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आदिवासी जनप्रतिनिधियों और समाजिक संगठनों का चुप रहने का क्या है कारण ?

विशेष संपादकीय, विवेक डेहरिया संपादक

आदिवासी जनप्रतिनिधियों और समाजिक संगठनों का चुप रहने का क्या है कारण ?

आदिवासी आरक्षित विधानसभा क्षेत्र बरघाट में आदिवासी बालिकाओं, युवतियों, महिलाओं के साथ होने वाले दुराचार, अन्याय-अत्याचार के मामले कई तो चुपचाप दफन हो गये है और जो मामले पुलिस थाना तक पहुंचे है उनमें से अधिकांश मामलों में भी पुलिस प्रशासन और प्रताड़ित करने वाले व उनके सहयोगियों ने मामलों को रफा दफा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है चाहे व्ही विलेज रिसोर्ट में 13 वर्षीय बालिका की मौत का मामला हो या ग्वारी में युवती को जिंदा जलाने का मामला हो इस तरह के अनेक ऐसे मामले है जिनपर पुलिस थाना में यदि रिपोर्ट दर्ज भी की गई है तो उन्हें न्याय कहां तक और किस तरह मिल पाया है संभवतय: इसके लिये उन्हें पुन: प्रताड़ित होना पड़ा हमें ऐसा इसलिये लिखना पड़ रहा है कि बलात्कार होने के बाद, गर्भवती होने के बाद आदिवासी युवती को अपनी ही जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिये भारी मशक्कत करना पड़ा ओर बलात्कार के कारण उसे जो शारीरिक बीमारी ने जकड़ा परिवार की आर्थिक कमजोरी के चलते उनके परिजन उसका सही तरीके से उपचार तक नहीं करवा पाये और वह बीमार होते गई हश्र यह हुआ कि गर्भ में पल रहा बच्चा तो मौत के गाल में समा ही गया साथ में कुछ ही देर पश्चात आदिवासी युवती की मौत जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 26 अक्टूबर 2018 को हो गई लेकिन आदिवासी युवती के साथ हुये बलात्कार के बाद उसकी मौत ने आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों, समाजिक संगठनों के साथ साथ आदिवासी हितेषी बताने वाले भाजपा सरकार, शासन प्रशासन के लिये अनेक सवाल छोड़ गई है जिसका जवाब शायद इनके मुंह से निकल पाये अब इनका चुप रहने के पीछे क्या कारण है यह तो ये ही जाने लेकिन इतना जरूर है कि आदिवासी के साथ जिस तरह प्रताड़ना के काण्ड बरघाट विधानसभा क्षेत्र में बढ़े है और हुये है वह आदिवासी समाज के लिये चिंतन और मनन करने के लिये काफी है क्योंकि जिस तरह से आदिवासी आरक्षित क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं का मत पाकर जनप्रतिनिधि बनकर कुर्सी पर बैठते है लेकिन उनकी समस्याओं प्रताड़नाओं पर कभी कोई सवाल नहीं उठाते है आखिर क्यों वहीं दूसरी ओर सिवनी जिले में लगभग 25 से ज्याद आदिवासी समाजिक संगठन चल रहे है जो बड़े बड़े शामियानो पंडालों में खूब भीड़ जुटाते है और मंचों में शेरों की भांति भाषण देते है लेकिन धरातल में जब प्रताड़ना, अत्याचार-अन्याय के मामले आते है तो मौन धारण कर लेते है आखिर क्यों इसके पीछे उनकी क्या मजबूरी रहती है या क्या राज है ये तो सामाजिक संगठन के मुखियाओं से लेकर पदाधिकारी ही जानते है कि क्या राज है इस पर भी आदिवासी समुदाय के सगाजनों को चिंतन-मनन कर निर्णय करना चाहिये ।

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1 Comments
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  1. बहुत अच्छा जानकारी प्रकाशित की गई।। थैंक्स।।

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