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ऊजार्वान व्यक्ति को अपनी ऊर्जा का उपयोग हमेशा सकारात्मक लक्ष्यों पर लगाना चाहिए

ऊजार्वान व्यक्ति को अपनी ऊर्जा का उपयोग हमेशा सकारात्मक लक्ष्यों पर लगाना चाहिए

सफलता का नशा मस्तिष्क पर कभी चढ़ पाये और विफलता का बोझ भी मस्तिष्क पर ना आए

नींद और निंदा इन दोनों पर आपको विजय पाना आना चाहिए

समय का सदुपयोग आपके आने वाले जीवन को उपयोगी बनाता है

सबसे पहले आपको खुद को बदलना सीखना होगा


गोंडवाना समय, विशेष लेख 
आप अपने कार्यों का उद्देश्य हेतु चयन करें, आप किस कार्य के लिए बने हैं, आपके द्वारा किया गया चयन ही कठिनाई और सर्वोत्तम के रास्तें को दशार्ने के लिए पर्याप्त है। आपका चयन हमेशा ऐसा होना चाहिए जिससे आपका भविष्य निर्माण भी हो एवं आप एक आदर्श भी बनें, चयनित होने के लिए स्वयं को साबित करना सबसे बड़ी चुनौती है जो केवल आपकी है।
स्वीकार (Acceptence) 
यदि आप खुश रहना चाहते हैं, तो यह स्वीकार करना होगा कि आप खुश रह सकते हैं। किसी भी परिस्थिति, विपत्ति में खुश रहना आदत है, आदत हम अपनी खुद बनाते हैं। जिस तरह झूठ बोलना, देर तक सोना, किसी से ईर्ष्या रखना, अपनी परेशानियों का जिम्मा किसी और के ऊपर थोप देना। जैसे मैं आपकी वजह से परेशान हूं। खुश रहना आपके आंतरिक गुणों की विवेचना करता है, यही से आप दुखी रहने की आदत लगा लेते हैं, आपको यह समझना चाहिए कि यदि आप किसी एग्जाम में फेल हो गए तो वह आपका बाहरी वातावरण है, खुश रहना आपके स्वभाव का आंतरिक वातावरण है।
यही गुण महान बनाता हैं
बाहरी वातावरण और आंतरिक वातावरण में टकराव उत्पन्न करेंगे तो भौतिक गुणों की संरचना आपके मस्तिष्क संरचना तथा आप इससे आदत के रूप में ढाल लेंगे। आपको यह समझना चाहिए खुश रहना एक आदत है। वैज्ञानिकों को आपने देखा होगा हर विफलता पर भी हमेशा मुस्कुराया करते थे, कारण यह था कि वे यह जानते थे वह विफल क्यों हुए तो आंतरिक भौतिक सुखों का बाहरी भौतिक सुखों से वे टकराव नहीं होने देते थे। उनका कार्य अपनी जगह था और आंतरिक मन अपनी जगह यही गुण महान बनाता हैं।
तो एक से मस्तिष्क संरचना कि हम अपेक्षा क्यों करते हैं ?
हर मनुष्य अपने आप में एक यूनिक है उसके जैसा दूसरा कोई नहीं है, यदि वह दूसरों की तरह बनना चाहेगा और यदि नहीं बन पाता है तो हमेशा दुखी रहेगा। किसी को आइडियल मानना और उसके जैसा बनना दोनों बहुत अलग-अलग मुद्दे हैं। व्यक्ति किसी के आदर्शों पर चल सकता है किंतु उसके जैसा बन नहीं सकता हर मनुष्य के मस्तिष्क संरचना अलग-अलग है तो एक से मस्तिष्क संरचना कि हम अपेक्षा क्यों करते हैं? यह अपेक्षा ही कब उपेक्षा में बदल जाती है, हम समझ नहीं पाते। यहां से एक निम्न सोच का जन्म होता है। वह आंतरिक गुणों से डिस्टर्ब कर देती है तथा आपकी जो स्थाई आदत है उस आदत को परिवर्तित करती है। अब आप ही स्वयं डिसाइड करें, स्वयं बदल सकते हैं, यह आपके विवेक पर निर्भर करता हैं।
