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आठवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं है गोंडी भाषा ?

आठवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं है गोंडी भाषा ?

गोंडियन संस्कृति भाषा ही विश्व संस्कृति की जननी है

विशेष संपादकीय लेख 
/गोंडवाना समय/ 
गोंडी भाषा गोंडवाना भूभाग की भाषा है, मोहन जोदड़ो और हड़प्पा की लिपि अध्ययन से पता चल चुका है। भारत के व्यापक क्षेत्र की भाषा है, जिसका स्थान एक क्षेत्रीय भाषा से उपर उठकर पूरे में होना था किन्तु आर्यों के आक्रमण कर 5000 साल देश को गुलाम बना कर रखने से गोंडवाना की भाषा लिपि न होकर अभी भी मुह जुबानी बनी हुई है। गोंडी भाषा का शब्द कोष लिपि गोंडियन समुदाय के पास आज भी सुरक्षित है। समस्त भारत में किसी न किसी रूप में बोली और समझी जाती है। जब भारत गोंडवाना में दो विभिन्न प्रान्तों, समुदायों और भाषाओं के लोग आपस में अपनी बात करते हैं तो स्वाभाविक ही है कि वे गोंडी भाषा का ही सहारा लेते हैं। आप भारत के किसी भी ग्रामीण इलाके में जाए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, यूपी, बिहार, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, विदर्भ, महाराष्ट्र में जाएं वहां आप देखेंगे कि गोंडियन समुदाय अपनी भाषा में अपनी बात कहते हैं।
सभी गोंडियन के धार्मिक स्थलों मेलों अमरकण्टक मध्यप्रदेश, कछारगढ़ महाराष्ट्र, भीमाल पेन नागपुर महाराष्ट्र, बमलेश्वरी डोंगर गढ़ दन्तस्वरी छत्तीसगढ़,आदि धर्म स्थलों पर परस्पर बोलचाल का माध्यम किसी न किसी रूप में गोंडी में ही होती है। इस प्रकार गोंडी निश्चय ही, देश में परस्पर सम्पर्क ओर एकता की भाषा गोंडियन मूलनिवासियों की रही है और अभी भी है। यह देश की प्रथम संस्कृति  की भाषा है। इसी में देश की आत्मा निवास गोंडवाना में करती है। गोंडवाना की अस्मिता की पहचान भी इस से है। बहुत पहले 1928 में, मन्जोक पंडा सटारपेन गोंडियन साम्राज्य के पतन के समय कहा था, जिस भाषा का व्यवहार गोंडियन समुदाय के प्रत्येक गोंडियन प्रांत के लोग करते हैं। जो गोंडवाना साम्राज्य के राजा तथा जनता दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है और जिसे प्रत्येक गांव में सभी लोग समझते हैं, उसी का नाम गोंडी है।
तिरूमाल राजनेंगी रंगेल सिंह भलावी ने अपने ग्रन्थ कोया पुनेम ता सार में गोंडी भाषा की व्याख्या करते हुए ठीक ही लिखा है, गोंडी वास्तव में किसी एक ही भाषा अथवा बोली का नाम नहीं है अपितु एक गोंडवाना समाज की सामाजिक भाषा परम्परा की संज्ञा है। जबकि गोंडियन संस्कृति भाषा ही विश्व संस्कृति की जननी है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत के क्रांतिवीर राजा शंकर शाह जी और कुंवर रघुनाथ मरावी गोंडियन राजा गढ़ मण्डला मध्यप्रदेश राजा ने विशेष रूप से, राष्ट्रभाषा के रूप में ही इसकी पहचान की और इसे अपने आन्दोलन का अंग बनाया। इस प्रकार गोंडी एक क्षेत्रीय भाषा के रूप में सीमित न होकर समस्त राष्ट्र के परस्पर संवाद की भाषा है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद में गोंडी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित नही किया गया है, जबकि अंग्रेजी की स्थिति अस्थायी है, जिसका स्थान कालांतर में गोंडी को लेना है। संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की प्रमुख भाषाओं को भी शामिल किया गया है। संविधान के लागू होने के समय भी गोंडी भाषा को शामिल नहीं किया गया है। स्वतंत्रता संग्राम के समय गोंडियन क्रांतिकारी राजाओं के राज्य में गोंडी भाषा राज्य की भाषा थी। वहीं 52 गढ़ 57 परगना और 258 भारत की रियासतें जो गोंडी भाषीय थे।
अंग्रेजों के 1600 से 1947 तक जितने जुल्म नहीं किये गोंडियन समुदाय की भाषा पर उतने अत्याचार तो पूर्व से आक्रमण किये बैठे आर्यों ने किया जिसका प्रभाव अभी तक बना हुआ है। फलस्वरूप एकता के स्थान पर पृथकता की भावना बलवती होती गई। इसका प्रभाव भाषा पर भी पड़ा। गोंडी भाषा जो गोंडियन साम्राज्य की एकता की प्रतीक है। अब भारतीय गोंडियन समुदाय ने पृथक से आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की आवाज उठाने लगी है।
