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मुख्यमंत्री जी आपकी नजर में वनवासी असभ्य है क्या ?

मुख्यमंत्री जी आपकी नजर में वनवासी असभ्य है क्या ?

पर्यावरण को बचाने की जितनी जिम्मेदारी वनवासियों की है, उतनी ही सभ्य समाज की भी है, मुख्यमंत्री जी इसका अर्थ बताएँ


विवेक डेहरिया/मोरेश्वर तुमराम
सिवनी। गोंडवाना समय।

मध्य प्रदेश के  श्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 17 फरवरी 2021 को प्रशासन अकादमी में मुख्य वन संरक्षक एवं वनमण्डलाधिकारियों की एक दिवसीय कार्य-शाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि वनवासियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहे विभागीय अमला इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा था कि जनता की सेवा और पर्यावरण संरक्षण वन सेवा के अधिकारियों और कर्मचारियों का दायित्व है। वन क्षेत्र में रह रहे भाई-बहनों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहना जरूरी है।
        यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी पात्र व्यक्तियों को बिना किसी परेशानी के वनाधिकार अधिनियम के अंतर्गत पट्टे प्राप्त हों। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को बचाने की जितनी जिम्मेदारी वनवासियों की है, उतनी ही सभ्य समाज की भी है। इस दौरान वन मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह, प्रमुख सचिव वन श्री अशोक वर्णवाल, प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री राजेश श्रीवास्तव कार्यशाला में उपस्थित थे। 

मुख्यमंत्री ने प्रशासन अकादमी में वन अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा था

हम आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 17 फरवरी 2021 को प्रशासन अकादमी में मुख्य वन संरक्षक एवं वनमण्डलाधिकारियों की एक दिवसीय कार्य-शाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि पर्यावरण को बचाने की जितनी जिम्मेदारी वनवासियों की है, उतनी ही सभ्य समाज की भी है।
        मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य का अर्थ यहां समझना आवश्यक है क्योंकि यह बुद्धिजीवियों के बीच में चर्चा का विषय बन गया है। मुख्यमंत्री की बातों का यदि हम अर्थ या मतलब निकालें तो यह मान सकते हैं कि वनवासी उनकी नजरों में असभ्य हैं।
         जैसा कि मुख्यमंत्री ने वन अधिकारियों को कार्यशाला में संबोधित करते हुए कहा था कि पर्यावरण को बचाने की जितनी जिम्मेदारी वनवासियों की है, उतनी ही सभ्य समाज की भी है, इसमें मुख्यमंत्री सभ्य समाज किसे कह रहे हैं ये तो वे स्वयं ही जानते हैं लेकिन वनवासियों की तुलना कहीं न कहीं वे असभ्य समाज के रूप में अपनी बोलचाल की भाषा में कर रहे हैं ऐसा माना जा सकता है। 

गोंगपा के विरोध के बाद मुख्यमंत्री ने की थी वनवासी शब्द से तौबा


हम आपको याद दिला दें कि मध्य प्रदेश के  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने दिसंबर 2010 में वन अधिकार अधिनियम के पट्टा वितरण कार्यक्रम के तहत वनवासी सम्मान यात्रा निकालकर प्रदान कर रहे थे। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के द्वारा वनवासी सम्मान यात्रा का सिवनी जिले में अंतिम पड़ाव था। वनवासी कहने पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जिला इकाई सिवनी ने मुख्यमंत्री का विरोध करते हुए वनवासी सम्मान यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने का निर्णय लिया था।
        गोंगपा द्वारा वनवासी सम्मान यात्रा के तहत सिवनी जिले में 3 कार्यक्रम हुए थे उन क्षेत्रों में कार्यक्रम के पहले वनवासी शब्द का उपयोग करने का विरोध दीवारों में वनवासी नही हम आदिवासी हैं इस देश के मूल निवासी हैं नारे लिखवाकर करवाया था। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के द्वारा गॉंव-गॉंव में विरोध के बाद शासन-प्रशासन के द्वारा इस मामले को गंभीरता से लिया गया था।
        इसके लिए 9 दिसंबर 2010 को कलेक्टर श्री मनोहर दुबे द्वारा गोंगपा पदाधिकारियों के साथ कलेक्टर सभाकक्ष में बैठक ली गई थी। जहां पर गोंगपा के विरोध की जानकारी शासन तक पहुंचाकर उन्होनें आश्वासन दिया था कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान सिवनी जिले में 3 कार्यक्रम में आयेंगे जहां वे वनवासी का नाम नहीं लेंगे और वनवासी सम्मान यात्रा के स्थान पर आदिवासी सम्मान यात्रा कार्यक्रम में शामिल होंगे।
         गोंगपा के विरोध के बाद कार्यक्रम हुआ था जिसमें मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने वनवासी शब्द का नाम कहीं नही लिया था। इसके साथ ही 10 दिसंबर 2010 को सिवनी जिले के आयोजित कार्यक्रम से ही आदिवासियों को भगवान मानना शुरू किया था क्योंकि आदिवासी सम्मान यात्रा कार्यक्रम में उन्होनें कहा था कि आदिवासी मेरे लिए भगवान हैं। 

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