Type Here to Get Search Results !

कमलनाथ ता पुटतू साथ, अब बढ़ेमायर गोंडी भाषा ता मिठास

कमलनाथ ता पुटतू साथ, अब बढ़ेमायर गोंडी भाषा ता मिठास

विशेष संपादकीय
दुनिया की सबसे मीठी बोली और प्रकृति के अनुपम उपहार को प्रदर्शित करने वाली प्राकृतिक भाषा गोंडी जो कि हड़प्पा संस्कृति तक में अपना इतिहास संजोय हुये है यह हम नहीं कह रहे है वरन इसे प्रमाणित कर बताने में गोंडियनजनों के और गोंडी धर्म, संस्कृति की विरासत, इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखित कर रचना रचने
वाले लिंगोवासी राष्ट्रीय पुनेमाचार्य दादा मोतीरावण कंगाली जी ने अपनी अहम भूमिका निभाया क्योंकि हड़प्पा संस्कृत में लिखी हुई इबारत हो या लिखा हुआ इतिहास को सिर्फ दादा मोतीरावण कंगाली जी ही ने पढ़कर बताया था और वह गोंडी भाषा का ही स्वरूप निरूपित किया था । इसलिये गोंडी भाषा का इतिहास करोड़ों वर्ष पुराना है यह नकारा नहीं जा सकता ये अलग बात है कि गोंडी भाषा के करोड़ों गोंडियजनों उनकी मातृभाषा को उनकी ही जन्मभूमि में आज भी संवैधानिक मान्यता लेने के लिये गिड़गिड़ाना पड़ रहा है यह गोंडी भाषा के साथ तो अन्याय है ही जिनकी आस्था, विश्वास, प्रेम गोंडी भाषा के साथ जुड़ा हुआ है उनके साथ भी कुठाराघात है । हम आपको यहां यह भी बता दे कि संविधान सभा में आदरणीय जयपाल सिंह मुण्डा ने तो 14 सितंबर 1949 को ही यह कहा था कि देश में 32 लाख से अधिक जनजाति समुदाय के द्वारा बोली जाने वाली गोंडी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिया जाना चाहिये । इसके बाद निरंतर प्रयास किया जाता रहा हालांकि गोंडियन समुदाय के बुद्धिजीवियों ने अभी हार नहीं माना है भले ही संवैधानिक रूप से मान्यता सरकार नहीं दे रही हो लेकिन गोंडी भाषा के स्वर-अक्षर से लेकर व्याकरण ही नहीं उसकी डिक्सनरी भी तैयार कर लिया है । यहां तक कि गोंडी भाषा का प्रशिक्षण देने के लिये युद्ध स्तर पर कार्य समाजिक संगठनों के द्वारा किया जा रहा है और उन्हें यह भी विश्वास है कि आने वाले समय में गोंडी भाषा को संविधान की आठवी अनुसूचि में शामिल करने के लिये सरकार स्वयं निर्णय लेगी।

