दिग्विजय सिंह ने गोंडी भाषा, गोंड राजाओं के इतिहास व गोंडवाना के गढ़ किला महल के लिये कभी आवाज क्यों नहीं उठाया ?
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बढ़ते जनाधार से बौखला गये है पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी पर राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह द्वारा लगाये आरोप बेबुनियाद है
मध्यप्रदेश। गोंडवाना समय।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी मध्य प्रदेश के प्रदेश प्रवक्ता राधेश्याम काकोड़िया ने जानकारी देते हुए कहा की पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने मंडला दौरे के दौरान प्रेस वार्ता कर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को लेकर बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी हमसे क्या चाहती है, बताए तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सत्ता में कभी नही बैठ पाएगी बस ये भाजपा को जिताने का काम कर रही है।
गोंडवाना पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता ने बताया की गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बढ़ते जन सैलाब को देखकर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बौखला उठे है।
252 रियासतें के राजाओं ने गोंडवाना राष्ट्र की मांग किया था
आगे प्रदेश प्रवक्ता ने राष्ट्रीय व प्रांतीय पदाधिकारियों के उद्देश्यों से अवगत कराते हुये कहा कि मध्यप्रदेश की जनता को बताना चाहते है की कांग्रेस ने शुरूआत से ही आदिवासियों के सामने हमेसा झूठ परोसने का काम किया है। ये क्या दे सकते है गोंडवाना को जब भारत देश आजाद हो रहा था माउंटबेटन के द्वारा जुलाई 1947 में भारत के सभी 565 रियासतों के राजाओं के साथ में बैठक की गई थी जिसमें गोंडवाना शासक की 252 रियासतें के राजा शामिल हुए थे।
तत्कालीन बैठक में जिन्ना के द्वारा मुस्लिम राष्ट्र की मांग करते हुए पाकिस्तान का निर्माण किया गया उक्त बैठक में गोंडवाना शासक के राजाओं ने गोंडवाना राष्ट्र की मांग की जिसमें गांधी जी ने खड़े होकर माउंटबेटन के समक्ष यह बात रखी कि राष्ट्र संचालन करने में आदिवासी गोंडवाना शासक अभी परिपूर्ण नहीं है क्योंकि आपके शासन काल में यह सभी राजा-महाराजा अपने राजपाट से दूर होकर जंगल पहाड़ में चले गए थे इसलिए इन्हें 10 वर्ष का आरक्षण देकर शिक्षित कर उन्हें उनका राजपाट दे दिया जाएगा।
जिन क्षेत्रों में आदिवासियों की बाहुल्या रही उन क्षेत्रों को काग्रेस की सरकार ने टुकड़े टुकड़े कर दिए
उक्त समय में 14 राज्यों का गठन किया गया था जिसमें मध्य सेंट्रल और बरार राज्य बनाया गया। वहीं 15 अगस्त 1947 के बाद आदिवासियों को शिक्षित करने के लिए कमेटी का गठन किया गया जिसमं जिस क्षेत्र में आदिवासियों की बाहुल्यता थी उस क्षेत्र से पंडित रविशंकर शुक्ल को चुना गया और अंतरिम कमेटी बनाकर संविधान का निर्माण किया गया और 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाकर भाषाई आधार पर 1956 में 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया गया।
जिन क्षेत्रों में आदिवासियों की बाहुल्या रही उन क्षेत्रों को काग्रेस की सरकार ने टुकड़े टुकड़े कर दिए जैसे मराठी बोलने वालो को महाराष्ट्र बना दिया जिसमे बरार विदर्भ था, जहां आदिवासियों की बोली भाषा थी उसे महाराष्ट्र में मिला दिया। इसके साथ ही कुछ आदिवासियों का हिस्सा गुजरात, राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, जैसे क्षेत्रों में गोंडी भाषा बोलने वालो को बांट दिया गया।
1996 में दादा हीरा सिंह मरकाम जी के नेतृत्व में गोंडवाना राज्य की मांग किया गया था
सेंट्रल प्रोविजन और बरार जिसकी राजधानी नागपुर थी जिसे कांग्रेस ने चालबाजी कर बांट दिया, हमारे आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा, राजा प्रविणचंद भंजदेव, मंगरू सिंह उइके आदि नेताओ ने गोंडवाना राज्य की मांग करते रहे। वहीं वर्ष 1996 में पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के नेतृत्व में भोपाल के न्यू मार्केट के जयस्तभ में बैठकर गोंडवाना राज्य की मांग धरना दिए रामचंद्र पत्ते, नर्मदा उइके, कलावती श्याम, शरद, मनमोहन शाह बट्टी ये सभी पेनवासी हो गए।
वहीं जो अभी जिंदा है उनमें राजाबलि मरावी, गुलजार सिंह मरकाम और उनका नेतृत्व करने वाले अमान सिंह पोर्ते जो वर्तमान में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष है। उस दौरान मध्यप्रदेश के मुख्यमत्री कांग्रेस सरकार के दिग्विजय सिंह ही थे और केंद्र में भाजपा के प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपाई थे।
