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क्या जितना आज हुंकार भरते है? उसे धरातल में सच साबित करके दिखा सकते हैं ।

क्या जितना आज हुंकार भरते है? उसे धरातल में सच साबित करके दिखा सकते हैं । 

गोंडवाना के निर्माण में युवा शक्ति की प्रासंगिकता- एक चिंतन

ऐतिहासिक गोंडवाना भू-भाग आज अपने अस्तित्व अस्मिता व सम्मान के रक्षार्थ बांह फैलाये खड़ा है कि कुछ साहसी व क्षमतावान युवा शक्ति मिल जायें तो संपूर्ण भू-भाग में क्रांति आ जायेगी । विश्व का आधा हिस्सा गोंडवाना भू-भाग के नाम से जाना जाता है । ऐतिहासिक गोंडवाना के परिप्रेक्ष्य में विद्वान मानते हैं कि जब अफ्रीका, अमेरिका और आस्ट्रेलिया एक थे तब इंडिया के हिस्से में डायनासोरो का राज था लेकिन 50 करोड़ वर्ष पूर्व यह युग बीत गया। प्रथम जीव की उत्पत्ति पेंजिया भूखंड के काल में गोंडवाना भूमि पर हुई थी। गोंडवाना महाद्वीप एक ऐतिहासिक महाद्वीप है, भू वैज्ञानिकों के मतानुसार 50 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर गोंडवाना लैंड व लारेशिया लैंड दो ही महाद्वीप थे। समृद्धशाली गोंडवाना का विस्तार अंटार्कटिका आस्ट्रेलिया दक्षिणी अमेरिका अफ्रीका व मैडागास्कर तक रहा है। गोंडवाना यह भू-भाग ही नहीं बल्कि एक असीमित अव्याख्य व अटल व्यवस्था है और ऐसी व्यवस्था जो प्रकृति सम्मत हैं और करोड़ों वर्षों से चलायमान है । यदि यह प्रकृति सम्मत हैं तो निश्चित ही प्रकृति के संरक्षण संतुलन व संवर्धन का सिध्दान्त इसमें निहित है। उद्भव से आज तक विभिन्न समयावधि में चरण दर चरण अपने प्राकृतिक नियम, बुजुर्गों व पुरखों के मार्गदर्शन में गोंडवाना भू-भाग के युवाओं ने भू-भाग के सम्मान के साथ साथ कोयापुनेम, अध्यात्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक व विविध क्षेत्रों में एक अविस्मरणीय कार्य कर रहा है। बिना युवा शक्ति व पूर्वजों के चिंतन के गोंडवाना विश्व संस्कृति की जननी नहीं कहलाता और न ही अपने अनगिनत कोयतोड़ियन टेक्नोलॉजी के देन से विश्व को अभिभूत कर पाता । गोंडवाना के इस महान उपलब्धियों के पीछे प्रकृति सम्मत व्यवस्था व ऊजार्वान युवाओं का बहुत बड़ा योगदान है। व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए गोटुल रूपी संस्था ने चमत्कारिक व सकारात्मक व्यवस्था दिया है, जिस पर अनेकानेक शोध की संभावनाएं है। वर्तमान परिदृश्य में गोंडवाना भू-भाग का युवा इस पंक्ति को चरितार्थ करता दृष्टिगोचर होता है कि- अपने प्रयोजन में दृढ़ विश्वास रखने वाला कृशकाय शरीर भी इतिहास का रूख बदल सकता है । इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भू भाग का होनहार युवा धीरे-धीरे विभिन्न व्यसनों एवं व्यवस्थाओं के चपेट में आकर अपना प्रकृति सम्मत व्यवस्था तो खो ही रहा है वही वह अपना भविष्य व अस्तित्व अंधकार मय बना रहा है क्योंकि अस्तित्व तो तब जीवित रहता है जब वह अपने जन्मजात गुणों को चिरस्थायी बनाकर रखे। प्रकृति सम्मत व्यवस्था की तुलना में युवाओं की रूचि किताबी ज्ञान में ज्यादा है। किताबी ज्ञान जीविका चलाने का माध्यम हो सकता है, पर जीवन का सम्मानित अंश में व्याप्त नहीं है । वर्तमान दौर में समस्त युवा पीढ़ी गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, व परसंस्कृतिग्रहण आदि समस्याओं के जाल में निरंतर फंसते जा रहे हैं व विभिन्न आधुनिक क्षद्म चकाचौंध में विभिन्न त्रुटिपूर्ण नीतियों व आडंबरों का शिकार होते जा रहे हैं। गोंडवाना भू-भाग के मान सम्मान का जिम्मा जिन कंधो में है वह युवा पूर्णतया दिग्भ्रमित है, वर्तमान डिग्री डिप्लोमारूपी ज्ञान के घमंड में मदमस्त है। इस मादकांध से बाहर झाँककर ही नहीं देखना चाह रहा है।

