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गोंडवाना राज्य पुनर्गठन और गोंडवाना आंदोलन में युवाओं की भूमिका, जिससे गोंडवाना, खुशहाल और संपन्न देश हो

गोंडवाना राज्य पुनर्गठन और गोंडवाना आंदोलन में युवाओं की भूमिका, जिससे गोंडवाना, खुशहाल और संपन्न देश हो

कोयतुर युवा एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं जो सुदृढ़ समृद्ध एवं स्वावलंबी राष्ट्र हो, जिसमें हर समुदाय, सम्प्रदाय व वर्ग का कल्याण निहित हो

इतिहासकारों ने इस प्रदेश का नाम गोंडवाना रखा था


आलेख-
सम्मल सिंह मरकाम,
वनग्राम-जंगलीखेड़ा,
तहसील बैहर ,जिला बालाघाट म प्र

जगजाहिर हैं कि संकट से नेतृत्व पैदा होता हैं। यह कहावत व्यक्ति से लेकर भू-भाग तक सब पर लागू होता है। वैश्विक महामारी कोविड-19 में वैश्विक स्तर पर भी संकट के बादल छा गये हैं। विश्व की तमाम क्रांतियां और विकास प्रभावित हुए, वहीं परोक्षत: वैचारिक क्रांति आंदोलन में गोंडवाना आंदोलन सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। 

गोंडवाना आंदोलन का आशय गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन से है

ऐसी स्थिति में क्या अब गोंडवाना आंदोलन मौजूदा संकट से उबर सकेगा ? तो इसका जवाब, नि:संदेह हाँ होगा क्योंकि आंदोलन के प्रति समस्त कोयतुर जनों का अगाध लगाव व समर्पण से प्रेरित होकर आंदोलन की धुरी बनने की होड़ में शामिल युवाओं  में मौजूदा संकट से उबरने हेतु जोश, धैर्य व समन्वय रूपी गुणों का समावेश हैं। इस पर बुजुर्गों बुद्धीजीवियों, साहित्यकारों व नेतृत्व के अनुभव और समस्त सामाजिक संगठनों का सहयोग जोड़ दिया जाये तो, सोने पर सुहागा हो जाता है, इससे युवा और मजबूती से आंदोलन के लिए प्रेरित होते हैं। यहां गोंडवाना आंदोलन का आशय गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन से है, जिसमें राजनीतिक, साहित्यिक, भाषिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, आर्थिक, संवैधानिक व दार्शनिक क्षेत्र हेतु आंदोलन सम्मिलित हैं । 

तो आसतीन के साँप रूपी विरोधियों को गलत साबित कर देंगे

गोंडवाना आंदोलन के वर्तमान चुनौतीपूर्ण समय में यदि कोयतुर युवा धैर्य व मजबूती से कदम रखें और सफलता के परचम लहराने लगे तो आसतीन के साँप रूपी विरोधियों को गलत साबित कर देंगे, और यह कारनामा युवाओं ने पहले भी  कई विपरीत परिस्थितियों में कर दिखाई है। कारनामा जानकर स्थापित नेतृत्व के भी, पैरों तले जमीन खिसकने लगी थी क्योंकि कोयतुर युवा एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रितबद्ध हैं जो सुदृढ़ समृद्ध एवं स्वावलंबी राष्ट्र हो, जिसमे हर समुदाय, सम्प्रदाय व वर्ग का कल्याण निहित हो, जिसकी अपनी भाषा, संस्कृति, दर्शन, व प्राकृतिक संपदाओं से अलहादित भौगोलिक क्षेत्र हो, जिससे गोंडवाना, खुशहाल और संपन्न देश हो। इस हेतु युवाओं के सवार्गीण विकास, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्षों को भी सबल बनाना है।

भारतीय संविधान के प्रति सच्ची आस्था व निष्ठा बनाए रखते हैं

 जिससे भावी युवाओं का दृष्टिकोण आधुनिक प्रगतिशील प्रबुद्ध एवं सांस्कृतिक मूल्यों से युक्त हो और अपनी प्रकृति सम्मत कोयापुनेम के मूल्यों से सगर्व प्रेरणा ग्रहण करता हो व कोयापुनेम व्यवस्था के अंतर्गत प्राकृतिक संतुलन संरक्षण व समर्थन के सिद्धांतों को स्थापित करने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता हो।  वहीं गोंडवाना आंदोलन के लिए मुखरित कोयतुर युवा विधि द्वारा स्थापित भारतीय संविधान तथा सहिष्णुता, समाजवाद, समानता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था व निष्ठा बनाए रखते हैं। ऐसे विशिष्ट व आधारभूत उद्देश्य से आज के युवा परिपूर्ण हैं, क्योकि युवा ही समाज की नीव के मजबूत ईंट होते हैं।

