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1000 हजार करोड़ रूपये से अधिक की धान सड़ाने वाली शिवराज सरकार के अफसरों पीएमएस एजेंसी से लगाव क्यों है ?

1000 हजार करोड़ रूपये से अधिक की धान सड़ाने वाली शिवराज सरकार के अफसरों पीएमएस एजेंसी से लगाव क्यों है ?

मध्यप्रदेश वेयर हाऊस कारपोरेशन के अफसरों की भूमिका संदिग्ध 

सड़ी हुई धान की नीलामी से मप्र शासन को लगभग 1000 करोड़ से भी अधिक का हुआ नुकसान 

कवर्ड वेयर हाऊसों पर रखे अनाज पर स्कंध हानि के रूप में 1 रूपये का भी नुकसान मप्र शासन को नहीं हुआ

पीएमएस एजेंसी (स्कंध रखरखाव करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी) के दबाव में लिया गया निर्णय नुकसान होगा साबित

कार्पोरेशन द्वारा ओपन कैपो में रखरखाव हेतु किये गए मनमाने खर्च व नुकसान को भी छूपाया जा रहा है

ओपन कैंपो की तुलना कवर्ड गोदामों से करना कही से भी जायज नही है


सिवनी। गोंडवाना समय। 

अन्नदाता किसान बरसात, ठण्डी, गर्मी सहित विपरीत परिस्थिति में अनाज का उत्पादन करता है, अनाज के एक-एक दाना की कीमत और अनाज को सुरक्षित रखने के लिये किसान से अच्छा इसका महत्व शायद ही कोई समझ सकता है।
            


वहीं किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार में वातानुकूलित कक्षों में बैठकर योजना बनाने वाले अफसर अन्नदाता की मेहनत से उत्पादित किये गये अनाज को बचाने के बजाय वे उसे बर्बाद करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे है इसके साथ ही उन्होंने अनाज को सड़ाने से लेकर उसे ओपन कैंप में रखने के लिये पीएमएस एजेंसी (स्कंध रखरखाव करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी) को सुरक्षित रखने का ठेका देने का मनमाना निर्णय लेकर मध्यप्रदेश में थोपने का प्रयास किया है।
            

मध्यप्रदेश की जनता ही नहीं देश में ओपन कैंप में सड़ते हुये अनाज के विषय में सुप्रीम कोर्ट से लेकर मध्यप्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय ने भी कई बार सरकार, शासन को फटकार लगाया है। इसके बाद भी किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में कवर्ड गोदामों में अनाज रखने के लिये दी जाने वाली राशि को घटा दिया गया है वहीं जहां असुरक्षित अनाज रहता है एवं जिससे मध्यप्रदेश शासन को लाखों करोड़ों का नुकसान होता है उक्त योजना को मध्यप्रदेश में लागू करने पर उतारू है। वहीं मध्यप्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ भी शिवराज सरकार की नुकसानदेह नीतियों का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे है। 

कवर्ड गोदामों में माल रखने में किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है


किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान और गेंहू का भंडारण मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा निजी कवर्ड गोदामों में एवं ओपन कैपो (खुले आसमान के नीचे) में किया जाता है। भंडारण के बाद कवर्ड गोदमों में रखे अनाज के रख-रखाव की समस्त जवाबदारी निजी गोदाम मालिकों की रहती है जिसके तहत वेयर हाऊस संचालकों द्वारा भंडारित अनाज का कीटोपचार, पहुंच मार्ग का रखरखाव, सीसी टीव्ही कैमरों की सुविधा, परिसर में धर्मकांटे की व्यवस्था एवं मजदूरों ड्रायवरों के लिए शुद्ध पेयजल व्यवस्था के साथ ही परिसर की पूर्ण सुरक्षा की जवाबदारी आदि कार्य किया जाता है।
            इस हेतु गोदाम संचालकों को मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा पूर्व से ही 84 रूपये प्रति मैट्रिक टन किराया प्रतिमाह दिया जाता रहा है और रखरखाव के दौरान अगर यदि कोई प्राकृतिक सुखत घटी आती है तो उसकी भी वसूली गोदाम किराए से काटकर की जाती है अर्थात वेयर हाऊस कार्पोरेशन को कवर्ड गोदामों में माल रखने में किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है। इसके विपरीत मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा ओपन कैपो में भी अनाज का भंडारण किया जाता है जिसकी समस्त जवाबदारी मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन की होती है।

