Type Here to Get Search Results !

बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं पोलबतूर, खारा, कोकमा गांव के ग्रामीण

बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं पोलबतूर, खारा, कोकमा गांव के ग्रामीण

जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों का अधिकार फिर भी सरकारी सुविधाओं को पाने है मोहताज 


कमलेश गोंड/राष्ट्रीय संवाददाता
बालाघाट। गोंडवाना समय। 

देश को आजाद हुए लगभग 70 वर्षों से अधिक हो गया हैं परंतु आज भी ग्रामीण भारत के अधिकांश जनजाति इलाकों में विकास का परिंदा पर नहीं मार रहा है। समस्याओं से घिरे जनजातियों का जीवन मानो मझधार में अटक गया हो सड़क, बिजली, पानी, मकान जैसी बुनियादी सुविधाएं के लिए वर्तमान भारत में भी तरसना पड़ रहा है। विकास के वादे ओर मन की बात इन ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाना, इनके जीवन में दुभर है। वन ग्राम में जीवन व्यतीत कर रहें, इस देश के मालिक सरकार द्वारा संचालित तमाम योजनाओं के बाद भी गांवो में बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं। आज भी ग्रामीण भारत के लोग कठिन परिश्रम करने के बावजूद दैनिक जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहै हैं सरकारी योजनाओं का लाभ पाने को मोहताज है। देश के पिछड़े गांवों में पक्के मकान, पौष्टिक भोजन, कुटीर उद्योग, आर्थिक संसाधनों की कमी हैं। भारत सरकार जनजातियों के उत्थान के लिए तरह तरह की योजनाएं संचालित कर रही है लेकिन इसका वास्तविक लाभ जनजातियों को नहीं मिल पा रहा है। आज भी इस देश का आदिवासी समस्याओं से घिरे हुए हैं।

वनग्राम होने की सजा, विकास से कोसों दूर

बालाघाट जिले के परसवाड़ा अंतर्गत आमगांव ग्राम पंचायत आदिवासी बहुल है लेकिन यहां पेयजल की व्यवस्था नही है। नतीजतन यहां के आदिवासी परिवार बरसाती नदी  के सहारे ही प्यास बुझाने को विवश रहे हैं। ग्रामीणों के लिए स्वप्न बनी बिजली साकार तो हुई हैं लेकिन एक बार फाल्ट हुआ तो उसे सुधरने में महीनों गुजर जाते हैं, गांव के ग्रामीण आज भी अंधेरे में ही रहने को विवश हैं।


गांव में गाडे गए विद्युत खंभे महज इस बात का एहसास कराते है कि विद्युतीकरण के लिए गांव में सरकार की ओर से प्रयास किया जा रहा है। सड़क योजनाओं का कोई लाभ नहीं जिले में मनरेगा के तहत संचालित सुदूर ग्राम संपर्क व खेत सड़क योजना के तहत ग्राम पंचायत को बनाने का अधिकार नहीं हैं। जबकि वन भूमि पर विकास के लिए होने वाले 13 प्रकार के निर्माण कार्यों के लिए ग्रामसभा और वन विभाग के डीएफओ को ही एक हैक्टेयर तक निर्माण के लिए भूमि हस्तांतरण की शक्तियां दी गई हैं। वन ग्राम अंतर्गत पंचायतें अब ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित कर एनओसी देगी और वन विभाग के डीएफओ उस वन भूमि को ट्रांस्फर करेगा। इसके लिए मिनिस्ट्री आॅफ ट्राइबल अफेयरर्स ने अधिसूचना जारी कर दी है। लिहाजा, अब छोटे-छोटे निर्माण कार्य के लिए सालों तक वन विभाग के दरवाजे में फाइलें नहीं घूमेंगी। एक हेक्टेयर वन भूमि के अंदर बनने वाले कम्युनिटी भवन, अस्पताल, बिजली बोर्ड का सब स्टेशन, डिस्पेंसरी, सड़क, ट्रॉसमिशन लाइन, टावर, स्कूल भवन, पीएचसी सहित ऐसे 13 निर्माण कार्य हैं जिसके लिए वन मंत्रालय में फाइलें नहीं भेजनी होंगी बल्कि स्थानीय स्तर पर ग्राम पंचायत और वन विभाग इसके लिए अनुमति देने के लिए अधिकृत होगा।

बैगा जनजातियों का विकास कागजों पर अधिक धरातल पर गायब 

मामला बालाघाट परसवाड़ा विधानसभा के आमगांव ग्राम पंचायत अंतर्गत बैहर हाईवे सड़क से 20 किलोमीटर दूर घने जंगल के बीच बसे, कोकमा, खारा, पोलबतूर, वनग्रामों की सूची में शामिल हैं। ग्राम पंचायत आमगांव के पोषक ग्राम के इन गांवो में बैगा जनजाति के लोग निवासरत हैं जिनकी जीवनयापन सरकारी योजनाओं को छू नहीं पाता, प्रशासन केवल कागजों पर बैगा जनजातियों का विकास कर रहा है इसके विपरीत जमीनी स्तर पर दिया तले अंधेरा हैं। विकास से अछूता यह वन ग्राम सरकारी सड़क ओर योजनाओं में चलने के लिये लंगड़ रहा हैं। 

ग्रमाीणों की जुबानी, विकास की दर्द भरी कहानी 

ग्रामीण भरत उइके ने कहा कि गांव में बिजली अभी तक नहीं पहुंची हैं। मंत्री से अवगत कराने के बाद आश्वासन दिया गया हैं कि बिजली का काम चालु हैं। वहीं शंकर ने कहा कि हमारी परेशानी दूर कराने के लिए कही कोई प्रयास नहीं हो रहा है, हम चारों तरफ नालों से घिरे हुये, सड़क की कोई व्यवस्था नहीं हैं, हम बिजली नहीं जला रहें हैं ओर हमें बिजली बिल का भुगतान करना होता है। रंगलाल ने कहा कि दैनिक जीवन के लिये बांस कटाई करने जाते हैं इसके बाद कृषि मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं, वही ग्रामीणों का कहना हैं कि गांव में बिजली लाने के लिए प्रयास निरर्थक साबित हो गया है। सरकार को हमारी स्थिति क्यों नहीं दिखती यही बात हमारे समझ से परे है।

वन ग्रामो की बदहाली दूर कराने के लिए विकास कार्य पंचायत के अधीन नहीं है

वहीं ग्राम पंचायत आमगांव के सरपंच प्रधान श्री सुदामा नगपूरे बताते है कि वन ग्रामो की बदहाली दूर कराने के लिए विकास कार्य पंचायत के अधीन नहीं हैं, मनरेगा के तहत तालाब निर्माण एवं मिट्टी खोदने का कार्य ही किया जाता हैं, सड़क निर्माण कार्य में वनविभाग मंजूरी नहीं देता, मेरे स्तर से जो भी संभव होगा मैं करूंगा। 

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.