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गर्भ ग्रह में पेन शक्तियों ने प्रवेश कर दाई बमलाई से किया पंचमी भेंट, खैरागढ़ रियासत के वंशज की मौजूदगी में सम्पन्न

गर्भ ग्रह में पेन शक्तियों ने प्रवेश कर दाई बमलाई से किया पंचमी भेंट, खैरागढ़ रियासत के वंशज की मौजूदगी में सम्पन्न 

दाई बमलाई की आस्था और इतिहास गोंडवाना कालीन से जुड़ी है

पूरा डोंगर गढ़ बमलाई मंदिर परिसर गोंडी मांदर की थाप और सेवा सेवा से गूंज उठा


कमलेश गोंड, राष्ट्रीय संवाददाता
डोंगरगढ़/छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय।

गोंडवाना कालीन कुल देवी दाई बमलाई गोंड समाज की देवी नहीं बल्कि समस्त समाज की रक्षक हैं। दाई बमलाई को गोंड समाज द्वारा क्वार नवरात्रा में प्रति वर्ष अनुसार पंचमी भेंट किया जाता हैं। इस नवरात्रा में भी गोंड समाज के लोग बड़ी संख्या में ने दाई बम्लाई के दरबार में हाजिरी लगाई और परंपरा अनुसार विशेष पेन शक्तियों के साथ आशीर्वाद प्राप्त किया। 

दाई बमलाई गोंड समाज की मानने वाली देवी हैं 


डोंगरगढ़ में स्थित दाई बमलाई गोंड समाज की मानने वाली देवी हैं जो सगा समाज द्वारा परंपरागत विधि-विधान के साथ अपनी कुल देवी दाई बम्लाई को पंचमी भेंट अर्पित की गई। इस अवसर पर समाज के सैकड़ों श्रद्धालु एकत्रित हुए और दाई के चरणों में माथा टेककर परिवार व समाज की सुख-समृद्धि की सेवा अर्जी की गई।

पंचमी भेंट के दौरान पूरा डोंगर गढ़ सेवा सेवा के जयघोष से  भक्तिमय वातावरण में गुंजायमान हो उठा। यह सेवा अर्जी गोंडवाना की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिये महत्वपूर्ण हैं। जिसे गोंडवाना समाज की आस्था और परंपरा का प्रतीक आने वाली पीढ़ी के लिये जीवित रहेगा।

खैरागढ़ के राजवंश की कुल देवी के नाम पर प्रतिष्ठित हैं 


दाई बमलाई की आस्था और इतिहास गोंडवाना कालीन से जुड़ी है। दाई बमलाई का मूल संबंध गोंड समुदाय के गिरोलागढ़ सेवता मरकाम गोंड राजा की बेटी बमलाई से है। राजा सेवता मरकाम की दो जुड़वा बेटी थीं—बमलाई और समलाई। जिसमें दाई बमलाई डोंगरगढ़ की स्थानीय रूप तथा खैरागढ़ के राजवंश की कुल देवी के नाम पर प्रतिष्ठित हैं। आधुनिक समय में यह तीर्थस्थल व्यापक हिंदू तीर्थयात्रा-वृत्त के साथ भी जोड़ दिया गया है। जिसके स्रोत मंदिर की आधिकारिक साइट और स्थानीय लेखो में माँ बमलेशवरी के नाम पर जिक्र होने लगा और आज वहां ट्रस्ट के अनुसार पूजा पाठ होने लगा हैं। 

प्राकृतिक अनुसार गोंडी विधि विधान से होता था दाई बमलाई का गोंगो 


दाई बमलाई की पेन ठाना में पहले के समय में आज की तरह भव्य और आधुनिक सामग्री से नहीं, बल्कि सरल और परंपरागत तरीके से गोंगो होती थी। गोंडवाना क्षेत्र और डोंगरगढ़ की पुरानी मान्यताओं में इस गोंगो का बड़ा महत्व है। गोंड कालीन में  पूजा का विधि प्रकृति गोंगो अनुसार गोंड, बैगा और भूमका से होती थीं, हल्दी , चावल, महुआ का फूल, दिया, और घर का बना हुआ पकवान के साथ बलि अर्पित करना परंपरा रही है।
         गोंगो  के समय गोंडी गीत, और लोक भजन गाए जाते थे, ढोल-नगाड़े और मादर की थाप में नृत्य के साथ सामूहिक गोंगो का वातावरण बनता था। यानी पहले के समय में दाई बमलाई की पूजा बहुत सादगीपूर्ण, प्राकृतिक और सामूहिक श्रद्धा से जुड़ी हुई थी।
         आज भले ही सजावट, इलेक्ट्रिक आरती के साथ ट्रस्ट का कब्जा जोड़कर मंदिर निर्माण, विस्तार और रखरखाव की गतिविधियाँ में खैरागढ़ रियासत को अलग कर श्री बमलेश्वरी देवी मंदिर ट्रस्ट का गठन कर लिया गया हैं लेकिन इसके पहले दाई बमलाई की पूजा-पाठ गोंड राजा और उनके परिवार व समाज के लोग ही करते थे व देखरेख भी करते थे।

दाई बमलाई के ट्रस्ट में गोंड समाज को दुर क्यों रखा गया ? 