युवाओं को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाना एक चुनौती

इस स्थिति में युवाओं को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाना एक चुनौती है। फलस्वरूप युवा शक्ति भ्रमित व कुंठा ग्रस्त होकर पूरी प्रकृति सम्मत व्यवस्था का पुरजोर विरोध करता है व विभिन्न आंदोलनों से जाने अनजाने में अपने ही अस्तित्व व अस्मिता को कमजोर कर देता है। दिशाहीन होकर विभिन्न आंदोलनों में रूचि युवाओं की आज पहली पसंद होती जा रही है। अपने इस आंदोलन को जीवित रखने के लिए असामाजिक तत्वों की सहायता लेने व देने में कोई संकोच नहीं करते हैं। परिणामत: युवा प्रकृति रूपी कोयापुनेम व्यवस्था से विमुख हो जाता है। शनै: शनै: यह भी दृष्टिगोचर होता है कि असामाजिक तत्वों के गैर वैधानिक गतिविधियां संपूर्ण गोंडवाना भू-भाग के युवाओं को और कुंठाग्रस्त कर रही है। जिससे आज के युवाओं में कोयापुनेम व प्राकृतिक व्यवस्थाओं के प्रति असंतोष व मोह भंग होता जा रहा है। उपरोक्त परिदृश्य से यह पंक्ति भी सच की कसौटी में खरा उतरता है,पर्यावरण विद अल्बर्ट स्चवीटजर ने टिप्पणी की कि मनुष्य पूर्वदृष्टा व पूवार्नुमान की क्षमता को खो चुका है ।  उपरोक्त परिदृश्य से गोंडवाना का समृध्दशाली अस्तित्व तो कमजोर हो ही रहा है, वही इसको सजाने व संवारने में अमूल्य योगदान कर्ता विभिन्न भाषाविदों, समाजशास्त्रियों, साहित्यकारों आंदोलन कर्ताओ व दार्शनिक वेत्ताओ के सकारात्मक मंसूबों पर भी पानी फिर रहा है । प्रकृति के रखवाले के रूप में जग-जाहिर देशज समुदाय आज देशजत्व से विमुख हो रहा है। यहाँ यह जिक्र किया जाना प्रासंगिक प्रतीत होता है कि आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, यह गोंडवाना व युवा शक्ति के लिए स्वर्णिम युग है । भू भाग का 50 प्रतिशत से अधिक आबादी युवा हैं, जो आने वाले समय मे गोंडवाना के दशा व दिशा के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे । आवश्यकता है वर्तमान युवा शक्ति को सशक्त एवं समर्थ बनाने की, उसके आत्मबल, मनोबल को मजबूत बनाने की। वहीं आत्मबल को ऊंचा उठाने के लिए चाहिए सकारात्मक सोच व चिंतन ।

