सीट के आसपास खोजने लगे, कंडक्टर आइंस्टाइन को अच्छी तरह जानता था।
           उसने कहा कि यदि आपकी टिकट गुम हो गई है तो कोई बात नहीं मुझे विश्वास है कि आपने टिकट जरूर खरीदी होगी और यह कहकर वह दूसरे पैसेंजर्स के टिकट चेक करने लगा लेकिन जब उसने देखा कि अभी भी आइंस्टाइन अपनी सीट के नीचे टिकट ढूंढ रहे हैं तब वह फिर से आइंस्टाइन के पास आया फिर उनसे कहा कि वह टिकट के लिए परेशान ना हो उनसे टिकट नहीं मांगा जाएगा। यह बात सुनकर उन्होंने कहाँ वह सब तो ठीक है लेकिन बिना टिकट के मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं कहाँ जा रहा हूं। 

वह पॉलिटिक्स के लिए नहीं बने बल्कि साइंस के लिए बने हैं

आइंस्टाइन अपना चैनल स्पेशल थिअरी आफ रिलेटिविटी की वजह से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 1921 में उनको नोबेल प्राइज िथअरी आफ रिलेटिविटी के लिए नहीं बल्कि फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट की खोज के लिए दिया गया था। साल 1952 में आइंस्टाइन को इजरायल का राष्ट्रपति बनने का आॅफर आया लेकिन उन्होंने यह कहकर आॅफर के लिए मना कर दिया कि वह पॉलिटिक्स के लिए नहीं बने बल्कि साइंस के लिए बने हैं। आइंस्टीन एक भावुक प्रतिबंध जातिवाद विरोधी थे उन्होंने अमेरिकियों के नागरिक अधिकारों के अभियान में हिस्सा भी हिस्सा लिया।

अल्बर्ट आइंस्टीन के मोटिवेशनल विचारों को जानते हैं

1. यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिल्कुल नई सोच की आवश्यकता होगी।
2. जो छोटी-छोटी बातों में सच को गंभीरता से नहीं लेता है, उस पर बड़े मामलों पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
3. ईश्वर के सामने हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान हैं और एक बराबर ही मूर्ख।
4. महान आत्माओं ने हमेशा मामूली सोच वाले लोगों के हिंसक विरोध का सामना किया है।
5. जहाज हमेशा किनारे पर सुरक्षित रहता है लेकिन वह इसके लिए नहीं बना होता।
6. अक्सर कठिनाइयों के बीच ही अवसर छुपे होते हैं।
7. जैसे ही आप सीखना बंद कर देते हैं, आप मरना शुरू कर देते हैं।
8. कल से सीखो, आज के लिए जिओ, कल की आशा रखो, जरूरी बात यह है कि प्रश्न करना मत छोड़ो।

मनुष्य यदि ठान ले तो हर असंभव सा दिखने वाला कार्य वह कर सकता है

हमें इस लेख से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य यदि ठान ले तो हर असंभव सा दिखने वाला कार्य वह कर सकता है, उसमें उस कार्य के प्रति जज्बे का होना बहुत जरूरी है। यह फर्क नहीं पड़ता कि उसकी प्राथमिक शिक्षा कैसी है ? यदि लक्ष्य है असंभव तो आप साधारण आदमी नहीं है।
       परिवर्तन को लाने के लिए मानव कल्याणकारी कार्यों को स्थापित करने के लिए आप अचंभित करने वाला कार्य कर जाते हैं, जिसे पूरी दुनिया समझ भी नहीं सकती, ऐसे कार्यो की जिम्मेदारी भी साहसी व्यक्ति ही ले सकता है।
           हर बदलाव कि शुरूवात कोई न कोई करता है किन्तु शुरूवात करने वाला ही जब खत्म करता है वह इतिहास हो जाता है। मनुष्य जितना सोचता है उतने सारे लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है किंतु चुनौती लेने से बचता है।

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