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जन जातियों के धर्म कोड के लिए कोयापुनेम पर बनी राष्ट्रीय आम सहमति-डॉ सूर्या बाली सूरज धुर्वे

जन जातियों के धर्म कोड के लिए कोयापुनेम पर बनी राष्ट्रीय आम सहमति-डॉ सूर्या बाली सूरज धुर्वे

कोया पुनेम ही सभी कोइतूरों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर सकता है

छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय।
बिलासपुर छत्तीसगढ़ में रविवार, 22 सितंबर 2019 को राष्ट्रीय कोयापुनेम परिषद् की दूसरी बैठक का आयोजन किया गया। ज्ञात हो कि इससे पहले भी इस परिषद् की पहली बैठक भोपाल में हुई थी। जिसमें देश भर के दो दर्जन से अधिक संगठनों के कोयापुनेम को जनजातियों का सर्वमान्य धर्म मानने का सर्व सम्मति से निर्णय लिया था। बिलासपुर की धरती पर सभी जन जातियों के लिए कोयापुनेम पर एक बार पुन: सहमति बनी और एक स्वर से कोया पुनेम को राष्ट्रीय स्तर धर्म के कोड के तौर पर स्वीकार किया गया।

कोयापुनेम को वर्ष 2021 की जनगणना में शामिल करने पर जतायी सहमति 

पांच प्रान्तों से आये विभिन्न जन जातीय संगठनों ने कोयापुनेम को वर्ष 2021 की जनगणना में शामिल करने पर सहमति जतायी। आगे की रणनीति तय करने के लिए अगली बैठक कछारगढ़-गोंदिया, महाराष्ट्र में तय हुई है। विभिन्न प्रान्तों से आये वक्ताओं ने बताया कि कोया पुनेम ही एकमात्र ऐसा धर्म कोड होगा जो भारत सरकार के धर्म के मापदंड पर खरा उतरेगा क्यूंकि इसी के पास अपना प्रवर्तक पुरुष, अपनी भाषा, अपना धार्मिक झंडा, अपनी संस्कृति, अपने तीज त्यौहार, अपने शादी, जन्म और मृत्यु की व्यवस्थाएं इत्यादि हैं। कोया पुनेम की धार्मिक मान्यताएं और विचारधारा भारत में मिलने वाले किसी भी धर्म से बिल्कुल भिन्न हैं। कोया पुनेम ही सभी कोइतूरों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर सकता है। चाहे भील, मीना, कोरकू, सहरिया, भिलाला, गोंड, उरॉव, मुंडा, संथाल, हो, न्यासी या ढेरों अन्य जनजातियां हों सभी कोइतूर हैं और अगर सभी कोइतूर एक हैं तो सभी का धर्म भी एक होना चाहिए इस हिसाब से कोया पुनेम सर्वथा उचित प्रतीक होता है। जो समाजिक, वैज्ञानिक और धार्मिक सभी ढंग से उचित है। 

इसे धर्म के गुरुओं और धर्म के लोगों पर छोड़ देना चाहिए

वक्ताओं ने ये भी कहा है कि अगर किसी को इससे बेहतर कोड लाना है तो उसे समाज के द्वारा नियुक्त संस्था के सामने अपनी बात को प्रमाणों के साथ साबित करना होगा अन्यथा उसे भी कोया पुनेम को स्वीकार करना होगा। चन्द राजनीतिक लोग अपनी रोटियाँ सेंकने के लिए धर्म का सौदा नही कर सकते। इसे धर्म के गुरुओं और धर्म के लोगों पर छोड़ देना चाहिए। राजनीतिक लोग अपनी-अपनी राजनीति करें और धर्म का काम धार्मिक लोगों को करने दे। इस परिषद् की बैठक में दादा हीरा सिंह मरकाम जी, तिरूमाय सुशीला धुर्वे, जयपाल सिंह कड़ोपे, जगदीश सिदार, भीम रावेन शाह इनवाती, बी एल कोराम, आनंद मडावी, शेर सिंह अचला, प्रहलाद सिडाम, अर्जुन सिडाम, विक्रम शाह गोंड इत्यादि सहित लगभग 100 अन्य जनजातीय धर्म गुरु और नेता उपस्थित थे।  

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