मुख्यमंत्री कमल नाथ का गोंडी भाषा को लेकर निर्णय ऐतिहासिक कदम

भारत में जनजातियों की सर्वाधिक जनसंख्या यदि कहीं है तो वह राज्य मध्य प्रदेश है और मध्य प्रदेश की धरती में सर्वाधिक गोंड जनजाति के सगाजन निवास करते है । इतना ही नहीं जनजातियों की जन्म स्थल यदि इतहासकारों की माने तो मध्य प्रदेश की पवित्र नदी अमूरकोट (अमरकंटक) से निकलने वाली नर मादा नदी जिसे नर्मदा नदी कहा जाता है वह भी मध्य प्रदेश में ही आता है । कोयावंशी कहें या गोंडियन सगाजन अपनी जन्मभूमि या अपना जन्म का प्रमुख स्थान अमूरकूट (अमरकंटक) को ही मानते है । अमरकंटक में गोंडियनजनों का धार्मिक स्थल ही नहीं उनका वर्षों तक राजपाठ करने वाला गोंडवाना शासनकाल का राजचिह्न हाथी के ऊपर शेर का प्रतीक चिह्न आज भी अपना प्रमाण बया कर रहा है । इसके साथ ही मध्य प्रदेश में गोंड जनजातियों की प्राकृतिक मातृभाषा गोंडी भाषा को बोलने-जानने-पढ़ने-समझने वाले सिर्फ जनजाति समुदाय के सगाजन ही नहीं है वरन इन क्षेत्रों में निवास करने वाले अन्य वर्गों के नागरिक भी गोंडी भाषा को बोलते-समझते है । गोंडी भाषा की मान्यता को लेकर वर्षों से गोंडियन सगाजन सामाजिक संगठनों के साथ साथ राजनैतिक दलो के रूप में काम कर रहे अपने-अपने स्तर पर निरंतर प्रयास करते आ रहे है परंतु संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाई । इसके साथ ही मध्य प्रदेश में ही राज्य भाषा का ही दर्जा के लिये भी प्रयास किया जाता रहा है । गोंडी भाषा का प्रशिक्षण केंद्र छोटे स्तर पर गांव व शहर में प्रारंभ कर गोंडी भाषा को सुरक्षित-संरक्षित करने का प्रयास समाजिक स्तर पर रूका नहीं है वरन वह बढ़ता ही गया है। मध्य प्रदेश में इसके पहले कांग्रेस की भी सरकार रही और तीन पंचवर्षीय कार्यकाल भाजपा ने भी सरकार के रूप में सत्ता की कुर्सी में बैठकर चलाया है पूर्व में भाजपा ने मध्य प्रदेश में सरकार बनाकर सत्ता शासन चलाया है लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने गोंडी भाषा को कम से कम स्कूलों के पाठ्यक्रमों में ही शामिल कर लिया जाये यह कोशिश नहीं किया । अब मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमल नाथ ने अपने 69 वें दिन के कार्यकाल में गोंडी भाषा के संवर्धन को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिया है । इससे गोंडी भाषा का संवैधानिक मान्यता मिलने में सहायता मिलेगी वहीं स्कूल के पाठ्यक्रमों में शामिल हो जाने से जनजाति बाहुल्य क्षेत्र का बच्चा स्कूल में ही गोंडी भाषा को सीख सकेगा । प्राथमिक स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल होने से सिर्फ जनजाति समुदाय ही नहीं दूसरे वर्गों के बच्चों में गोंडी भाषा के प्रति उत्सुकता बढ़ेगी और वे भी प्राकृतिक भाषा यानि गोंडी भाषा की मिठास का अनुभव कर सकेंगे और उसकी महत्वता को भी समझेंगे ।

कांग्रेस के वचन पत्र में भी शामिल है गोंडी भाषा का संवर्धन 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव के पहले वचन पत्र जारी किया था । कांग्रेस के वचन पत्र में पेज क्रमांक 62 के 25 वे बिंदु के 25.21 पर गोंडी भाषा के संवर्धन हेतु विशेष अकादमी स्थापित की जायेगी तथा गोंडी, भील, कोरकू भाषा का संवर्धन करेंगे व अन्य जनजातियों की बोली को भी संरक्षित करेंगे । इसके साथ ही विभाग द्वारा संचालित विद्यालय में आदिवासी संस्कृति को आदिवासी भाषा/बोली पर आधारित पाठ्यक्रम में जोड़ेंगे । कांग्रेस पार्टी की सरकार व मुख्यमंत्री कमल नाथ के बनने बाद लगभग 69 दिनों में गोंडी भाषा के संवर्धन, विकास व सुरक्षित-संरक्षित करने की दिशा में प्रथम कड़ी में इसे प्राथमिक स्कूल के पाठ्यक्रम में अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जिलों में शामिल करने का निर्णय लिया गया है। 

