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शिवाजीराव होलकर ने साहूकारों, जमीदारों को खुश करने आजादी के जननायक टंटिया भील को अंग्रेजों के हवाले किया था

शिवाजीराव होलकर ने साहूकारों, जमीदारों को खुश करने आजादी के जननायक टंटिया भील को अंग्रेजों के हवाले किया था 

टंटिया भील को जंजीरों में जकड़कर अंग्रेजों की जेल में जुल्म अत्याचार सहने के लिये शिवाजी राव होल्कर दिया था योगदान 


सिवनी/इंदौर। गोंडवाना समय।

अंग्रेजों की तानाशाही, गुलामी से आजादी दिलाने के लिये एवं साहूकारों व जमीदारों के अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंककर जनचेतना की अलख गांव-गांव जगाने वाले जनजाति भील समुदाय के जननायक टंटिया भील का त्याग, बलिदान, योग्यता, शौर्य, शहादत को सम्मान आजादी के बाद किसी भी सरकार ने नहीं दिया, हालांकि वर्तमान स्थिति में आश्चर्यजनक व अचानक मध्य प्रदेश में सर्वाधिक जनजाति समुदाय के वोट बैंक की लालसा में मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार भले ही टंटिया भील की शहादत का गुणगान कर रही हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश सरकार भी टंटिया भील की शहादत और संघर्ष का वास्तविक इतिहास जनता के सामने रखने में कंजूसी के साथ साथ परहेज भी कर रही है। 

क्या टंटिया मामा का वास्तविक इतिहास शिवराज मामा बच्चों को पढ़ा पायेंगे ?


यदि वास्तव में शिवराज सिंह चौहान सरकार पाठ्य पुस्तकों में आजादी के जननायक टंटिया भील की शहादत व योगदान से स्कूल के बच्चों को परिचित कराना चाहती है तो उसमें यथार्थ संघर्ष व बलिदान की गाथा को ही प्रस्तुत करें कि कैसे कैसे टंटिया भील ने अंग्रजों, साहूकारों व जमीदारों के खिलाफत किया था वहीं उन्हें गिरफतार करने से लेकर, जंजीरों में जकड़ने, जेल की सलाखों के पीछे तक पहुंचाने और अंग्रेजी हुकुमत की असहनीय अत्याचारी सजा को भुगतने व सहन करने में किस-किस ने भूमिका निभाई थी। हम आपको बता दे कि आजादी के जनजानयक टंटिया भील को भारत देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में भारत के होलकर वंश के राजा व अंग्रेजों सेना को गिरफतार करने में मदद करने वालों का भी अन्याय, अत्याचार सहन करना पड़ा था।  

होल्कर राजघराना को सरकार ने दिया है भरपूर नाम और सम्मान 

होल्कर राजघराना जिन्हें आजादी के बाद सभी सरकारों ने सम्मान, नाम, शोहरत दिया है, जो आज देश के साथ मध्य प्रदेश के इंदौर सहित अन्य स्थानों पर आप प्रमाणित रूप में देख व पढ़ सकते है। वहीं दूसरी ओर आजादी के जनजानक जनजाति समुदाय के टंटिया भील की शहादत आज भी सम्मान के लिये सरकार की भेदभावपूर्ण नीति को उजाकर कर रही है। हां अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को टंटिया भील की शहादत की याद आने लगी है और वे अपने मुख्यमंत्री के तीन पंचवर्षीय के बाद चौथी पारी में टंटिया भील के जन्म स्थली की मिट्टी को प्रणाम कर रहे है, आखिर इतने वर्षों बाद ही आजादी के नायक टंटिया भील की शहादत क्यों याद आई यह सवाल भी बुद्धिजीवियों के साथ साथ अशिक्षितों के मन में भी उठ रहे है। 

गनपत राजपूत की मुखबिरी के कारण टंटिया भील की हुई थी गिरफ्तारी 


अब हम आपको उस वास्तविकता से अवगत कराते है जिस इतिहास को अक्सर इतिहासकार व सरकार छुपाते आई है। मध्य प्रदेश के सम्मानित व प्रसिद्ध होलकर राजघराना के राजा शिवाजीराव होलकर है जिसने साहूकारों व जमींदारों को खुश करने के लिए अंग्रेजो के साथ मिलकर आजादी के जननायक टंट्यिा भील की जासूसी कराई थी। वहीं गनपत राजपूत की मुखबिरी के कारण टंटिया भील की गिरफ्तारी हुई थी। 

टंटिया भील को मल्लहारगंज थाने में किया गया था बंद वहां पहुंचाये थे जबलपुर 


अंग्रेजो के गुलाम राजा शिवाजीराव होल्कर ने आजादी के जननायक टंटिया भील को गिरफ्तार कराने में योगदान दिया था। टंटिया भील को पहले मल्हारगंज थाने में बन्द किया गया था, वर्तमान में जिसे जिला जेल के नाम से जाना जाता है। वहां पर आजादी के जननायक टंटिया भील को जंजीर व हथकड़ी बेड़ियों में रखा गया था। इसके बाद फिर इंदौर से ट्रेन द्वारा टंट्या भील को केंद्रीय जेल जबलपुर के लिए रवाना किया गया था। रास्ते में प्रत्येक स्टेशन पर टंट्यिा मामा की एक झलक पाने के लिए भारत की जनता बेताब थी। 

खंडवा एसपी स्किफ्टन ने चार्जशीट दायर की थी मुकदमा जबलपुर एसपी हैमिल्टन ने चलाया था 

सत्र न्यायालय परिसर जबलपुर में डिप्टी कमिश्नर ने हत्या के मुकदमे की सुनवाई की, उनके विरुद्ध खंडवा एसपी स्किफ्टन ने चार्जशीट दायर की थी लेकिन मुकदमा जबलपुर एसपी हैमिल्टन ने चलाया था। वहीं 26 सितंबर 1889 को ट्रायल शुरू हुई, 7 अक्टूबर 1889 को टंट्यिा मामा को भुइफाल निवासी जमींदार हिम्मत पटेल की हत्या के जुर्म में फाँसी की सजा सुनाई गई थी। जहां 4 दिसम्बर 1889 को केंद्रीय जेल जबलपुर परिसर में रॉबिन हुड जननायक टंट्या भील को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया था। 


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