उन विपत्तियों के जन्मदाता आप हैं
आपको वातावरण से निपटने की कला आनी चाहिए यदि आप विपत्तियों में घिर गए हैं, विपत्तियां अपने आप चल कर नहीं आती, उन विपत्तियों के जन्मदाता आप हैं। प्राकृतिक आपदा की वजह से वह विपत्तियां आई है तो आपने अपने जीवन में उन विपत्तियों से निपटने के लिए, इतने सालों में बचे रहने के लिए, क्या सीखा है? किस प्रकार उन विपत्तियों को हराकर आप नवीन उर्जा स्त्रोत की तरह स्थाई रह सकतें? जानना जरुरी है।
मनुष्य की जिंदगी में हर-पल हर-घड़ी नई परिस्थिति है
ऊजार्वान व्यक्ति को अपनी ऊर्जा का उपयोग हमेशा सकारात्मक लक्ष्यों पर लगाना चाहिए वह आंतरिक भौतिक गुण और बाहरी भौतिक गुण का टकराव नहीं होने देता तथा नित्य नई उत्पत्ति करता है, मानव जीवन विकास में भागीदारी देता रहता है। मनुष्य की जिंदगी में हर-पल हर-घड़ी नई परिस्थिति है, इन परिस्थितियों मे समस्या का आना बहुत आम बात है।
 सोच (Thought) 
आप सबसे अलग है तो आपकी सोच की प्रवृत्ति भी अलग होगी तथा हटकर होगी आप यह कैसे अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं जो सोच रहा हूं वैसे ही मुझे मिल जाएगा। आप अपनी सोच की प्रवृत्ति के वजह से ही कई बार हताशा और निराशा उत्पन्न करते हैं। मान लीजिए आप प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, यह आपकी सोच की प्रवृत्ति बहुत अच्छी है, किंतु आप जानते हैं, बहुत कठिन लक्ष्य है। पल-पल में बहुत कठिनाइयां हैं, हर सेकंड में नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। आंतरिक मस्तिष्क को बाह्य मस्तिष्क से टकराने से बचाना होगा। आपको वर्तमान परिवेश में सोच का श्रेष्ठता नए-नए मार्गों कि सतह खोजने होंगे। यदि आप ऐसा करतें है तो निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।
टाइम मैनेजमेंट(Time management)
वक्त को मैनेज करना आपको आना चाहिए। समय का सदुपयोग आपके आने वाले जीवन को उपयोगी बनाता है, ज्यादातर देखा गया है। समय का उपयोग हम समय रहते नहीं करते है। समय को रोज कमाया जाता हैं। समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता यदि आप रुके हैं, ठहरे हैं, बैठे हैं इसका मतलब यह है कि आप अपनी दुखों की आदत में वृद्धि करने वाले हैं।
इंसान खुद पर बदलाव नहीं करना चाहते वह हमेशा वजह चाहता है, परिस्थितियां बदले, सुविधाएं बदलें, इंसान की सोच बदले, सारे नियम कायदे बदलें, जैसा वह चाहता है जोकि असंभव है। अत: सबसे पहले आपको खुद को बदलना सीखना होगा। जब आप हर सेकंड खुद को बदलेंगे, अपडेट रखेंगे आप पाएंगे दुनिया बदलने
के आप काबिल बनते जा रहे हैं।