रोजगार में सहायक बनेगी गोंडी भाषा, सिवनी जिले मेें ही 723 प्राथमिक स्कूल

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ के द्वारा गोंडी भाषा को प्राथमिक स्कूलों के पाठ्यक्रमों में शामिल किये जाने के निर्णय से जनजाति समुदाय के उन युवक-युवतियों को भी लाभ मिलेगा जो गोंडी भाषा जानते है या गोंडी भाषा सिखाने का प्रशिक्षण दे रहे है क्योंकि जिस तरह स्कूलों में खेल, व्यायाम, संगीत, योग के शिक्षको को सरकार रख रही है उसी तरह संभावना है कि गोंडी भाषा को पढ़ाने के लिये भी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती करने के लिये भी निर्णय ले सकती है । मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की ही यदि हम बात करे तो यहां पर पांच ब्लॉक जनजाति बाहुल्य है जहां पर लगभग 723 प्राथमिक स्कूल है इसके साथ ही हम यदि मण्डला, डिंडौरी, बैतुल सहित वे जिले जो शत प्रतिशत जनजाति जिला है उनमें तो सबसे ज्यादा प्राथमिक स्कूल है वहीं यदि मध्य प्रदेश की बात करें तो 89 जनजाति बाहुल्य ब्लॉक है इन ब्लॉकों में प्राथमिक स्कूलों की संख्या हजारों में हो सकती है ऐसे में मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा लिये गये निर्णय कि प्राथमिक स्कूल के पाठ्यक्रम में गोंडी भाषा को शामिल किया जायेगा तो गोंडी भाषा को पढ़ाने के लिये शिक्षकों की भी आवश्यकता होगी । इस आधार पर यदि गोंडी भाषा को पढ़ाने के लिये शिक्षको की भर्ती मध्य प्रदेश सरकार ने किया तो जनजाति वर्ग सहित अन्य वर्गों को भी रोजगार उपलब्ध हो सकता है जो गोंडी भाषा को पढ़ना-लिखना-बोलना जानते है उनके लिये मुख्यमंत्री कमल नाथ का गोंडी भाषा को प्राथमिक स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने निर्णय आर्थिक रूप में भी कारगर व रोजगारवान बनाने वाला निर्णय साबित हो सकता है ।

गोंडी भाषा को लेकर संविधान सभा में 14 सितंबर 1949 को जयपाल सिंह मुण्डा जी ने क्या कहा था 