गोंड कोयतुर अपने अस्तित्व अस्मिता के रक्षार्थ विगत चार सौ वर्षों से निरंतर सशस्त्र आंदोलनरत हैं 

गोंड कोयतुर अपने अस्तित्व अस्मिता के रक्षार्थ विगत चार सौ वर्षों से निरंतर सशस्त्र आंदोलनरत हैं। प्राचीन इतिहास व अभिलेखों के अनुसार गोंडवाना राज्य गठन के लिए ऐतिहासिक बैठक क्रमश: वर्ष 1917, वर्ष 1927 एवं वर्ष 1930 में व नैनपुर के इटका हो चुकी थी। गोंडवाना के अस्तित्व व अस्मिता को बनाए रखने के लिए उत्तर मध्ययुग से लेकर वर्तमान तक गोंड कोयतुर समुदाय ने असंख्य कुर्बानियां दी हैं। गोंड कोयतुर समुदाय के संघर्ष का इतिहास इनके उत्पत्ति के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। समूचे भौगोलिक आंदोलन में गोंडवाना आंदोलन प्राचीनतम सिद्ध होता है। (लोकरंग 1998)

इतिहासकारों ने इस प्रदेश का नाम गोंडवाना रखा था- 


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, ईर्ष्या के कारण इतिहासकारों ने भी उपेक्षा किया, अनवरत संघर्ष के बाद भी परदेशियों का पल्ला भारी रहा। गोंडवाना लैंड में वृहद गोंड कोयतुर समुदाय का नाम भू-भाग के सम्मान में गोंड कोयतुर पड़ा। अन्य समाजशास्त्रियों व मानवशास्त्रियों के गोंड नामकरण पर मत भिन्न भिन्न हैं। संख्या की दृष्टि से गोंड कोयतुर समुदाय म प्र ही नही समूचे भारत की सबसे वृहत कोयतुरियन समुदाय है, ये सतपुड़ा से लेकर गोदावरी के विस्तृत क्षेत्रफल में प्रभावशील समुदाय के रूप में उभरे हैं। कालांतर मे गोंड एक जनजाति तक सीमित हुआ। यह क्षेत्र मध्ययुग में गोंडवाना के नाम से संबोधित होता था। इतिहासकारों ने इस प्रदेश का नाम गोंडवाना रखा था-आइने अकबरी मे भी इस नाम का उल्लेख मिलता है, यह नाम युक्तिपूर्ण था।

तेलुगु भाषी जनता के लिए आंध्रप्रदेश बनाए जाने का संकेत दिया गया था


मध्ययुगीन अभिलेखों नक्शा में इनके अनेक राज्यों का सुस्पष्ट विवरण है और आजादी के पूर्व इनकी राजनीतिक प्रभुसत्ता अनेक जमीदारों व साम्राज्यों के रूप में जीवित रही है। (लोकरंग 1998)। राज्य पुनर्गठन की नई स्थितियों के आलोक में भारत सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश एस. के. दर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया।
        दर आयोग ने 10 दिसंबर 1948 को अपनी 56 पृष्ठीय रिपोर्ट प्रस्तुत किया जिसमें भाषाई आधार पर नहीं वरन प्रशासकीय सुविधा के आधार पर भारतीय संघ के पुनर्गठन का समर्थन किया गया। दर आयोग के प्रतिवेदन का तीव्र विरोध भी हुआ फलस्वरूप भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन हेतु दोबारा दर आयोग के प्रतिवेदन की समीक्षा हेतु एक समिति (जे वी पी समिति) और बनाई गई समिति का प्रतिवेदन 1 अप्रैल 1949 को आया, जिसमें भारतीय राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन का विचार औपचारिक रूप से अस्वीकार कर दिया गया पर प्रबलता से यह माना गया कि यदि जन भावनाएं बहुत ही स्पष्ट हो तो प्रजातांत्रिक देश होने के नाते इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। इसी प्रतिवेदन में तेलुगु भाषी जनता के लिए आंध्रप्रदेश बनाए जाने का संकेत दिया गया था। 

