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आदिजन प्रकृति की रक्षक के साथ पृथ्वी पर सबसे पहले बसने वाले लोग हैं-कमल नाथ

आदिजन प्रकृति की रक्षक के साथ पृथ्वी पर सबसे पहले बसने वाले लोग हैं-कमल नाथ

आदिजन की संस्कृति के प्रति भी सजग रहें

भोपाल। गोंडवाना समय।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर विशेष लेख लिखते हुये संदेश देते हुये विश्व आदिवासी दिवस पर उन सभी जनजातीय बंधुओं को बधाई, जो प्रकृति के करीब रहते हुए प्रकृति की सेवा कर रहे हैं। राज्य सरकार ने आदिजन दिवस पर अवकाश घोषित किया है। हम सब उनका सम्मान करें, जो प्रकृति को हमसे ज्यादा समझते हैं। आदिवासी समाज जंगलों की पूजा करता हैं। उनकी रक्षा करता है। इसी सांस्कृतिक पहचान के साथ समाज में रहते हैं। वह दिन अब दूर नहीं जब हरियाली और वन संपदा अर्थ-व्यवस्थाओं और देशों की पहचान के सबसे प्रमुख मापदंड होंगे। जिसके पास जितनी ज्यादा हरियाली होगी वह उतना ही अमीर कहलायेगा। उस दिन हम आदिजन के योगदान की कीमत समझ पायेंगे।

उनकी मान्यता थी कि धरती माता को इससे दुख होगा

हम जानते हैं कि बैगा लोग स्वयं को धरतीपुत्र मानते हैं। इसलिए कई वर्षों से वे हल चलाकर खेती नहीं करते थे। उनकी मान्यता थी कि धरती माता को इससे दुख होगा। आधुनिक सुख-सुविधाओं से दूर बिश्नोई समुदाय का वन्य-जीव प्रेम हो या पेड़ों से लिपट कर उन्हें बचाने का उदाहरण हो। जाहिर है कि आदिजन प्रकृति की रक्षक के साथ पृथ्वी पर सबसे पहले बसने वाले लोग हैं। आज हम टंट्या भील, बिरसा मुंडा और गुंडाधुर जैसे उन सभी आदिजन को भी याद करते हैं जिन्होंने विद्रोह करके आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खटटे कर दिये थे।
अपनी बोली बोलना पिछड़ेपन की निशानी नहीं बल्कि गर्व की बात है हमारी सांस्कृतिक विविधता में अपनी आदिजन की संस्कृति की भी भागीदारी है। आदि संस्कृति प्रकृति पूजा की संस्कृति है। यह खुशी की बात है कि इस साल अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिजन  दिवस को आदिजन की भाषा पर केंद्रित किया गया है। मध्यप्रदेश में हमने निर्णय लिया कि गोंडी बोली में गोंड समाज के बच्चों के लिए प्राथमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम तैयार करेंगे। संस्कृति बचाने के लिए बोलियों और भाषाओं को बचाना जरूरी है। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे आधुनिक ज्ञान और भाषा से दूर रहें। वे अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत भी पढे़ और अपनी बोली को भी बचा कर रखें। अपनी बोली बोलना पिछड़ेपन की निशानी नहीं बल्कि गर्व की बात है।

गोदना उनकी उप-जातियों, गोत्र की पहचान होती है

हमारे प्रदेश में कोल, भील, गोंड, बैगा, भारिया और सहरिया जैसी आदिम जातियाँ रहती हैं। ये पशु पक्षियों, पेड़-पौधों की रक्षा करते हैं। इन्हीं के चित्रों का गोदना बनवाते हैं। गोदना उनकी उप-जातियों, गोत्र की पहचान होती है जिसके कारण वे अपने समाज में जाने जाते हैं। यह चित्र मोर, मछली, जामुन का पेड़ आदि के होते हैं।

उनके पास प्रकृति का दिया ज्ञान भरपूर है

जनजातियों के जन्म गीत, शोक गीत, विवाह गीत, नृत्य, संगीत, तीज-त्यौहार, देवी-देवता, पहेलियाँ, कहावतें, कहानियाँ, कला-संस्कृति सब विशेष होते हैं। वे विवेक से भरे पूरे लोग है। आधुनिक शिक्षा से थोड़ा दूर रहने के बावजूद उनके पास प्रकृति का दिया ज्ञान भरपूर है।

