डस्ट से नहर की कैनाल पुलिया, चिटके पाइप का उपयोग
अनुज अग्रवाल कम्पनी रेत बचाने के लिए दे रही घटिया काम को अंजाम
सिवनी। गोंडवाना समय।
बंडोल क्षेत्र के भाटीवाड़ा मगरकठा गांव के बीच अनुज अग्रवाल कम्पनी डस्ट से कैनाल पुलिया का निर्माण कर रहा है। वहीं पुलिया में चिटके पाइप लगाए जा रहे हैं। एक नहीं बल्कि कई छोटी-बड़ी पुलियों में डस्ट और चिटके पाइप का उपयोग हुआ है।
यह सब खेल पेंच व्यपवर्तन योजना के तकनीकी अमला की मौजूदगी में चल रहा है। सबसे खास बात तो यह है कि नहर निर्माण ठेकेदार अनुज अग्रवाल के कर्मचारी निर्माण के बाद फटफट मुरम से ढ़क दे रहे हैं ताकि घटिया निर्माण नजर न आए।
रेत गायब, डस्ट का उपयोग-
मगरकठा गांव में निर्माणधीन कैनाल पुलिया पर साफ तौर पर डस्ट ही डस्ट दिखाई दे रही है। खूली आंखों से डस्ट की गिट्टी अलग ही नजर आ रही है। मटेरियल भाटीवाड़ा कैम्प के पास बनी क्रेशर की डस्ट से मिक्शर मशीन से मटेरियल बनाकर पुलिया कैनाल पर डाल रहे हैं। मटेरियल पर अगर गौर करें तो कहीं भी रेत नजर नहीं आ रही है। कैनाल-पुलिया के मटेरियल की लैब में जांच करा ली जाए तो सारा मामला साफ नजर आ सकता है।
लगाए जा रहे चिटके पाइप -
नहर निर्माण कम्पनी के ठेकेदार रेत का पैसा बचाने के लिए सस्ती डस्ट का उपयोग करके गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। वहीं दूसरी पुलिया में चिटके पाइप लगाए जा रहे हैं। अधिकारी-कर्मचारी खुद ही पुलिया में झांककर देख सकते हैं कि किस तरह के पाइप लगाए गए हैं। चिटके पाइप किसी एक पुलिया में नहीं बल्कि कई कैनाल और पुलिया में लगाए गए हैं।
रेत का बचाया जा रहा है पैसा-
गौरतलब है कि एक डम्पर रेत 12 से 15 हजार रुपए में आ रही है। जबकि एक डम्पर डस्ट मात्र चार से पांच हजार रुपए में मिल जा रही है। ऐसे में नहर निर्माण कम्पनी के ठेकेदार मापदण्ड को ठेंगा दिखाकर रेत का दोगुना पैसा बचाने के लिए निर्माण कार्य में डस्ट का उपयोग जमकर किया जा रहा है। अगर पुलिया और कैनाल में उपयोग किए गए मटेरियल के सेम्पल की जांच करा ली जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।