राज्य पुनर्गठन हेतु- फजल अली आयोग वर्ष 1953 में गठन हुआ 

राज्य पुनर्गठन हेतु- फजल अली आयोग वर्ष 1953 में गठन हुआ । वर्ष 1955 मे अपने प्रतिवेदन में भाषा को मुख्य आधार बनाया एवं किसी राज्य के पुनर्गठन के लिए चार बड़े कारकों की पहचान की। जिमसें (अ)- देश की एकता एवं सुरक्षा की अनुरक्षण एवं संरक्षण, (ब)-भाषायी व सांस्कृतिक एकरूपता, (स)- वित्तीय ,आर्थिक व प्रशासकीय तर्क, (द)- प्रत्येक राज्य एवं पूरे देश में  लोगों की कल्याण की भावना, (भारत में राज्यों का पुनर्गठन-संघीय व प्रशासनिक चुनौतियां, 2019) शामिल है। 

हमारी गोंडवाना प्रांत की मांग की उपेक्षा, क्या यह घोर अन्याय नही है ?


राज्य पुनर्गठन के समय भले ही गोंडवाना का अस्तित्व यथार्थ स्वरूप में नही आया, क्योंकि कतिपय कारणों से स्थिति बेहतर नहीं रही लेकिन राज्य पुनर्गठन के इस प्रारंभिक दौर में गोंडवाना आंदोलन के जीवंत नेतृत्व नारायण सिंह उइके जी ने 1955 में नागपुर विधान मण्डल में गोंडवाना राज्य की मांग रखी। यह सिलसिला नहीं रूका बल्कि इसीक्रम में समकालीन नेतृत्वकर्ता मंगरू उइके जी, हीरा सिंह देव कांगे जी, कंगला मांझी जी ने 1959 से 1962 के बीच गोंडवाना का भ्रमण कर गोंडवाना राज्य निर्माण की मांग रखी। गोंडवाना के दीर्घकालीन संघर्ष में राजनांदगांव जिले के जमीदारी रियासत पानबरस के जमीदार लाल श्यामशाह जी, निर्दलीय अंबागढ़ चौकी के 2 बार विधायक भी रहे, वहीं 1964 में चांदा (चंद्रपुर) सांसद रहते हुए लोक सभा सदन में, सेंट्रल प्राविसेंस के इलाकों को अलग राज्य गोंडवाना का दर्जा देने की  मांग की।
            उन्होने कहा- जब नए प्रदेश, सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक आधार पर कायम किये जा रहे हैं और हमारी गोंडवाना प्रांत की मांग की उपेक्षा, क्या यह घोर अन्याय नही है ? मांग की अनसुनी होने पर तत्काल सांसद पद से स्तीफा सौंप दिया। उनकी बेबाकी, प्रबलता व संघर्ष गाथा रूपी चिंगारी वर्तमान गोंडवाना आंदोलन के युवाओं में जान फूंकती है। यह चिंगारी कालांतर मे पुन: भड़क गयी, प्रतापी राजा नरेश सिंह जी ने भी 1969 में रीवा राज्य व छत्तीसगढ़ अंचल को मिलाकर गोंडवाना प्रदेश बनाने हेतु प्रतिवेदन सौंपा था। वर्ष1969 मे ही वीरों की भूमि बस्तर अंचल में भी गोंडवाना नाम से पृथक राज्य की मांग उठी, जो पहाड़ी राज्य के समान विधानसभा एवं विधान मण्डल से युक्त हो। 

गोंडवाना प्रांत की मांग को पुन: वैचारिक क्रांति के साथ प्रबलता व प्रखरता के साथ जीवित किया

असमनताओं और विषमताओं के लहरों से गोता खाते हुए गोंडवाना आंदोलन अस्सी के दशक में निराधार हो गया किंतु नब्बे के दशक में फिर जीवित हो उठा, गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने 1993 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना की। विधायक निर्वाचित हुए एवं गोंडवाना प्रांत की मांग को पुन: वैचारिक क्रांति के साथ प्रबलता व प्रखरता के साथ जीवित किया। गोंडवाना के सर सेनापति शीतल मरकाम जी ने गोंडवाना मुक्तिसेना गठन की और लगातार 1975 से पृथक गोंडवाना राज्य की मांग करते रहे एवं धार्मिक सांस्कृतिक, साहित्यिक आंदोलन के साथ संलग्न रहकर, पृथक गोंडवाना राज्य हेतु गोंडवाना राज्य संग्राम परिषद द्वारा 1996 नागपुर में आंदोलन किया गया। (संपादकीय गोंडवाना समय 2 मई 2019) 

