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आजादी के बाद भारत के मूलवासी आदिवासियों के साथ जनगणना में भी षडयंत्र आखिर क्यों ?

आजादी के बाद भारत के मूलवासी आदिवासियों के साथ जनगणना में भी षडयंत्र आखिर क्यों ?

जनगणना और धर्म कोड को लेकर 18 फरवरी को दिल्ली में धरना प्रदर्शन का ऐलान 

स्वतंत्र भारत में साजिश के तहत वर्ष 1961-62 की जनगणना प्रपत्र से हटा दिया गया

अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिये सर्वप्रथम और मुखर होकर विरोध का बिगुल फूंककर उलगुलान करने वाले सिर्फ और सिर्फ आदिवासी ही है। अंग्रेजों ने अपनी ताकत के बल पर लगभग सभी समुदाय को झुका लिया था अर्थात गुलाम बना लिया था लेकिन आदिवासियों को झुकाने में अंग्रेजी हुकुमत सफल नहीं हो पाये उसके बाद भी अंग्रेजी हुकुमत के दौरान आदिवासियों की जनगणना में ईमानदारी बरती गई और बकायदा जनगणना के दौरान आदिवासियों की गणना की गई लेकिन हजारों लाखों की संख्या में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिये प्राण गंवाने वाले आदिवासी समुदाय के सगाजनों को आजाद भारत में षडयंत्र या साजिश रचकर वर्ष 1961-62 की जनगणना प्रपत्र से हटा दिया गया आखिर क्यों, इसके पीछे क्या कारण है। भारत में जिनकी संख्य हजारों लाखों में होगी उनके धर्म को भी संविधान में मान्यता दी गई है लेकिन आदिवासी धर्म कोड आज भी नहीं मिला है वहीं उन्हें जनगणना के प्रपत्र से भी अलग कर दिया गया है यह आदिवासियों के साथ अन्याय है। जबकि देश के सम्माननीय सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य न्यायालयों में भी फैसला सुनाया है कि आदिवासियों का अपना अलग धर्म, रीति-रिवाज पंरपरा है उसके बाद भी आदिवासियों की जनसंख्या को जनगणना के प्रपत्र में नहीं जोड़ा जाना कहां का न्याय है।  

सिवनी। गोंडवाना समय। 
आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये बताया कि भारत की जनगणना अंग्रेजो के शासन के समय वर्ष 1871-72 में शुरू हुई तब से जनगणना प्रत्येक दस वर्ष में की जाती है। भारत में जनगणना अंतिम बार वर्ष 2011-12 में हुई है तथा वर्ष 2021-22 में पुन: जनगणना किया जाना है। इस देश में आदिवासियों की जनगणना वर्ष 1871-1872 से वर्ष 1951-52 तक से होती थी। जिसे स्वतंत्र भारत में साजिश के तहत वर्ष 1961-62 की जनगणना प्रपत्र से हटा दिया गया। विदित हो की भारत का संविधान एवं सरकारी रिपोर्ट के अनुसार आदिवासियों की परंपरा एवं संस्कृति अन्य धर्मो से भिन्न और अलग है अतएव उन्हें विलुप्त कर देना प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है। 

आदिवासियों की अलग से जनगणना प्रपत्र में गणना नहीं करना चिंता का विषय 

आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि भारत की जनगणना रिपोर्ट वर्ष 2011 के अनुसार आदिवासियों की संख्या लगभग 12 करोड़ है जो देश के कुल आबादी का 9.92 प्रतिशत है । इसके बावजूद जनगणना प्रपत्र में अलग से गणना नहीं करना चिंता का विषय है। वर्तमान में भारत देश में 781 समुदाय के आदिवासी समाज सगाजन निवासरत है। जिनके द्वारा हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध छह धर्माें सहित जनगणना प्रपत्र में कुल 83 कॉलम भरे जा रहे है। 

रूढ़ीवादी प्रथा को कायम रखने हेतु आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिये 

आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि आदिवासियों को रूढ़ीप्रथा पर विधि का बल प्राप्त है जिसके कारण 
आदिवासी समाज अपनी पहचान, अपनी पंरपरा, अपनी संस्कृति व मान्यता को बचाये रखा है। जिसे संरक्षित व सुरक्षित करने के उद्देश्य से सभी आदिवासी समाज संगठित होकर विगत 4 वर्षों से निरंतर राष्ट्रीय स्तर पर जगह-जगह पर सेमीनार आयोजित कर जागरूक कर रहे है। रूढ़ीवादी प्रथा को कायम रखने हेतु आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिये। 

यह आदिवासी समुदाय के लिये है चिंता का विषय 

आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि इस हेतु अण्डमान निकोबार के सेमीनार में एक समिति गठित किया गया। जिसमें सभी राज्यों के आदिवासियों द्वारा जनगणना प्रपत्र में ट्राईबल शब्द लिखने हेतु सहमति बनी है। ट्राईबल शब्द पूर्णत: संवैधानिक है एवं संवैधानिक रूप से जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिये। चूंकि राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आदिवासी बहुसंख्यक है किंतु हमारी जनगणना कम बताई जाती है, यह आदिवासी समुदाय के लिये चिंता का विषय है। 