गोंडवाना के युवा शक्ति की आवाज को अनुभव की कमी बताकर हमेशा दबाया जाता है

ऐतिहासिक गोंडवाना भू-भाग के प्राकृतिक व्यवस्था व सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था को निर्बाध रूप से अविरल प्रवाहमान बनाए रखने के लिए गढ़, गढ़ा, गोटुल, गोदा, गोंदाला रूपी व्यवस्था में विस्तार व चिंतन मनन उपरांत जीव जगत व भू-भाग के संतुलन संरक्षण व संवर्धन के लिए कोयापुनेमी व्यवस्था के जनक व प्रकृति पुरोधा पहादीं पारी कुपार लिंगो व दाई रायताड़ जंगो ने विशुद्ध प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक व दार्शनिकता का विस्तृत स्वरूप दिया है। जिसमें निहित है कि समस्त मनुष्य को प्रकृति के साथ कैसे ताल मेल बनायें व बिना नुकसान पहुंचायें जीवन यापन करें । इसके बावजूद समूचा विश्व आज विमुख होता जा रहा है। इस संकटग्रस्त स्थिति में गोंडवाना व्यवस्था के युवा व युवा शक्ति के अदम्य साहस की शख्त आवश्यकता है, क्योंकि द्वितीय पहलु यह भी है कि इस गिरि तुल्य अदम्य साहस व चिंतन को रचनात्मक दिशा नहीं दी गई तो, पुन: यही अदम्य साहस वाली नेतृत्व किस दिशा में बहेगी, आंकलन करना बहुत मुश्किल है व गोंडवाना के अस्तित्व को प्रश्न चिन्ह लगाता नजर आयेगा । जबकि हम सबका ध्येय कोयापुनेम की अलख जगाकर संपूर्ण भू भाग के युवा शक्ति को सही दिशा में मोड़ने का है। आज के इस जीर्ण-शीर्ण गोंडवाना के बीच सचमुच यदि गोंडवाना का युवा जाग जाये व प्रकृति सम्मत व्यवस्थाओ के साथ साथ रचनात्मक कार्यों में जुट जाये, तो गोंडवाना को समृद्ध व उन्नत होने से कोई नहीं रोक सकता। कुछ दशक से विभिन्न संवैधानिक हक अधिकारों की मांग को लेकर जन-आंदोलन के रूप में एकजुट युवाओं ने सिध्द कर दी है कि गोंडवाना भू-भाग की युवा पीढ़ी सोई नहीं है। उन्हें भी अपनी माटी की उतनी ही चिंता है, जितना चिंता उनके पूर्वज एवं समाज के विभिन्न विद्वानों को है लेकिन गोंडवाना के युवा शक्ति की आवाज को अनुभव की कमी बताकर हमेशा दबाया जाता है । पग पग के इस ऊहापोह में गोंडवाना का यह भावना हितकर है किंतु प्रत्येक कार्य व संकल्प हेतु नैतिक जीवन मूल्यों में कोयापुनेम का समावेश होना आवश्यक है। आग्रह है कि हम युवा अपनी शक्ति को जाने पहचाने समझे व झांककर देखें कि समस्त शक्तियां हमारे अंदर निहित है । गोंडवाना के वैचारिक लहरों से युवा आज ऊजार्वान हो गया है, इस ऊर्जा उमंग व उत्साह को नष्ट न होने दें व विश्वास करना ही होगा कि- युवा शक्ति सबकुछ करने में सक्षम है। न सोचें कि हम दुर्बल हैं। जरा जरा जीर्ण-शीर्ण व भयभीत होकर शनै:-शनै: अस्तित्व विलुप्त होते देखने के बजाय, वीर की तरह स्वाभिमान के लिए लड़कर दर्शा दीजिए कि माटी की ताकत क्या है। उच्चारण में माटी है, पर यह माटी में समाहित व्यवस्था आपके सत्य कृत्यों से गौरवान्वित होता है ।

क्या गोंडवाना के रक्त में उबाल आज भी है?

विभिन्न प्रकृति पुरोधाओं, गूढ़ साहित्यकारों, चिंतनकारो, व पुरखाओं के बनाए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है जहाँ सभी वर्ग संवर्ग के समुदाय एक नेंग की  व्यवस्था से जुड़े हैं जिन्हें हम नेगी कहते हैं। नेगी के बिना कोयापुनेम की कल्पना करना दुष्कर है। तभी हम स्वर्णिम गोंडवाना का पुनरूत्थान कर सकते हैं । आज आवश्यकता है कि युवाओं को कि वे स्वयं के युवा होने की कसौटी पर जाचने की कि क्या वे समाज में जड़ जमायी अनीति से टकरा सकते हैं? विभिन्न व्यसनों से दूर हो सकते हैं? छद्म काल की चाल को बदल सकते हैं? क्या गोंडवाना के रक्त में उबाल आज भी है? क्या जोश के साथ होश भी है? क्या गोंडवाना के लिए बलिदान की आस्था है? क्या आज की ज्वलंत समस्या का समाधान निकाल सकते है? क्या जितना आज हुंकार भरते है? उसे धरातल में सच साबित करके दिखा सकते हैं । आज गोंडवाना के युवा शक्ति को विद्वानों के कहे इस मर्म को समझने व जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है खुद वो बदलाव बनिए, जो गोंडवाना में आप देखना चाहतें हैं ।

साभार- सगा सग्गुम आदिम सामाजिक संस्था भोपाल म प्र (इंडिया)
आलेख- सम्मल सिंह मरकाम, वनग्राम जंगलीखेड़ा बैहर जिला बालाघाट म प्र ।

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