गोडवाना राज्य की मांग संबंधी आंदोलन ने एक उज्जवल तस्वीर पेश कर दी


यह जानना जरूरी है के आजादी से पूर्व व पश्चात, पृथक गोंडवाना राज्य गठन के लिए अन्य वर्गों के राजनीतिज्ञों व विद्वानो ने भी सहमति प्रदान की थी। गोंडवाना की ऐतिहासिक विरासत, भौगोलिक स्थिति, संपन्न गोंडवाना साम्राज्य, सांस्कृतिक एकता व प्रशासनिकता के दृष्टिगत भू-भाग के सम्मान में गोंडवाना प्रदेश की मांग जायज थी। आज भी गोंडवाना प्रांत की मांग जायज है, महान साहित्यकारों व प्रबुद्ध जनो से चर्चा अनुसार सदियों से गोंडवाना भू-भाग की स्वतंत्र अस्तित्व गोडवाना राज्य की मांग संबंधी आंदोलन ने एक उज्जवल तस्वीर पेश कर दी।
        जिसे जानकर, पढ़कर, समझकर, कोयतुरियन समुदाय के चेहरे पर प्रसन्नता की लकीर खिची हुई थी और ह्रदय में माटी के सम्मान के प्रति मन में क्रांति की चिंगारी पैदा होने लगी थी लेकिन इतने वर्षों बाद भी वर्तमान परिदृश्य में गोंडवाना भूभाग का आंदोलन कतिपय कारणों से अलग थलग और आधारहीन  हो गया लेकिन गोंडवाना के युवा तरूणाईयों के नव युवा सैलाब से आज गोंडवाना भू-भाग की पुनर्गठन की मजबूत तस्वीर, उस पुरानी धुंधली तस्वीर से मेल नहीं खाती है, उसमें  भिन्नता स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। 

कोयतुर युवाओं को हरपल-हरकदम फूंक फूंककर रखने की हिम्मत देता है

मौजूदा समय में गोंडवाना भू-भाग में गोंडवाना आंदोलन के तपस्वी सांसद पुन. ति. लालश्याम शाह जी, साहित्यकार पुन. तिरू. व्यंक्टेश आत्राम जी, गोंडवाना रत्न पुनसाय तिरुमाल दादा हीरा सिंह मरकाम जी, गोंडवाना के प्रख्यात साहित्यकार पुन. तिरू. डॉ मोती रावेन कंगाली जी, प्रख्यात साहित्यकार पुन. तिरू. सुन्हेर सिंह ताराम जी, गोंडवाना के प्रखर नेतृत्व पुन. तिरू.मनमोहन शाह वट्टी जी, साहित्यकार दादा कोमल सिंह मरई जी, के दूरदष्टिता सोच के परिणाम ने गोंडवाना आंदोलन के लिए युवा सैलाब के रूप में अग्रणी पंक्ति की वैचारिक क्रांति तैयार कर दी और युवाओं को नेतृत्व का मौका दिया। आप सभी का समर्पण व सानिध्य, कोयतुर युवाओं को हरपल-हरकदम फूंक फूंककर रखने की हिम्मत देता है । 

ऐतिहासिक बदलाव हेतु युवा ताकत है, जोश हैं, जुनून हैं, जज्बा हैं एक लाजवाब युवा सैलाब हैं

