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क्या मध्यप्रदेश का बहुचर्चित डम्पर काण्ड अभी भी जिंदा है ?

क्या मध्यप्रदेश का बहुचर्चित डम्पर काण्ड अभी भी जिंदा है ? 

लेखक आजाद सिंह डबास 
सेवानिवृत्त आईएफएस अध्यक्ष,
 सिस्टम परिवर्तन अभियान
 शनिवार 10 नवम्बर को मीडिया से चर्चा के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सवाल उठाया कि डम्पर खरीद में शिवराज सिंह चौहान के पैसे किसने जमा किये ? उन्होंने कहा कि शिवराज को लोकायुक्त ने छोड़ दिया वरना इनकी दुकान उठ गई थी। दिग्विजय ने शिवराज पर हमला बोलते हुए कहा कि शिवराज सिंह चौहान की आर्थिक स्थिति 20 साल पहले क्या थी और आज क्या है ? पता लगाईये तो पता चल जायेगा। उन्होंने कहा कि ऐसे कई मंत्री भी हैं। दिग्विजय ने कहा कि वे मुख्यमंत्री पर आरोप लगा रहे हैं कि उनकी सम्पति की जांच होना चाहिए। ज्ञात रहे कि शिवराज ने 29 नवम्बर 2005 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही 12 दिसम्बर 05 को शिवराज सरकार द्वारा जेपी एसोशियटस को रीवा जिले में 470.941 हेक्टयर जमीन खनन के लिए लीज पर दी गई। कुछ समय बाद 25.824 हेक्टयर निजी जमीन भी इस कम्पनी को आवंटित कर दी गई। मई 2006 में रीवा जिले में ही शिवराज सिंह की पत्नि साधना सिंह के नाम 04 डम्पर रजिस्टर हुए। डम्पर के रजिस्टेÑन में साधना सिंह के पति का नाम शिवराज सिंह नही अपितु एस.आर सिंह लिखा गया। रजिस्ट्रेशन पेपरस में साधना सिंह ने अपना पता भोपाल के बजाय जेपी नगर प्लांट, रीवा बताया। इन डम्परों की कीमत 73,70,439 रुपये थी। इसके मार्जिन मनी के रुप में जो राशि 7,38,740 रुपये चाहिए थी, उसका साधना सिंह द्वारा जेपी एसोसिएटस से लोन लिया गया, जिससे डम्पर फाइनस कराये गये। बाद में साधना सिंह द्वारा जमीन बेच कर यह राशि चुकाई गई। अप्रैल 2006 में हुए उपचुनाव में शिवराज ने चुनाव आयोग को दिये अपने एफीडेविट में अपनी पत्नि के नाम से खरीदे गये इन डम्परों का कोई जिक्र नहीं किया। सर्वप्रथम डम्पर मामले को 2006 के आखिर में मध्यप्रदेश के एक सांसद द्वारा उठाया गया जो तत्समय बीजेपी छोड़ चुके थे। इस काण्ड में तब और अभी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम आया था। खबरों में सीएम की पत्नि साधना सिंह का भी नाम आया था। डम्परों की खरीदी में लगे पैसे को लेकर सवाल उठे थे। बैंकों के दस्तावेजों में डम्पर की खरीदी में शिवराज सिंह की जगह एस.आर सिंह का नाम होने से मामला संदिग्ध माना गया। तत्पश्चात इस मामले को र्स्वगीय जमुनादेवी ने उठाया जो तत्समय विपक्ष की नेता थी। जमुनादेवी ने अपने दावे में डम्पर खरीदी में पता गलत होने को मुख्य मुद्दा बनाया। इसके बाद इटारसी के एक कांग्रेसी नेता ने नवम्बर 2007 में स्पेशल जज आर.के भावे के कोर्ट में इस मामले को उठाया। माननीय न्यायधीश ने इसकी जांच हेतु लोकायुक्त पुलिस को निर्देशित किया। लोकायुक्त ने दिनांक 15.11.07 को इस मामले में एफआईआर क्र. 41/2007 दर्ज कर जांच प्रारंभ की। लोकायुक्त ने अपनी जांच उपरांत प्रकरण में दिनांक 29 दिसम्बर 2010 को खात्मा लगा दिया। लोकायुक्त द्वारा लगाये गये खात्मे को स्पेशल जज आर.पी. एस चौहान की कोर्ट ने दिनांक 01 अगस्त 2011 को मंजूर कर लिया।