अन्यथा आने वाले समय में आदिवासियों का अस्तित्व एवं अस्मिता खतरे में पड़ जायेगा

आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि जिसके कारण राष्ट्रीय आदविासी इंडीजीनियस धर्म समन्वय समिति नई दिल्ली के तत्वाधान में 18 फरवरी 2020 को भारत के सभी आदिवासी समुदाय के द्वारा जनगणना प्रपत्र में ट्राईबल शब्द लिखे जाने हेतु दिल्ली के जंतर-मंतर में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन एवं ज्ञापन केद्र सरकार को सौंपा जावेगा। दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय धरना प्रदर्शन कार्यक्रम में इंडीजीनियस धर्म धर्म समन्वय समिति नई दिल्ली भारत के समस्त आदिवासियों से अपील किया है कि इस संवैधानिक मांग को सफल बनाने हेतु अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होवे अन्यथा आने वाले समय में आदिवासियों का अस्तित्व एवं अस्मिता खतरे में पड़ जायेगा। 

शरद पवार और कमल नाथ उठायेंगे आदिवासियों की आवाज

बीते दिनों मध्य प्रदेश की व्यापारिक राजधानी इंदौर में आदिवासियों के सम्मेलन में टंटया मामा की प्रतिमा लगाने के लिये संसद में आवाज उठाने की बात कहा था और भी अनेक वायदा व घोषणा आदिवासियों के हित में किया था लेकिन क्या जनगणना में ही आदिवासियों की जनसंख्या की गणना नहीं किया जाना या उनके धर्म को नहीं लिखे जाने के मामले में एनसीपी सुप्रीमों श्री शरद पवार और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आवाज उठायेंगे वहीं आदिवासी समाज की भीड़ इक्कठा करने वाले आदिवासी समुदाय के सामाजिक नेता भी एनसीपी सुप्रीमो श्री शरद पवार और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ आदिवासियों के लिये जनगणना में आदिवासियों के गणना एवं धर्म को लेकर आवाज उठाने के लिये चर्चा करेंगे या चुप्पी साधेंगे यह आदिवासी समाज के सामाजिक नेताओं पर निर्भर करता है। 

आदिवासी को हिन्दु धर्म लिखने के लिये मनायेगी आरएसएस 

आदिवासियों के धर्म कोड को लेकर एक बार फिर से राजनीति गरमा गई है। बीते दिनों संघ की भोपाल में हुई बैठक में इस तरह का एजेंडा सामने आने के बाद बीजेपी आरएसएस के आदेश पर आदिवासियों के बीच पहुंचकर आदिवासियों को समझाने का काम करेगी जबकि आदिवासी संगठन खुद लंबे वक्त से अलग धर्म कोड की मांग कर रहे हैं। वहीं संघ को बढ़ते धर्मांतरण और हिंदुओं की कम होती संख्या की चिंता सता रही है। सूत्र बताते हैं कि संघ की बैठक के आखिरी दिन भोपाल में आरएसएस सुप्रीमो मोहन भागवत ने आदिवासियों के धर्म को लेकर चर्चा किया है। संघ के अनुशांगिक संगठनों से चर्चा के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि आदिवासियों के बीच जाकर कार्यकतार्ओं को काम करना होगा। उन्होंने कहा कि यह कोशिश होगी कि आदिवासी इस बात के लिए जागरूक हों कि वो अपने आप को हिंदू कहें भी और मानें भी वहीं हाल ही में लोकसभा में पेश सीएए बिल के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदुओं की घटती संख्या का जिक्र किया था। संघ के एक सर्वे के मुताबिक वर्ष 2001 से 2011 की जनगणना में आदिवासियों ने धर्म के कॉलम में हिंदू की जगह अन्य लिखा था। ये हिंदुओं की संख्या कम हो जाने की एक वजह बन रहा है। संघ मानता है कि आदिवासियों का बड़ा तबका खुद को हिंदू नहीं मान रहा और जो मानता है उसका धर्मांतरण तेजी से हो रहा है। इसे रोकने की जरूरत है, गौरतलब है कि हाल ही में बैतूल के कुछ आदिवासी संगठनों ने सीएए से विरोध में आवाज उठाई थी और कागज नहीं दिखाने का ऐलान किया था। आरएसएस का मानना है कि बड़े पैमाने पर विदेशी ताकतें आदिवासियों का धर्मांतरण करवा रही हैं, ये चिंता का विषय है। आदिवासी हिंदू धर्म से दूर होता जा रहा है,आदिवासी लंबे वक्त से अलग धर्म कोड की मांग कर रहे हैं। आदिवासियों के कई समुदाय खुद को हिंदू नहीं मानते और खुद के लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर न्यायालय की शरण में हैं। यह पहली बार नहीं है कि आरएसएस ने आदिवासियों को लेकर अपना एजेंडा साफ किया हो लेकिन जब एनपीआर, सीएए और एनआरसी का? मामला सुर्खियों में हो तो ये बयान ने मामले को गरमा दिया है।

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1 Comments
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  1. कुछ आदिवासी कर्मचारी आरएसएस और बीजेपी का साथ दे रहे हैं ओर गांवों में हिन्दू प्रवचन करवा रहे हैं।

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