आज गोंडवाना आंदोलन के प्रणेताओं ने गोंडवाना भू-भाग के कोयापुनेमी कोयतुरों में आंदोलन हेतु नेतृत्व करने के सभी गुण विद्यमान है, इस बात को समझना है- देर है तो सिर्फ जागने की और एकता बनाए रखने की-समय प्रबंधन कोयापुनेम के प्रति अपनापन और पाबुन पड्डुम नेंग सेंग मिजान और सबसे बड़ी बात कि रूढ़ी प्रथा, पुरखा व्यवस्था व मुकद्दम व्यवस्था के प्रति अगाध लगाव व सम्मान की। वर्तमान समय में समृद्ध वाचिक परम्परा के धनी कोयतुर समाज की दुर्दशा ने नए विचारों को जन्म दिया है, जिससे समाधान की दिशा में काम कर सकते हैं।
            गोंडवाना के संघर्ष गाथा के साथ-साथ युवा पीढ़ी व उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, दार्शनिक, कोया पुनेम, व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों से युवाओं की बेहतर पहचान बनती जा रही है। इससे हम युवाओं एवं युवाओं की हिम्मत का आकलन किया जा सकता है। उपरोक्त समन्वयकारी, सामंजस्यकारी, विकासात्मक गतिविधियों से ही जन समुदाय का विश्वास युवाओं के प्रति लगातार बढ़ता जा रहा है।
        यहां यह जानना भी आवश्यक है कि संवैधानिक व्यवस्था के साथ, आज की कोयतुरियन युवा पीढ़ी को कोयापुनेम के प्राकृतिक मूल्यों पर आधारित संस्कृतियुक्त व उत्कृष्ट व्यक्तित्व के सवार्गीण विकास में विश्वास रखना होगा । वर्तमान में गोंडवाना भूभाग के पास एक तरफ ऐतिहासिक बदलाव हेतु युवा ताकत है, जोश हैं, जुनून हैं, जज्बा हैं एक लाजवाब युवा सैलाब हैं, वहीं दूसरी तरफ विकासात्मक रणनीति निर्माण की चुनौती भी यहां कम नहीं हैं, जिससे गोंडवाना आंदोलन से दो-चार होता रहता हैं।

भारतीय संघ व्यवस्था के गठन -पुनर्गठन के मामलों में केंद्र सरकार का पूर्ण अधिकार है

अगर हम वाकई 21 वीं सदी को गोंडवाना आंदोलन की सदी बनाना चाहते हैं, तो संविधान के अनुच्छेद-3 संसद, विधि द्वारा- (क)- किसी राज्य मे से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नये राज्य का निर्माण कर सकेगी। (ख)- किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी। (ग)- किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी। (घ)- किसी राज्य की सीमाओं मे परिवर्तन कर सकेगी। (ङ)- किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी। (भारत में राज्यों का पुनर्गठन- लोकसभा सचिवालय, शोध एवं सूचना प्रभाग-फरवरी 2014) इससे स्पष्ट है कि भारतीय संघ व्यवस्था के गठन -पुनर्गठन के मामलों में केंद्र सरकार का पूर्ण अधिकार है क्योंकि संसद अपने एक पक्षीय कार्यवाही से भारत के राजनीतिक मानचित्र मे परिवर्तन कर सकती है।  (तक्षशिला पब्लिकेशन- 2018 )

विधि का सम्मान करते हुए कुशल रणनीति के साथ कार्य करना होगा

आधारभूत सिद्धांत यह है कि नए राज्यों की मांग तभी उठती है, जब प्रशासन और जनता के बीच दूरी बढ़ने से विकास और प्रगति प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है। सामान्यत: यह माना जाता है कि जो इलाके भाषायी, सांस्कृतिक एकरूपता रखते हैं और एकीकृत वृहद भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, वो इलाके अधोसंरचना विकास की दौड़ में पिछड़ जाते हैं, वे ही किसी बड़े राज्य या अन्य राज्यों के आंशिक भौगोलिक क्षेत्र युग्मित होकर एक नये राज्य के अस्तित्व के साथ पृथक होना चाहते हैं।
            यह आधारभूत सिध्दांत और उसमें समाहित सारांश को गोंडवाना आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में विचारणीय व मंथन योग्य प्रमुख विषय के रूप मे हमारे समक्ष है। उपरोक्त संवैधानिक व्यवस्था के प्रत्येक बिंदुओं एवं परंतुकों का गहन अध्ययन कर तदानुरूप कार्यवाही की दिशा में अग्रसर होने के लिए गोंडवाना आंदोलन के हर युवाओं को समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल, सांस्कृतिक, साहित्यिक विकास, की दिशा में कुशल रणनीति के साथ कार्य करना होगा, विधि का सम्मान करते हुए कार्य को अंजाम मे परिणित करना होगा । 