ओपन कैंपों में लगे अधिकांश तिरपाल फट जाते है और फिर नए तिरपाल लगाये जाते है

यहां यह उल्लेखनीय है कि कवर्ड गोदामों में भंडारण पश्चात किसानों से खरीदा गया शेष अनाज भंडारण हेतु वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर ओपन कैपो में रखा जाता है। इस तरह खुले में रखे गए अनाज का किराया केंद्र सरकार द्वारा मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन को 24 रूपये प्रति मैट्रिक टन दिया जाता है। इसके पश्चात वेयर हाऊस कार्पोरेशन अस्थायी तौर पर इन ओपन कैपों में कांक्रीट के चबूतरे आवागमन हेतु सड़कें व भंडारित अनाज को ढंकने के लिए प्लास्टिक के तिरपाल आदि की व्यवस्था करता है और इसके बाद भी कई बार यह तिरपाल फट जाते है और फिर नए तिरपाल लगाये जाते है। यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है जिस पर लाखों करोड़ों रूपयों का व्यय वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा किया जाता है। जिसका यदि बारीकी से आंकलन किया जाये तो ये लागत कवर्ड गोदामों को दिये जा रहे 84 रूपये प्रति मैट्रिक टन किराए से भी अधिक हो जाती है। 

माननीय हाईकोर्ट द्वारा लिया गया एवं मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन को कड़ी फटकार लगाई गई है

इन सब उपायों के बाद भी पिछले कुछ वर्षो के दौरान ओपन कैपो में रखी गई धान की लाखों टन मात्रा सड़ गई जिसका संज्ञान स्वयं माननीय हाईकोर्ट द्वारा लिया गया एवं मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन को कड़ी फटकार लगाई गई और इन ओपन कैपो पर अनाज भण्डारण हेतु मना किया गया है। इसके बावजूद भी वृहद मात्रा में धान सड़ाई गई। इसके बाद यही खराब हुई धान को आधे से भी कम दामों में नीलाम कर दी गई, जिससे मप्र शासन को लगभग 1000 करोड़ से भी अधिक का नुकसान हुआ है। 

सुखत (घटी) आने पर भी नुकसान भी मप्र शासन को हुआ है

ज्ञातव्य है कि कवर्ड गोदामों में रखे धान में 2 प्रतिशत तक ही सुखत मान्य की जाती है जबकि ओपन कैपो में रखी गई धान में 16 प्रतिशत तक की सुखत (घटी) आई है, जिसका नुकसान भी मप्र शासन को हुआ है। पर कवर्ड वेयर हाऊसों पर रखे अनाज पर आज दिनांक तक स्कंध हानि के रूप में 1 रूपये का भी नुकसान मप्र शासन को नहीं हुआ है।
        अगर इन वेयर हाऊसों में रखे अनाज में प्राकृतिक सुखत के चलते किसी भी प्रकार की स्कंध हानि हुई है तो वो राशि वेयर हाऊसों संचालकों को मिलने वाले किराए से काट ली गई, इसके बावजूद नई नीति में वेयर हाऊसों को मिलने वाले किराए में लगभग 50 प्रतिशत की कटौती कर किराया 40/-प्रति मैट्रिक टन किया जा रहा है, और इसका आधार केंद्र सरकार से इन ओपन कैपो को मिलने वाले 24 रूपये मैट्रिक टन किराए से अंतर की राशि को राज्य शासन को होने वाला नुकसान बताया जा रहा है, पर कार्पोरेशन द्वारा ओपन कैपो में रखरखाव हेतु किये गए मनमाने खर्च व नुकसान को भी छूपाया जा रहा है और नई नीति से वेयर हाऊस संचालकों को फायदा व जिम्मेदारी से मुक्ति बताया जा रहा है, बल्कि सच तो यह है कि ओपन कैपो की तुलना कवर्ड गोदामों से करना कही से भी जायज नही है। 

सिवनी जिले में पीएमएस एजेंसी के द्वारा जो स्कंध घटी हुई वो लगभग 8 से 9 करोड़ रूपयों की थी

इसके साथ ही यह किराया 10 साल पूर्व मिलने वाले किराए के समतुल्य है जो बढ़ती हुई महंगाई में बिल्कुल भी व्यवहारिक नही है। ये कटौती मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा जानबूझकर पीएमएस एजेंसी (स्कंध रखरखाव करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी) के दबाव में किया गया है। विदित हो कि वेयर हाऊस कार्पोरेशन ने सिवनी जिले के गरठिया ग्राम में ओपन कैब में रखे गए सरकारी स्कंध के रखरखाव का कार्य एक निजी पीएमएस एजेंसी (गो ग्रीन) से करवाया था उक्त पीएमएस एजेंसी के द्वारा जो स्कंध घटी हुई वो लगभग 8 से 9 करोड़ रूपयों की थी जिसे इस पीएमएस एजेंसी द्वारा नहीं किया गया। बावजूद इसके मप्र वेयर हाऊस कार्पोरशन के द्वारा पीएमएस एजेंसियों के दबाव में एवं मप्र शासन को पहुंचाये गये सुनियोजित करोड़ों रूपयों के नुकसान को छिपाते हुए पुन: आमंत्रित किया जा रहा है। 

