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आजादी के बाद भी जनजातियों के साथ निर्मता-बर्बरता पूर्वक हत्याओं व सामुहिक नरसंहार की इबारत से भरता जा रहा भारत का इतिहास

आजादी के बाद भी जनजातियों के साथ निर्मता-बर्बरता पूर्वक हत्याओं व सामुहिक नरसंहार की इबारत से भरता जा रहा भारत का इतिहास 

भारत में जनजातियों को जल, जंगल, जमीन से विस्थापित करने का षडयंत्र तो वर्षों से चल ही रहा है लेकिन जनजातियों को मौत के घाट उतारने का खेल भी बेखौफ होकर खुलआम खेला जाता रहा है । भारत में जनजातियों के साथ खेला जाने वाला खूनी इतिहास, जनजातियों की बेरहमी से बेदर्दी के साथ की जाने वाली हत्याओं की बढ़ती संख्या को समेटते हुये इतिहास के पन्नों में दर्ज होता जाता रहा है लेकिन दर्द का एहसास या मर्ज सरकार सत्ता शासन चलाने वाले भी अभी भी जनजातियों के साथ होने वाली घटनाओं को जानबूझकर नजरअंदाज करते हुये नरसंहार जैसी घटनाओं को मामूली-छोटी सी ही बताकर या राजनैतिक रूप देने में अपनी भूमिका निभा रहे है । जनजातियों के जल, जंगल, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा के लिए, उन्हें उजाड़ना या मौत के घाट उतारना कोई नई बात नहीं है। यह आजादी के बाद ही शुरू हो गया था। छत्तीसगढ़ के बस्तर के इलाके में इसका सबसे पहला प्रमाण जनजातियों के राजा प्रवीर चंद भंजदेव व हजारों की संख्या में मृत हुये जनजाति है। मार्च 1961 में लगभग बीस हजार जनजातियों पर निर्ममतापूर्वक गोलियों की बौछार की गई थी। जिसमें राजा प्रवीर चंद भजदेव सहित हजारों की संख्या में जनजाति मौत का शिकार हुये थे । भारत में ही दो जनवरी 2006 को ओडिशा के कलिंगानगर में 13 जनजातियों को गोली मारी गई थी। इतना ही नहीं 1 जनवरी 1948 को खरसावां हाट में 50 हजार से अधिक जनजातियों की भीड़ पर ओड़िशा मिलिटरी पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की थी, जिसमें कई जनजाति मारे गये थे। आजाद भारत का यह सबसे बड़ा गोलीकांड माना जाता है। ऐसे अनेक प्रमाण भारत में मौजूद है जो जनजातियों के साथ हुये नरसंहार को प्रमाणित करता है। भारत में जनजातियों की जिंदगी छीनने और मातृशक्तियों की अस्मत आबरू लूटने के अनेको प्रमाण भारत के इतिहास में दर्ज है और भविष्य में इनकी संख्या में निरंतर इजाफा ही हो रहा है लेकिन सत्ता-सरकार-शासन -प्रशासन चलाने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है सब अपनी कुर्सी सहेजकर बचाने के लिये एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीतिक सियासत का खेल जुबानी जंग के सहारे खेल रहे है। 

25 अक्टूबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कार्निवाल में क्या कहा था याद है आपको 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 25 से 28 अक्टूबर, 2016 तक प्रथम राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवाल का आयोजन किया था । जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्य अतिथि के रूप में 25 अक्टूबर, 2016 को इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम, नई दिल्ली में कार्निवाल का उद्घाटन किया था। कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के दौरान देश भर से पहुंचे सैंकड़ों जनजातीय कलाकारों की मंडलियों ने परंपरागत वेशभूषा में कार्निवाल परेड में भाग लिया था वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जनजातिय पहनावे में तीर कमान चलाते हुये दिखाई दिये थे और कार्यक्रम में देश भर के लगभग 20,000 प्रतिनिधियों ने भी इस समारोह में शिरकत किया था । तब 25 अक्टूबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आदिवासी समुदायों का जीवन अत्यधिक संघर्ष का उदाहरण है। आज भी, आदिवासी समुदाय ने सामुदायिक जीवन के आदर्शों को आत्मसात किया हुआ है और वे तमाम परेशानियों के बावजूद हंसी-खुशी से जीवन जीते हैं। यहां तक प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वह भाग्यशाली थे कि उन्हें अपनी युवावस्था में आदिवासियों के बीच सामाजिक कार्य करने का अवसर मिला। उन्होंने स्मरण करते हुए बताया था कि आदिवासियों के मुंह से किसी चीज की शिकायत सुनना काफी कठिन था। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग इस संबंध में उनसे प्रेरणा ले सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वनों को हमारे जनजातीय समुदायों ने ही बचाया है। उनकी जमीन को छीनने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समुदायों की समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि जंगल में जिस तरह से ये परेशानियों को झेलकर भी जिंदगी जीने का माद्दा रखते हैं ये वाकई काफी अहम है। अब जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ही कह रहे है कि जनजातियों की जमीन छीनने का किसी को अधिकार नहीं है तो फिर क्यों उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार में जनजातियों की जमीन छीनने के लिये खुलेआम जनजातियों का सामुहिक नरसंहार किया गया । क्या प्रधानमंत्री की बातों का प्रभाव जनजातिय समुदाय की जमीन छीनने वाले भूमाफियाओं पर क्यों नहीं पड़ रहा है और फिर उत्तर प्रदेश में तो भाजपा की ही सरकार है और स्वयं वे भी उत्तर प्रदेश से ही सांसद चुनकर देश का प्रधानमंत्री बनकर जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे है। इसके बाद जनजातियों के साथ उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में घटनायें घट रही है आखिर क्या कारण है ?