अब जब सांप निकल चुका है तब लाठी से क्यों धरती पीटी जा रही

 इसी प्रकरण में इटारसी के कांग्रेस नेता ने दिनांक 19.09.11 को माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में अपराधिक पुनरीक्षण याचिका लगाई गई लेकिन माननीय न्यायालय ने विचार के बाद दिनांक 30.10.12 को याचिका खारिज कर दी गई। इटारसी के जिस कांग्रेसी नेता ने इस प्रकरण को शुरू में बड़े जोर-शोर से उठाया था, कालान्तर में वह न जाने कहां गायब हो गया। तत्पश्चात इस मामले को तत्कालीन कांग्रेस प्रवक्ता के.के मिश्रा द्वारा उच्च न्यायालय में पुन: उठाया गया लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। कुछ माह पूर्व डम्पर मामले को के.के मिश्रा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि हमें पता है मध्यप्रदेश में चुनाव हैं, आप जाकर चुनाव लड़िए। ऐसा कहकर सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सिंह चौहान और उनकी पत्नि साधना सिंह को बड़ी राहत दे दी और चुनाव पूर्व इस मुद्दे को पुन: नही गमार्या जा सका। डम्पर मामले में कांग्रेस के नेताओं को न तो लोकायुक्त एवं कोर्ट कचहरी से कोई सफलता मिली और ना ही वर्ष 2008 एवं 2013 के चुनावों में। कांग्रेस द्वारा इस मुद्दे को चुनावों के दौरान भुनाने का प्रयास किया गया लेकिन उन्हें इस पर जन समर्थन नही मिला। ऐसा लगता है कि डम्पर मामले में शिवराज को घेरने की प्रयाप्त गुंजाईश थी लेकिन कांग्रेस नेताओं द्वारा कहीं ना कहीं मामले को डील करने में कोताही बरती गई और अब जब सांप निकल चुका है तब लाठी से धरती पीटी जा रही है। लोकायुक्त की जिस भूमिका पर दिग्विजय आज सवाल उठा रहे हैं के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई थी कि लोकायुक्त पुलिस में पदस्थ कुछ अधिकारियों द्वारा प्रकरण को रफा-दफा करने में संदिग्ध भूमिका निभाई है लेकिन कांग्रेसियों द्वारा तत्समय कोई कारगर कार्रवाई नही की गई।

अगर ऐसा ही रहा तो फिर कांग्रेस का हाथ खाली रह सकता है 

विडम्बना है कि डम्पर काण्ड की तरह ही व्यापम मामले में भी वर्ष 2013 से लेकर आज तक कोई नतीजा नही निकला है। इस प्रकरण में कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने कोशिश की लेकिन मकसद हल नही हुआ। एक बहुत बड़े वकील ने इस प्रकरण में रुची ली लेकिन सफलता हाथ नही लगी। हाँ, यह जरुर हुआ कि कुछ वर्ष बाद वे राज्यसभा के सदस्य बनने में कामयाब हो गये। उन्हें चुनाव के दौरान अप्रत्यक्ष रुप से बीजेपी का सहयोग भी मिला जिससे उन्हें चुनाव जीतने में आसानी हुई। आज दिग्विजय जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चाहिए कि डम्पर जैसे मरे हुए मुद्दे पर नही अपितु विगत 15 वर्षों में भाजपा शासन काल में जितने भी बडे़-बड़े घोटाले हुए हैं, उन सबके संबंध में सबूतों के साथ जनता के सामने चुनाव में जायें ताकि इस भ्रष्ट सरकार को बदला जा सके। विगत वर्षों में हुए अनेक घोटालों में ई-टेन्डर घोटाला, अवैध रेत खनन घोटाला, पोषण आहार घोटाला, व्यापम घोटाला, भावान्तर घोटाला आदिप्रमुख हैं। कांग्रेस के नेता इन घोटालों का मात्र रुटीन में जिक्र कर रहे हैं। इन्हें जिस तरह से आक्रामक होना चाहिए, वह आक्रमकता दूर-दूर तक दिखाई नही दे रही है। अगर ऐसा ही रहा तो कांग्रेस का हाथ फिर खाली रह सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस की सरकार बनने पर बीजेपी शासनकाल के समस्त घोटालों एवं मंत्रियों की सम्पति की जांच कराई जावेगी।

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