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क्या कमल नाथ के आने से आदिवासी बाहुल्य सीटों में भाजपा की चुनौती होगी कम ?

क्या कमल नाथ के आने से आदिवासी बाहुल्य सीटों में भाजपा की चुनौती होगी कम ?


भोपाल। गोंडवाना समय। 

कमल नाथ के कांग्रेस छोड़कर यदि भाजपा में आते है तो लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती कम होने का अनुमान है। वर्ष 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद मध्य प्रदेश की आदिवासी बाहुल्य कई सीटों पर कांग्रेस से भाजपा को कड़ी चुनौती मिली थी।
            


लोकसभा चुनाव में वह इससे निपटने के लिए भाजपा कारगर रणनीति बनाने में जुटी है। कमल नाथ को साधने की कोशिश भाजपा के द्वारा की जा रही है। यदि कमल नाथ भाजपा में शामिल हुये तो आदिवासी बाहुल्य सीटों में भाजपा की चुनौती कम होगी और चुनाव जीतने में आसानी हो सकती है।
                मध्य प्रदेश सहित देशभर में माहौल भले ही भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा हो लेकिन लगभग दो दशक के बाद पहली बार आदिवासी सीटों पर भाजपा को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिली थी। पिछले कई चुनाव से प्रदेश की अधिकांश आदिवासी बाहुल्य लोकसभा सीटें भाजपा जीतती रही है पर विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा को महाकौशल व मालवा अंचल क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य सीटों पर नुकसान हुआ है।

आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा, बालाघाट, मण्डला सहित अन्य सीटों पर पड़ेगा प्रभाव 

लोकसभा के लिए मध्य प्रदेश में एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीट सहित आदिवासी बाहुल्य सीटों में से बालाघाट, मण्डला, छिंदवाड़ा, जबलपुर, शहडोल, सीधी, बैतूल, रतलाम, धार, खरगोन में भाजपा के लिए अब भी अनुकूल माहौल नहीं है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झाबुआ से अपने प्रचार अभियान की शुरूआत किया था।
             विधानसभा में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में भी भाजपा को 24, कांग्रेस को 22 और एक पर अन्य को विजय मिली है। वहीं कमल नाथ के भाजपा में शामिल होने की खबरों ने महाकौशल की आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भाजपा की जीत की राह आसान कर दिया है। यदि कमल नाथ भाजपा में शामिल हो जाते है तो छिंदवाड़ा संसदीय सीट सहित महाकौशल क्षेत्र की आदिवासी बाहुल्य सीटों में बड़ा प्रभाव पड़ेगा। 

गोंगपा का बढ़ सकता है महाकौशल क्षेत्र में प्रभाव 

कांग्रेस के क्षत्रप नेता कमल नाथ यदि भाजपा में शामिल होते है तो गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन के और अधिक सक्रिय होने की संभावना है। गोंगपा का नेतृत्व यदि जमीनी स्तर पर सक्रियता के साथ कार्य करते है तो गोंगपा का जो राजनैतिक जनाधार विधानसभा चुनाव में कम हुआ है।
             वह लोकसभा चुनाव में बढ़ सकता है। छिंदवाड़ा में ही गोंगपा बड़ी मजबूती के साथ आगे बढ़ सकती है। छिंदवाड़ा में गोंगपा का अच्छा नेटवर्क है वहां पर जमीनी स्तर पर युवाओं को कार्य करने की आवश्यकता है। महाकौशल के बालाघाट, मण्डला, जबलपुर, शहडोल, बैतुल में गोंगपा मजबूत स्थिति में पहुंच सकती है। 

जयस का है इन क्षेत्रों पर प्रभाव 

छिंदवाड़ा में 7 विधानसभा सीटों पर कांगे्रस का कब्जा है। वहीं बालाघाट, मंडला सहित महाकौशल की सीटों पर भाजपा को नुकसान हुआ है। वहीं धार आदिवासी बहुल सीट है। यहां भी आठ में से पांच सीटें कांग्रेस ने जीती है। पांच एसटी की सीटों में से कांग्रेस को चार और भाजपा को एक सीट मिली है। अन्य तीन अनारक्षित सीटों में से एक कांग्रेस और दो भाजपा को मिली हैं। धार मूल रूप से जय युवा आदिवासी संगठन जयस का प्रभावक्षेत्र है। भाजपा को यहां प्रत्याशी चयन के कारण ज्यादा नुकसान हुआ है। 

केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ही हार गये थे चुनाव 


बालाघाट लोकसभा क्षेत्र में भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की सीट मेें भाजपा से अच्छा कांग्रेस का प्रतिनिधित्व रहा है। वहीं मंडला आदिवासी आरक्षित सीट पर हमेशा से ही भाजपा का कब्जा रहा है लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी हार गए। मंडला संसदीय सीट में भी आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं, विधानसभा चुनाव में पांच पर कांग्रेस और तीन में भाजपा को जीत मिली है। आदिवासी सीट के हिसाब से देखें तो छह में से चार पर कांग्रेस और दो में भाजपा जीती है। अन्य एक अनारक्षित पर कांग्रेस और एससी सीट भाजपा को जीत मिली है।

रतलाम के सैलाना से कमलेश्वर डोडियार जीते चुनाव 

रतलाम-झाबुआ की आठ में से सात सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से भाजपा और कांग्रेस को तीन-तीन सीटें मिली हैं। एक अन्य सीट पर भारत आदिवासी पार्टी से जीते हैं। अनारक्षित सीट मिलाकर भाजपा ने यहां चार सीटें जीती है। दरअसल, आने वाले लोकसभा चुनाव में जयस समर्थक विधायक कमलेश्वर डोडियार ने कहा है कि वे जयस से लोकसभा चुनाव लडेंगे। ऐसा हुआ तो यहां भाजपा को ज्यादा मेहनत करना होगी।


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