आदिवासियों के हृदय पर राज करने वाले उनके आइकॉन को भारतीय इतिहास में वह महत्त्व नहीं दिया गया जिसके वे हकदार हैं। उनको न केवल अलग-थलग किया गया बल्कि हाशिए पर भी डाल दिया गया है। आदरणीय जयपाल सिंह मुण्डा ने अर्थशास्त्र की परीक्षा अच्छे अंकों से पास किया था और वे इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) की परीक्षा में बैठे थे उन दिनों ऐसे छात्रों के लिए इस परीक्षा का आयोजन ब्रिटिश सरकार भारत में करती थी जो नौकरशाही का हिस्सा बनने की ख्वाहिश रखते थे। उनसे पहले इस परीक्षा को पास करने वाले भारतीय धनी और अभिजातीय भूस्वामियों के वर्ग से आते थे।
आदरणीय जयपाल सिंह मुण्डा एक विशिष्ट अपवाद थे। साक्षात्कार में सर्वाधिक अंक लेकर उन्होंने आईसीएस की परीक्षा पास किया था । इतना ही नहीं आदरणीय जयपाल सिंह मुंडा उस समय भारतीय हाकी टीम के कप्तान  थे और उन्होंने वर्ष 1928 में संपन्न हुए ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था। यह ओलंपिक हालैंड के एम्सटरडम में संपन्न हुआ था । एम्स्टर्डम जाने वाली भारतीय हॉकी टीम की घोषणा कर दी गई थी। इनमें शामिल लोग थे : जयपाल सिंह (कप्तान), रिचर्ड एलेन, ध्यान चन्द, मौरिस गेटली, विलियम गुड-कुलेन, लेस्ली हैमोंड, फिरोज खान, जॉर्ज मर्थिंस, रेक्स नॉरिस, ब्रूम पिनिगेर (उप कप्तान), माइकल रोक, फ्रेडेरिक सीमैन, अली शौकत और सैयद यूसुफ। लीग स्तर पर इस टूनार्मेंट में दो ग्रुप थे झ्र ए और बी। कुल 31 खिलाड़ियों ने 18 मैच में 69 गोल किये। भारत ग्रुप ह्यएह्ण में था और उसने 29 गोल किए। इनमें ध्यान चंद ने 14; फिरोज खान और जॉर्ज मार्टिंस में से दोनों ने 5-5; फ्रेडेरिक सीमैन ने तीन और अली शौकत और मौरिस गेटली ने एक-एक गोल किए। फाइनल में भारत ने हॉलैंड को 3-0 से हरा दिया। जर्मनी और बेल्जियम को क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। जयपाल हॉलैंड के खिलाफ फाइनल मैच नहीं खेले। टीम मेनेजर एबी रोस्सिएर और कप्तान के बीच गंभीर मतभेद पैदा हो गया था।
जयपाल शिष्टाचार दिखाते हुए फाइनल से दूर रहे। उप कप्तान ब्रूम पिनिगर ने टीम की कमान संभाली और हॉलैंड को अच्छी शिकस्त दी। भारत को ओलंपिक में मिला यह पहला स्वर्ण पदक था। गोंडवाना समय आदरणीय जयपाल सिंह मुण्डा जी के विषय में संक्षिप्त में विषय से हटकर इसलिये बताने का प्रयास किया है कि आदरणीय जयपाल सिंह मुण्डा कोई साधाहरण हस्ती नहीं थी हां लेकिन आदिवासी होने के कारण भले ही उन्हें इतिहास से दरकिनार करने का प्रयास जरूर इतिहासकारों ने किया है लेकिन मेहनत, प्रयास व प्रतिभा मोहताज नहीं होती है वह इतिहास जरूर बनती है । आगे हम आपकों यहां यह बता दे कि संविधान की आठवी अनुसूची में भारत की 22 भाषाओं को शामिल किया गया है, जिसमें बहुत सी भाषाओं के बोलने वालों की संख्या आदिवासी भाषाओं के बोलने वालों से कम है फिर भी उनको संवैधानिक दर्जा प्राप्त है । भारत की संविधान सभा में आदिवासियों के महानायक, आदिवासियों की पहचान आदरणीय जयपाल सिंह मुण्डा ने गोंडी भाषा एवं अन्य आदिवासी भाषाओं को संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये अथक प्रयास किया था । संविधान सभा में उन्होंने 14 सितंबर 1949 को जो वक्तव्य उसके कुछ मुख्य अंश अंग्रेजी में है उसका हिन्दी अनुवाद की प्रस्तुतिकरण के अनुसार माननीय अध्यक्ष महोदय जी, मुझे लगता है कि मैं अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा हूँ यदि सदन से मैं यह अनुरोध न करू कि अनुसूची 7.1 में कुछ आदिवासी भाषाओं को शामिल किया जाये जो थोड़े से नहीं बल्कि करोड़ों लोगों के द्वारा बोली जाती है । मेरे संशोधन संख्या-272 में लिखा है कि प्रस्तावित नई अनुसूची 7.1 में चौथी सूची के संशोधन संख्या-65 में निम्न मदें जोड़ी जाये, 14-मुंडारी, 15-गोंडी, 16 उरांव । श्रीमान अध्यक्ष महोदय पिछली जनगणना में आदिवासियों के 176 भाषाओं में से 03 भाषाओं को ही मैंने क्यों चुना है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि अनुसूची में अतयाधिक भार हो लेकिन पिछली जनगणना में यह दर्ज है कि 40 लाख लोग मुंडारी भाषा बोलते है, 11 लाख उरांव है लेकिन इनका अनुसूची में नाम दर्ज नहीं है जबकि मैं देखता हूं कि इस सूची में ऐसी भाषायें शामिल की गई है जिनके बोलने वाले इन आदिवासी भाषाओं के बोलने वालों की संख्या से बहुत कम है । चंूकि गोंडी बोलने वालों की संख्या 32 लाख है इसलिये मैं यह मांग करता हूं कि यह भी अनुसूची में शामिल होनी चाहिये । इन तीनों भाषाओं को सदन के समक्ष स्वीकार करने हेतु प्रस्ताव के पीछे मुख्य कारण यह है कि इनके अनुसूची में शामिल होने से हमें भारत के प्राचीन इतिहास की खोज करने में आसानी होगी । गोंडी मुख्यतय: मध्य प्रांत में बोली जाती है लेकिन इसका विस्तार हैदराबाद से लेकर मद्रास और बम्बई तक है गोंडी भाषा बोलने वाले दूरस्थ प्रांतों तक फैले हुये है । मैं केवल यही कहना चाहता हूं कि इन भाषाओं को प्रोत्साहित और विकसित किया जाये । जिससे वे स्वयं उन्नत और समृद्ध बने और राष्ट्रभाषा को उन्नत बना सके । मैं नहीं चाहता कि ये साम्राज्यवाद के शिकार हो जाये । आर्यों के आगमन के पहले ये भाषायें प्रचलित थी । आदिवासी अपनी मातृभाषा के साथ उस क्षेत्र की भाषा को भी अपना लेता है । मेरे मित्र पंडित रविशंकर शुक्ल बताने का कष्ट करेंगे कि उन्होंने कभी गोंडी भाषा सीखने की जहमत उठाई ? जबकि मध्य प्रांत में 32 लाख गोंडी बोलते है । महोदय मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है, मेरा बस यही अनुरोध है कि देश के प्राचीनतम लोगों की इन भाषाओं को इस अनुसूचि में सम्मानित स्थान मिले।