दिन दहाड़े खुलेआम हुआ नरसंहार कौन है जिम्मेदार-जवाबदार

जनजातियों की जमीन लूटने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में किये गये जनसंहारों के इतिहास में एक और भयानक इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है और यह पन्ना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले अंतर्गत मूर्तियां पंचायत के उंभा और सपही गांव के गोंड जनजातियों की जनसंहार को लेकर और यह जनसंहार प्रायोजित था। उत्तर प्रदेश में जो नरसंहार हुआ उसमें जो शासन प्रशासन-सत्ता की कुर्सी में बैठकर हुक्म चलाते है वे जरूर जिम्मेवार है । हम आपकों बता दे कि दिन दहाड़े खुलेआम नरसंहार करने के लिये 32 ट्रेक्टरों में लगभग 300 लोग और दो दर्जन से भी ज्यादा हथियारों से लैस होकर जनजातियों पर हमला करने पहुंचे और अंधाधुंध फायरिंग, हथियार व लाठी डण्डों से प्रहार किया जिसमें 10 जनजातियों की मौत हो गई और 25 से भी ज्यादा गंभीर रूप से घायल हो गये एवं सैकड़ों लोगों को चोटें आयी। उक्त घटना को अंजाम देने के लिये हमला करने वालों ने विशेष रूप से शूटर को बुलवाया था।

जनजाति समुदाय पर मौत का तांडव से अनजान थी उत्तर प्रदेश सरकार 

अब सवाल उठता है कि इतना बड़ा सब मौत का तांडव क्या अचानक हो गया? क्या इसकी जानकारी शासन-प्रशासन, सत्ता को नहीं थी? स्थानीय व करीबी प्रशासन अनभिज्ञ ? ऐसा हो ही नहीं सकता संभवतय: सब जानते रहे ही होंगे अर्थात यह जनजातियों के साथ जानबूझकर किया जाने वाला जनसंहार है। क्योंकि वहां पर जनजातियों की लगभग 638 बीघा जमीन को लूटने का खेल था । जबकि जनजातियों ने उक्त जमीन का पट्टा भी मांगा था लेकिन उन्हें पट्टा नहीं दिया गया। बल्कि सरकार-शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों ने तो जनजातियों से जमीन को कानूनी रूप से छुड़ा लेने का पूरा प्रयास किया। इसके लिए सबसे पहले आदर्श कॉपरेटिव सोसाईटी का गठन किया गया। इसके बाद 17 दिसंबर वर्ष 1955 को रॉबर्ट्गंज के तहसीलदार ने उक्त जमीन को उक्त सोसाईटी
के नाम पर लिख दिया था लेकिन वर्ष 1966 में सहकारिता समिति अधिनियम खत्म कर दिया गया। इस तरह से जमीन सोसाईटी से मुक्त हो गई और जनजातिय समुदाय के सगाजन उस जमीन पर खेती किसानी करते रहे।

