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भारत में तमाम संस्कृतियों के मुकाबिल आदिवासी संस्कृति की अपनी विशिष्ट पहचान है

भारत में तमाम संस्कृतियों के मुकाबिल आदिवासी संस्कृति की अपनी विशिष्ट पहचान है

आदिवासियों के धार्मिक विमर्श में धर्मान्तरण एक संवेदनशील मुद्दा है

आदिवासी विकास की योजनाएंँ उनका विकास नहीं विनाश कर रही हैं


दैनिक गोंडवाना समय अखबार, आपके विचार
लेखिका-विचारक
रोशनी कुलस्ते,
जीएसयू संस्कृति प्रकोष्ठ,
जबलपुर जिला अध्यक्ष 


भारत में तमाम संस्कृतियों के मुकाबिल आदिवासी संस्कृति की अपनी विशिष्ट पहचान है। आदिवासी संस्कृति के पृष्ठों में मनुष्य के उत्थान पतन की कहानियांँ छिपी हुई हैं। आदिवासी समुदाय के जन्मजात गुणधर्मों में सरलता, सहजता, सामुदायिकता, अपरिग्रह, निश्छलता, बन्धुता, सच्चाई, ईमानदारी, परिश्रमशीलता, सामूहिकता, समानता व प्रकृति से घनिष्ठता की भावना विद्यमान है। आदिवासी समाज में वास्तविक दुनिया के पल गुजारने पर उनकी भव्यता, दिव्यता व जीवतंता का अहसास होता है। 

आदिवासियों का दृष्टिकोण उपयोगितावादी तथा विचारधारा जीओ और जीने दो की पक्षपाती है

आदिवासियों का दृष्टिकोण उपयोगितावादी तथा विचारधारा जीओ और जीने दो की पक्षपाती है। मुख्य धारा से दूर जंगलों में निवास करने वाली आदिम जनजातियांँ आज भी सांस्कृतिक विलक्षणताओं के साथ जीवन यापन कर रही है। राजेन्द्र अवस्थी ने जंगल के फूल उपन्यास द्वारा मुख्य धारा के द्वार पर दस्तक दी। इसके बाद मनमोहन पाठक का गगन घटा घहरानी में उरांव, श्री प्रकाश के जहां बांस फूलते है में मिजो, राकेश कुमार के जो इतिहास में नहीं है में संथाल व उरांव, संजीव के धार, सूत्रधार में संथाल आदिवासी, तेजिन्दर का काला पादरी, हरि राम मीणा का धूणी तपे तीर में भील व मीणा आदिवासियों के जन जीवन का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया है। 

आदिवासियों के जंगल, जमीन व भाषा भी छीन लिये गये हैं 

औद्योगीकरण ने नगरीय मनोवृत्तियों को बढ़ाकर व्यक्तिवादिता तथा भौतिकतावाद के प्रति आकर्षण पैदा करके आदिवासी समाज में जटिल समस्याओं को जन्म दिया है। आज आदिवासियों का व्यक्तिगत, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक व सामुदायिक रूप से विघटन हो रहा है। आधुनिकीकरण और संस्कृतिकरण के चलते आदिवासी समुदाय अपनी अस्मिता को नष्ट होने से नहीं बचा पा रहे हैं। आदिवासियों के जंगल, जमीन व भाषा भी छीन लिये गये हैंै। आदिवासियों के धार्मिक विमर्श में धर्मान्तरण एक संवेदनशील मुद्दा है। आदिवासी विकास की योजनाएंँ उनका विकास नहीं विनाश कर रही हैं, उनके विकास की कागजी योजनाएंँ केवल कागजों की दौड़ लगा रही है।


दैनिक गोंडवाना समय अखबार, आपके विचार
लेखिका-विचारक
रोशनी कुलस्ते,
जीएसयू संस्कृति प्रकोष्ठ,
जबलपुर जिला अध्यक्ष 

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