पारस पत्थर का सहारा लेकर गोंडवाना के प्राचीन किले महलों को नेस्तनाबूद करने का षणयंत्र : डॉ. सूर्या बाली सूरज धुर्वे
गोंडवाना की समृद्धि का कारण पारस पत्थर नहीं बल्कि वहाँ के कोइतूर राजाओं की खूबसूरत शासन प्रशासन की व्यवस्था थी
डॉ. सूर्या बाली ''सूरज'' धुर्वे
कोया पुनेमी चिन्तक और विचारक
आप तो जानते ही हैं कि दुनिया में विभिन्न तरह के रत्न और आभूषण, हीरे जवाहरात सदियों से मानव जीवन के अभिन्न अंग रहे हैं। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ, राजा-महराजाओं के खजानों में इन रत्नों और आभूषणों की भी काफी समृद्धि हुई थी। आभूषणों और रत्नों का प्रयोग लोग अपनी खूबसूरती बढ़ाने के लिए, अपने वैभव संपत्ति को दिखाने के लिए और अपनी आर्थिक सुरक्षा और समृद्धि के प्रदर्शन के लिए करते हैं।
किसी भी शासक-प्रशासक या राजा-महाराजा की समृद्धि का अंदाजा उसके खजाने से लगाया जाता है। उसके खजाने में जितनी ही अधिक मात्र में धन दौलत, आभूषण, रत्न और मुद्राएँ होंगी वह अमुक राजा उतना ही शक्तिशाली होगा।
किसी राजशाही या प्रजाशाही में खजाने में आभूषणों, रत्नों और स्वर्ण भंडारों का जखीरा उसके प्रजा की समृद्धि का भी प्रतीक होता है, आखिर अगर प्रजा उत्पादन और कमाई करके लगान या टैक्स नहीं देगी तो खजाने में धन कहाँ से आएगा तो यह अप्रतक्ष्य रूप से यह किसी राज्य की खुशहाली और समृद्धि का भी प्रतीक होता है।
नौ रत्नों के साथ पारस पत्थर की संकल्पना
ऐसा कहा जाता है कि रत्न, आभूषण-गहने, मुद्राएँ, स्वर्ण भंडार आदि किसी भी खजाने के मुख्य आकर्षण होते हैं। इन खजानों में रत्नों का बड़ा ही उच्च स्थान माना जाता है जो सबसे दुर्लभ और बेशकीमती होते हैं। जिस तरह से हीरा, पन्ना, नीलम, मोती, रूबी, मणिक्य, पुखराज, गोमेद और लहसुनिया आदि प्रमुख 9 रत्न होते हैं, वैसे ही एक और महत्त्वपूर्ण रत्न पारस पत्थर का जिक्र ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियों, किंवदंतियों में बार-बार आता है जो बहुत ही विचित्र और दुर्लभ पत्थर होता है
जिसके बारे में प्राचीन काल से आज तक रहस्य बना हुआ है, तो दोस्तों आज हम आपको पारस पत्थर, उसकी उत्पत्ति, उसके इतिहास और उससे जुड़ी हुई किस्से कहानियाँ, किंवदंतियाँ, गोंडवाना से उसके संबंध और उसकी हकीकत से आपको रूबरू करवाएँगे और प्रमाणों के साथ इस रहस्य से पर्दा हटाने की कोशिश करेंगे और पारस पत्थर की सच्चाई आप को बताएँगे।
पारस पत्थर क्या है ?
