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समाचार पत्रों की आवाज दबाती सरकार, कारपोरेट व पूंजीपति मीडिया का भरपूर पोषण करने वाली सत्ता के राज में क्षेत्रिय अखबारों का भविष्य कैसे होगा सुरक्षित ?

समाचार पत्रों की आवाज दबाती सरकार, कारपोरेट व पूंजीपति मीडिया का भरपूर पोषण करने वाली सत्ता के राज में क्षेत्रिय अखबारों का भविष्य कैसे होगा सुरक्षित ?

राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति ने कई बार बताया क्षेत्रिय समाचार पत्रों का महत्व लेकिन सत्ताधारियों का नहीं आ रहा समझ

समाचार पत्रों की अंग्रेजों के अन्याय-शोषण से आजादी दिलाने में मुख्य भूमिका रही है 

आजाद भारत में अन्याय, अत्याचार, शोषण के विरूद्ध आवाज उठाते समाचार पत्रों पर क्यों कसा जाता है शिकंजा 

वर्ष 2011 से साप्ताहिक के बाद दैनिक गोंडवाना समय के 14 अप्रैल को पांचवे वर्ष में प्रवेश पर विशेष लेख


विवेक डेहरिया
संपादक
दैनिक गोंडवाना समय

अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजादी दिलाने में समाचारा पत्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह बातें देश के राष्ट्रपति जी व उप राष्ट्रपति जी सहित अनेक संवैधानिक पदों पर विराजमान भारत के नागरिकों द्वारा तब कहा जाता है जब वे किसी अखबार, मीडिया, पे्रेस दिवस आदि के कार्यक्रमों में मौजूद रहते है। इस दौरान कई बार महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी एवं उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू जी स्वयं कह चुके है कि क्षेत्रिय समाचारों को महत्व दिया जाना आवश्यक है। इसके बाद भी सरकार सत्ता चलाने वाले देश व प्रदेशों में क्षेत्रिय समाचारों को महत्व नहीं दे रहे। 

जो समाचार पत्र प्रत्येक वर्ग के शोषण, अन्याय, अत्याचार के साथ प्रतिभाशाली लोगों का उत्साहवर्धन कर औरो के लिये प्रेरणा बने इसके लिये अखबारों के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाता है। वहीं सरकार की लोककल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता को मिले, शासन की योजनाओं की जानकारी जनता तक पहुंचे इसके लिये सबसे ज्यादा स्थान अखबारों में प्रचार-प्रसार के लिये क्षेत्रिय व स्थानीय अखबार ही देते है। वहीं सरकार की जनविरोधी नीतियों का सच भी स्थानीय समाचार पत्र व क्षेत्रिय समाचार पत्रों में ज्यादा प्रकाशित होता है क्योंकि अखबार का मूल कार्य पाठकों का विश्वास व जनता की आवाज बनना होता है। 

जनता की आवाज व पाठको विश्वास बनने की ओर अग्रसर दैनिक गोंडवाना समय


देश में आजादी के बाद भले ही इमरजेंसी के दौरान समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने की बातें मुखरता से प्रचारित की जाती हो लेकिन इमरजेंसी का दौर वर्तमान में भी सच लिखने वाले समाचार पत्रों के लिये जारी है। समाचार पत्र के माध्यम से जनता की आवाज व पाठकों का विश्वास बनने का जिनमें जुनून है, वे दृढ़संकल्प के साथ विपरीत परिस्थिति में भी समाचार पत्र सरकार, शासन-प्रशासन की ताकत की मुखालफत करते हुये विझिझक समाचार पत्र का प्रकाशन निरंतर कर रहे है, उनमें से दैनिक गोंडवाना समय भी निरंतर समाचार पत्र प्रकाशन करने का प्रयास कर रहा है।
         

हम आपको बता दे कि गोंडवाना समय समाचार पत्र साप्ताहिक रूप में वर्ष 2011 से प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ था, जिसे 14 अप्रैल 2017 को मूकनायक के संपादक व संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी की जयंति के दिवस से दैनिक गोंडवाना समय समाचार पत्र के रूप में प्रकाशित करना प्रारंभ किया गया था, जिसका 14 अप्रैल 2021 को पांचवे वर्ष में प्रवेश हो जायेगा। ये भी सही है कि समाचार पत्र में प्रकािशत समाचारों का परिणाम व विश्वनीयता को पाठक ही तय करते है। इसके लिये दैनिक गोंंडवाना समय भी हर समय पाठकों की चौखट पर खड़ा था, है और हमेशा रहेगा।  

उनकी आवाज को दबाया या कुचला रहा है

अंग्रेजों से आजादी के इतिहास में क्रांति लाने या जन-जन तक आजादी की मशाल को जलाकर पहुंचाने में समाचार पत्रों का विशेष योगदान है। वहीं आजादी के बाद वर्तमान में भी समाचार पत्र हमेशा सरकार, शासन-प्रशासन के अच्छे कार्यों को व योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। वहीं सरकार, शासन, प्रशासन के दौर में होने वाले भ्रष्टाचार, जनविरोधी नीतियों को भी समाचार पत्र ही उजागर करते है, जिनके सहारे विपक्षी राजनैतिक दल अपनी राजनीति को मजबूत करते है।
        जिस समय जिसकी सरकार रहती है वह समाचार पत्रों की आवाज दबाने का प्रयास करती है और विपक्ष जब सरकार बना लेती है तो वह भी सत्ता संभालने के बाद समाचार पत्रों के सच को झूठ बताने का प्रयास करते है। वहीं कुछेक समाचार पत्र तो कुछ राजनैतिक दलों के पेंटेंट बन गये है तो कुछेक समाचार पत्र सरकार का खुला साथ दे रहे है या यह कहें कि अंधभक्ति में समाचार पत्र भी शामिल हो गये है। बचे कुचे समाचार पत्र जो सत्ता के शोषण के विरोध में आवाज उठाते है वे विरोधी करार दिये जा रहे है, उनकी आवाज को दबाया या कुचला रहा है। 

