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सुुप्रीम कोर्ट ने कहा, पंचमढ़ी और गिर जैसे वन क्षेत्र शहरीकरण के कारण हो गये समाप्त

सुुप्रीम कोर्ट ने कहा, पंचमढ़ी और गिर जैसे वन क्षेत्र शहरीकरण के कारण हो गये समाप्त

वनवासियों और आदिवासियों की बेदखली के मामले में हुई सुनवाई

इसके लिए राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और अदालतें भी है जिम्मेदार 

सुप्रीम कोर्ट 26 नवंबर को इस मामले में अंतिम बहस सुनेगी

नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
वनवासियों और आदिवासियों की बेदखली के मामले में सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंचमढ़ी और गिर जैसे देश के वन क्षेत्र शहरीकरण और पांच सितारा होटलों के निर्माण के कारण समाप्त हो गए हैं। इसके लिए राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और अदालतें भी जिम्मेदार हैं। ऐसे इको सेंसिटिव जगहों के खराब होने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए माननीय शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि जंगलों की रक्षा करने की आवश्यकता है। गुजरात में गिर नेशनल पार्क और मध्य प्रदेश में पंचमढी बायोस्फीयर रिजर्व बनाया गया है जहां होटल और रिसॉर्ट्स वन क्षेत्रों के अंदर आ गए हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा, क्या आप पंचमढ़ी गए हैं? आपने पंचमढ़ी को समाप्त कर दिया है। हम इसके लिए जिÞम्मेदार हैं, अदालतें जिÞम्मेदार हैं, आप जिÞम्मेदार हैं। यह सामाजिक कार्यकतार्ओं, राजनेताओं, अदालतों और अन्य लोगों की वजह से हुआ है।

आदिवासी भी हॉटल व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिये कर रहे जमीन हस्तांरित

पीठ ने कहा कि कभी-कभी वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी भी होटल और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के निर्माण के लिए अपनी जमीन हस्तांतरित करते पाए गए हैं। हम सभी जानते हैं कि इन जगहों पर क्या हो रहा है। बेदखली का विरोध कर रहे आदिवासी संगठनों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने पीठ से कहा कि वन क्षेत्रों के अंदर निर्माण गतिविधियों में लिप्त लोगों को बाहर निकाला जाना चाहिए लेकिन लाखों निर्दोष आदिवासियों को इस तरह नहीं फेंका जा सकता। पीठ ने इसे काफी महत्वपूर्ण मुद्दा करार देते हुए कहा कि वह 26 नवंबर को इस मामले में अंतिम बहस सुनेगी। शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (केंद्र शासित प्रदेशों) ने  विवरण देते हुए हलफनामा दायर किया है, जिसमें वन भूमि पर आदिवासियों के दावों को खारिज करने में अपनाई गई प्रक्रिया भी शामिल है।

एफएसआई को 30 अक्टूबर तक का समय दिया

गोंसाल्विस ने पीठ को बताया कि इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने हलफनामों में कहा है कि दावे को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया है। फॉरेस्ट सर्वे आॅफ इंडिया (एफएसआई) ने कहा कि उन्हें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जानकारी नहीं मिली है। एफएसआई के वकील ने कहा कि उन्होंने 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ संवाद किया है लेकिन केवल 11 से जानकारी प्राप्त की है। पीठ ने इसके लिए एफएसआई को 30 अक्टूबर तक का समय दिया।

उपग्रह सर्वेक्षण को पूरा करने में लगेंगे 16 वर्ष 

एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पीठ से कहा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा दायर प्रतिक्रियाएं बहुत अपर्याप्त हैं। दीवान ने पीठ को बताया कि एफएसआई ने कहा है कि उपग्रह सर्वेक्षण को पूरा करने में 16 वर्ष लगेंगे क्योंकि उनके पास सीमित जनशक्ति और संसाधन हैं। दीवान ने कहा कि उन्होंने एफएसआई को धन जारी करने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए एक आवेदन दायर किया है ताकि इसे जल्द से जल्द किया जा सके। पीठ ने आवेदन पर नोटिस जारी किया और केंद्र से इस पर जवाब देने को कहा।

जब चुनाव थे तो सभी को वनवासियों की चिंता थी

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि हमने मीडिया के माध्यम से जाना है कि 9 राज्यों ने दावों की जांच करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब चुनाव थे तो सभी को वनवासियों की चिंता थी। कोर्ट ने 12 सितंबर तक सात राज्यों और सात यूटी को सारा डेटा दाखिल करने को कहा था। वहीं 7 मार्च 2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से अलग-अलग जानकारी मांगी थी । जिसमें निवासियों द्वारा भूमि अधिकार के दावों की संख्या, नए दावे खारिज किए गए, उन दावेदारों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। जिनके दावे खारिज हुए, कोर्ट ने केंद्र से कहा पहले सो रहे थे और अब अंतिम अवस्था में जाग गए है। मार्च में करीब 12 लाख वनवासियों आदिवासियों को जंगल से बाहर निकालने के अपने पुराने आदेश पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाई थी। वहीं 16 राज्यों में रहने वाले आदिवासियों वनवासियों को बड़ी राहत दी थी। इन वनवासियों आदिवासियों के सरकारी जंगलों में रहने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से 4 महीने में विस्तृत योजना का ब्यौरा मांगा। राज्य बताएंगे कि वो कौन से उपाय होंगे जी के जरिए इन वनवासियों की जमीनों पर दबंग और अनधिकृत लोग कब्जा न कर सके।

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