इस जादुई और अनमोल पारस पत्थर को हिन्दी में स्पर्श मणि, उर्दू में संगे-फलसफी और इंग्लिश में फिलॉसफर्स स्टोन कहते हैं। इस पत्थर के बारे में वैसे तो बहुत सारे किताबों और कहानियों में ढेरों सारी जानकारियाँ दी गयी हैं लेकिन ठोस रूप से इसे देखने और परखने के दावे बहुत कम हैं।
कहा जाता है कि यह एक सुगंधित काले रंग का पत्थर होता है जो किसी भी लोहे को सोना बना देता है। पारस पत्थर एक अनबूज और रहस्यमयी पहेली है। ऐसा कहा जाता है कि आज तक किसी ने भी पारस पत्थर का पूरा रहस्य नहीं समझ पाया है।
अगर प्रयासपूर्वक या किसी विशेष चमत्कारिक शक्ति के कारण उसके बारे में जाना भी तो वह व्यक्ति उसके बाद जिंदा नहीं रह पाया, इसलिए पारस पत्थर का रहस्य आम जन मानस तक कभी नहीं आ पाया और हमेशा से एक अनबूझ पहेली बना रहा।
पारस पत्थर का इतिहास
अगर वैज्ञानिक कोण से देखा जाए तो दुनिया में पारस पत्थर जैसी कोई भी एटॉमिक संरचना नहीं मौजूद नहीं है लेकिन कुछ अलकेमिस्टों का मानना है कि यह कार्बन का ही एक रूप है। वैज्ञानिक और रसायनविद ऐसे किसी पारस पत्थर के अस्तित्व को नहीं मानते हैं जो लोहे को सोना बना दे। किंवदंती के अनुसार, 13 वीं सदी के वैज्ञानिक और दार्शनिक अल्बर्टस मैनस (Albertus Manus) ने पारस पत्थर की खोज की थी। भारत में कहा जाता है कि नागार्जुन ने सबसे पहले पारे को सोने में बदलने की तरकीब विकसित की थी (तिवारी, दीपेश, 2019)। एडवर्ड केली ने अपनी पुस्तक ''द अलकेमिक राइटिंग्स आॅफ एडवर्ड केली'' में बताया है कि इस पत्थर से पारा और फिर पारे से सोना बनाया जा सकता है (Kelly, 1893). वर्ष 1771 में डर्बी के जोसफ राइट द्वारा भी फिलॉसफर स्टोन की खोज करने का दावा किया जाता है।
जोसफ राइट से पहले भी ग्रीक, यूनान और रोम के कीमिया(अलकेमिस्ट) लोगों द्वारा पारस पत्थर के बारे में काफी कुछ लिखा और कहा गया है। प्राचीन काल से आधुनिक काल तक इस पत्थर के बारे में बहुत सारे लोगों ने चर्चा की है जिनमें से तीसरी शताब्दी के जोसीमोस, एलियास आसमोल, ग्लोरिया मुंडी आदि, 8 वीं शताब्दी के मुस्लिम अलकेमिस्ट जाबीर इब्न हयान, 11 वीं सदी का इबने सिना, 13 वीं शताब्दी का अल्बर्ट मैगनस,16वीं शताब्दी के पैरासेलसस सहित सैकड़ों दर्शनिकों और अलकेमिस्टों ने पारस पत्थर के बारे में कल्पनाओं का संसार खड़ा किया था।
पारस पत्थर का रहस्य
अभी तक पारस पत्थर की हकीकत से पर्दा नहीं उठ पाया है। आखिर उठेगा भी कैसे जब कोई चीज दुनिया में है ही नहीं तो मिलेगी या दिखेगी कहाँ से ? ऐसा माना जाता है कि कुछ लोगों को अमरत्व प्राप्त करने, चिर युवा बने रहने और बिना मेहनत धनवान बनने के अतृप्त इच्छाओं के कारण इस तरह के पत्थर का ख्याल आया होगा जो हकीकत में कभी संभव नहीं हो पाया, शायद इसी कारण से इसे कल्पनाओं का पत्थर या फिलोसोफेर्स स्टोन कहते हैं, जो दर्शन और फिलॉसफी की दुनिया से निकल कर जमीन पर कभी नहीं आ सका। अगर कभी आया भी तो किसी ने देखा सुना नहीं न ही कोई इसकी सच्चाई को प्रमाणित कर सका।
परिकल्पनाओं और कहानियों के अनुसार यह समान्यतया एक छोटे आकार का यह काले रंग का सुगन्धित पत्थर होता है जो दुर्लभ व बहुमूल्य होता है और किसी नसीब वाले को ही मिलता है। किसी चीज या वास्तु के स्पर्श द्वारा सोना बनाने की कई कहानियाँ विश्व में प्रचलित हैं, जैसे यहूदी कहानियों का राजा मिडाज के बारे में भी कहा जाता है कि वह जिस चीज को छू देता था वह सोने की बन जाती थी और इसी क्रम में उसने गलती से अपनी बेटी को छू लिया था जो सोने कि बन गयी थी. ऐसी ही कहानी पारस पत्थर की भी है पारस पत्थर अगर लोहे से बनी किसी भी वस्तु से छू जाए तो वह लोहे से बनी वस्तु सोने में बदल जाती है।
आध्यात्मिक तौर पर पारस पत्थर की चर्चा होती है। कई लोग कहते हैं कि यह मानव को सीधे ईश्वर या देवताओं से मिलता है जो उन्हे खुश करते हैं लेकिन जब वो लोग इसका दुरुपयोग करते हैं तो उनसे खो जाता है। लगभग सभी धर्मों में इस तरह की कहानियाँ उदाहरणों में किसी न किसी रूप में प्रचलित हैं (वर्मा, 2020).