कांग्रेस भाजपा ने मिलकर गोंडी भाषा, संस्कृति के तहत गोंडवाना राज्य की मांग को दबा दिया
ये दोनो कांग्रेस और भाजपा भाई-भाई मिलकर आदिवासियों की मांग जो गुलाम भारत के समय गोंडवाना राष्ट्र की मांग थी बाद में जो कि गोंडवाना राज्य में सिमट गई और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के क्रांतिकारियों के द्वारा गोंडवाना राज्य की मांग की थी जिसे पुन: चालबाजी करते हुए मध्यप्रदेश में आदिवासी बहुलता को टुकड़े-टुकड़े कर 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़, झारखंड, बनाकर आदिवासियों की मांग के गोंडवाना राज्य गोंडी भाषा गोंडी संस्कृति को पुन: दबा दिया गया।
वहीं वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने कांग्रेस के विधायकों पछाड़ते हुए मध्यप्रदेश में 3 विधायक बनाएं, छत्तीसगढ़ में दादा हीरा सिंह मरकाम जीते और महाराष्ट्र से एक विधायक जिता कर लाए। जिसके बाद दादा हीरा सिंह मरकाम जी की पीली क्रांति और कुल्हाड़ी निशान ने विधानसभा सदन और दिल्ली के जंतर मंतर में गोंडवाना आंदोलन से 7 लाख लोगों आंदोलन किया और शरद यादव जी ने लोकसभा में वन अधिकार अधिनिया 2005 के तहत कराकर 2006 में वन अधिकार अधिनियम पारित हुए।
कांग्रेस भाजपा ने कूटनीति कर गोंगपा को उभारने नहीं दिया
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में बड़ी तेजी के साथ सत्ता की ओर बढ़ रही थी तो कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार और भाजपा ने साजिश कर 2008 के चुनाव से पहले विधानसभाओं का परिसीमन करवा दिया।
इस तरह से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में रहने वाले सभी मतदाताओं के भविष्य के साथ कांग्रेस भाजपा ने कूटनीति कर गोंगपा को उभारने नहीं दिया लेकिन वर्तमान में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के मतदाता संकल्पित है कि अब सत्ता का परिवर्तन होना चाहिए।
जनता का मानना है कि 75 वर्षों से दोनो राजनैतिक दलों को जिताते आय हैं, जिन्होंने आदिवासियों को आज तक 75- 80 % तक उनके बच्चो को शिक्षित नहीं किया इसका कारण जनता जानती है।
एसटी, एससी, ओबीसी, मायनरटी के अधिकार को कांग्रेस भाजपा दोनो छीना है
क्या जिस दिन देश के आजादी के पूर्व जब संविधान भी बना था तब एसटी, एससी, ओबीसी, मायनरटी नहीं हुआ करते थे ये सभी इस देश के मूलनिवासी थे और मूल मालिक आज भी है और हमेशा रहेंगे। एसटी, एससी, ओबीसी, मायनरटी का इस देश में बराबर का अधिकार था लेकिन कांग्रेस के राजनैतिक षडयंत्र के चलते इन्हें आपस में बांट दिया गया। इस बार मध्यप्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सहयोग के बिना मध्यप्रदेश में सरकार बनाना और सरकार चलाना आसान नही होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह वर्तमान में राज्य सभा सांसद है आपने क्या सदन में 8 वी अनुसूची में गोंडी भाषा लिपि को मान्यता की बात किए, क्या शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासियों गोंडवाना राजाओं के इतिहास को सिलेबस में जोड़ने की बात किए, क्या हमारी मांग थी जल-जंगल-जमीन से जो खनिज सम्पदा में 25-35% प्रतिशत का मालिकाना हक अधिकार दिलाए, क्या हमारे राजा महाराजाओं की धरोहर गढ़, किला, महल को सुरक्षित कराया।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ने कभी आदिवासियों का विकास नहीं किया
क्या कांग्रेस की सरकार में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में सीलिंग एक्ट के माध्यम से आदिवासी राजाओं के पास जो हजारों एकड़ जमीन थी उसे जप्त किया गया। इसके साथ ही आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते है उस अधिनियम के तहत बिसरा मुंडा के 1898 में बने भूमि संपादन अधिनियम के रहते हुए भी सारे विकास के काम चाहे बांध हो, उद्योग हो, या सरकार की कोई भी योजना हो उपयोग के लिए आदिवासियों की जल जंगल जमीन पर ही अतिक्रमण किया गया है और किया जा रहा है।
हमेशा से ये दोनो राजनैतिक दल कांग्रेस-भाजपा या तो सत्ता में रहे या तो विपक्ष में रहे और दोनो की जिम्मेवारी थी की आदिवासियों का विकास हो, संविधान का निर्वहन हो, देश संविधान के अनुसार आगे बढ़े लेकिन नही हुआ। इसलिए इस बार मध्यप्रदेश में गोंडवाना की सरकार बनाने में मतदाता संकल्पित है और प्रदेश में सरकार बनेगी ऐसा तय है।