दाई बमलाई (डोंगरगढ़ की माँ बमलेश्वरी) मंदिर में ट्रस्ट का निर्माण मुख्य रूप से गोंड राज परिवार को दरकिनार कर ट्रस्ट का निर्माण कर दिया गया। पहले दाई बमलाई की पेन ठाना का देखरेख स्थानीय गोंड राजपरिवार और पुजारी के जिम्मे थी।
                सन 1964 के आसपास खैरागढ़ के गोंड राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह के अधीन और उनके उपस्थिति में पेनठाना का संचालन किया जा रहा था लेकिन बाद में उनसे भी ट्रस्ट निर्माण के नाम पर मंदिर के संचालन की जिम्मेदारी ट्रस्टियों ने छीन ली।
            ट्रस्ट की स्थापना के बाद, माँ बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति ने मंदिर के दैनिक संचालन, पूजा-पाठ, उत्सवों और सामाजिक कार्यों का प्रबंधन शुरू किया। लेकिन ट्रस्ट में आदिवासी समुदाय को वंचित कर दिया गया, फिलहाल ट्रस्ट में महेंद्र परिहार, बबलू शांडिल्य, गोविंद चोपड़ा, नारायण अग्रवाल, सुभाष अग्रवाल, विनोद तिवारी के पास संचालन हैं, लेकिन सवाल यह कि ट्रस्ट में आदिवासी समुदाय के लोग व वर्तमान खैरागढ़ के रियासत के राजकुमार भवानी बहादुर सिंह को क्यों नहीं लिया जाता आखिर इसकी वजह क्या हो सकता हैं। 

दाई बमलाई को पंचमी भेंट करने पहुँचे राजा भवानी बहादुर सिंह


क्वार नवरात्र पर्व के पावन अवसर पर खैरागढ़ रियासत की कुल देवी दाई बमलाई के दरबार में पंचमी भेंट चढ़ाने राजा भवानी बहादुर सिंह विशेष रूप से पहुँचे। परंपरानुसार राजपरिवार के सदस्य होने के नाते पंचमी के दिन दाई बमलाई को पंचमी भेंट अर्पित किया गया। राजा भवानी बहादुर सिंह ने गोंडवाना भवन से पैदल चलकर मंदिर प्रांगण में पहुँचकर गोंडी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की और हल्दी चावल, महुआ फूल अर्पित की। इस अवसर पर मंदिर परिसर गोंडी मांदर की थाप और सेवा सेवा से गूंज उठा।

तो गोंड समाज खुद अधिकार लेने को मजबूर होगा-भवानी बहादुर सिंह


दाई बमलाई को पंचमी भेंट करने आँगादेव शक्तियों के साथ राजा भवानी बहादुर सिंह स्वयं उपस्थित रहे और इनके साथ बड़ी संख्या में गोंडियन जन दाई के दरबार में अपनी आस्था प्रकट की। पंचमी भेंट में शामिल खैरागढ़ के राजा ने बताया कि पंचमी भेंट रियासतकालीन परंपरा है और आज भी इसका वही महत्व है। दाई बमलाई हमारी कुल देवी हैं, उनका आशीर्वाद ही रियासत और जनता की रक्षा करता आया है।
         पंचमी भेंट हमारी आस्था और परंपरा का प्रतीक है। इसे कोई नहीं रोक सकता उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज स्व. राजा कमल नारायण सिंह जी के समय से चली आ रही परंपरा है जहाँ बैगा पूजा की मुख्य प्राथमिकता  है लेकिन वर्तमान में इस परंपरा को दरकिनार किया जा रहा है और  संस्थापक परिवार के साथ गोंड समाज की आस्था की भी अनदेखी की जा रही है।
                 दाई बमलाई डोंगरगढ़ के मूल संस्थापक और खैरागढ़ के राजा भवानी बहादुर सिंह ने ट्रस्ट के  संचालन पर सवाल उठाते हुये कहा है कि ट्रस्ट ने संस्थापक परिवार तक को शामिल नहीं किया हैं जबकि हमारे दादा ने सेवा भाव से ट्रस्ट की नींव रखी थी। सभी वर्गों को उसमें जगह दिया था मगर आज हम ही बाहर कर दिए गए हैं, ये अपमान अब बर्दास्त नहीं होगा, समाज को उसका हक नहीं मिला तो गोंड समाज खुद अधिकार लेने को मजबूर होगा।