पारस पत्थर और साहित्य
पारस पत्थर इतना कौतूहलपूर्ण और खूबसूरत विषय है कि इस पर लिखी हुई कहानियां बहुत प्रसिद्ध हो जाती हैं क्यूंकि लोग इस के महात्म्य और इसके रहस्य के बारे में जानने के लिए बहुत उत्साहित रहते हैं. शायद ही ऐसी कोई संस्कृति हो जिसमें इसके बारे में कोई किंवदंती, किस्सा या कहानी प्रचलित न हो।
पारस पत्थर के बारे में ''हैरी पाटर एंड फिलोशोफर्स स्टोन'' में भी विस्तार से बताया गया है कि वल्डेमोट नामक खलनायक ने पारस पत्थर को घोल बनाकर पीना चाहता था जिससे वो शक्तिशाली और अमर हो जाए लेकिन हैरी पाटर ने पारस पत्थर को उस बुरी आत्मा के हाथ में जाने से बचाया और इस पत्थर को बनाने वाले अलकेमिस्ट निकोलस ने हैरी पाटर के स्कूल के प्रिन्सिपल के साथ मिलकर उसे नष्ट कर दिया जिससे उसका कोई दुरुपयोग न कर सके (रोलिंग, 2001)।
बहुत सारे लेखकों ने पारस पत्थर पर आधारित किताबें लिखी हैं जो लोगों, खासकर बच्चों में बहुत प्रशिद्ध हैं (केली, 2010, रोलिंग, 2001, स्टीवनसन, 2020)। पारस पत्थर पर आधारित फिल्में और सेरीयल्स अंग्रेजी और हिन्दी में काफी प्रचलित हैं और लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं। खासकर छोटे बच्चों में ऐसी फिल्मों और सीरियल्स का बड़ा प्रभाव है। भारत में पारस पत्थर पर आधारित कुछ फिल्में प्रदर्शित हुई हैं।
गोंडवाना के विशाल साम्राज्य में मजबूत बनावट के लिए ये किले महल बहुत प्रसिद्ध थे
आप सभी को पता है गोंडवाना के विशाल साम्राज्य में उसके किले महलों का बड़ा योगदान था और सामरिक स्थिति और मजबूत बनावट के लिए ये किले महल बहुत प्रसिद्ध थे। पेशवा, मराठाओं और अंग्रेजों ने इन किलों के खजानों और वहाँ की कीमती चीजों को लूटा और इमारतों को तहस नहस किया और आगे भी उन इमारतों के निशानियाँ और प्रमाण मिटाने के लिए षणयंत्र रच कर गए।
इन्ही षणयंत्रों में एक हैं गोंडवाना के किलों में पारस पत्थर मिलने की कहानी, पत्थर से जुड़ी हुई कहानियाँ गोंडवाना के किलों के संदर्भ में भी खूब सुनी सुनाई जाती है लेकिन इसका संदर्भ कोइतूर संस्कृति के किलों महलों और उनकी अनमोल धरोहरों के बची खुची निशानियों को खत्म करने के उद्देश्य से गढ़ा गया है. आइये ऐसी ही कुछ प्रचलित कहानियों पर नजर डालते हैं।
पारस पत्थर और गोंडवाना का सम्बन्ध- एक षणयंत्र की शुरूवात
पारस पत्थर के संबंध में पहला और सबसे प्रसिद्ध उदाहरण पश्चिमी गोंडवाना के सल्लाम वंश के प्राचीन रायसेन किले से जुड़ा हुआ है और ऐसा बताया जाता है यहाँ पर पारस पत्थर को लेकर कई युद्ध हुए और जब यहाँ के गोंड़ राजा को पता चला कि अब किले को बचाना मुश्किल है और दुश्मन किले पर पहुँचने वाले हैं तभी उन्होने अपनी हार सुनिश्चित देखकर अपना कीमती पारस पत्थर पास के तालाब में फेंक दिया क्यूंकि वो नहीं चाहते थे कि वह अनमोल पत्थर दुश्मन के हाथ लगे।
