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चेन्दरू मंडावी की आदमकद प्रतिमा की होगी स्थापना, बस्तर विकास प्राधिकरण मद से 10 लाख की स्वीकृति

चेन्दरू मंडावी की आदमकद प्रतिमा की होगी स्थापना, बस्तर विकास प्राधिकरण मद से 10 लाख की स्वीकृति

द टाईगर ब्वॉय के नाम से विश्व विख्यात हुये चेन्दरू ने अपने नाम के साथ अबुझमाड़ बस्तर को भी विश्व पटल पर प्रसिद्धी दिलाई


दुर्गाप्रसाद ठाकुर, राज्य ब्यूरो प्रमुख।
जगदलपुर/छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय।

मध्यप्रदेश में चीता को विदेश से लाये जाने के बाद पूरे देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं मध्यप्रदेश में चीता लाये जाने के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का भी आगमन हुआ था इसके बाद से ही चीता को लेकर देश भर में क्रियाएं एवं प्रतिक्रियायें पक्ष व विपक्ष की आ रही है।
        


चीता को लेकर चर्चा का दौर अभी भी सोशल मीडिया में कम नहीं हुआ है तो वहीं इसी बीच में छत्तीसगढ़ राज्य से एक महत्वपूर्ण और हकीकत को बयां करती खबर आई है जिसमें आदिवासी सममुदाय का जल, जंगल, जमीन के साथ प्राकृतिक प्रेम की वास्तविकता के साथ उनका कितना लगाव है यह भी सामने आ रहा है। हम आपको बता दे कि बस्तर विकास प्राधिकरण द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य के नारायणपुर के चेन्दरू मण्डवी की आदमकद प्रतिमा स्थापना करने की लिये 10 लाख रूपये स्वीकृति दी गई है। आदिवासी समुदाय के चेन्दरू मण्डावी का स्वर्णिम इतिहास शेर के साथ बचपन बिताकर साथ में खेलने का रहा है जिसकी विदेश तक चर्चा है। 

लखेश्वर बघेल ने चेन्दरू मण्डावी के सम्मान में की घोषणा 


बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री लखेश्वर बघेल ने नारायणपुर के चेन्दरू मण्डावी की आदमकद प्रतिमा की स्थापना के लिए 10 लाख रूपए की स्वीकृति दी। जिला कार्यालय के सभाकक्ष में आयोजित बैठक में अध्यक्ष श्री बघेल लखेश्वर बघेल ने हॉलीवुड फिल्मों में काम किए चेन्दरू मण्डावी के सम्मान में उक्त घोषणा की।

चेन्दरू को अपने पिता एवं दादा से उपहार स्वरूप शेर का बच्चा प्राप्त हुआ


ज्ञात हो कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र नारायणपुर के एक छोटे से गांव गढ़बेंगाल में चेन्दरू मण्डावी का जन्म हुआ था। चेन्दरू को अपने पिता एवं दादा से उपहार स्वरूप शेर का बच्चा प्राप्त हुआ। चेन्दरू और शेर (टेम्बू) बहुत अच्छे दोस्त हो गए थे। उनकी दोस्ती के दास्तान विश्व प्रसिद्ध हुई। द टाईगर ब्वॉय के नाम से न केवल चेन्दरू विश्व विख्यात हुआ अपितु उन्होंने अपने नाम के साथ अबुझमाड़ बस्तर को भी विश्व पटल पर प्रसिद्ध दिलाई। उनके जीवन आधारित फिल्म द जंगल सागा को आस्कर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। विभूति चेन्दरू मंडावी की प्रतिमा एवं जीवन परिचय नारायणपुर जिले के ग्राम गढ़बेंगाल में स्थािपत किए जाने हेतु 10 लाख रूपए बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के माध्यम से स्वीकृत की है।

चेंदरू की कई तस्वीरें खीची और एक किताब भी प्रकाशित की चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर


बस्तर का आदिवासी समुदाय का चेंदरू मण्डावी द टायगर बाय के नाम से मशहुर है। यह बात पुरी दुनिया के लिये आश्चर्यजनक घटना से कम नही है। बस्तर में मोगली के नाम से चर्चित चेंदरू मण्डावी पुरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहुर था। चेंदरू मंडावी नारायणपुर के गढ़ बेंगाल का रहने वाला था। मुरिया जनजाति का यह लड़का बड़ा ही बहादुर था। बचपन में इसके दादा ने जंगल से शेर के शावक को लाकर इसे दे दिया था।
            

चेंदरू ने उसका नाम टेंबू रखा था। इन दोनो की पक्की दोस्ती थी। दोनो साथ मे ही खाते, घुमते और खेलते थे। इन दोनो की दोस्ती की जानकारी धीरे धीरे पुरी दुनिया में फैल गयी। स्वीडन के आॅस्कर विनर फिल्म डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ चेंदरू पर फिल्म बनाने की सोची और पूरी तैयारी के साथ बस्तर पहुंच गए। उन्होंने चेंदरू को ही फिल्म के हीरो का रोल दिया और यहां रहकर दो साल में शूटिंग पूरी की। 1957 में फिल्म रिलीज हुई. एन द जंगल सागा जिसे इंग्लिश में दि फ्लूट एंड दि एरो के नाम से जारी किया गया। फिल्म के रिलीज होने के बाद चेंदरू को भी स्वीडन और बाकी देशों में ले जाया गया। उस दौरान वह महीनों विदेश में रहा।
            

 चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी एस्ट्रीड से उनका तलाक हो जाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया। एस्ट्रीड एक सफल फोटोग्राफर थी फिल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खीची और एक किताब भी प्रकाशित की चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर। उसकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हुई उन्होंने चेंदरू को पढ़ने के लिये कहा पर चेंदरू के पिता ने उसे वापस बुला लिया।
            वहां से वापस लौटकर वह फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में लौट गया, चकाचौंध ग्लैमर में जीने का आदी हो चुका चेंदरू गांव में गुमसुम सा रहता था। एक समय ऐसा आया कि गुमनामी के दुनिया में पुरी तरह से खो गया था जिसे कुछ पत्रकारों ने पुन 90 के दशक में खोज निकाला। फिल्म में काम करने के बदले उसे दो रुपए की रोजी ही मिलती थी। 18 सितम्बर 2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो की मृत्यू हो गयी। 

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