दाई के गर्भगृह में आंगादेव और राजा का प्रवेश, ट्रस्टियों में मची बेचैनी 

पंचमी भेंट में पहली बार मंदिर के संस्थापक परिवार और राजपरिवार के वरिष्ठ सदस्य राजकुमार भवानी बहादुर सिंह भी शामिल हुए। जब आंगादेव गर्भ ग्रह में जाने के लिये पूजारियों से ताला खोलने के लिये कहा गया तो नहीं खोला गया तब आँगादेव ने स्वयं ही ताला से लगा गेट को एक धक्के में ही ताला खोल लिया गया और गर्भ ग्रह में जाकर दाई बमलाई को पंचमी भेंट किये, मंदिर के अंदर और बाहर गोंडियन जनों की भीड़ के बीच भवानी बहादुर ने दाई के दरबार में सेवा अर्जी की, वही आँगादेव ने मंदिर के गिरिल फांद कर दाई बमलाई को भेंट किया।
                दाई बमलाई के गर्भगृह में आंगादेव और खैरागढ़ रियासत के राजा भवानी बहादुर सिंह के प्रवेश की खबर से मंदिर ट्रस्टियों में हलचल मच गई। परंपरागत मान्यता के अनुसार आंगादेव समेत पेन शक्तियों का गर्भगृह में प्रवेश विशेष अवसरों पर ही होता है। इस बार राजवंश के प्रतिनिधि के साथ प्रवेश ने माहौल को और भी विशेष बना दिया, समाज के लोग इसे दाई बमलाई की विशेष कृपा मानते हुए ऐतिहासिक क्षण हैं।

पंचमी भेंट रियासतकालीन परंपरा के पुनर्जीवन का क्षण 

डोंगरगढ़ की पंचमी भेंट ने एक बार फिर साबित किया है कि यह आयोजन सिर्फ़ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक परम्परा का प्रतीक है। इस बीच सम्पूर्ण गोंड समाज भवानी बहादुर सिंह के साथ खड़े दिखाई दिए। उन्होंने कहा पंचमी भेंट हमारी पहचान है। यदि इस पर रोक या सीमाएं लगाईं गईं तो समाज आंदोलन का रास्ता अपनाने में पीछे नहीं हटेगा।
            युवा वर्ग ने इसे अपने सांस्कृतिक अधिकार की बहाली के रूप में देखा, जबकि बुजुर्गों ने इसे रियासतकालीन परंपरा के पुनर्जीवन का क्षण बताया और साथ गोंड समाज के भीतर अपनी परंपराओं को लेकर जागरूकता और एकता बढ़ रही है। पंचमी भेंट को लेकर उठी आवाज क्षेत्रीय राजनीति में गोंड पहचान और अधिकार आंदोलन को नया आयाम दे सकती है एवं स्थानीय स्तर पर यह मुद्दा ट्रस्ट और समाज के बीच शक्ति-संतुलन की बहस को भी तेज करेगा।

गोंडवाना यूथ क्लब के आयोजन को मिली सराहना

क्वार नवरात्र पर्व पर दाई बमलाई दरबार में आयोजित पंचमी भेंट कार्यक्रम में गोंडवाना यूथ क्लब की सक्रिय भूमिका सराहनीय रहती हैं। यूथ क्लब के युवाओं ने पूरे आयोजन में अनुशासन, व्यवस्था और सहयोग की जिम्मेदारी निभाई। श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन देने से लेकर भेंट की व्यवस्थाओं तक, हर जगह उनकी सहभागिता दिखी।

         श्रद्धालुओं और समाज के वरिष्ठ जनों ने क्लब की प्रशंसा करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी यदि अपनी परंपरा और संस्कृति से जुड़कर ऐसे आयोजन करती है तो समाज की एकता और पहचान और मजबूत होगी। राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने भी मंच से गोंडवाना यूथ क्लब की सराहना करते हुए कहा कि समाज का भविष्य युवाओं के हाथ में है। पंचमी भेंट जैसे आयोजनों में उनकी जिम्मेदारी और सहभागिता देखकर गर्व होता है।

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