कई अखबारों की रिपोर्ट्स में कहा गया है कि रायसेन के किले में स्थित पारस पत्थर की सुरक्षा एक जिन्न करता है (तिवारी, दीपेश, 2019, वर्मा, 2020, शर्मा रुचि 2016, शर्मा सोनू 2020) लेकिन किसी के भी पास इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है।
दूसरा बहुत ही महत्त्वपूर्ण उदाहरण गोंडवाना की प्राचीन राजधानी खेड़ला में मिलता है
दूसरा बहुत ही महत्त्वपूर्ण उदाहरण गोंडवाना की प्राचीन राजधानी खेड़ला में मिलता है जहां के बारे में कहा जाता है कि वहाँ के खेड़ला किले के गोंड़ राजा जैतपाल के पास एक बड़ा पारस पत्थर था जिसके कारण उनके राज्य में सोने का अपार भंडार था।
इस राजा के कार्यकाल में टैक्स लगान न चुकाने वाले किसानो के लोहे से बने सभी उपयोगी सामान जैसे गैती, सब्बल, हसिया, चाकू, कुल्हाड़ी, फावड़ा, कुदाल आदि कुर्क कर लेते थे जिसे वह बाद में पारस पत्थर से सोना बना कर अपने खजाने में रखते थे। वे अपनी प्रजा से लगान के रूप में भी लोहे के पुराने औजार और वस्तुएँ ही लेते थे और उसे बाद में पारस पत्थर से छुआ कर सोने में बदल लेते थे (दैनिक भास्कर समाचार, 2019, पँवार, 2016, बाली, 2018, मजूमदार, 2016)।
तीसरा महत्त्वपूर्ण उदाहरण गाडरवाड़ा के निकट नरसिंहपुर जिले के चौरागढ़ किले में मिलता है
गोंडवाना में पारस पत्थर का तीसरा महत्त्वपूर्ण उदाहरण गाडरवाड़ा के निकट नरसिंहपुर जिले के चौरागढ़ किले में मिलता है। यह किला गोंडवाना के गढ़ा रियासत की आर्थिक राजधानी थी। जहां पर रानी दुर्गावती का खजाना था और यह बहुत ही सुरक्षित जगह पर स्थित है। कहा जाता है कि रानी दुगार्वाती के खजाने में भी पारस पत्थर था, जिसे पाने के लिए आज भी लोग खुदाई करते रहते हैं (ई टीवी, 2019, तिवारी, संजय, 2018, द लखनऊ ट्रिब्यून, 2018 दीवान, 2017, नई दुनिया समाचार, 2017).
जिसका अस्तित्व ही नहीं है उसे गोंडवाना के किले महलों से क्यूँ जोड़ा गया ?
यह तो हमने तीन उदाहरण आपको महज बानगी के तौर पर दिये हैं और ऐसी ही न जाने कितनी झूठी कहानियाँ मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों के कोइतूर किलों के बारे में फैलाई गयी हैं। अब प्रश्न उठता है कि एक ऐसी चीज जिसका अस्तित्व ही नहीं है उसे गोंडवाना के किले महलों से क्यूँ जोड़ा गया ? गोंडवाना के किलों में इतने खजाने छुपे होने या गड़े होने का प्रचार क्यूँ किया जाता है ? ऐसा करने के पीछे किसी को क्या लाभ होगा ? ऐसी कहानियों से आम जन मानस को क्या करने का मन करेगा ?