गोंडी भाषा को लेकर दादा हीरा सिंह मरकाम प्रारंभ से ही उठाते रहे है आवाज

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दादा हीरा सिंह मरकाम जी गोंडवाना आंदोलन के प्रारंभिक कार्यकाल से ही गोंडी भाषा को मान्यता दिये जाने की मांग करते रहे है । इसके लिये उन्होंने दादा मोतीरावण कंगाली जी के साथ गोंडी भाषा के प्रचार प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है । गोंडी भाषा को लेकर मुख्यमंत्री कमल नाथ जब केंद्र में मत्री थे तब भी उन्होंने उनसे मुलाकात कर गोंडी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिये जाने के संबंध में भेंट भी किया है । गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के माध्यम से और दादा हीरा सिंह मरकाम जी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति से लेकर प्रांत व जिला स्तर पर हमेशा ज्ञापन सौंपा जाता रहा है । गोंडवाना आंदोलन में गोंडी भाषा को लेकर उन्होंने हमेशा आवाज उठाई है और अभी उनकी मांग जारी ही रहती है ।

गोंडी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने बट्टी ने लिखा था पत्र

पूर्व विधायक व अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व गोंडवाना फांऊडेंशन के अध्यक्ष तिरूमाल मनमोहन शाह बट्टी ने गोंडी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिये मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को बीते माह 9 फरवरी 2019 को ही पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने यह उल्लेख किया था कि गोंडी भाषा को शासकीय मान्यता दिलाने समाज द्वारा मांग की जा रही है । इसकी प्रारंभिग तैयारी पूर्ववर्ती सरकार के द्वारा की गई थी । अत: आपसे अनुरोध है कि आगामी शिक्षण सत्र में गोंड बाहुल्य क्षेत्रों में जनजातिय विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में मातृभाषा गोंडी को शिक्षण पाठ्यक्रम में लागू करने का कष्ट करे । यहां यह उल्लेखनीय है कि बीते माह 9 फरवरी 2019 को ही लिखा था और मार्च माह के प्रथम सप्ताह में ही मुख्यमंत्री कमल नाथ ने गोंडी भाषा को प्राथमिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय लिया है ।

