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भगोरिया पर्व जनजातियों की एकता, पारस्परिक मिलन की है विशेष पहचान

भगोरिया पर्व जनजातियों की एकता, पारस्परिक मिलन की है विशेष पहचान 

भगोरिया पर्व में देश-दुनिया के सैलानियों भीड़ भगोरिया हाटों का लगभग सप्ताह भर चलने वाला रंगारंग पर्व इस बार 14 मार्च से प्रारंभ होने जा रहा है। उत्साह के साथ विशाल मेलों की रूप में दिखायी देने वाले ये सालाना हाट झाबुआ, धार, खरगोन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों के 100 से ज्यादा स्थानों पर होली के त्योहार से पहले अलग-अलग दिनों में लगता है । 

धार। गोंडवाना समय। 
आदिवासी बाहुल्य मध्य प्रदेश के पश्चिमी जनजातीय संस्कृति के लिये प्रसिद्ध भगोरिया पर्व को जनजाति युवक-युवतियों के प्रेम पर्व के रूप में मनगढंत कहानियों के माध्यम से दुष्प्रचारित भी किया जाता रहा है लेकिन अब जनजाति समुदाय में आई चेतना और अपने हक अधिकारों को लेकर चल रहे जनजागृति अभियान के साथ साथ तकनीकि युग के प्रभावों से भगोरिया पर्व का स्वरूप बदलता जा रहा है । मसलन बदल परंपरा नहीं रही है जो प्रथा और परंपरा का प्रचार-प्रसार भगोरिया पर्व को लेकर देश व दुनिया तक पहुंचाया जाता था उसे नयी पीढ़ी के जनजातीय युवाओं ने रोक लगाकर विराम लगा दिया है क्योंकि उन्होंने सबसे पहले भगोरिया पर्व की महत्वता व सत्यता से देश व दुनिया को अवगत कराने के लिये सोशल मीडिया का सहारा लिया और असर प्रभावी भी हुआ है । अब इन पारम्परिक मेलों की पृष्ठभूमि में अपने समुदाय के गलत चित्रण-विवरण के खिलाफ खुला मोर्चा खोलने के चलते हालांकि अब काफी हद तक विराम तो लग गया है लेकिन फिर भी कुछ कलमकार मीडिया में सुर्खियां बटोरने भगोरिया पर्व को भ्रामक प्रचार प्रसार करने से नहीं चूकते है इसके लिये इन क्षेत्रों के आदिवासी युवाओं ने तगड़ी निगरानी प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में बनाये हुये कहीं भी गलत छपता है या दिखता है तो तुरंत विरोध किया जाकर हकीकत से अवगत कराया जाता है ।
हालांकि, भगोरिया से जुड़ी ऐसी कहानियों के खिलाफ आदिवासी समुदाय के पढ़े-लिखे युवा अब मुखर हो रहे हैं। आदिवासी बहुल धार जिले के मनावर क्षेत्र से कांग्रेस के युवा विधायक और जनजातीय संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ हीरालाल अलावा बताते है कि भगोरिया पर्व को लेकर पूर्व में भ्रामक प्रचार के साथ हमेशा भ्रम ही फैलाया जाता रहा है कि भगोरिया मेलों में मिलने के बाद आदिवासी युवक-युवती अपने घरों से भाग जाते हैं। भगोरिया दरअसल आदिवासियों के उल्लास का सांस्कृतिक पर्व है। आदिवासी समुदाय के लोग होलिका दहन से पहले भगोरिया मेलों में कपड़े, पूजन सामग्री और अन्य वस्तुओं की खरीदारी करते हैं।

भगोरिया के संबंध में आदिवासियों की सही छवि की जाये प्रस्तुत

नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की सहायक प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर सियासी मैदान में उतरे हीरालाल बताते है कि सप्ताह हर्ष उल्लास, एकता का परिचायक मिलजुलकर चलने वाले भगोरिया मेलों को भ्रामक प्रचार प्रसार करने वाले आदिवासियों के वेलेन्टाइन वीक की उपमा भी देते हैं लेकिन यह बात भी सरासर गलत है। हम चाहते हैं कि इन मेलों के सन्दर्भ में आदिवासियों की सही छवि प्रस्तुत की जाये। भगोरिया मेलों को लेकर खासकर गैर आदिवासियों द्वारा पिछले कई वर्षों से गलत सन्देश दिया जा रहा है कि इनमें मिलने वाले आदिवासी युवक-युवती शादी के इरादे से अपने घरों से भाग जाते हैं । इन मेलों में सभी आदिवासी लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं एकता संदेश देते है और इसका प्रेम निवेदन या शादी-ब्याह से तो कहीं से कहीं तक या दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है ।
उन्होंने बताया कि पश्चिमी मध्य प्रदेश के लाखों आदिवासी समुदाय को भगोरिया मेलों का बेसब्री से इंतजार रहता है। हर साल टेसू (पलाश) के पेड़ों पर खिलने वाले सिंदूरी फूल उन्हें फागुन के साथ उनके इस प्रमुख लोक पर्व की आमद का संदेश भी देते हैं। अपनी पारम्परिक वेश-भूषा में सजी आदिवासी टोलियां ढोल और मांदल (पारंपरिक बाजा) की थाप तथा बांसुरी की स्वर लहरियों पर थिरकती हुयी भगोरिया मेलों में पहुंचती हैं और होली से पहले जरूरी खरीदारी करने के साथ फागुनी उल्लास में डूब जाती है।

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