कृषि प्रधान उन्नत कोइतूर जीवन व्यवस्था को जाता है
तो आइसे अब इन प्रश्नों के उत्तर जानने की कोशिश करते हैं ह्य हम सभी जानते हैं कि हजारों वर्षों तक गोंडवाना अपनी समृद्धि, वैभव और वीरता के लिए जाना जाता था. गोंडवाना में स्वर्ण युग की समृद्ध का श्रेय वहाँ के कृषि प्रधान उन्नत कोइतूर जीवन व्यवस्था को जाता है। इस समृद्धि से प्रभावित होकर मुगलों, मराठाओं, अंग्रेजों ने उसे लूटने की बार-बार कोशिश की।
मुगलों ने तो कम से कम गोंडवाना के किलों महलों की धन दौलत और खजानों को लूटा लेकिन पेशवा, मराठों और अंग्रेजों ने तो कोइतूरों के खजानों के अलावा उनका जीवन, उनकी इज्जत और उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को भी लूटा और ऐसा इंतजाम किया कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन कोइतूरों के बारे में कुछ न जान सकें और उनके वैभव और समृद्ध को कभी न सुन सके। इतिहास विरासत और उसका नामों निशान मिटाने के लिए इन गोंडवाना के बचे खुचे खंडहरों को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करना था और उनका नामों निशान हमेशा हमेशा के लिए मिटाना था।
खजाना छिपे होने की खबर
इसलिए एक पेशवा ने ऐसी कहानिया रची जिससे लोग धन दौलत और पारस पत्थर को खोजने उन वीरान बचे खंडहरों में जाएँ और वहाँ खजाने की तलाश करने के लिए खुदाई करें. बार बार की खुदाई से उंचाई पर स्थित किलों की बची खुची इमारतें भी ढहने लगी।
गोंडवाना के कोइतूर राजा महाराजाओं के प्राचीन धरोहरों, धन सम्पदा, गहनों, आभूषणों और हीरे जवाहरात को ढूँढने के लिए लोग चोरी छुपे इन महलों और किलों की खुदाई करते हैं। खुदाई से वहां छोटे छोटे गड्ढे बन जाते हैं जिनमें बरसात का पानी भरने लगता है फिर वहां पर जंगली पेड़ पौधे उगने लगते हैं। जिनकी जडेÞ किलों को अपनी गिरफ्त में लेने लगती हैं।
तो आने वाले दिनों में सब कुछ अतीत के गर्दो गुबार में दब जायेगा
नींव के पास खुदाई करने से पानी नींव में भरने लगा और दीवालें ढीली होकर गिरने लगी और महज 100 वर्षों के समयांतराल में ये किले और उनके खंडहर गायब होने लगे। दुर्भाग्य देखिये आज भी इस गलत धारणा को बढ़ने के लिए झूठ को सच बताने मीडिया इस तरह की खबरे दिखाता बनाता रहता है लेकिन कभी भी इन किलों के इतिहास की सच्चाई और उसके गौरवशाली विरासत को नहीं बताता।
जब तक ये किले महल और उनके बचे खंडहर खड़े रहेंगे तब तक दुश्मनों की आँखों में किरकिरी बने रहेंगे। आज नहीं तो कल इन किले महलों के की सच्चाई इनके सच्चे वारिसों को पता लगेगी और वे संगठित होकर अपने अतीत के इतिहास से प्रेरणा लेकर अपना गौरवशाली भविष्य निर्मित कर सकेंगे।
गोंडवाना के गौरवशाली इतिहास की कुछ निशानियाँ ही बची हैं और अगर इस तरह की अफवाहें काम करती रही तो आने वाले दिनों में सब कुछ अतीत के गर्दो गुबार में दब जायेगा। इसलिए एक और हवा अफवाह उड़ाई जाती है कि इन किलों में कहीं न कहीं पारस पत्थर उससे छुपाकर बनाए गए सोने छुपाए गए हैं।
