जयपाल सिंह मुंडा भारतीय जनजातियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेतृत्वकर्ता
भारत की जनजातियों के प्रणेता मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि और हूल जोहर
20 मार्च का दिन भारतीय इतिहास के साथ-साथ जनजातीय इतिहास का भी अहम दिन है । इसी दिन (20 मार्च 1970) संविधान सभा में जनजातियों की आवाज रखने वाले, झारखंडी लोगों का नेतृत्व करने वाले महान जननायक जयपाल सिंह मुंडा जी ने अंतिम सांस ली थी और भारतीय राजनीति के एक और चमकीले सितारे का अस्त हुआ था। इस अवसर पर ये बताना जरूरी है कि जनजातीय समाज कभी भी व्यक्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता और न ही वह अपने पूर्वजों की मूर्तियाँ गढ़ता है। यह समाज अपने नायकों को याद तो करता है उन्हे उचित सम्मान भी देता है लेकिन खामखां का महिमामंडन भी नहीं करता। पूरे भारत वर्ष में जनजातीय समाज यह मानता है कि उसके पूर्वज उनके साथ ही रहते हैं और उसके सुख-दुख में भी हमेशा साथ ही रहते हैं। जन जातीय व्यवस्था के लंबे इतिहास में बहुत ही कम लोग इतिहास के पन्नों तक आ पाये हैं या बहुत ही कम ऐसे लोग हैं जिन्हे आम जनता जानती है । उनमें से कुछ नाम जैसे सिधो, कान्हू, चांद, भैरव, बिरसा, तांत्या, वीर नारायण, गुंडाधुर आदि यदा कदा सुनने को मिल जाते हैं, क्यूंकी इतिहासकारों ने जनजातीय नायकों को कभी वो स्थान नहीं दिया जिसके वो हकदार थे। यहाँ तक कि खुद जनजातीय समाज अपने नायकों का कभी भी महिमा मंडन नहीं करता है। आजादी के बाद के दौर के जिन जन नायकों को याद किया जाता है उसमें शामिल हैं, जयपाल सिंह, बाघुन सुम्बरई, शिबू सोरेन, एनई होरो, रामदयाल मुंडा, मंगरु ऊईके आदि। आज हम इनही नायकों में एक महानायक जयपाल सिंह मुंडा को याद करेंगे।
कौन थे जयपाल सिंह मुंडा ?
जयपाल सिंह मुंडा भारतीय जनजातियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेतृत्वकर्ता थे। वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् खिलाड़ी और कुशल प्रशासक थे। जिन्होने झारखंड राज्य की परिकल्पना, झारखंडी संस्कृति, अस्मिता एवं पहचान के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष किया। जयपाल सिंह मुंडा ने जिस तरह से जनजातियों के इतिहास, दर्शन और राजनीति को प्रभावित किया, जिस तरह से झारखंड आंदोलन को अपने वक्तव्यों, सांगठनिक कौशल और रणनीतियों से भारतीय राजनीति और समाज में स्थापित किया, वह अद्वितीय है।जिस घर में जन्म लिया आज वह ढह चुका है
जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को खूंटी के टकरा पाहनटोली में हुआ था। इनके पिता का नाम अमरू पाहन तथा माता का नामराधामणी था। इनके बचपन का नाम प्रमोद पाहन था। झारखंड के खूंटी के टकरा पाहन टोली स्थित खपड़ा व मिट्टी से बने जिस घर में जयपाल सिंह मुंडा का जन्म हुआ था आज वो देखरेख के अभाव में ढह चुका है। जयपाल सिंह मुंडा जिस कद के व्यक्ति थे अगर वे चाहते तो अपने लिए आलीशान घर बना सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उस कच्चे घर के अलावा जयपाल सिंह का कोई और घर नहीं था।गांव से आक्सफोर्ड तक की शिक्षा दीक्षा
जनजातियों की मुखरता के साथ संवैधानिक पटल पर आवाज उठाने वाले आदरणीय जयपाल सिंह मुंडा जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके पैत्रिक गांव में ही हुई। ईसाई धर्म स्वीकार करने के कारण उन्हे सन 1910 में रांची के चर्च रोड स्थित एसपीजी मिशन द्वारा स्थापित संत पॉल हाईस्कूल में दाखिला मिला और यहीं से 1919 में प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास किया। सन 1920 में जयपाल सिंह को कैंटरबरी के संत अगस्टाइन कॉलेज में दाखिला मिला। सन 1922 में आक्सफोर्ड के संत जांस कॉलेज में दाखिला मिला।जनजातियों का पहला आई सी एस अधिकारी
हम आपको यहां यह बता दे कि लोग सुभाष चन्द्र बोस को सब जानते है कि वे भारतीय प्रशानिक सेवा के अधिकारी थे लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि जयपाल सिंह मुंडा भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (उस समय के आईसीएस) में चयनित हुए थे लेकिन हाकी के मोह को न छोड़ पाने के कारण सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया था।
आक्सफोर्ड ब्लू का खिताफ जीतने वाले एक मात्र अंतर्राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी
ब्रिटेन में वर्ष 1925 में आॅक्सफोर्ड ब्लू का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनके ही नेतृत्व और कप्तानी में भारत ने 1928 के ओलिंपिक का पहला स्वर्ण पदक हासिल किया था। अंतरराष्ट्रीय हॉकी में मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में देश को पहला गोल्ड मेडल मिला था ।शादी, बच्चे और परिवार और कार्य क्षेत्र
जय पाल सिंह मुंडा का विवाह सन 1931 में कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमकेश चन्द्र बनर्जी की नतिनी तारा मजूमदार से हुआ था । तारा से उनकी तीन संताने हुई जिनमें 2 बेटे वीरेंद्र और जयंत तथा एक बेटी जानकी। उनकी दूसरी शादी जहांआरा से सन 1954 में हुई जिनसे एक पुत्र हैं जिंका नाम है रणजीत जयरत्नम। वहीं जयपाल सिंह मुंडा का व्यक्तित्व और प्रतिभा को देखते हुए उन्हे पादरी बनाने के लिए ही इंग्लैंड में उच्च शिक्षा के लिए भेजा गया था लेकिन बाद में उन्होंने पादरी बनाने से इंकार कर दिया। लंदन से लौट कर आने के बाद उन्होंने कोलकाता में बर्मा सेल में नौकरी जॉइन कर लिया था बाद में रायपुर स्थित राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त हुए। इसी क्रम में कुछ दिनों तक बीकानेर नरेश के यहाँ राजस्व मंत्री की नौकरी भी की।\