प्रभात कुमार मिश्रा ने जिलाधिकारी बनते ही रचा था षडयंत्र 

इसी बीच पटना के रहने वाले आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा जब मिर्जापुर के जिलाधिकारी बने तब सोनभद्र अलग जिला नहीं था बल्कि मिर्जापुर के ही अन्तर्गत आता था। जिलाधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा ने अपने पद और रूतवा का उपयोग करते हुये 6 सितंबर 1989 को उक्त जमीन को अपने, पत्नी आशा मिश्रा, विनीत शर्मा और भानु शर्मा के नाम पर लिखवा लिया लेकिन वे जमीन कब्जा नहीं कर सके। जब जनजातियों को पता चला कि जमीन किसी और के नाम पर लिखवा लिया गया है तब उन्होंने इस मामले की शिकायत जिलाधिकारी एवं आयुक्त के पास भी दर्ज कराया लेकिन सभी जगहों पर उनके दावों को खारिज कर दिया गया था जिलाधिकारी प्रभात मिश्रा ने अपनी पद, ताकत और पहुंच का खूब उपयोग किया। फिर भी जनजातियों के विरोध के कारण जमीन पर वह कब्जा नहीं कर सके तब जिलाधिकारी प्रभात मिश्रा ने एक नयी रणनीति अपनाया और उन्होंने जमीन के एक हिस्से को स्थानीय दबंगों को बेचकर जमीन पर कब्जा शुरू करने की योजना बनाया और 17 अक्टूबर 2017 को जिलाधिकारी प्रभात मिश्रा ने किया 140 बीघा जमीन को गांव के दबंग ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुजर को बेच दिया। इसके बाद 6 फरवरी 2019 को उक्त जमीन की दखिल खारिज कर दी गई। यज्ञदत्त गुजर यहां पलायन करके आया था, जो अपने दबंगई के कारण गांव की जमीन कब्जाकर स्थानीय निवासी बन गया लेकिन प्रभात मिश्रा से जमीन खरीदने के बाद भी उक्त जमीन पर यज्ञदत्त गुजर कब्जा नहीं कर पा रहा था । जमीन को जनजाति ही जोत-बखर करते रहे। यज्ञदत्त गुजर ने जनजातियों से जमीन खाली करवाने के लिए
प्रशासन का सहारा लिया लेकिन जनजातियों की एकजुटता एवं प्रतिकार के सामने प्रशासन ने घूटने टेक दिया। अंत में यज्ञदत्त गुजर और प्रभात मिश्रा ने मिलकर षडयंत्र रचते हुये सामुहिक रूप से जनजातियों की हत्या का खूनी खेल खेलने में भूमिका निभाया ।

रविवार को जनजातियों को मुआवजा का मरहम लगाने पहुंचे मुख्यमंत्री 

जनसंहार के बाद पहले तो उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इसके लिए पूर्व के कांग्रेस सरकार को जिम्मेवार ठहराते हुये बयान दिया था। ठीक उसी तरह जैसे देश की प्रत्येक समस्या के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार को ही जिम्मेवार ठहराते रहे हैं। यानि सरकार कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अलावा भाजपा, बसपा और सपा भी सत्ता सरकार चला चुकी है लेकिन नरसंहार की जिम्मेदारी सिर्फ कांग्रेस पर ही बताई जाकर इतिश्री की जा रही है। जनजातियों के साथ हुये नरसंहार के बाद भी अब उत्तर प्रदेश में कौन सा राज चल रहा है। हालांकि घटना घटने के इतने दिनों बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रविवार को सुबह साढ़े 11 बजे हैलीकॉप्टर से सोनभद्र के म्योरपुर पहुंचे, जहां से वह म्योरपुर हैलीपैड से दूसरे हैलीकॉप्टर द्वारा घोरावल के लिए रवाना हो होकर मृतक व हताहत हुये परिवारजनों से मिलने पहुंचे । इस दौरान मुख्यमंत्री के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह भी मौजूद रहे। यहां वह पीड़ितों के परिजनों से मिले और करीब 12 बजे सीएम योगी आदित्यनाथ उभ्भा गांव के कार्यक्रम स्थल प्राथमिक विद्यालय पहुंचे थे और 12 बजकर 21 मिनट पर पीड़ितों के परिजनों से मिले। इस दौरान उन्होंने मृतक सुखवंती की आश्रित पूनम को चेक दिया। साथ ही 21 घायलों के परिजनों को 50-50 हजार का चेक दिया। करीब एक बजे सीएम योगी उभ्भा गांव के स्थान पर पहुंचे जहां, गोलीबारी हुई थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व सरकार का मुआवजा का मरहम से जनजातियों के साथ हुये सामुहिक नरसंहार का मर्ज व दर्द समाप्त हो जायेगा यह बड़ा सवाल है ।

ताकि ऐसी घटनायें दोबारा न हो पाये 

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में हुये जनजाति समुदाय के साथ हुये समुहिक नरसंहार के लिए मूलरूप से कहीं न कहीं जिलाधिकारी रहे प्रभात कुमार मिश्रा एवं अन्य नौकरशाह भी जिम्मेवार व जवाबदार हैं, जिन्होंने जमीन पर वर्षों से काबिज जनजातियों को उसका पट्टा दिये जाने की बजाय उन्हें अपने पदों का दुरूपयोग करते हुए जनजातियों से उनकी जमीन छीनने की कोशिश करने में अपनी विशेष भूमिका निभाया है और जब जनजातियों से जमीन पर कब्जा नहीं ले पाये जो उनका सामुहिक रूप से नरसंहार करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। उत्तर प्रदेश में हुये जनजातियों के साथ सामुहिक नरसंहार की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए लेकिन निष्पक्षता के साथ लीपापोती या दबाने के उद्देश्य से नहीं तभी जनजातियों के हुये नरसंहार के लिये जिम्मेदार-जवाबदार का चेहरा सबके सामने स्पष्ट रूप से सामने आयेगा और गुनाहगारों के लिये सम्माननीय न्यायालय भी ऐसी सजा मुक्करर करे कि ऐसी सामुहिक नरसंहार की घटनायें दोबारा न हो पाये या करने वाला जरूर विचार करें।
संपादकीय 
विवेक डेहरिया संपादक 
गोंडवाना समय

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