समाज की दशा और दिशा बदली जा सकती हैं

विशेष उल्लेखनीय है कि गोंडवाना आंदोलन में युवाओं की भूमिका के साथ-साथ छात्र छात्राओं का भी पूरे जोश व जुनून के साथ आंदोलन में संलग्नीकरण हेतु गोंडवाना स्टुडेंट्स युनियन (जी.एस.यू.) का गठन एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका विस्तार देश के बहुतायत राज्यों में हो चुका है। अब युवा पीढ़ी मनोबल को मजबूत रखकर सही दिशा में कदम बढ़ाये तो गोंडवाना आदोलन की मजबूत स्तंभ और सबसे बड़ी ताकत बनने का मौका हासिल कर सकते हैं, समाज की दशा और दिशा बदली जा सकती हैं। गोंडवाना आंदोलन को सशक्त स्तंभ हेतु आदोलन के वरिष्ठ सजग प्रहरी और अनुभवी सगा-पाड़ियों एवं कोयतुर समुदाय के तमाम संगठनों का दिशा निर्देश नौनिहालों के लिए अतिआवश्यक हैं। युवाओं को अपेक्षित मार्गदर्शन मिलेगा, उतना बेहतर सामाजिक परिणाम, दृष्टिगोचर होगा।  

बिना मार्गदर्शन के युवा पीढ़ी राह भटक सकते हैं, कदम लड़खड़ा सकते हैं

युवाओं एवं छात्र छात्राओं के संघर्ष से समाज को राजकाज की प्राप्ति भी संभव है। सामाजिक कार्यों में सहभागिता के साथ, युवा पीढ़ी अपनी कोयापुनेमी संस्कृति को सुरक्षित रखते हुए प्रशासनिक उच्च पदों पर भी आसीन होंगे और प्रशासनिक व्यवस्था को जानेंगे समझेंगे व आने वाली पीढ़ी को संपूर्ण गोंडवाना आंदोलन की संघर्ष गाथा, संवैधानिक प्रावधानों और राज्य पुनर्गठन आयोगों के प्रतिपादित प्रतिवेदनों पर चर्चा व मार्गदर्शन करेंगे। बिना मार्गदर्शन के युवा पीढ़ी राह भटक सकते हैं, कदम लड़खड़ा सकते हैं।
            ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अडिग व स्थिर रहने के लिए कोयतुरियन युवा गोंडवाना भू-भाग के तमाम सामाजिक संगठनों व बुद्धिजीवियों से आह्वान करता है कि कोयतुरियन समुदाय का सानिध्य अनवरत प्राप्त होता रहे क्योंकि गोडवाना भूभाग की प्राकृतिक संपदा कोयापुनेमी तत्वों से भरा व बहुआयामी हैं। यहां की बेजोड़ प्रकृति सम्मत संस्कृति विश्व को पर्यावरण संरक्षण की सीख देती है। ऐसे समृद्धशाली गोंडवाना भू भाग व भू भाग की व्यवस्था को अच्छुण बनाए रखने के लिए कोयतुर युवाओं को इसके भावी संरक्षक बनने के लिए तैयार रहना चाहिए।

साहित्य समाज का दर्पण होता है

यह गोंडवाना आंदोलन का स्वप्न यथार्थ में तब्दीली कुबार्नी के बिना संभव नही है, क्यों न वह कुबार्नी जान की हो, समय की हो, समर्पण की हो, या परिवार की हो और गोंडवाना की उम्दा साहित्य भी महत्वपूर्ण कड़ी है क्योकि विद्वानो ने कहा है- साहित्य समाज का दर्पण होता है। वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती और कमजोरी है-आधारभूत वैचारिक संरचना की।
             आज अव्यवस्थित व असंतुलित वैचारिक संरचना दृष्टिगोचर होता है जो आदोलन की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। ऐसी स्थिति में जब तक गोंडवाना के सम्मान में वैचारिक बिखराव का एकीकरण व एकता नहीं, तब तक हमारी आंदोलन की गति हमेशा धीमी ही रहेगी। इस स्थिति से निजात पाने व धरातल में आंदोलन को साकार करने हेतु सुनियोजित योजना के साथ वैचारिक एकीकरण व अनुशासन और लक्ष्य के प्रति निष्ठा  गोडवाना आंदोलन के लिए वर्तमान परिदृश्य में प्रासंगिक व अपरिहार्य है।

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