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गोंड वर्ली पेंटिंग बनाकर निजाम उईके ने सजाया एन एस धुर्वे का कोइतूर किला

गोंड वर्ली पेंटिंग बनाकर निजाम उईके ने सजाया एन एस धुर्वे का कोइतूर किला

क्या कोइतूरों के हाथों के हुनर को हिम्मत देने कोइतूर सगाजन बढ़ायेंगे हाथ 


संपादक विवेक डेहरिया
बालाघाट। गोंडवाना समय।

जनजातिय कलाओं में मनमोहक रंग भरकर सुंदर व आकृषित करने वाली तस्वीरों को अपनी हाथों से उकरने वाले निजाम उईके का हुनर कागजों, वनांचल क्षेत्र की दीवारों के बाद अब कोइतूर सगा समाज के शहरी क्षेत्र के निर्माणाधीन मकानों में दिखने लगा है। जहां लोगों को जनजातियों की कला, संस्कृति को देखने के लिये पहले ग्रामीण अंचलों में जाना पड़ता था अब उन्हें यह चित्र शहर के घरों में भी नजर आने लगे है।  

किरनापुर के निवासियों के मन को बहुत भा रही पेंटिंग 


बालाघाट जिले के किरनापुर तहसील में श्री एन एस धुर्वे (कोपरेटिव डिपार्टमेंट के सीनियर इस्पेक्टर) जिन्होंने अपने खुद के घर का निर्माण के दौरान घरों की दीवार में गोंड वर्ली पेंटिंग का कार्य कराया है। जिसकी भी नजर दीवारों पर जा रही है वह बिना रूके और देखे आगे बढ़ने को इच्छुक नहीं दिखाई देता है, दीवारों में निजाम उईके का हुनर और गोंड वर्ली पेंटिग का कार्य जो कि हर किरनापुर के निवासियों के मन को बहुत भा रहा है। 

मुझे अपनी कला संस्कृति से विशेष लगाव है


गोंड वर्ली पेंटिंग का कार्य अपने घर पर ही कराने वाले श्री एन एस धुर्वे बताते है कि मुझे अपनी कला संस्कृति से विशेष लगाव है और मन को अच्छा लगता है। इसलिये मैं चाहता हूं कि प्रत्येक जनजाति समाज के लोग अपनी संस्कृति के महत्व को समझे यदि शहर में अपना घर बनवा रहे है तो अपनी जनजाति कला संस्कृति को बचाने में अपनी भूमिका निभा सकते है साथ में यह आपको अपनी एक अलग ही पहचान देगी। उन्होंने कहा कि जनजाति कला संस्कृति को शहर में घर बनाने के बाद कहीं न कहीं हम आज भूल रहे हैं। 

गोंड आर्टिस्ट कोईतूर निजाम उइके देश दुनिया में पहुंचा रहा कला-संस्कृति 


निजाम वो नाम है जिसके हाथों में जनजाति कलाकारी का रंग अब चाहे वह दीवार पर हो, कागज हो, प्रतिमा हो या पेंटिंग करने का समुचित सुरक्षित स्थान हो जब चढ़ता है तो देखते ही देखते जनजाति समुदाय की पुरातन कला संस्कृति का दृश्य नजर आने लगता है। जनजाति कला, संस्कृति, धरोहर को पेंटिंग कला के माध्यम से सहेजने का जज्बा लिये निजाम उईके ने जनजाति बाहुल्य क्षेत्र आमगांव, बैहर, कान्हा नेशनल पार्क के बाद अब वह शहर के निर्माणाधीन मकान में भी अपना हुनर के माध्यम से जनजाति कला संस्कृति को सहेजकर संरक्षित करने का काम कर रहे है।

गोंड आर्टिस्ट कोईतूर निजाम उइके आज अपनी कला से देश दुनिया में अपनी पहचान तो बना ही रहे है साथ जनजाति कला की पहचान को आगे बढ़ाते हुये अपना योगदान दे रहे है। गोंड पेंटिंग कोयतुर निजाम उइके ने बताया कि जो कान्हा नेशनल पार्क मक्की जनजाित बाहुल्य क्षेत्र है। आज भी वहां पर आपकों आसानी से गोंड कला संस्कृति की झलक दिखाई देती हुई मिल ही जायेगी। 

जनजाति कला संस्कृति को संरक्षित व सुरक्षित करने अपने घर से निभा सकते है जिम्मेदारी 


हम आपको बता दे कि देश में आजादी के बाद से अब तक जनजाति, गोंड पेंटिंग, म्यूरल पेंटिंग, वर्ली पेंटिंग, जनजाति कला जो सुरक्षित व संरक्षित किये जाने के अभाव के चलते कह सकते है कि लुप्त हो रही थी। हालांकि देश में आज भी अद्भुत, आश्चर्ययुक्त सौंदर्यता से परिपूर्ण, भव्य मनोरम दृश्य के रूप में दिखाई देने वाली जनजाति कला संस्कृति की पहचान चाहे वह महल, गढ़, किले हो या अन्य क्षेत्र हो, भीमबेठका में पत्थरों पर उकेरी गये शैलचित्र आज भी कायम है जिसकी पूरी दुनिया कायल है वैज्ञानिकों के लिये आज भी किसी खोज से कम नहीं है, ऐसी अनेक जनजाति समुदाय की कलाकृति अभी कायम है, जो अपना प्रमाण आज भी बयां कर रही है लेकिन उन्हें संरक्षित व सुरक्षित करने में शहरी क्षेत्र के कोइतूर भी अपनी जिम्मेदारी, कर्तव्यता के साथ निभा सकते है। 

हुनर के साथ मेहनत को मिल सकता है ईनाम 

हम आपको बता दे कि देश में आज भी जनजाति समुदाय के अनेक ऐसे कलाकार है। जो निरंतर जनजाति समुदाय की कला, संस्कृति को हुबहु रूप देने की कोशिश आज भी कर रहे है। उनमें से ही एक नाम बालाघाट जिले के बैहर विकासखंड के आमगांव के गोंड कलाकार निजाम उइके का भी है। ऐसे और भी है कोइतूर सगाजन है, जो जनजाति की प्रसिद्ध कला संस्कृति को बचाने के लिये प्रयास कर रहे है। यदि शहरी के क्षेत्र में निवास करने वाले कोइतूर अपने अपने घरों की दीवारों पर इस बनवाना प्रांरभ कर दें तो जनजाति समुदाय की महान कला संस्कृति भी सुरक्षित व संरक्षित हो सकती है। इसके साथ ही उनके हुनर को पुरस्कार के रूप मेहनत अनुसार आर्थिक रूप में सहयोग कर उनका मनोबल भी बढ़ा सकते है। 


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