Sunday, February 17, 2019

जनजातीय शब्दलोक से साक्षात्कार है कवि पयोधि की काव्यकृति 'लमझना'

जनजातीय शब्दलोक से साक्षात्कार है कवि पयोधि की काव्यकृति 'लमझना'

बहुचर्चित काव्य नाटक 'गुण्डाधूर' का हुआ लोकार्पण 

भोपाल। गोंडवाना समय। 
जनजातीय भावलोक में प्रवेश करना आसान नहीं है मगर कवि पयोधि ने काव्यकृति 'लमझना' के माध्यम से भाव-संवेदना के उस संसार में न केवल प्रवेश किया है बल्कि उसके अंतरंग और बहिरंग से साक्षात्कार भी कराया है। इस आशय के उद्गार व्यक्त किये प्रख्यात संस्कृतिविद और साहित्य मनीषी डॉ. श्याम सुंदर दुबे ने अवसर था प्रतिष्ठित कवि और जनजातीय संस्कृति के अध्येता लक्ष्मी नारायण पयोधि की एक साथ पाँच काव्यकृतियों के लोकार्पण का।
कला समय संस्कृति, शिक्षा और समाज सेवा समित,भोपाल द्वारा आयोजित दो दिवसीय 'संस्कृति-पर्व 3' के समापन समारोह जनजातीय छटाओं से प्रकाशमान रहा। वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक चटर्जी के निर्देशन में प्रस्तुत श्री पयोधि के काव्य नाटक 'जमोला का लमझना' ने जनजातीय जीवन-प्रसंगों  और सांस्कृतिक दृश्यबंधों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। निर्देशक आलोक चटर्जी के अनुसार जनजातिय थीम पर यह उनकी सर्वथा पहली प्रस्तुति है और यह उनकी रंगयात्रा का एक नवीन अनुभव भी। इस अवसर पर संस्था द्वारा श्री लक्ष्मी नारायण पयोधि को उनके महत्वपूर्ण साहित्यिक अवदान के लिये 'कला समय शब्द शिखर सम्मान' और श्री आलोक चटर्जी को उनकी सुदीर्घ रंग-साधना के लिये 'कला समय रंग शिखर सम्मान' से विभूषित किया गया।
    'संस्कृति-पर्व 3'के इस मुख्य समारोह के मुख्य अतिथि लोक और जनजातीय संस्कृति के मर्मज्ञ डॉ. कपिल तिवारी और विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध ललित निबंधकार श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.श्याम सुंदर दुबे ने की।
   
वरिष्ठ जनजातीय कलाकार श्री मुरारीलाल भार्वे की शहनाई की मधुर स्वरलहरियों के साथ आंरभ इस अनूठे उत्सव में श्री पयोधि की जनजातीय भावलोक पर केन्द्रित चर्चित काव्यकृति 'लमझना' का लोकार्पण श्री मुरारीलाल ने किया। उल्लेखनीय है कि इस कृति में मुरारीलालजी पर लिखी कविता 'मुरारी की शहनाई भी है,जिसका पाठ कवि पयोधि ने किया। पयोधि की अन्य कृतियों-'समय का नाद' (कविताएँ),'खयालों की धूप' एवं 'हवा के परों पर'(गजलें) और बहुचर्चित काव्य नाटक 'गुण्डाधूर' का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। उल्लेखनीय है कि श्री पयोधि की अब तक 38 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कार्यक्रम के आरंभ में संस्था के संस्थापक सचिव भँवरलाल श्रीवास द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया। वरिष्ठ उद्घोषिका श्रीमती प्रमिला दिवाकर मुंशी द्वारा प्रभावी संचालन और संस्था के अध्यक्ष एवं ख़्यात संगीतविद श्री सज्जनलाल ब्रह्मभट्ट द्वारा आभार ज्ञापित किया गया।

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