नींद और निंदा(Sleep and censure)

इन दोनों पर आपको विजय पाना आना चाहिए यदि आपने इन दोनों पर विजय पा लिया तो जीवन के हर मुकाम पर सफलता आपके लिए खुद इंतजार में बैठी होगी क्योंकि आपने आंतरिक तथा बहरी घोड़ों को समावेशी धागे में पिरोना सीख लिया है। सफलता प्राप्ति पर हमेशा एक बात ध्यान रखना चाहिए। सफलता का नशा मस्तिष्क पर कभी चढ़ने न दिया जाए। विफलता का बोझ भी मस्तिष्क पर ना आए, यह दोनों को संतुलित करना जिसने सीख लिया उसके लिए हर लक्ष्य छोटा है।

आइए जानते है महान वैज्ञानिक चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन के विषय में 

डार्विन ने विभिन्न प्रकार के जीव, जंतु तथा चट्टानों के नमूनों को एकत्र करके उन पर अध्ययन किया। अध्ययन के बाद विकास के संबंध में अपने सिद्धांतों को प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों की उत्पत्ति नामक पुस्तक में प्रकाशित किया है। इसे हिंदी में प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों की उत्पत्ति कहा जाता है। डार्विन का सिद्धांत किन-किन तथ्यों पर आधारित था अर्थात डार्विनवाद किन तथ्यों पर आधारित है तो पहला है, जीवो में कुल संतानोत्पत्ति क्षमता प्रत्येक जीवधारी में प्रजनन द्वारा संतान उत्पत्ति की अपार क्षमता होती है अर्थात सभी जीवो में संतान उत्पन्न करने की असीम क्षमता होती है।
डार्विन के विकास के सिद्धान्त से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस प्रकार विभिन्न प्रजातियां एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। उदाहरणत: वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि रूस की बैकाल झील में प्रजातियों की विविधता कैसे विकसित हुई।

तो इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्ष करना पड़ता है

जीवन संघर्षों से पैदा होते ही, प्रकाश, भोजन, और सुरक्षित स्थान की आवश्यकता होती है। जब अधिक संख्या में जो पैदा हो जाते हैं तो इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्ष करना पड़ता है। आॅक्सीजन आदि की सुविधाएं सीमित है, इसलिए जीव धारियों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे जीव से संघर्ष करना पड़ता है। यह संघर्ष जीवन भर चलता रहता है और जो असफल होते हैं वे विलुप्त हो जाते हैं। महत्वपूर्ण सूखा बाढ़ भूकंप से बचने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहते हैं योग्यतम की उत्तरजीविता इसका अर्थ यह है कि जो योग्य है, प्रकृति से लड़ने में सक्षम है वही जीव सफल होते हैं, जो अपने आप में रहने वाले परिवर्तनों के अनुसार
बदलते रहते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते हैं वहीं समाप्त हो जाते हैं, जीवन, संघर्ष में सफल होते हैं जिनमें विभिन्ता पाई जाती हैं और जिनमें होती हैं। कुल मिलाकर इस जीवन में वे सफल होते हैं जो वातावरण के अनुसार अपने आप को बदल लेते हैं बाकी जो उस माहौल में नहीं ढाल पाते हैं मर जाते हैं समाप्त हो जाते हैं।

डार्विन के अनमोल विचार 

1. एक त्रुटि को खत्म करना एक अच्छी सेवा जैसा है और कभी-कभी एक नई सच्चाई है तथ्य की स्थापना से भी बेहतर होता है।
2. नैतिक संस्कृति के सर्वोत्तम संभव स्टेज वह है, जब हम यह स्वीकार करते हैं कि हम अपने विचारों को नियंत्रित करने के लिए तैयार हैं।
3. एक नैतिक अस्तित्व है जो अपने अतीत और उनके उद्देश्यों पर ध्यान देने योग्य है, कुछ को स्वीकृति देने का और कुछ को अस्वीकार करने का
4. एक आदमी जो 1 घंटे का समय बर्बाद करने की हिम्मत करता है उसे जीवन के मूल्यों की खोज नहीं हुई है।
5. पशु जिसे हमने हमारे दास बनाया है, हम उनको अपनी समानता पर विचार करने के लिए नहीं पसंद करते।

निरंतरता हमेशा सफलता का द्वार खोलती है

लेख से हमें यह शिक्षा मिलती है यदि हम किसी कार्य में लग जाते हैं तो हमें रुकना नहीं चाहिए, समय का सदुपयोग करना चाहिए। अपने कार्यों के प्रति इतना ईमानदार होना चाहिए कि बार-बार भी यदि असफलता मिलती है तो उसे भी सफलता में परिवर्तन करने के लिए हम ऊजार्वान बने रहें, उस उर्जा को बनाए रखने के लिए हमें निरंतर कार्य को करते रहना चाहिए, निरंतरता हमेशा सफलता का द्वार खोलती है। आप किन आदतों में खुद को ढालना चाहते हैं, आपकी आदत, व्यवहार आपके भविष्य को बताने के लिए पर्याप्त है। यदि आप अपने बारे में गहन अध्ययन करें और उस अध्ययन का केंद्र केवल स्वयं को रखें, आप देखेंगे आप में सुधार बहुत जल्दी हो जाएगा किंतु आप यदि दूसरों से खुद कि तुलना करके, दूसरों के रास्ते पर चल के कार्य करना चाहे तो निसंदेह आप सफल तो हो जायेंगे लेकिन अपने कार्यों से खुश नहीं होंगे।

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