कारपोरेट मीडिया के साथ पूंजीवाद की पोषक बनी सरकार 

समाचार पत्र कहें या मीडिया में कारपोरेट या पंूजीवादी व्यवस्था का दबदबा अत्याधिक बढ़ता जा रहा है। इन्हें मजबूत कर पोषण आहार प्रदान करने के लिये पोषकतत्व बनने की भूमिका देश व प्रदेश की सरकारे निभा रही है। जिस तरह से असमानता को बढ़ावा देकर नियमों की जंजीरों में जकड़कर कारपोरेट व पूंजीवादी मीडिया को बढ़ाया जा रहा है।
        ऐसी परिस्थिति में समाचार पत्रों में समानता आने की संभावना कम ही नजर आती है। जिस तरह से देश में पूंजी का एकाधिकार कुछेक पंूजीपतियों के हाथों में सिमटता जा रहा है वैसी ही स्थिति समाचार पत्रों व मीडिया की होती जा रही है। सरकार हरेक फैसले को सच बताने के लिये साथ देने के बदले में कारपोेरेट व पूंजीवादी समाचार पत्रों या मीडिया को पोषण आहार भरपूर मात्रा में दिया जा रहा है। 

जनता की समस्या उठाते है पर उनकी वास्तविकता नहीं जानते 

समाचार पत्र जनता की आवाज कहें, या शोषित पीड़ितों की समस्याआें को सरकार, शासन प्रशासन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण माध्यम होता है। समाचार पत्र, समस्याओं को पहुंचाकर समाधान कराने का प्रयास करते है। इसमें जनता का साथ देने में समाचार पत्र अपना योगदान तो देता है लेकिन समाचार पत्रों की वास्तविकता को जनता में कितने जन जानते है यह विचारणीय है। हम ज्यादा समय की बात न करें और यदि हम कारपोरेट व पूंजीवादी समाचार पत्रों को छोड़ दे तो कोरोना काल के दौरान स्थानीय व क्षेत्रिय समाचार पत्रों का प्रकाशन व मुद्रण बेहद मुश्किलों का सफर रहा है।
         कुुछेक समाचार पत्रों के मुद्रण का ताला मार्च 2020 के बाद से ही ताला नहीं खुला है तो कुछेक अखबार बंद भी हो गये है। कारपोरेट व पूंजीवादी समाचार पत्रों व मीडिया की तो ये स्थिति है कि उन्हें पूंजीपति बनाने वाले अधिकांश कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा रहे है, उनकी योग्यता व मेहनत का मेहनताना देने में भी पसीना छूट रहा है। जबकि कारपोरेट व पूंजीवादी समाचार पत्रों व मीडिया को कोरोना की रोकथाम के लिये भरपूर सहयोग सरकार की ओर से मिला है, जिनकी बदौलत वर्षों से कमाने वाले अब अपने ही कर्मचारियों को निकालकर को 1-2 वर्ष में ही नुकसान की भरपाई कर उनके परिवार के पालन पोषण में संकट बने हुये है।
         महंगाई की मार समाचार पत्रों में भी सरकार गिन गिन कर मार रही है। समाचार पत्र के मुद्रण यानि छपाई में लगने वाली सामग्री एक वर्ष में ही दो से ढाई गुना बढ़ गई है। यह महंगाई कारपोरेट व पंूजीवादी समाचार पत्रों के लिये बेहद लाभकारी सिद्ध हो रही है साथ में सरकार की जनविरोधी नीतियों की आवाज को दबाने में भी सहायक सिद्ध हो रही है। जनता को यह जानने की आवश्यकता है कि उनकी समस्या को उठाने में समाचार पत्रों को क्या-क्या साधन-संसाधन की आवश्यकता होती है, इसकी पूर्ति कैसे होती है। 

40 लाख के करीब आॅनलाईन पाठकों का आभार 




हम आपको बता दे कि दैनिक गोंडवाना समय समाचार पत्र को आॅनलाईन बेवसाईट के माध्यम से भी देखा व पढ़ा जा सकता है। कम समय में ही दैनिक गोंडवाना समय समाचार को आॅनलाईन पढ़ने का आंकड़ा 40 लाख के करीब है।
        अभी आॅनलॉइन के माध्यम से सिर्फ सिवनी जिले से ही समाचार वह भी बहुत कम संख्या में डाले जाते है एवं दैनिक गोंडवाना समय समाचार पत्र को पीडीएफ फाईल व जेपीजी के माध्यम से पोस्ट किया जाता है। यदि अन्य जिलों से भी इसमें प्रतिदिन समाचारों को पोस्ट किया जायेगा तो प्रतिदिन ही दैनिक गोंडवाना समय के आॅनलाईन पाठकों की संख्या अच्छी स्थिति में हो जायेगी।
        इसके लिये पाठकों का साथ भी हमें मिल रहा है, इसके लिये दैनिक गोंडवाना समय परिवार समस्त पाठकों का आभारी है। आने वाले समय में दैनिक गोंडवाना समय टीम के द्वारा प्रयास किया जायेगा। 

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