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भारतीय वन सेवा का नाम का नाम बदलकर भारतीय वन एवं आदिवासी सेवा रखे जाने की मांग

भारतीय वन सेवा का नाम का नाम बदलकर भारतीय वन एवं आदिवासी सेवा रखे जाने की मांग

राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने पारित किया प्रस्ताव

नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
भारतीय वन सेवा का नाम, को बदलकर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने की आदिवासी शब्द जोड़ने की मांग किया है । राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भारतीय वन सेवा का नाम बदलने का प्रस्ताव दिया है। आयोग की मांग है कि भारतीय वन सेवा का नाम बदल कर भारतीय वन एवं आदिवासी सेवा रख दिया जाए। आयोग का तर्क है कि वनों में आदिवासी समाज भी रहता है और वे खुद को अनाथ महसूस करते हैं। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने बताया कि आयोग के सभी सदस्यों के साथ हुई बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि आदिवासी समाज वनों की देखरेख करता है लेकिन सरकार में उसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों में आदिवासी समाज की बहुलता है, जो अपने जीवन निर्वाहन के लिए वनों पर पूर्णतया आश्रित है। नंद कुमार साय के मुताबिक भारतीय वन सेवा में आदिवासियों को शामिल करने से इस सेवा की सार्थकता पूर्ण हो जाएगी, जो वनों का संरक्षण करने के साथ आदिवासियों के विकास पर भी काम करेगी। भारतीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाले वन सरंक्षण अधिनियम 1980, में वनों को सरंक्षित किया जाता है और मनुष्यों को वनों से बाहर रखने का प्रयास किया जाता है। हालांकि सरकार ने फरवरी, 2004 को जारी एक नोटिफिकेशन में माना था कि सदियों से आदिवासियों का वनों के साथ बेहतरीन सामंजस्य रहा है और वन्य भूमि पर उनके अधिकारों को मान्यता दी जाए।

जंगलों में गैर आदिवासियों की घुसपैठ निरंतर बढ़ रही

राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष व पूर्व भाजपा सांसद नंद कुमार साय का कहना है कि आदिवासी समाज आज भी प्रकृति की पूजा करता है और उन्हें अपना भगवान मानता है। उन्होंने बताया कि आदिवासी कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाला वन अधिकार अधिनियम, 2006 जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को भूमि और आजीविका अधिकारों की गारंटी देता है। लेकिन असलियत में उन्हें वनों से बेदखल किया जा रहा है और जंगलों में गैर-आदिवासी लोगों की लगातार घुसपैठ हो रही है। वहीं पूर्व भारतीय वन सेवा अधिकारी मनोज मिश्रा कहते हैं कि आईएफएस का गठन वन्य प्राणियों और वन संसाधनों के संरक्षण के लिए किया गया था। वन सेवा से जुड़े अधिकारियों को राष्ट्रीय पार्क, वन एवं अभयारणय से जुड़े प्रशासनिक और राजस्व से जुड़े कार्य देखने होते हैं। लेकिन सरकार के कई विभाग आदिवासी कल्याण पर काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि यह सही है कि आदिवासी वनों के ज्यादा निकट हैं और चिड़ियों और जानवरों की गणना एवं उनके व्यवहार को समझने में वनवासियों की ही मदद ली जाती है, जिससे उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।










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