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अभाव एक परिदृश्य में

अभाव एक परिदृश्य में


लेखक
अंकित जैतवार ''निराश''

अभाव कहने को तो ये  एक श्राप से कम नहीं है और आज के इस वर्तमान समय में तो अभाव से बड़ा कोई श्राप या बड़ी हीनता कुछ नहीं है। वर्तमान समय के परिदृश्य में अभाव को कोई भी अपने से लगा हुआ नहीं रखना चाहता है। परंतु कभी-कभी कई ऐसी चीजें होती है जिन्हें मनुष्य अपने पास रखना तो नहीं चाहता परंतु उनका होना उनके जीवन में बहुत सारी चीजों के परिवर्तन का जिम्मेदार होता है। वैसे तो अभाव को अलग-अलग परिस्थितियों में अच्छा व बुरा माना जा सकता है। हालाकि वर्तमान परिदृश्य में यह बुरा ही है, परंतु अभाव के होने से समाज में जो रिस्तो में समन्वय था। वह अभाव के न होने से व्यावहारिक रिश्तों में, व्यवहार में, भाईचारे में एक नकारात्मक प्रभाव है। अभाव को अभाव के रूप में न देखे तो यह भाई चारे का जरिया है। यह समाज में अनजान से भी रिश्ते रखने को बाध्य करता है। 

जब व्यक्ति को समाज में रहकर किसी वस्तु का अभाव रहता है तो उसके मन में विचार होता है। प्राथमिक रूप से मानसिकता होती है कि वह इस अभाव जरूरत को उसके पड़ोस में रहने वाले किसी व्यक्ति या उसके किसी मित्र  से पूरी कर लेगा ? और करता भी है। इसके प्रतिउत्तर में वह पड़ोसी या मित्र अपनी कोई जरूरत की वस्तु या सहायता उससे पूरी कर लेगा। इस प्रकार एक दूसरे के बीच परस्पर भाईचारे और सरल व्यवहार बना रहता है। अभाव के होने से व्यक्ति के मन में किसी से अभद्रता करते समय यह ख्याल रहता है कि हमारी कोई जरूरत उससे पूरी हो सकती है। 

इसे स्वार्थ भी कह सकते हैं परन्तु इस परिदृश्य में ये कहना गलत ही होगा इन्हीं पारस्परिक अभाव पूर्ति के कारण किसी समाज में परस्परसहयोग की भावना का विकास होता है। आपसी सौहार्द बनता है परन्तु इसके विपरीत परिपूर्णता होने के बाद भी व्यक्ति के व्यवहार में विनम्रता का अभाव है।सहयोग की भावना का अभाव है, आपसी भाईचारे  में कमी है एवं ऐसे अनेकों क्षेत्र है जिनमे नकारात्मकता का भाव उत्पन्न हो रहा है इसका केवल एक ही कारण है परिपूर्णता। परिपूर्णता के कारण व्यक्ति के मन में एक कुसोच हो गई हैं कि हमारे पास सब हैं। हमें किसी से क्या मतलब हमें किसी से क्या काम होगा इत्यादि। और यह समाज की सोच मुझे निराश करती है। समुल विषय का सार यही है कि समाज में एक दूसरे के प्रति उदासीनता का कारण अभाव न होना भी है।

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