यह एक श्रमिक कौम के सम्मान पर तमाचा है
इन कहानियों के पीछे कोइतूरों की अथाह मेहनत उनके अनवरत श्रम को श्रेय न देकर उनकी संपन्नता और अमीरी को पारस पत्थर के कारण बताया जाता है। यह एक श्रमिक कौम के सम्मान पर तमाचा है और उसके इतिहास के साथ खिलवाड़। जबकि दुनिया जानती है कि गोंडवाना की समृद्धि का कारण पारस पत्थर नहीं बल्कि वहाँ के कोइतूर राजाओं की खूबसूरत शासन प्रशासन की व्यवस्था थी और उनकी जनता की कठोर मेहनत और कृषि की उन्नत तकनीक न की पारस पत्थर।
भूत और जिन्न होने की खबर
तीसरी अवस्था में एक और अफवाह उड़ाई जाती है कि इन किलों और खंडहरों में जिन्न, भूत या चुड़ैल निवास करती हैं। अब यह कहानी भी बहुत अच्छा काम करती है, इस डर से आस पास के गाँव के सामान्य लोग और पर्यटक भी वहां नहीं पहुँच पाते। जब कोई मानवीय गतिविधि वहां नहीं होती तो प्राकृतिक रूप से हर बरसात के बाद ढेर सारे पेड़ पौधे, झाड़ियाँ घास पूरे किले के अवशेषों को ढक लेती हैं। और धीरे-धीरे ये बची-खुची निशानियाँ घास फूस और मिटटी के ढेर में ढक जाती है और फिर किसी को खोजने पर भी नहीं मिलती।
सारांश
गोंडवाना की प्राचीन समृद्ध कोइतूर सभ्यता, संस्कृति, भाषा, इतिहास का स्वतंत्र वजूद कुछ लोगों को नहीं सुहाता है क्यूंकि उसके उभरने से उनके खुद के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग जायेंगे। इसलिए हमेशा गोंडवाना से जुड़ी हुई किसी भी चीज पर चर्चा करने से बचा जाता है। प्राचीन गोंडवाना में भव्य, मजबूत और अतिसुन्दर, ऐतिहासिक किले, महल, हवेलियाँ और बावड़ियां मौजूद रही हैं जिनको दुश्मनों के साथ-साथ समय की मार भी सहनी पड़ी है।
यहाँ तक की उनके अपने वारिस भी इनके लिए कभी आगे नहीं आते हैं और मुंह मोड़े हुए हैं। इस तरह की झूठी कहानियों ने ऐसी विशाल गौरवशाली इतिहास को लेकर कोइतूरों के मन भी शंका पैदा कर दी हैं और उन्हें यकीन भी नहीं होता है कि कभी उनके वंशजों के पास इतनी वैभवपूर्ण और गौरवशाली रियासतें थीं और वे उन्हें राजा महाराजाओं के वंशज हैं।
इस लेख में आजादी के पहले से ही गोंडवाना और उसकी अनमोल निशानियों को पूर्णरूप से खत्म करने की कोशिशें जारी हैं। सैकड़ों किले महल हैं जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है और कितने तो ऐसे हैं जिनका नामों निशान भी नहीं मिलता है। इन सबके पीछे हो रही बहुत सी साजिशों में पारस पत्थर की साजिश बहुत भयानक और दुखद है।
हमें ऐसी किस्से झूठी, मनगढ़ंत कहानियों और फर्जी अफवाहों में नहीं आना चाहिए बल्कि उस किले की असली मालिकों के बारें खोजबीन करनी चाहिए। यह लेख आप को पारस पत्थर, गड़े खजानों के रहस्य, भूत-प्रेत और चुढ़ैलों के किस्सों के पीछे छुपे षणयन्त्र को उजागर करता है और आने वाली पीढ़ी को आगाह करता है। अगर आज इन किले महलों की सुरक्षा नहीं सुनिश्चित की गयी तो आने वाली पीढ़ियों को ये भी पता नहीं होगा वो कौन हैं।
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