ये सब कहावतें दशार्ती हैं कि आदिजन जीवन की बहुत गहरी समझ रखते हैं

मुझसे मिलने वाले कुछ आदिवासी परिवारों ने अपने समाज में आम बोलचाल में आने वाली कहावतों का जिक्र किया। उनके अर्थ इतने गंभीर और दार्शनिक हैं कि आश्चर्य होता है। एक भीली व्यक्ति ने मुझे एक कहावत सुनाई - 'ऊँट सड़ीने भीख मांगे'।  इसका मतलब है कि ऊँट पर चढ़कर भीख मांगने से भीख नहीं मिलती। ऐसे ही एक गोंडी समाज के मुखिया ने एक कहावत बताई कि 'खाडे खेतो गाभिन गाय, जब जानू जब मूंह मा आये।' इसका मतलब है कि खेतों का अनाज और गर्भवती गाय का दूध जब तब तक मुंह में नहीं आता तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता। भील समाज में भी अक्सर बोला जाता है कि - 'भील भोला आने सेठा मोटा'। इसका मतलब है कि भील के भोलेपन से ही सेठ मालामाल हुआ। ये सब कहावतें दशार्ती हैं कि आदिजन जीवन की बहुत गहरी समझ रखते हैं।

तो मैंने तत्काल स्कूल बनाने के दिये निर्देश दिए

कई जनजातियों का उल्लेख तो रामायण में मिलता है। जब भगवान श्रीराम चित्रकूट आये वे कोल जनजाति के लोगों से मिले थे। 'कोल विराट वेश जब सब आए, रचे परन तृण सरन सुहाने।' अभी हाल में जब मेरे ध्यान में लाया गया कि सतना जिले के कोल बहुल गाँव बटोही में कोल समुदाय के बच्चों के लिए स्कूल नहीं है तो मैंने तत्काल स्कूल बनाने के निर्देश दिए। बटोही गांव में बच्चों के लिए प्राथमिक शाला अच्छी तरह चले, यह हमारी जिम्मेदारी है।

आदिवासी समुदाय की कला प्रतिभा दुनिया के सामने आए

आज गोंडी चित्रकला की न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि पूरे विश्व में पहचान है। गोंड चित्रकला को जीवित रखने वालों को सरकार पूरी मदद करेगी । यह हमारा कर्त्तव्य है। गोंड और परधान लोग गुदुम बाजा बजाते हैं। हम चाहते हैं कि आदिवासी समुदाय की कला प्रतिभा दुनिया के सामने आए। शिक्षित नागरिक समाज से यह अपेक्षा है कि यह अहसास रहे कि कुछ दूर जंगल में ऐसे आदिजन भी रहते हैं जो हमारे ही जैसे हैं। वे सबसे पहले धरती पर बसने वाले लोग हैं और जंगलों में ही बसे रह गए।

हमारी सरकार आदिजन की नई पीढ़ी के विकास और उनकी संस्कृति बचाने में मदद देने के लिए वचनबद्ध है

जब कांग्रेस सरकार ने वनवासी अधिकार अधिनियम बनाया था तो कई संदेह पैदा किए गए थे। आज इसी कानून के कारण वनवासियों को पहचान मिली है। जिन जंगलों में उनके पुरखे रहते थे वहाँ उनका अधिकार है। उन्हें कोई नहीं हटा सकता। हमने उनके अधिकार को कानूनी मान्यता दी है। आदिवासी संस्कृति में देव स्थानों के महत्व को देखते हुए हमने देव स्थानों के रखरखाव के लिए सहायता देने का निर्णय लिया है। यह संस्कृति को पहचानने की एक छोटी सी पहल है। हमारी सरकार आदिजन की नई पीढ़ी के विकास और उनकी संस्कृति बचाने में मदद देने के लिए वचनबद्ध है। आदिजन दिवस पर एक बार फिर सभी परिवारों को बधाई। आधुनिक समाज में रहने वाले नागरिकों से अपील करता हूँ कि वे समझें कि हमारे समय में हमारे जैसा ही आदि समाज भी रहता है।

अब हमारा कर्त्तव्य है कि अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग रहें

विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनायें देते हुये इस अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ ने अपने संदेश को लिखते समय स्वीडिश कवि पावलस उत्सी की कुछ लाइनें बरबस याद हो आती हैं
जिनका हिंदी में अर्थ यह है कि-
'जब तक हमारे पास जल है जिसमें मछलियाँ तैरती है,
जब तक हमारे पास जमीन है जहाँ हिरण चरते हैं,
जब तक हमारे पास जंगल है जहाँ जानवर छुप सकते हैं
हम इस पृथ्वी पर सुरक्षित हैं ।'
अब हमारा कर्त्तव्य है कि अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग रहें।

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