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उलगुलान, एकता, साहस, संघर्ष, शक्ति का आदिवासी समाज ने एहसास कराया, सिवनी बंद रहा पूर्णत: सफल

उलगुलान, एकता, साहस, संघर्ष, शक्ति का आदिवासी समाज ने एहसास कराया, सिवनी बंद रहा पूर्णत: सफल 

आदिवासियों के हत्यारों को फांसी दो-फांसी दो के नारों से गूंज उठा सिवनी शहर 


संपादक विवेक डेहरिया की विशेष रिपोर्ट
सिवनी। गोंडवाना समय। 

जिस तरह से सिवनी बंद किये जाने को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा था कि सिवनी शहर में आदिवासियों को कोई समर्थन नहीं देगा, भाजपा व्यापारी प्रकोष्ठ ने खुला विरोध दर्ज कराया था और बंद कराने वालों पर कानूनी कार्यवाही की मांग किया था। इसके साथ ही सिवनी बंद की घोषणा के बाद कुछ समाज के भाजपा नेताओं के द्वारा भी अपना समर्थन वापस ले लिया गया था। अच्छी बात है परंतु विरोध दर्ज कराने से पहले आदिवासी समाज का इतिहास को जरूर जान लें न मालूम हो तो चार पन्ने का प्रतिदिन निकलने वाला गोंडवाना समय अखबार का अध्ययन जरूर करें कुछ न कुछ ऐतिहासिक जानकारी जरूर मिल जायेगी।


देश में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले उलगुलान करने वाले सिर्फ और सिर्फ आदिवासी समाज ही रहा है। अंग्रेजों की गोलियों के सामने तीर कमान से लैस होकर युद्ध लड़ने वाले कोई और नहीं सिर्फ आदिवासी ही है। अंग्रेजों की खिलाफत कर ऐतिहासिक शहादत देने वालों में आदिवासी समाज की आज भी मिसाल दी जाती है, क्योंकि तोफ के मुंह में बांधकर जिंदा उड़ाना की बात सुनकर ही रूह कांपने लगती है और शहादत लेने के बाद भी 3 दिन तक फांसी में लटकाकर रखना आदिवासियों का ही इतिहास है। आदिवासियों का इतिहास रहा है कि उन्होंने कभी किसी गुलामी को स्वीकार नहीं किया। आदिवासी समाज में पुरूष ही नहीं महिलाओं का भी ऐतिहासिक शहादत देने का कार्यकाल रहा है।

आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है प्रकृति शक्ति को मानता है और प्रकृति कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करती है। क्या आपने कभी देखा है कि पेड़ किसी की जात-पात पूछकर, अमीर-गरीब देखकर छांव देता हो या हवा देता हो। ऐसे ही प्रकृति के समस्त वे अनुपम उपहार है जो सबको बिना भेदभाव के सबको समान रूप से मिल रहा है। बहरहाल हम मूल बात पर आये तो बात करते है सिवनी जिले में आदिवासियों के साथ हुये अत्याचार, अन्याय, खिलाफ 9 मई को सिवनी बंद के दौरान जिन्होंने साथ दिया सहयोग किया उनका भी भला हो और जिन्होंने विरोध दर्ज कराया उनका भी भला और उनके साथ हमेशा अच्छा ही हो ऐसी मानसिकता आदिवासी समाज की है। वहीं आदिवासी समाज की आवाज उठाने वाले अखबार दैनिक गोंडवाना समय अखबार व संपादक को विरोध दर्ज कराने वालों ने काली सूची में नाम शामिल कर लिया है।  

शांतिपूर्ण रहा बंद, अपने खर्चे, अपने-अपने साधन से पहुंचे सिवनी 


हम आपको बता दे कि 2 आदिवासी की हत्या के विरोध में और प्रमुख मांगों को लेकर आदिवासी समुदाय के द्वारा 9 मई को सिवनी बंद का आहवान किया गया था। वहीं सिवनी बंद की घोषणा होने के बाद उसे असफल कराने के लिये बहुत प्रयास किया गया, सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग किया गया। विरोध करने का वालों का विश्वास नहीं था कि चिलचिलाती धूप में बिना किसी इंतजाम के इतनी संख्या में आदिवासी सगाजन सिवनी पहुंच जायेंगे क्योंकि वे पहले अपने नेताओं के लिये भीड़ जुटाने के लिये वाहनों का सहारा लेकर उन्हें बुलाते थे इसलिये उन्हें विश्वास नहीं था कि बिना साधन के आदिवासी समाज के लोग सिवनी पहुंच पायेंगे। वहीं जब आदिवासी समुदाय का स्वाभिमान, मान, सम्मान, हक अधिकार की बात आई तो बिना किसी के सहयोग से सब अपने अपने खर्चेँ से अपने अपने साधन से सिवनी मुख्यालय पहुंच गये, संख्या का अंदाजा विरोध दर्ज कराने वालों से अच्छा कोई नहीं लगा सकता है। 

घटना की सीबीआई जांच, आरोपियों को कड़ी सजा दिये जाने की मांग की गई


सिवनी बंद के दौरान प्रमुख रूप से ग्राम सिमरिया के पीड़ित परिवार को एक एक करोड़ की आर्थिक सहायता राशि मुख्यमंत्री सहायता कोष से तत्काल दिलाई जाये, तथा पीड़ित परिवार के आश्रितों को स्थाई शासकीय नौकरी तत्काल दिलाई जाने की मांग की गई, वहीं इसके साथ ही जघन्य हत्या कांड की सी.बी.आई.जांच कराई जाने की मांग की गई, पीड़ित परिवारों को तत्काल पुलिस सुरक्षा प्रदान किया जाने की मांग की गई, इसके साथ ही आरोपी गणों के अवैध कब्जे को तत्काल तोड़ा जाने की मांग की गई, आरोपी गणों पर दर्ज मामले की तत्काल सुनवाई हेतु फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कर दोषियों को जघन्य हत्या जैसे अपराध के लिए मृत्यु दंड से दंडित किया जाने की मांग सहित अन्य मांग भी रखी गई है। 

घटना की दिशा को वैमस्यता की ओर ले जाना कहा तक सही है

आदिवासी समाज के 2 व्यक्तियों की हत्या करने के बाद ऐसी संवेदनशील घटना की पुनावृत्ति किसी भी समाज के साथ न घटे। इसके मूल कारण पर भी जाना अनिवार्य है लेकिन इसके लिये पूरे समाज को बदनाम करने का प्रयास करना कहां तक सही है। घटना के बाद मानवता के बीच में भी गहरी खाई खोदने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे समय में यह विचारणीय है कि घटना की दिशा को गलत दिशा में मोड़ना और उसे मानव-मानव के बीच में वैमस्यता की ओर ले जाने का प्रयास किया जाना कहां तक उचित है। सभी समाज को मिलकर इसमें गहन चिंतन-मंथन करने की आवश्यकता है ऐसी घटनाओं की पुनावृत्ति न हो, यह घटना क्यों हुई इसके पीछे क्या कारण है, इस पर सभी समाज के बुद्धिजीवियों को चिंतन-मंथन करने की सख्त आवश्यकता है। घटना को सकारात्मक दिशा में ले जाना ही उचित है वरन नकारात्मक दिशा में ले जाने से मानवता ही नुकसान में होगी।


 

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