गोंडी भाषा और लिपि मोहन जोदडो की सभ्यता से लेकर अभी तक विद्यमान है। भारत देश में 22 राज्यों का निर्माण हुआ किन्तु गोंडवाना राज्य नहीं बना और गोंडी भाषा उस प्रदेश की भाषा नही बनी ये गोंडियन समुदाय की अश्रुपूर्ण कहानी हैंै। गोंडी भाषा के प्रयास में तेलंगाना राज्य मध्यप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ के गोंडियन राजनेता ओर साहित्यकारों ने अभी तक प्रयास जारी रखा है। डॉ. आचार्य धर्म गुरू हड़प्पा लिपि को पढ़ने वाले साहित्यकार मोती रावण कंगाली का गोंडियन भाषा में गोंडी व्याकरण गोंडी सीखे जेसे बहुत सी पुस्तकें गोंडियन समुदाय के लिए अनमोल उपहार है। गोंडियन संस्कृति विश्व संस्कृति की जननी कहने वाले गोंडवाना रत्न हीरा सिंह मरकाम कहते हें गोेंडी भाषा गोंडियन समुदाय की मां हैं।
गोंडी भाषा के सामने इसके बिखराव की समस्या आज के संकुचित राजनैतिक स्वार्थों के कारण उत्पन्न हो रही है। मैथिली को पहले ही आठवी अनुसूची में शामिल कर लिया गया है। अब भोजपुरी तथा राजस्थानी को शामिल किए जाने के लिए आवाजें उठ रही हैं। साहित्य अकादमी ने तो राजस्थानी को अपनी भाषाओं की सूची में पहले ही शामिल कर लिया है, जबकि राजस्थानी नाम की कोई एक मानक भाषा है ही नहीं। बिहार में श्री उमेश राय ने मैथिली और भोजपुरी के साथ-साथ बिहार की बज्जिका, अंगिका, और मघई को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है।
यदि उत्तर-प्रदेश के विभाजन की मांग जैसा कि कुछ लोग कर रहे हैं, स्वीकार कर ली जाती है तो वहां अवधी, बुंदेली, भोजपुरी को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग का उठना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ी के लिए भी ऐसी ही मांग की जा रही है। आज जो मांग इन बोलियों के लिए हो रही है यह कहना कठिन नहीं है कि कल ऐसी ही मांग कन्नौजी, ब्रज, पहाड़ी, गढ़वाली, कमांउनी तथा हरियाणवी के लिए भी होगी। अब आप ही सोचिए कि हिंदी किस क्षेत्र की भाषा रह जाएगी ? यह तो इन सभी उपभाषाओं तथा बोलियों का एक समष्टि रूप है।
भारत की जनगणना 2001 के अनुसार हिन्दी के अन्तर्गत 49 भाषा-बोलियां आती है। ऐसी मांगों से तो हिन्दी का समस्त साहित्य ही खंडित होकर रह जाएगा। हिन्दी में न विद्यापति रहेगा न सूर, न तुलसी न जायसी, न मीरा और न चन्दबरदायी  ही बच पाएगा। हिंदी का विभाजन गिलक्राईस्ट के प्रयत्नों से ब्रिटिश काल मे ंपहले ही हिन्दी और उर्दू के रूप में हो गया था। अब क्षेत्र के नाम पर भी उसके विभाजन का खतरा मंडराता नजर आ रहा है।
मैं भारत की अन्य भाषा/बोलियों के खिलाफ कतई नही हूं किन्तु गोंडी भाषा भारतीय गोंडवाना की जडेÞ हैं। इन्हें लुप्त होने से बचाया जाए। गोंडी की बोलियों का विकास अवश्य होना चाहिए किन्तु भाषा के विघटन के रूप में न होकर भाषा के संवर्धन के रूप में होना चाहिए। संविधान की आठवीं अनुसूची में गोंडी भाषा को शामिल किया जाये। ताकि गोंडी भाषीय जनगणना के समय इस भाषाओं को बोलने वालों की गणना गोंडी मे अलग हो जाएगी और हिन्दी बोलने वालों की संख्या घटती चल जाएगी। आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत में गोंडी बोलने वालों की संख्या लगभग 2 करोड़ के आसपास है।
गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने का दूसरा परिणाम यह होगा कि ग्रामीण स्तर पर गोंडी स्कूल खुल जाएंगे और गोंडी भाषा से ग्रामीण जनता समस्याओं से निजात पा लेंगे और ग्रामीण जन और आने वाली पीढ़ी अपनी भाषा और साहित्य को पढ़ पाएगी और समझ पाएगी।
मेरा मत है भारत देश के मध्य गोंडवाना तेलंगाना मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र उडीसा झारखंड बिहार आंध्रप्रदेश कर्नाटक आदि राज्यों के ग्रामीण भारत का विकास करना है तो ग्रामीणों की मातृभाषा गोंडी भाषा को 8 वी अनुसूची में शामिल कर उन भारतीय का सपना गर्मी और वन ग्रामों और बीहड़ जंगलों में रहने वाले समुदाय के विकास से ही निकल कर दिल्ली तक पहुंचेगा।
लेखक
लक्ष्मण मरावी राज 
गोंडियन परिक्षेत्र मण्डला मध्यप्रदेश

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