आरएसएस ने भी गोंडी भाषा में गीता व रामायण बनाया पर अनुसूची में शामिल करने की मांग नहीं किया

अंतराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाला संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन ने भी गोंडी भाषा का महत्व समझा है और गोंडियनजनों तक अपनी गहरी पैठ व पहुंच बनाने के लिये गोंडी भाषा में रामायण व गीता का रूपांतरण करवाया है । छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में विशेषकर इसे प्रिंट करवाकर वितरण भी करवाया गया था वहीं इसका विमोचन आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत जी ने स्वयं भी किया था । मध्य प्रदेश में उज्जैन में आयोजित कुंभ में वृहद स्तर पर इसका कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया था । वहीं हम आपकों बता दे कि भाजपा को दिशा निर्देश और रीति नीति का पाठ पढ़ाने के साथ साथ समय समय पर सीख देने के लिये आरएसएस प्रमुख भूमिका निभाता है । केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार वर्तमान में है और मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी तब ही गोंडी भाषा में गीता व रामायण प्रकाशित करवाई गई थी लेकिन संविधान की आठवी अनुसूची में गोंडी भाषा को मान्यता दिया जाये इस संबंध में आरएसएस ने कभी मांग नहीं किया है।

्रगोंडी भाषा में वन्या रेडियों की राह हुई आसान

हम आपको बता दे कि मध्य प्रदेश में जब भाजपा की सरकार थी तो गोंडी भाषा में वन्या रेडियों प्रारंभ किये जाने की घोषणा जनजातिय मंत्री कुंवर विजय शाह के द्वारा सिवनी जिले के बरघाट विधानसभा क्षेत्र के जनजाति बाहुल्य ब्लॉक कुरई के टुरिया ग्राम में शहीद दिवस कार्यक्रम के दौरान दूसरे पंचवर्षीय कार्यकाल में किया गया था लेकिन भाजपा की सरकार ने तीसरी पंचवर्षीय कार्यकाल भी पूरा कर लिया लेकिन गोंडी भाषा में वन्या रेडियों प्रारंभ होना दूर की बात की बात उसे भूला दिया गया ।
जबकि उसी समय बरघाट क्षेत्र से भाजपा विधायक कमल मर्सकोले भी प्रतिनिधित्व करते थे लेकिन उन्होंने भी इस मामले में सार्थक प्रयास नहीं किया हालांकि भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी घोषित करने के बाद उनकी टिकिट काटकर उम्मीदवार ही बदल दिया था और वे तीसरी बार विधायक बनने का उनका सपना अधूरा ही रह गया । अब बरघाट विधानसभा में मतदाताओं ने कांग्रेस के उम्मीदवार अर्जुन सिंह काकोड़िया को जनादेश देकर विधायक बनाया है और
स्वयं अर्जुन सिंह काकोड़िया भी फर्राटेदार गोंडी भाषा को अपनी बोलचाल में उपयोग करना पसंद करते है और अर्जुन सिंह काकोड़िया ने विधायक बनकर बरघाट विधानसभा में भाजपा का गढ़ तो ढहाया ही है साथ में वे पहले विधायक है जिन्होंने मध्य प्रदेश की विधानसभा में गोंडी भाषा में अपना शपथ ग्रहण किया था जो इतिहास बन गया है । अब अर्जुन सिंंह काकोड़िया यदि प्रयास करें तो कुरई में वन्या रेडिया प्रारंभ हो सकता है जो गोंडी भाषा बोलने-जानने-पढ़ने-सुनने-समझने वालों के लिये प्रशंसनीय पहल सिद्ध भी हो सकती है ।


विशेष संपादकीय

विवेक डेहरिया
संपादक गोंडवाना समय
मोबाईल नंबर-9303842292
कार्यालय नंबर-07692-223750
कार्यालय-सिवनी मध्य प्रदेश 


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.