मजदूरों का छिनेगा रोजगार वेयर हाऊस संचालकों को होगा आर्थिक नुकसान 

इसके साथ ही वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा सांठगांठ कर उक्त पीएमएस एजेंसी को सही बताकर उसे मोटा लाभ पहुंचाने के साथ ही उक्त पीएमएस एजेंसी को जबरदस्ती वेयर हाऊस संचालकों के ऊपर थोपा जा रहा है। पीएमएस एजेंसी के आने के बाद वेयर हाऊस संचालकों द्वारा पूर्व में स्कंध के सुरक्षित रखरखाव हेतु जो लाखों रूपयों की सामग्री जैसे कि स्टेककवर फायर बॉटल दवा छिड़काव स्प्रे मशनी एवं स्टोरेज टैंक माल उतारने चढ़ाने हेतु बनाई गई सीढ़ी आदि बड़ी लागत लगाकर खरीदी गई है, सब बेकार हो जायेंगे। इसकेसाथ ही वर्षो से इन वेयर हाऊस में कार्यरत लाखों मजदूरों व कर्मचारियों को भी मजबूरन नौकरी से निकालना होगा, जिससे इन मजदूरों कर्मचारियों के साथ-साथ उनके परिवारों के सामने भी रोजीरोटी का संकट खड़ा हो जाएगा और वे भी बेरोजगारी का शिकार हो जायेंगें।

बैंक की प्रतिमाह किश्त भी निकलना होगी मुश्किल 

पीएमएस एजेंसी के आने के बाद भी मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन द्वारा परिसर की सुरक्षा गोदाम का बीमा एवं पहुंच मार्ग की मरम्मत की जिम्मेदारी वेयर हाऊस संचालकों पर ही थोपी जा रही है। अब इस स्थिति में मप्र के अधिकांश वेयर हाऊस जो पिछले एक दो वर्षो में ही बैंक से कर्ज लेकर निर्मित किये गये है जिनकी प्रतिमाह किश्त की राशि भी उक्त मिलने वाले किराए से निकलना मुश्किल है, फिर परिसर की सुरक्षा, गोदाम बीमा एवं पहुंच मार्ग मरम्मत का कार्य कहां से संभव है। 

मुख्यमंत्री व खाद्य मंत्री वेयर हाऊस कार्पोरेशन के द्वारा लिये गये अमानवीय निर्णय पर तुरन्त रोक लगाये


हालांकि इस समस्या को लेकर वेयर हाऊस संचालकों के संगठन के द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, खाद्य मंत्री, पीएस फूड एवं एमडी मप्र वेयर हाऊस कार्पोरेशन को कई बार प्रत्यक्ष एवं पत्र के माध्यम से वेयर हाऊस संचालकों पर किये जा रहे अन्याय के बारे में अवगत कराया गया पर कोई ध्यान नही दिया गया है। इसके विपरीत उक्त नए घटे हुए किराए पर ही आॅफर व अनुबंध करने का दबाव संबंधित अधिकारियों द्वारा बनाया जा रहा है जो बढ़ती महंगाई व लागत में बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं है।
        एक ओर तो मुख्यमंत्री मप्र शासन महंगाई से मार झेल रहे तमाम वर्गो को राहत देते हुए महंगाई भत्ता प्रदान कर रहे है वहीं दूसरी ओर वेयर हाऊस संचालकों उनके कर्मचारियों व मजदूरों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। वेयर हाऊस कार्पोरेशन के द्वारा लिये गये अमानवीय निर्णय पर तुरन्त रोक लगाई जाये वेयर हाऊसों में वर्षो से कार्यरत लाखों मजदूरों, कर्मचारियों को बेरोजगार होने से बचाया जाए व वेयर हाऊस संचालक जिन्होंने आपकी पुरानी किराया नीति को आधार बना कर बैंक से करोड़ों रूपयों का कर्ज ले रखा है उनको बैंक डिफाल्टर न बनने दिया जाये साथ ही संचालकों के ऊपर जबरदस्ती पीएमएस एजेंसी को न थोपा जाये क्योंकि वेयर हाऊस संचालक वर्षो से रखे जाने वाले स्कंध का रखरखाव पूर्ण जिम्मेदारी से सावधानीपूर्वक वैज्ञानिक पद्धति से करते आ रहे है और आगे भी करने में सक्षम है। 


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