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संसद में आदिवासी सांसदों की खामोशी देश के आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरनाक-जयस

संसद में आदिवासी सांसदों की खामोशी देश के आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरनाक-जयस

अन्यथा आदिवासियों के अस्तित्व को खत्म होने से कोई भी नही रोक सकता 

विशेष टिप्पणी 
साथियो बहुत अफसोस के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है । वैसे तो में खुद एक जनप्रतीनिधि हूं और मध्यप्रदेश विधानसभा का सदस्य हु लेकिन फिर भी देश के अन्य आदिवासी जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा हूं क्योंकि वास्तव में हम समाज के जनप्रतिनिधि समाज से चुनकर विधानसभा और लोकसभा में इसलिए जाते है ताकि हम अपने सामाज की पीड़ा को समाज के दर्द को समाज के अधिकारों की हो रही अनदेखी के संबंध में अपने समाज, समुदाय, क्षेत्र और देश के गंभीर मुद्दों को सदन में रख सके लेकिन दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है । हमारे आदिवासी समाज के जनप्रतीनिधि समाज की उम्मीदों पर खरा नही उतर पा रहे है । कारण कुछ भी हो आदिवासी समाज मे नेतृत्व बदलाव की मांग उठना चाहिए और सिर्फ मांग ही नही उठना चाहिए समाज ने नया युवा नेतृत्व बनाना ही पड़ेगा अन्यथा आदिवासियों के अस्तित्व को खत्म होने से कोई भी नही रोक सकता है

47 सांसद नहीं खोल पा रहे मुंह, राज्यसभा में भी खामौश

यह सब बातें में खुद एक जनप्रतीनिधि होने के नाते इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि हाल ही में उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में 3 आदिवासी महिलाओं समेत कुल 10 आदिवासियों को जमीन विवाद में अन्य जातियों के लोगो के द्वारा बेहरमी से मौत के घाट उतार दिया गया । उक्त घटना की जितनी निंदा की जाए कम है मैंने एक जनप्रतीनिधि का फर्ज अदा करते हुये घटना के दोषियों को जल्द से जल्द पकड़कर कानूनन कड़ी से कड़ी कार्यवाही के लिए पत्र लिखा । मध्यप्रदेश विधानसभा में 2 मिनिट शोक व्यक्त करवाने के विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति को पत्र भी दिया लेकिन अफसोस इस बात का है देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर जहां पर पूरे देश के विभिन्न राज्यो से 47 आदिवासी संसद में भेजे गए है। जिसमे लोकसभा में 47 के अलावा राज्यसभा में भी कुछ आदिवासी सांसद है लेकिन देश के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा और राज्यसभा में एक भी आदिवासी सांसद इस जघन्य नरसंहार पर पर 1 मिनट के लिए भी अपना मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर सके उससे भी बड़ा अफशोस इस बात का है । देश के इस जघन्य हत्यकांड में चुप रहने वाले आदिवासी सांसदों के खिलाफ देश के किसी भी आदिवासी संगठन ने प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और ना ही फेशबुक पर शेर बनने वाले किसी भी फेसबुकिया मित्र ने इस बारे में
कोई टिप्पणी करे । अब गैरो से तो कोई उम्मीद हम ऐसे ही नहीं कर सकते लेकिन जब अपने ही अपनो की चिंता नही कर सकते । ऐसे में देश के आदिवासियों को वास्तव में कैसे न्याय मिलेगा क्योंकि सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह कि जब 17 जुलाई 2019 को उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में आदिवासियों का नरसंहार हुआ तब लोकसभा और राज्यसभा दोनों चल रही थी लेकिन फिर भी किसी भी आदिवासी सांसद में इस गंभीर मुद्दे को जिक्र नही किया यह सब गंभीर विषय है । इस तरफ पूरे देश के आदिवासियों को गंभीरता से सोचना चाहिए
_डॉ हीरालाल अलावा 
राष्ट्रीय जयस संरक्षक नई दिल्ली
विधायक मनावर विधानसभा, मध्य प्रदेश 

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